देवनारायण की घोड़ी का नाम क्या है? - devanaaraayan kee ghodee ka naam kya hai?

देवनारायण फड़ परम्परा  Devnarayan Phad Tradition

देवनारायण का जन्म एवं मालवा की यात्रा

देवनारायण जन्म 


देवनारायण की घोड़ी का नाम क्या है? - devanaaraayan kee ghodee ka naam kya hai?

इधर सभी बगड़ावतों का नाश हो जाने पर साडू माता हीरा दासी सहित मालासेरी की डूंगरी पर रह रही होती है। एक दिन अचानक वहाँ पर नापा ग्वाल आता है और सा माता को ७ बीसी राजकुमारों के भी मारे जाने का समाचार देता है और कहता है कि सा माता यहां से मालवा अपने पीहर वापस चलो। कहीं राजा रावजी यहां पर चढ़ाई ना कर दे। लेकिन सा माता जाने से मना कर देती है।

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जब एक दिन सा माता की काली घोड़ी के बछेरा पैदा होता हैं, तब सा माता को भगवान की कही बात याद आती है कि काली घोड़ी के एक बछेरा होगा वो नीलागर घोड़ा होगा उसके बाद मैं आ

साडू माता भगवान के कहे अनुसार सुबह ब्रह्म मुहर्त में स्नान ध्यान कर भगवान का स्मरण करती है। वहीं मालासेरी की डूंगरी पर पहाड़ टूटता है और उसमें से पानी फूटता है,जल की धार बहती हुई निकलती है,पानी में कमल के फूल खिलते हैं,उन्हीं फूलों में से एक फूल में भगवान विष्णु देवनारायण के रुप में अवतरित होते हैं। माघ शुक्लासातय के दिन सम्वत९९९सुबह ब्रह्म मुहर्त में भगवान देवनारायण मालासेरी की डूंगरी पर अवतार (जन्म) लेते हैं। देवनारायण के टाबर (बालक) रुप को सा माता अपने गोद में लेती है,उन्हें दूध पिलाती हैं और उन्हें लाड करती हैं।

देवनारायण की घोड़ी का नाम क्या है? - devanaaraayan kee ghodee ka naam kya hai?

वहां से सा माता हीरा दासी और नापा ग्वाल गोठांंं आते हैं। गांव में आते ही घर-घर में घी के दिये जल जाते हैं और सुबह जब गांव भर में बालक के जन्म लेने की खबर होती है,नाई आता हैं घर-घर में बन्धनवाल बांधी जाती हैं। भगवान के जन्म लेने से घर-घर में खुशी ही खुशी हो जाती हैं। साडू माता ब्राह्मण को बुलवाती है बच्चे का नामकरण संस्कार होता है। भगवान ने कमल के फूल में अवतार लिया है,इसलिए ब्राह्मण उनका नाम देवनारायण रखते हैं। सा माता ब्राह्मण को सोने की मोहरे,कपड़े देती है,भोजन कराती है,मंगल गीत गाये जाते हैं। सूर्य पूजन का काम होने के बाद गांव की सभी महिलाएं सा माता को बधाई देने आती हैं। गांव भर में लोगों का मुंह मीठा कराया जाता है कि साडू माता की झोली में नारायण ने अवतार लिया है।

देवनारायण जी का इतिहास व जीवनी History Of Devnarayan In Hindi: देवजी राजस्थान के एक लोकदेवता हैं, एक पराक्रमी यौद्धा के रूप में जाने जाते है गुर्जर समुदाय इन्हें अपना आराध्य मानते हैं. ये बगडावत वंश के नाग वंशीय गुर्जर थे जिनका मूल स्थान वर्तमान में अजमेर के निकट नाग पहाड़ था. गुर्जर जाति एक संगठित, सुसंस्कृत वीर जातियों में गिनी जाती है. जिनका आदिकाल से गौरवशाली इतिहास रहा है.

देवनारायण की घोड़ी का नाम क्या है? - devanaaraayan kee ghodee ka naam kya hai?

नाम देवनारायण
मूल नाम उदय सिंह
जन्म विक्रम संवत 968 (911 ई.)
मृत्यु विक्रम संवत 999 (942 ई.)
जन्म स्थान मालासेरी
पिता का नाम सवाई भोज
माँ का नाम साढ़ू खटाणी
जीवनसाथी पीपलदे परमार, नागकन्या, दैत्यकन्या
अश्त्र तलवार, भाला
लोकप्रिय मंदिर आसीन्द
पहचान गौरक्षक
जयंती भाद्रपद शुक्ल सप्तमी
सवारी नीलागर घोड़े

समाज में प्रचलित लोक कथाओं के माध्यम से गुर्जर जाति के शौर्य पुरुष देवनारायण के सम्बन्ध में विस्तृत जानकारी मिलती है. देवनारायणजी महागाथा में इनकों चौहान वंश से सम्बन्धित बताया है.

देवनारायण की फड़ के अनुसार मांडलजी के हीराराम, हीराराम के बाघसिंह और बाघसिंह के 24 पुत्र हुए जो बगडावत कहलाए. इन्ही में से बड़े भाई सवाई भोज और माता साडू (सेढू) के पुत्र के रूप में विक्रम संवत् 968 (911 ईस्वी) में माघ शुक्ला सप्तमी को आलौकिक पुरुष देवनारायण का जन्म मालासेरी में हुआ.

देवनारायण पराक्रमी यौद्धा थे. जिन्होंने अत्याचारी शासकों के विरुद्ध कई संघर्ष एवं युद्ध किये. वे शासक भी रहे उन्होंने अनेक सिद्धिया प्राप्त की. चमत्कारों के आधार पर धीरे धीरे वे गुर्जरों के देव स्वरूप बनते गये एवं अपने इष्टदेव के रूप में पूजे जाने लगे. देवनारायण को विष्णु के अवतार के रूप में गुर्जर समाज द्वारा राजस्थान व दक्षिण पश्चिमी मध्यप्रदेश में अपने लोकदेवता के रूप में पूजा होती है.

उन्होंने लोगों के दुखो व संकटों का निवारण किया. देवनारायण महागाथा में बगडावतों और राण भिणाय के बिच रोचक युद्ध का वर्णन है. देवनारायणजी का अंतिम समय ब्यावर तहसील से 6 किमी दुरी पर स्थित देह्माली (देमाली) स्थान पर गुजरा.

भाद्रपद शुक्ला सप्तमी को वहीँ उनका देहावसान हुआ था. देवनारायण से पीपलदे द्वारा सन्तान विहीन न छोड़ जाने के आग्रह पर बैकुठ जाने से पूर्व पीपलदे से एक पुत्र बीला व पुत्री बीली उत्पन्न हुई. उनका पुत्र ही देवनारायण जी का प्रथम पुजारी हुआ.

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कृष्ण की तरह ही देवनारायण भी गायों के रक्षक थे. उन्होंने बगडावतों की पांच गायें खोजी, जिनमे सामान्य गायों से विशिष्ट लक्ष्ण थे. देवनारायण जी प्रातकाल उठते ही सरेमाता गाय के दर्शन करते थे. यह गाय बगडावतों के गुरु रूपनाथ ने सवाई भोज को दी थी.

देवनारायण जी के पास 98000 पशुधन था जब ये देवनारायणजी की गायें राण भिणाय का राणा घेर ले जाता है तो देवजी गायों की रक्षार्थ खातिर राणा से युद्ध करते है और गायों को छुड़ाकर वापिस लाते है.

देवनारायण की सेना में ग्वाले अधिक थे. 1444 ग्वालों का होना बताया जाता है, जिनका काम गायों को चराना और गायों की रक्षा करना था. देवनारायण ने अपने अनुयायियों को गायों की रक्षा करने का संदेश दिया.

इन्होने जीवन में बुराइयों से लड़कर अच्छाइयों को जन्म दिया. आतंकवाद से संघर्ष कर सच्चाई की रक्षा की एवं शान्ति स्थापित की. हर असहाय की रक्षा की. राजस्थान में जगह जगह इनके अनुयायियों ने देवालय बनाए है जिनको देवरा भी कहा जाता है.

ये देवरे अजमेर, चितोड़, भीलवाड़ा व टोंक में काफी संख्या में है. देवनारायण का प्रमुख मन्दिर भीलवाड़ा जिले के आसींद कस्बे के निकट खारी नदी के तट पर सवाई भोज में है. देवनारायण का एक प्रमुख देवालय निवाई तहसील के जोधपुरिया गाँव में वनस्थली से 9 किमी दूर स्थित है.

देवनारायण का जन्म और प्रारंभिक जीवन (Devnarayan Birth and Early Life)

भगवान विष्णु का अवतार कहे जाने वाले गुर्जर जाति के आराध्य देव भगवान श्री देवनारायण जी का जन्म विक्रम संवत 968 माघ शुक्ल की सप्तमी के दिन मालासेरी में हुआ था, इनके पिताजी का नाम सवाई भोज एवं माँ का नाम साढू था, इस कारण इन्हें साढू माता का लाल भी कहा जाता हैं.

बचपन में देवजी का नाम उदय सिंह था, इनका विवाह राजकुमारी पीपल दे एवं दो अन्य रानियों नाग कन्या और दैत्य कन्या के साथ हुआ था. इनके एक बेटा बीला जो बाद में प्रथम पुजारी भी बने तथा बेटी का नाम बीली था.

कहा जाता है कि देवजी के जन्म के एक दिन पूर्व भादवी छठवीं तिथि को उनके प्रिय घोड़े नीलागर का जन्म हुआ था, मान्यता के अनुसार माँ साडू को स्वप्न में देवजी के अवतार से पूर्व उनकी सवारी के जन्म का संकेत मिला था.

बचपन

देवनारायण जी के पिता सवाई भोज ने दो विवाह किये थे, पहली रानी का नाम पद्मा था. मारवाड़ के सोलंकी सामंत की बेटी जयमती सवाई भोज से विवाह करना चाहती थी, मगर उसके पिता राण के राजा दुर्जन साल के साथ उनका विवाह सम्पन्न करवाना चाहते थे.

जब दुर्जन साल बरात लेकर गोठा जाते है तो सवाई भोज भी वहां पहुच जाते हैं. यहाँ दोनों यौद्धाओ के मध्य भयंकर युद्ध होता है इस युद्ध में सवाई भोज और जयमती वीरगति को प्राप्त हो जाते हैं. साथ ही दुर्जन साल अपने होने वाली रानी के खोने और अपमान का बदला भोज के खानदान को समाप्त करके लेना चाहते थे.

उस समय भोज की दूसरी रानी साढू गर्भवती थी, गुरु रूपनाथ जी ने उस समय कहा था रानी आपके गर्भ में पल रहा एक महान यौद्धा होगा, जो बड़ा होकर अपने पिता की मौत का बदला लेगा. साढू माता अपने बेटे को बचाने के लिए मालासेरी में रहना आरम्भ कर देती है वहां सवाई भोज का जन्म होता हैं.

मगर जब दुर्जन साल को इसकी खबर मिली तो साढू माता और उनके बेटे को मारने के लिए सेना भेजी. जब यह खबर साढू माँ के कानों पड़ी तो उन्होंने देवनारायण को लेकर अपने पीहर देवास का रुख किया. इस तरह अपने ननिहाल में देवजी बड़े हुए तथा अश्त्र विद्या तथा घुड़सवारी का भी ज्ञान प्राप्त किया. देवास के एक सिद्धवट के नीचे वे बैठकर साधना किया करते थे.

देवनारायण जी के चमत्कार (Devnarayan Miracles)

राजस्थान के चमत्कारी लोक देवताओं में देवनारायण जी भी एक थे, ये एक सिद्ध पुरुष थे जिन्होंने अपनी सिद्धियों का प्रयोग समाज कल्याण और उत्थान के कार्यों में किया. उनके मुख्य चमत्कारों में छोछूं भाट को जीवित करना, पीपलदे की कुरूपता दूर करना, सूखी नदी में पानी बह निकलना, सारंग सेठ को पुनर्जीवित करना आदि थे.

विष्णु की साधना करने वाले देवनारायण जी में दैवीय शक्तियाँ थी. एक बार की बात हैं धार के राजा जयसिंह अपनी पुत्री पीपलदे की अस्वस्थता के चलते देवजी के पास आए, उन्होंने अपनी शक्तियों से पीपलदे को बिलकुल ठीक कर दिया. आगे चलकर इन्ही राजकुमारी के साथ देवजी का विवाह हुआ.

देवनारायण जी की फड़ (Devnarayan ji ki Phad)

सम्पूर्ण भारत में गुर्जर समाज का यह सर्वाधिक पौराणिक तीर्थ स्थल है. देवनारायण की पूजा भोपाओं द्वारा की जाती है. ये भोपा विभिन्न स्थानों पर जाकर गुर्जर समुदाय के मध्य फड़ (लपेटे हुए कपड़े पर देवनारायण जी की चित्रित कथा) के माध्यम से देवजी की गाथा का वाचन करते है.

देवनारायण जी की फड़ में 335 गीत है. जिनका लगभग 1200 पृष्ट में संग्रह किया गया है एवं लगभग 15000 पंक्तियाँ है. ये गीत परम्परागत भोपाओं को कंठस्थ याद रहते है. देवनारायण की फड़ राजस्थान की फडों में सर्वाधिक लोकप्रिय व सबसे बड़ी है.

देवनारायण का निधन (Devnarayan Death Story)

संवत 999 में महज 31 वर्ष की अल्पायु में भगवान देवनारायण ने इस लोक को अलविदा कहा, जीवन भर गायों की सेवा एवं रक्षा करने वाले देवजी को गौरक्षक लोक देवता के रूप में पूजा जाता हैं उनके थान को देवरा कहा जाता हैं.

उनकी लोककथा का वाचन फड़ के माध्यम से किया जाता हैं. भारत सरकार ने इनके सम्मान में 2 सितंबर 1992 और 3 सितंबर 2011 को 5 रु के नोट पर देवनारायण जी की फड का चित्र अंकित किया.

आसीन्द धाम पर भादों शुक्ल सप्तमी तिथि के दिन विशाल मेला भरता हैं तथा राजस्थान, मध्यप्रदेश और हरियाणा से बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहाँ पहुचकर बाबा के दर्शन करते है. हालांकि कुछ लोग उनकी जयंती की तिथि अक्षय तृतीया के दिन भी मानते हैं.

FAQ

गुर्जर जाति के आराध्य लोकदेव कौन हैं?

भगवान देवनारायण जी

देवजी को किन अन्य नामों से भी भक्त पुकारते हैं?

लीला घोडा का असवार, त्रिलोकी नाथ, देव धणी, साडू माता का लाल आदि

देवनारायण जी के गुरु कौन थे?

बाबा रूपनाथ

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देवनारायण का घोड़ा का नाम क्या था?

रतलाम | गुर्जर समाज ने आराध्य देव भगवान श्री देवनारायण के प्रिय अश्व (घोड़े) लीलाधर का जन्मोत्सव धूमधाम से मनाया।

देवनारायण भगवान के घोड़े का जन्म कब हुआ?

इन्हीं में से बड़े भाई राजा सवाई भोज गुर्जर और माता साडू गुर्जरी ( सेढू ) खटाणा के पुत्र के रूप में वि . सं . 968 ( 911 ई.) में माघ शुक्ला सप्तमी को आलौकिक पुरूष देवनारायण का जन्म मालासेरी में हुआ

भगवान देवनारायण का गोत्र क्या है?

राजपूत कहते है कि प्रथ्वीराज चौहान हमारे चौहान गोत्र के थे है जबकि गुर्जरो के पूज्य भगवान देवनारायण खुद चौहान वंशीय थे सवाई भोज अजमेर के राजा बीसलदेव के भाई (चचेरे भाई) थे बीसलदेव के बाद अजमेर की गद्दी पर महेंद्र सिंह चौहान बेठा जो की भगवान देवनारायण का भाई था।

देवनारायण के कितने नाम है?

देवनारायण की फड़ के अनुसार मांडलजी के हीराराम, हीराराम के बाघसिंह और बाघसिंह के 24 पुत्र हुए जो बगडावत कहलाए. इन्ही में से बड़े भाई सवाई भोज और माता साडू (सेढू) के पुत्र के रूप में विक्रम संवत् 968 (911 ईस्वी) में माघ शुक्ला सप्तमी को आलौकिक पुरुष देवनारायण का जन्म मालासेरी में हुआ. देवनारायण पराक्रमी यौद्धा थे.