लेखिका ने बच्चों की शिक्षा के लिए क्या प्रयास किए? - lekhika ne bachchon kee shiksha ke lie kya prayaas kie?

लेखिका ने बच्चों को शिक्षा दिलाने के लिए स्कूल खोला। आप अपने आसपास ऐसे बच्चे देखते होंगे जो स्कुल नहीं जाते हैं। आप इन बच्चों के लिए क्या प्रयास करना चाहोगे? लिखिए।

लेखिका ने कर्नाटक के एक छोटे से कस्बे में स्कूल खोलने की प्रार्थना कैथोलिक विशप से की परंतु वहाँ क्रिश्चियन बच्चों की संख्या कम होने के बारण वे स्कूल खोलने को तैयार नहीं हुए। लेखिका ने वहाँ स्कूल खोलकर ऐसे बच्चों को शिक्षा उपलब्ध करवाई।
हमारे समाज में हमारे आसपास भी ऐसे बहुत से बच्चे हैं जो विभिन्न परिस्थितियों के कारण स्कूल न जाने के कारण स्कूल से वंचित हैं। ऐसे बच्चे को शिक्षित करने के लिए मैं-

  • उनके माता-पिता और अभिभावकों को शिक्षा का महत्त्व बताऊँगा।
  • ऐसे बच्चों को मैं अपने खाली समय में पढ़ाने की व्यवस्था कराँगा।
  • अपने सहपाठियों से कहूँगा कि ऐसे बच्चों को पढ़ाने के लिए वे भी आगे आएँ।
  • ऐसे बच्चों को अपने साथियों की मदद से पुस्तकें, कापियाँ एवं अन्य आवश्यक सामग्री उपलब्ध कराने का प्रयास करूंगा।
  • समाज के धनी वर्ग से अनुरोध करूँगा कि ऐसे बच्चों की शिक्षा का खर्च उठाने के लिए आगे आएँ और उनका भविष्य सँवारने का प्रयास करें।

Concept: गद्य (Prose) (Class 9 A)

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'शिक्षा बच्चों का जन्मसिद्ध अधिकार है' - इस दिशा में लेखिका के प्रयासों का उल्लेख कीजिए।

लेखिका बच्चों की शिक्षा के प्रति बहुत जागरूक थीं। उनके अनुसार हर बच्चे को शिक्षा पाने का अधिकार था। इसी उद्देश्य से उन्होंने कर्नाटक के छोटे से कस्बे, बागलकोट में बच्चों के लिए जहाँ स्कूल का अभाव था, कैथोलिक बिशप से स्कूल खोलने का आग्रह किया। चूंकि वहाँ क्रिश्चयन बच्चों की संख्या अधिक नहीं थी इसलिए बिशप ने उनकी दरखास्त को नामंजूर कर दिया। लेखिका इससे हताश नहीं हुईं अपितु अपने प्रयासों से उन्होंने तीन भाषाएँ पढ़ाने वाला (अंग्रेज़ी, हिंदी, कन्नड़) स्कूल स्वयं आरंभ कर दिया और उसे वहाँ मान्यता भी दिलवाई।

Concept: गद्य (Prose) (Class 9 A)

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पृष्ठ संख्या : 26 

1. लेखिका ने अपनी नानी को कभी देखा भी नहीं फिर भी उनके व्यक्तित्व से वे क्यों प्रभावित थीं ?

उत्तर 

लेखिका ने अपनी नानी को कभी देखा भी नहीं था, किंतु उनके बारे में सुना अवश्य था।  उसने सुना था कि उसकी नानी ने अपनी जीवन के अंतिम दिनों में प्रसिद्व क्रांतिकारी प्यारेलाल शर्मा से भेंट की थी| उस भेंट में उन्हों ने यह इच्छा प्रकट की थी कि वे अपनी बेटी की शादी किसी क्रांतिकारी से करवाना चाहती है, अंग्रेजों के किसी भक्त से नहीं। उनकी इस इच्छा में देश की स्वतंत्रता की पवित्र भावना थी।  यह भावना बहुत सच्ची थी| इसमें साहस था।  जीवन-भर परदे में रहकर भी उन्होंने किसी पर-पुरुष से मिलने की हिम्मत की| इससे उनके साहसी व्यक्तित्व और मन में सुलगती स्वतंत्रता की भावना का पता चला।  लेखिका इन्हीं गुणों के कारण अपनी नानी की व्यक्तित्व से प्रभावित थी तथा उनकी सम्मान करती थी।

2. लेखिका ने नानी की आज़ादी के आंदोलन में किस प्रकार की भागीदारी रही ?

उत्तर 


वह प्रत्यक्ष रुप में भले ही आज़ादी की लड़ाई में भाग नहीं ले पाई हों परन्तु अप्रत्यक्ष रुप में सदैव इस लड़ाई में सम्मिलित रहीं और इसका मुख्य उदारहण यही था कि उन्होनें अपनी पुत्री की शादी की ज़िम्मेदारी अपने पति के स्वतंत्रता सेनानी मित्र को दी थी। वह अपना दामाद एक आज़ादी का सिपाही चाहती थीं न कि अंग्रेज़ों की चाटुकारी करने वाले को। उन्हें अंग्रेजों और अंग्रेज़ियत से चिढ़ थी। उनके मन में आज़ादी के लिए एक जुनून था।

 
3. लेखिका की माँ परंपरा का निर्वाह न करते हुए भी सबके दिलों पर राज करती थी। इस कथन के आलोक में-- (क) लेखिका के माँ के व्यक्तित्व की विशेषताएँ लिखिए। (ख) लेखिका की दादी के घर के महौल का शब्द-चित्र अंकित कीजिए।

उत्तर 

(क) लेखिका की माँ बहुत ही नाजुक, सुंदर और स्वतंत्र विचारों की महिला थीं। उनमें ईमानदारी,निष्पक्षता और सचाई भरी हुई थी।वे अन्य माताओं की तरह कभी भी अपनी बेटी को अच्छे-बुरे की न सीख दी और न खाना पकाकर खिलाया । उनका अधिकांश समय अध्ययन अथवा संगीत को समर्पित था। वे कभी झूठ नहीं बोलती थीं और न कभी इधर की बात उधर करती थीं । शायद यही कारण था कि हर काम में उनकी राय ली जाती थी और सब कोई उसे सहर्ष स्वीकारता भी था।

(ख) लेखिका की दादी के घर में कुछ लोग जहाँ अंग्रेज़ियत के दीवाने थे,वहीं कुछ लोग भारतीय नेताओं के मुरीद भी थे घर में बहुमति होने के बाद भी एकता का बोलबाला था। घर में किसी प्रकार की संकीर्णता नहीं थी। सभी लोग अपनी -अपनी स्वतंत्रता एवं निजता बनाए रख सकते थे। घर के बच्चों के पालन-पोषण में घर के सभी लोग जिम्मेदार थे। कोई भी सदस्य अपने विचार किसी पर थोप नहीं सकता था। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि घर का माहौल अमन-चैन से भरपूर और सुखद था।

4. आप अपनी कल्पना से लिखिए कि परदादी ने पतोहू के लिए पहले बच्चे के रूप में लड़की पैदा होने की मन्नत क्यों माँगी ?
 

उत्तर

दादीजी एक सामान्य महिला थीं। उनके मन में लड़का - लड़की का भेद नहीं था। पीढ़ियों से परिवार में किसी कन्या का जन्म नहीं हुआ था। प्राय: सभी लोग लड़के की कामना करते थे । दादीजी को ये भेदभाव शायद चुभता होगा। परिवार में किसी कन्या का न होना , उनके मन को बेचैन करता होगा । शायद इन्हीं कारणों की वजह से परदादी ने पतोहू के लिए पहले बच्चे के रूप में लड़की पैदा होने की मन्नत क्यों माँगी।

5. डराने-धमकाने, उपदेश देने या दबाव डालने की जगह सहजता से किसी को भी सही राह पर लाया जा सकता है - पाठ के आधार पर तर्क-सहित उत्तर दीजिये।

उत्तर

इस पाठ से स्पष्ट है कि मनुष्य के पास सबसे प्रभावी अस्त्र है - अपना दृढ़ विशवास और सहज व्यवहार।  यदि कोई सगा-संबंधी गलत राह पर हो तो उसे डराने-धमकाने, उपदेश देने या दबाव डालने की जगह सहजता से व्यवहार करना चाहिए।  लेखिका की नानी ने भी यही किया।  उन्हों ने अपने पति की अंग्रेज़-भक्ति का न तो मुखर विरोध किया, न समर्थन किया।  वे जीवन भर अपने आदर्शों पर टिकी रहीं| परिणामस्वरूप अवसर आने पर वह मनवांछित कार्य कर सकीं।
लेखिका के माता ने चोर के साथ जो व्यवहार किया, वह तो सहजता का अनोखा उदाहरण है।  उसने न तो चोर को पकड़ा, न पिटवाया, बल्कि उससे सेवा ली और अपना पुत्र बना लिया।  उसके पकड़े जाने पर उसने उसे उपदेश भी नहीं दिया| उसने इतना ही कहा - अब तुम्हारी मर्जी - चाहे चोरी करो या खेती| उसकी इस सहज भावना से चोर का ह्रदय परिवर्तित हो गया| उसने सदा के लिए चोरी छोड़ दी और खेती को अपना लिया।

6. ‘शिक्षा बच्चों का जन्मसिद्ध अधिकार है’-इस दिशा में लेखिका के प्रयासों का उल्लेख कीजिए।

उत्तर 

शिक्षा बच्चों का जन्मसिद्ध अधिकार है। लेखिका को यह बात तब पूरी तरह समझ में आ गई , जब उनके दो बच्चे स्कूल में जाने लायक हो गए । लेखिका कर्नाटक के एक छोटे कस्बे में रहती थी। उन्होंने वहाँ के कैथोलिक चर्च के विशप से एक स्कूल खोलने का आग्रह किया। परंतु उन्होंने क्रिश्चियन बच्चों की संख्या कम होने की बात कहकर स्कूल खोलने से मना कर दिया। लेखिका ने कहा कि गैर- क्रिश्चियन बच्चों को भी शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार है, परंतु विशप तैयार नहीं हुए । ऐसे में लेखिका ने आगे बढ़ते हुए अपने दम पर एक ऐसा स्कूल खोलने का मन बना लिया जिसमें अंग्रेज़ी,कन्नड़ और हिन्दी तीन भाषाएँ पढ़ाई जाएँगी। लोगों ने भी लेखिका का साथ दिया और वे बच्चों को शिक्षा का अधिकार दिलाने में सफल रहीं।

7. पाठ के आधार पर लिखिए कि जीवन में कैसे इंसानों को अधिक श्रद्धा भाव से देखा जाता है?

उत्तर

प्रस्तुत पाठ के आधार पर यह कहा जा सकता है कि जो लोग कभी झूठ नहीं बोलते और सच का साथ देते हैं । जो किसी की बात को इधर-उधर नहीं करते अर्थात् चुगलखोरी से दूर रहते हैं। जिनके इरादे मजबूत होते हैं,जो हीन भावना से ग्रसित नहीं होते तथा जिनका व्यक्तित्व सरल, सहज एवं पारदर्शी होता है, उन्हें पूरा समाज श्रद्धा भाव से देखता है।

8. ‘सच, अकेलेपन का मज़ा ही कुछ और है’-इस कथन के आधार पर लेखिका की बहन एवं लेखिका के व्यक्तित्व के बारे में अपने विचार व्यक्त कीजिए।

उत्तर

लेखिका व उनकी बहन एकांत प्रिय स्वभाव की थीं। लेखिका व उनकी बहन के व्यक्तित्व का सबसे खूबसूरत पहलू था - वे दोनों ही जिद्दी स्वभाव की थीं परन्तु इस जिद्द से वे हमेशा सही कार्य को ही अंजाम दिया करती थे। लेखिका कि जिद्द ने ही कर्नाटक में स्कूल खोलने के लिए प्रेरित किया था। वे दोनों स्वतंत्र विचारों वाले व्यक्तित्व की स्वामिनी थीं और इसी कारण जीवन में अपने उद्देश्यों को पाने में सदा आगे रही

लेखिका ने बच्चों की शिक्षा के लिए क्या प्रयास किया?

लेखिका बच्चों की शिक्षा के प्रति बहुत जागरूक थीं। उनके अनुसार हर बच्चे को शिक्षा पाने का अधिकार था। इसी उद्देश्य से उन्होंने कर्नाटक के छोटे से कस्बे, बागलकोट में बच्चों के लिए जहाँ स्कूल का अभाव था, कैथोलिक बिशप से स्कूल खोलने का आग्रह किया

शिक्षा बच्चों का जन्मसिद्ध अधिकार है इस बात को सिद्ध करने के लिए लेखिका ने क्या क्या प्रयास किए?

लेखिका ने कहा कि गैर- क्रिश्चियन बच्चों को भी शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार है, परंतु विशप तैयार नहीं हुए । ऐसे में लेखिका ने आगे बढ़ते हुए अपने दम पर एक ऐसा स्कूल खोलने का मन बना लिया जिसमें अंग्रेज़ी,कन्नड़ और हिन्दी तीन भाषाएँ पढ़ाई जाएँगी।

मेरे संग की औरतें पाठ के आधार पर बताइए कि लेखिका ने बच्चों की शिक्षा के लिए क्या प्रयास किए?

'शिक्षा बच्चों का जन्मसिद्ध अधिकार है'-इस दिशा में लेखिका के प्रयासों का उल्लेख कीजिए। शिक्षा बच्चों का जन्मसिद्ध अधिकार है। इस दिशा में लेखिका ने अथक प्रयास किए। उसने कर्नाटक के बागलकोट जैसे छोटे से कस्बे में रहते हुए इस दिशा में सोचना शुरू किया।

कर्नाटक के बिशप ने स्कूल खोलने से क्यों मना कर दिया था?

उत्तर: कर्नाटक जाने पर लेखिका मृदुला गर्ग ने बागलकोट कस्बे में एक प्राइमरी स्कूल खोलने की कैथोलिक बिशप से प्रार्थना की परन्तु क्रिश्चयन जनसंख्या कम होने के कारण वे स्कूल खोलने में असमर्थ थे।