औद्योगीकरण क्या है इसके दो प्रभाव बताइए? - audyogeekaran kya hai isake do prabhaav bataie?

हेलो दोस्तों मेरा नाम भूपेंद्र है। और आज के इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे औद्योगिक क्रांति के कारण इसके बारे में हम आपको पूरी जानकारी देंगे। इसलिए आप हमारे इस आर्टिकल को पूरा पढ़ें और ऐसी ही जानकारी के लिए हमारी वेबसाइट पर जाएं।

औद्योगिक क्रांति के लिए निम्नलिखित प्रमुख कारण–

1. उपनिवेशो की स्थापना- नवीन भौगोलिक खोजो ने यूरोप के देशों को अपने उपनिवेश स्थापित करने की प्रेरणा दी। अल्प समय में ही इंग्लैंड, फ्रांस, स्पेन और हालैंड आदि कई देशों ने संसार के कोने कोने में अपने उपनिवेश स्थापित कर लिए।

औद्योगीकरण क्या है इसके दो प्रभाव बताइए? - audyogeekaran kya hai isake do prabhaav bataie?
औद्योगीकरण के क्या कारण थे।

इन उपनिवेश ओ तक पहुंचने के लिए यूरोप के देशों को आवागमन के साधनों का विकास करना पड़ा। साथ ही इन उपनिवेशन से कच्चे माल की प्राप्ति हुई। और पक्के माल के लिए बाजार उपलब्ध है। इस प्रकार उपनिवेशन की स्थापना ने औद्योगिक क्रांति लाने में विशेष सहायता प्रदान की

2. वस्तुओं की मांग में वृद्धि- यूरोप के देशों का व्यापार तेजी से बढ़ रहा था। व्यापारी पूर्व के देशों के साथ खूब व्यापार करते एवं लाभ कमाते थे। उपनिवेशो की स्थापना के बाद वे अपना माल उपनिवेश ओं में भी बेचने लगे। इस प्रकार उनके माल की मांग बराबर बढ़ रहे थे।

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‌व्यापारी अधिक से अधिक उत्पादन करके अधिक से अधिक माल बेचना चाहते थे किंतु मात्र कुटीर उद्योगों से अधिक उत्पादन नहीं हो सकता था; अतः बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए विशाल मिलौं की स्थापना की गई, जिससे कम मूल्य पर अधिक उत्पादन संभव हो सके।

प्रश्न 59. औद्योगीकरण के अर्थ को स्पष्ट कीजिये? तथा  भारतीय समाज पर औद्योगीकरण के दो प्रभावों को समझाइए।

उत्तर-

औद्योगीकरण का अर्थ -

औद्योगीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत मशीनों द्वारा बड़ी मात्रा में उत्पादन करके अधिक से अधिक लाभ प्राप्त करने का प्रयत्न किया जाता है। इस प्रक्रिया के फलस्परूप आज हमारे सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक और ग्रामीण जीवन में व्यापक परिवर्तन हुए हैं। भारतीय समाज पर औद्योगीकरण के प्रभाव -

भारत में औद्योगिकीकरण के मुख्यतः प्रभाव निम्न हैं :

1. सामाजिक जीवन में परिवर्तन- औद्योगिक स्थानों पर बड़ेबड़े नगरों का विकास हुआ । नगरीय समुदाय के सदस्य विभिन्न गाँवों से सम्बन्धित होते हैं, जिनमें 'हम' भावना का अभाव रहता है । क्योंकि एक स्थान पर रहते हुए भी इनकी पृष्ठभूमि अलगअलग होती है । समूह बड़ा होने के कारण सब वैयक्तिक होते हैं। ग्रामीण समुदाय की आत्मीयता का यहाँ अभाव पाया जाता है । नगरों में अत्यधिक व्यक्तिवादिता पायी जाती है । प्रत्येक व्यक्ति समाज में अपनी स्थिति अर्जित कर सकता है । गुणों के आधार पर वह अपना स्थानान्तर भी कर सकता है । व्यक्ति की सामाजिक पहचान उसके अपने गुणों पर निर्भर है । लेकिन कृषि प्रधान समाजों में प्रत्येक व्यक्ति अपने लिए नहीं सोचता था । उसकी स्थिति पारिवारिक स्थिति पर निर्भर थी । परिवार के सभी सदस्य एक साथ मिलकर कार्य करते थे, जिससे किसी को भी पृथक् श्रम का मूल्य नहीं मिलता है । परन्तु औद्योगिक केन्द्रों में परिवारों के प्रत्येक सदस्य भिन्न-भिन्न कार्य करते हैं और उनके वेतन में भी भिन्नता पाई जाती है । वे जो भी कमाते हैं, स्वयं पर व्यय करना चाहते हैं।

2. धार्मिक जीवन पर प्रभाव - औद्योगीकरण का सम्बन्ध वैज्ञानिक आविष्कारों से है, इसलिए उद्योगीकरण के साथ-साथ धर्म का महत्व घटता है । वैज्ञानिक विचार धार्मिक अन्धविश्वासों को पनपने नहीं देते । औद्योगिक केन्द्रों में विभिन्न धर्मों, प्रजातियों के लोग इकट्ठे कार्य करते हैं जिससे उनमें एक दूसरे के धर्म के प्रति सहनशीलता का विकास होना स्वाभाविक है । इसके परिणामस्वरूप धर्म सम्बन्धी संकीर्णता स्वयंमेव दूर हो जाती है । बड़े-बड़े कारखानों में लोग मशीन और पूँजी को भगवान के समान पूजते हैं, क्योंकि उनकी सहायता मशीनों सम्बन्धी ज्ञान और धनोपार्जन की योग्यता पर निर्भर है ।

3. राज्य के कार्यों में परिवर्तन- औद्योगीकरण के कारण आर्थिक व्यवस्था जटिल होती जाती है जिससे राज्य का उत्तरदायित्व भी बढ़ता जाता है । उदाहरणार्थ, औद्योगीकरण से एक नया श्रमिक वर्ग उत्पन्न हुआ है। यह वर्ग अत्यधिक दयनीय अवस्था में है। इनके अधिकारों की रक्षा करना राज्य का उत्तरदायित्व है । श्रमिक कल्याण, वेतन, छुट्टी, काम के घण्टे, नियुक्ति आदि से सम्बन्धित अनेक अधिनियमों को आज सरकार को पास करना पड़ता है । केवल इतना ही नहीं, जनता के आर्थिक हित की अधिकतम रक्षा के लिए राज्य अनेक उद्योगों का राष्ट्रीकरण कर रहा है । राज्य का एक नियन्त्रक की एजेंसी के रूप में भी कार्य-क्षेत्र बढ़ गया है । औद्योगिक केन्द्रों में विभिन्न सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के लोग इकट्ठे कार्य करते हैं । उनके अपने रहन-सहन के ढंग है जो अन्तर्वर्गीय सम्बन्धों को नियन्त्रित नहीं कर पाते । ऐसी अवस्था में कानून, न्यायालयों, पुलिस और सेना के द्वारा सामाजिक सम्बन्धों को व्यवस्थित किया जाता है ।

4. आर्थिक जीवन पर प्रभाव- औद्योगीकरण के फलस्वरूप भारतीय आर्थिक व्यवस्था में मूलभूत परिवर्तन हुए हैं । आदि काल से भारत एक कृषि प्रधान देश रहा है, उसकी आर्थिक संस्थाएँ कृषि व्यवसाय के अनुकूल ही विकसित हुई है। यह आर्थिक व्यवस्था औद्योगिक व्यवसाय के अनुकूल नहीं है जिससे औद्योगीकरण के साथ-साथ उनमें परिवर्तन होना आवश्यक है।

1. नगरीकरण- औद्योगीकरण के कारण विशाल नगरों का विकास हुआ। जहां उद्योग स्थापित हो जाते हैं वहां कार्य करने के लिए गांव के अनेक लोग आकर बस जाते हैं और धीरे-धीरे वह स्थान औद्योगिक नगर का रूप ले लेता है।

2. यातायात के साधनों का विकास – उद्योगों का जब यन्त्रीकरण हुआ तो उत्पादन की गति तीव्र हुई। कारखानों में कच्चे माल को तथा निर्मित माल को मण्डियों में पहुँचाने के लिए तीव्रगामी यातायात के साधनों की आवश्यकता महसूस हुई। परिणामस्वरूप रेल, मीटर, ट्रक, वायुयान, जहाज, आदि का आविष्कार हुआ। कच्ची एवं पक्की सड़कें बनी और वातावरण के साधनों का जाल बिछ गया।

3. श्रम विभाजन एवं विशेषीकरण- ग्रामीण कुटीर व्यवसायों में एक परिवार के व्यक्ति मिलकर ही सम्पूर्ण निर्माण की प्रक्रिया में हाथ बंटाते थे, किन्तु जब उत्पादन मशीनों की सहायता से होने लगा तो सम्पूर्ण उत्पादन प्रक्रिया को अनेक छोटे-छोटे भागों में बांट दिया गया। आलपिन का निर्माण भी अस्सी से अधिक छोटी-छोटी प्रक्रियाओं से होता है। इसी कारण श्रम विभाजन का उदय हुआ। फिर एक व्यक्ति सम्पूर्ण उत्पादन प्रक्रिया के मात्र एक भाग को ही कर सकता था। उदाहरणार्थ वस्त्र निर्माण में कुछ व्यक्ति धागा बनाने तो कुछ वस्त्र बुनने और कुछ उन्हें रंगने के विशेषज्ञ होते हैं।

4. उत्पादन में वृद्धि – औद्योगीकरण में श्रम विभाजन एवं विशेषीकरण के कारण मशीनों के प्रयोग से उत्पादन बड़े पैमाने पर तीव्र मात्रा में होने लगा। अधिक उत्पादन के कारण माल खपत के क्षेत्र में वृद्धि बेकारी पनपेगी। 1932 में मशीनीकरण के कारण इतना उत्पादन हुआ कि माल बाजारों में भर गया, कारखाने बन्द करने पड़े और उनमें लगे हुए अनेक श्रमिक बेकार हो गए।

5. कुटीर उद्योगों का हास- औद्योगीकरण से पूर्व उत्पादन कुटीर उद्योगों द्वारा होता था, किन्तु जब मशीनों की सहायता से उत्पादन होने लगा जो कि हाथ से बने माल की अपेक्षा सस्त, सुन्दर साफ व टिकाऊ होता था तो उसके सामने गृह उद्योग द्वारा निर्मित माल टिक नहीं सका। धीरे-धीरे कुटीर व्यवस्था समाप्त होने लगे और उनमें काम करने वाले तथा उनके मालिक कारखानों में श्रमिक के रूप में सम्मिलित हुए। कुटीर व्यवसायों में व्यक्ति को काम करने के बाद जो मानसिक आनन्द मिलता था, वह कारखानों से समाप्त हो गया। इसका कारण यह था कि अब यह सम्पूर्ण उत्पादन की मात्रा एक छोटी-सी प्रक्रिया में ही भाग लेता था। इस प्रकार औद्योगीकरण से ग्रामीण एवं गृह कला का ह्यास हुआ।

6. आर्थिक संकट व पराश्रितता- उद्योगों में लाभ तभी होता है जब उत्पादन अधिक मात्रा में और तीव्र गति से हो। इसके अभाव में मिल मालिक कारखाने बन्द कर देते हैं, आर्थिक मन्दियां आती हैं, मजदूर बेकार हो जाते हैं, माल तो सस्ता होता है, लेकिन माल खरीदने के लिए लोगों के पास पैसा नहीं होता है।

औद्योगीकरण के कारण गांवों की आत्मनिर्भरता समाप्त हुई। एक गांव की दूसरे गांव पर ही नहीं वरन् एक राष्ट्र की दूसरे राष्ट्र पर निर्भरता बढ़ी। कच्चा माल खरीदने एवं बने हुए माल को बेचने के लिए दो देशों में समझौते हुए एवं पारस्परिक निर्भरता बढ़ी। आज एक देश के आर्थिक विकास में प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप में दूसरे देशों का भी योगदान है। यदि अरब राष्ट्र भारत को तेल बन्द कर दें या अमरीका यूरेनियम देना बन्द कर दे तो भारत की अर्थव्यवस्था पर इसका विपरीत प्रभाव पड़ेगा।

7. मकानों की समस्या- उद्योगों में काम करने के लिए गांव से लोग नगरों में हजारों की संख्या में आते हैं। परिणामस्वरूप उनके निवास की समस्या पैदा होती है। नगरों में हवा व रोशनी वाले मकानों का अभाव रहा है। मकान महंगे होने के कारण कई व्यक्ति मिलकर एक ही कमरे में रहने लगते हैं। औद्योगिक केन्द्रों में मकान भीड़-भाड़युक्त सीलन भरे एवं बीमारियों के घर होते हैं। औद्योगीकरण न गन्दी बस्तियों की समस्या को भी जन्म दिया है।

8. स्वास्थ्य की समस्या – अनेक कारखानों का वातावरण स्वास्थ्य के लिए हानिप्रद होता है। कारखानों की गड़गड़ाहट बहरेपन को जन्म देती है। कपड़े के कारखाने तथा सोप स्टोन के कारखानों में काम करने वालों की आंखों एवं फेफड़ों में रुई के रेशे तथा मिट्टी का प्रवेश होता है। कारखानों का अस्वास्थ्यकर वातावरण क्षय रोग, अपच एवं अन्य बीमारियों को जन्म देता है। मिलों का धुआं वायु प्रदूषण फैलाता है। औद्योगिक नगरों की भीड़-भाड़ व चिल्लपौं स्वास्थ्य के लिए हानिप्रद होती है।

9. दुर्घटनाओं में वृद्धि – उद्योगों में चौबीसों घण्टे काम चलता रहता है। थोड़ी-सी असावधानी या थकान से निद्रा आने पर हाथ-पांव कटने व स्वयं को मृत्यु के मुख से धकेलने के अवसर होते हैं। सामान लाने-ले-जाने वाले ट्रकों, बसों एवं रेलों दुर्घटनाएं आए दिन होती रहती हैं। इस प्रकार औद्योगीकरण ने दुर्घटनाओं की संख्या बढ़ा दी है।

10. बैंक, बीमा एवं साख व्यवस्था का उदय – उद्योगों को सुविधाएं देने, – उनके लिए पूंजी जुटाने एवं माल की सुरक्षा के लिए बैंक, बीमा एवं साख व्यवस्था का उदय हुआ। आज हजारों लोग बैंकों एवं बीमा कार्यालय में काम करते हैं। उधारी से लेन-देन बढ़ा है। आज व्यक्ति अपने पद, हस्ताक्षर एवं मोहर से जाना जाने लगा है।

11. आर्थिक प्रतिस्पर्द्धा- औद्योगीकरण ने आर्थिक प्रतिस्पर्द्धा को जन्म दिया। एक कारखाने की दूसरे से व एक पूंजीपति की दूसरे पूंजीपति से गलाकाट प्रतियोगिता (Cut throat Competition) होने लगी है। इस प्रतिस्पर्धा में अधिक पूंजी वाला कम पूंजी वाले के व्यवसाय को नष्ट कर देता है और अपना एकाधिकार स्थापित कर लेता है। एकाधिकार कायम होने पर वह माल को अपनी मनचाही कीमत पर बेचता है। वह बाजार से माल गायब करा देता है और महंगाई बढ़ जाती है।

12. औद्योगीकरण के सामाजिक प्रभाव ( Social Effects of Industrialization ) – औद्योगीकरण ने मानव के सामाजिक जीवन में अनेक परिवर्तन उत्पन्न किए हैं। बार्न्स का मत है कि औद्योगिक क्रान्ति जिसके कारण मानव इतिहास में महान परिवर्तन आये हैं, ने प्राथमिक सामाजिक पद्धतियों की नीवों को ही खोद डाला है।

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