नियम के कितने प्रकार के होते हैं? - niyam ke kitane prakaar ke hote hain?

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Published in Journal

Year: Jun, 2019
Volume: 16 / Issue: 9
Pages: 573 - 576 (4)
Publisher: Ignited Minds Journals
Source:
E-ISSN: 2230-7540
DOI:
Published URL: http://www.ignited.in/I/a/231793
Published On: Jun, 2019

Article Details

योग के अनुसार यम-नियम का स्वरूप | Original Article


नियम कितने प्रकार के होते हैं

ध्यान : अनुभव करें, विचारें नहीं

Submitted by fizikamind on 25 September 2021 - 6:46am

तुम बगीचे में बैठे हो और सड़क पर ट्रैफिक है, शोरगुल है और तरहत्तरह की आवाजें आ रही हैं। तुम अपनी आंखें बंद कर लो और वहां होने वाली सबसे सूक्ष्म आवाज को पकड़ने की कोशिश करो। कोई कौआ कांव-कांव कर रहा है; कौए की इस कांव-कांव पर अपने को एकाग्र करो। सड़क पर यातायात का भारी शोर है, इसमें कौए की आवाज इतनी धीमी है, इतनी सूक्ष्म है कि जब तक तुम अपने बोध को उस पर एकाग्र नहीं करोगे तुम्हें उसका पता भी नहीं चलेगा। लेकिन अगर तुम एकाग्रता से सुनोगे तो सड़क का सारा शोरगुल दूर हट जाएगा और कौए की आवाज केंद्र बन जाएगी। और तुम उसे सुनोगे, उसके सूक्ष्म भेदों को भी सुनोगे। वह बहुत सूक्ष्म है, लेकिन तुम उसे सुन पाओग Read More : ध्यान : अनुभव करें, विचारें नहीं about ध्यान : अनुभव करें, विचारें नहीं

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अनियमित जीवनशैली से अनियमित भविष्य निकलता है, जिसमें दु:ख और रोग के सिवाय कुछ भी नहीं होता। नियम के माध्यम से शरीर और मन को सेहतमंद बनाया जा सकता है। आष्टांग योग के दूसरे अंग नियम भी पाँच प्रकार के होते हैं : (1)शौच, (2) संतोष, (3)तप, (4)स्वाध्याय और (5)ईश्वर प्राणिधान।

(1)शौच- शरीर और मन की पवित्रता ही शौच है। शरीर और मन की पवित्रता से रोग और शोक का निदान होता है। शरीर की पवित्रता के लिए मिट्टी, उबटन, त्रिफला, नीम आदि लगाकर निर्मल जल से स्नान कर शुद्ध होते हैं और काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार को त्यागने से मन की शुद्धि होती है।

(2)संतोष- मेहनत और लगन द्वारा प्राप्त धन-स‍म्पत्ति से अधिक की लालसा न करना, न्यूनाधिक की प्राप्ति पर शोक या हर्ष न करना ही संतोष है। संतोषी सदा सुखी। अत्यधिक असंतोष से मन में बेचैनी और विकार उत्पन्न होता है, जिससे शरीर रोगग्रस्त हो जाता है।


(3)तप- सुख-दुख, भूख-प्यास, मान-अपमान, हानि-लाभ आदि को दृड़ता से सहन करते हुए मन और शरीर को विचलित न होने देना ही तप है। भोग-संभोग की प्रबल इच्छा पर विजय पाना भी तप है। तप है-इंद्रिय संयम। तप से शरीर और मन मजबूत होते हैं।


(4)स्वाध्याय- स्वाध्याय का अर्थ है स्वयं का अध्ययन करते हुए विचार शुद्धि और ज्ञान-प्राप्ति के लिए सामाजिक, वैज्ञानिक तथा आध्यात्मिक विषयों का नित्य-नियम से पठन-मनन करना। कहते हैं कि ज्ञान ही दुखों से छुटकारा पाने का रास्ता है।
(5)ईश्वर प्राणिधान- इसे शरणागति योग या भक्तियोग भी कहा जाता है। मन की स्थिरता और शरीर की शांति के लिए केवल एक ईश्वर को ही अपना ईष्ट बनाएँ, जिससे मन भ्रम और भटकाव से छुटकर उर्जा को संवरक्षित करने लगेगा।

मन, वचन और कर्म से ईश्वर की आराधना करना और उनकी प्रशंसा करने से चित्त में एकाग्रता आती है। इस एकाग्रता से ही शक्ति केंद्रित होती है जो दुख और रोग से लड़ने की ताकत देती है। 'ईश्वर पर कायम' रहने से शक्ति का बिखराव बंद होता है।
यौगा पैकेज : प्राणायाम से निगेटिव ऊर्जा का निकास होता है। कपालभाति और भस्त्रिका किसी योग शिक्षक की सलाह अनुसार करें। प्रतिदिन सूर्य नमस्कार करें। ज्ञान, पृथिवि, वरुण, वायु, शून्य, सूर्य, प्राण, लिंग, अपान और अपान वायु मुद्रा करने से सभी तरह के रोगों में लाभ प्राप्त किया जा सकता है। दस मिनट का ध्यान आपको रिफ्रेश कर देगा।

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योग के सन्दर्भ में, स्वस्थ जीवन, आध्यात्मिक ज्ञान, तथा मोक्ष की प्राप्ति के लिये आवश्यक आदतों एवं क्रियाकलापों को नियम कहते हैं।

महर्षि पतंजलि द्वारा योगसूत्र में वर्णित पाँच नियम-
  1. शौच
  2. सन्तोष
  3. तपस
  4. स्वाध्याय
  5. ईश्वरप्रणिधान
हठयोगप्रदीपिका में वर्णित दस नियम-
  1. तपस
  2. सन्तोष
  3. आस्तिक्य
  4. दान
  5. ईश्वरपूजन
  6. सिद्धान्तवाक्यश्रवण
  7. हृ
  8. मति
  9. जाप
  10. हुत

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श्रेणी:

  • योग

नियम कितने प्रकार के होते हैं?

नियम के माध्यम से शरीर और मन को सेहतमंद बनाया जा सकता है। आष्टांग योग के दूसरे अंग नियम भी पाँच प्रकार के होते हैं : (1)शौच, (2) संतोष, (3)तप, (4)स्वाध्याय और (5)ईश्वर प्राणिधान।

नियम के कितने भाग हैं?

महर्षि पतंजलि ने योग को आठ भागों (नियमों) में बांटा है जिसे अष्टांग योग कहते हैं। यम : इसमें सत्य व अहिंसा का पालन करना, चोरी न करना, ब्रह्मचर्या का पालन व ज्यादा चीजों को इक्कठा करने से बचना शामिल है। नियम : ईश्वर की उपासना, स्वाध्याय, तप, संतोष और शौच महत्वपूर्ण माने गए हैं

नियम के कौन कौन से अंग है?

मूल नियम 8 : इन नियमों का निर्वचन करने को केवल राष्ट्रपति को है ।

यम के कितने नियम है?

शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय तथा ईश्वर-प्रणिधान ये पाँच नियम है । नियम अष्टांग योग का दूसरा आधारभूत विशेष अंग है ।