नैतिक मूल्यों का क्या आधार है? - naitik moolyon ka kya aadhaar hai?

Posted on March 18th, 2020 | Create PDF File

सच्चाई, ईमानदारी, प्रेम, दयालुता, मैत्री आदि को नैतिक मूल्य कहा जाता है।सच्चाई को स्वतः साध्य मूल्य कहा जाता है यह अपने आप में ही मूल्यपूर्ण है।इसका प्रयोग साधन की भांति नहीं किया जाता, बल्कि यह स्वतः साध्य है। सभी विवादों में भी सत्य के अन्वेषण का प्रयास किया जाता है। सभी नैतिक मूल्यों का नैतिक आधार सत्य ही है। यद्यपि सत्य एक व्यापक दार्शनिक अवधारणा है लेकिन संक्षेप में इसे वस्तुस्थिति को ज्यों का त्यों कहना कहा जाता है। अर्थात्‌ बिना किसी पूर्वाग्रह के किसी वस्तुस्थिति को देखना, समझना और व्यक्त करने को ही सच्चाई कहते हैं।

मनुष्य में दयालुता नामक सदगुण भी विद्यमान होता है। मनुष्य में अन्यों के प्रति दयालुता का भाव होता है। प्रायः वे अन्यों को कठिनाई में देखते हुए उनकी सहायता का प्रयास करते हैं क्‍योंकि मनुष्य यह स्वीकार करता है कि इस प्रकार की समस्याएं व घटनाएं किसी के साथ भी हो सकती है इसलिए मनुष्य दयालुता के बोध के कारण ही एक दूसरे की सहायता का प्रयास करते हैं।

प्रेम को सर्वोपरि मानव कहा गया है। मनुष्य प्रायः एक दूसरे से प्रेम करते हैं। प्रेम न केवल मानव जाति में विद्यमान होता है बल्कि मनुष्य में अन्य जीवों के प्रति भी प्रेमभाव विद्यमान होता है। क्रिश्चियन धर्म प्रेम पर अत्यधिक जोर देता है। उसका तर्क है कि सभी मनुष्य एक ही ईश्वर की संतान हैं, इसलिए उनमें परस्पर प्रेम होना चाहिए। वास्तव में मानव प्रेम ही ईश्वर की सच्ची प्रार्थना है। क्रिश्चयसन धर्म, प्रेम और मानव सेवा पर सर्वाधिक जोर देता है।

प्राचीन भारत में “वसुधैव कुटुम्बकम" की अवधारणा पाई जाती है जिसका अभिप्राय है कि पूरी धरती ही एक परिवार है और यहाँ सभी को एक दूसरे के साथ परस्पर प्रेमपर्वक रहना चाहिए। भारतीय संस्कृति की यह अवधारणा उसके सारतत्व 'सह अस्तित्व' पर आधारित है। इसे वर्तमान वैश्वीकरण से भी जोड़कर देखा जा सकता है जहाँ पूरा विश्व एक गाँव में परिणित हो गया है।


नैतिक मूल्यों का आधार है सम्मान का भाव : ¨प्रसिपल की बात

वर्तमान युग में नैतिकता की सुदृढ़ नींव हमारे विद्यार्थी ही हो सकते हैं। भौतिकवादी संसार में दिन प्रत

वर्तमान युग में नैतिकता की सुदृढ़ नींव हमारे विद्यार्थी ही हो सकते हैं। भौतिकवादी संसार में दिन प्रतिदिन मूल्यों के प्रति उदासीन होते जा रहे हैं। इसके परिणाम स्वरूप नैतिक मूल्यों में गिरावट देखने को मिल रही है। वर्तमान दौर में जहां माता पिता दोनों ही व्यस्त हैं, वहां नैतिक मूल्यों की मशाल जलाए रखने की जिम्मेदारी स्वत: ही शिक्षकों व शैक्षणिक संस्थानों पर आ जाती है। सम्मान का भाव जागृत करना शिक्षक का दायित्व व नैतिक कर्तव्य भी है। सम्मान का भाव प्रत्येक क्षेत्र में आवश्यक है। चाहे व आर्थिक स्तर हो या फिर सामाजिक स्तर, बच्चों में यह भावना भरना बेहद आवश्यक है, ताकि वे अपनी और अपने देश की नींव मजबूत कर सकें। बच्चों में सम्मान का भाव अपने शिक्षकों, माता पिता, सहपाठियों व पारिवारिक रिश्तों तक ही सीमित न होकर राष्ट्र के प्रति भी होना चाहिए। देश के नियमों एवं संपदा के प्रति भी भी सम्मान का भाव प्रत्येक बच्चे में स्पंदित होना चाहिए। राष्ट्र के प्रति सम्मान का भाव ही हमें तेरे व मेरे में विभाजित न करके 'हम ' में परिभाषित करेगा।

सम्मान की भावना को बच्चों में डालने के लिए सभी को एक साथ मिलकर काम करने की जरूरत है। भले ही माता पिता अपने अपने काम में अतिव्यस्त हैं लेकिन पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी शिक्षकों पर डाल देना ही कतई ठीक नहीं है। अभिभावको को यह सोचना होगा कि वे पहले माता पिता हैं, जिनका दायित्व बच्चों की जिंदगी को संवार कर उन्हें अच्छा इंसान बनाना होता है, और बाद में वे एक कर्मचारी या फिर कुछ और हैं। अभिभावकों को बच्चों के भविष्य निर्माण की दिशा में काम करना होगा। माना उनके पास समय कम है लेकिन उस कम समय में भी बच्चे को सीख देने के लिए उनके पास बैठना, उनकी समस्याएं सुनना और इनके निराकरण का बेहतर तरीका समझाना होगा। ऐसे में बच्चा माता पिता का, उनके समय का, उनकी सीख का व उनकी बातों का सम्मान करेगा। बच्चों को नैतिक मूल्य सिखाने का जिम्मा स्कूल उठाते हैं लेकिन बच्चों पर उसका प्रभाव अधिक पड़ता है जो वे घर में सीखते हैं। बच्चों का पहला स्कूल उनका घर व पहले शिक्षक उसके माता पिता होते हैं। शिक्षक जिस तरह के आचरण करेगा विद्यार्थी उसी तरह का अनुसरण करेगा। ऐसे में शिक्षकों को चाहिए कि उनके सामने बेहतर उदाहरण पेश करें। कक्षा में विषय पढ़ाने के साथ साथ सम्मान करने की भावना डालें। अगर शिक्षक बच्चों को सम्मान जनक रवैये से पढ़ाएंगे तो विद्यार्थी भी उसी तरीके से रहेगा। बच्चे अक्सर अपने पसंदीदा शिक्षक को रोल मॉडल के रूप में देखते हैं और उनका सम्मान करते हैं। अगर शिक्षक बच्चों को समझाएगा तो वे हर बात मानेंगे। शिक्षकों को बताना चाहिए कि किसी तरह से बड़ों का सम्मान करना चाहिए। जो बच्चा सम्मान को अपने चित्रण में उतारेगा उसका जीवन सफल होगा व वही कामयाबी के शिखर पर पहुंच सकेगा। हम अगर किसी को सम्मान देते हैं तो बदले में सम्मान मिलता है। अगर हम भावी पीढ़ी में सम्मान के गुण दें तो आने वाले समय में समाज स्वस्थ हो सकेगा व अपराध कम होंगे। क्योंकि अपराध वहीं होते हैं, जहां अनपढ़ता व नैतिक मूल्यों का पतन होता है। जिनके लिए मूल्य ही मायने नहीं रखते, संस्कारों की समझ ही नहीं होती वहां अपराध पनपता है। अपराधी व्यक्ति किसी की ¨जदगी, उसकी इज्जत व उसके समय का सम्मान नहीं कर पाता। ऐसे में घटनाएं घटती हैं। इन घटनाओं को रोकने के लिए बच्चों में संस्कारों का होना बेहद जरूरी है। आज के दौर में जहां आपाधापी भरी जिदंगी में संस्कार सिखाने का समय ही नहीं मिल पाता वहां कम उम्र के बच्चों में अपराध की प्रवृत्ति पनपने लगती है। ऐसे में बाल अपराध का ग्राफ बढ़ने लगा है। अभी भी समय है, इन चीजों को रोका जा सकता है व समाज का नव निर्माण किया जा सकता है। स्कूलों में गीता, कुरान, बाइबल व रामायण जैसे ग्रंथों के निचोड़ पढ़ाएं जाने चाहिए। बच्चों को प्रेरक जीवनियों के माध्यम से पढ़ाया जाना चाहिए। उनके उदाहरणों को बच्चों के सामने रखकर उनकी लोकप्रियता व अच्छाई के बारे में बताना चाहिए।

बच्चों में सम्मान का भाव जगाने के लिए हमें भी अपने आप को बदलना होगा। हम छोटी छोटी बातों पर एक दूसरे से लड़ने के बजाए एक दूसरे को समझें, तो बच्चों के सामने अच्छा उदाहरण पेश कर सकते हैं। माता पिता घर में एक दूसरे का सम्मान करें, बच्चों के सामने लड़ाई न करें और बड़ों को सम्मान दें, तो बच्चा अपने आप इन चीजों को ग्रहण करेगा लेकिन अगर हम बच्चों के सामने लड़ाई झगड़ा, एक दूसरे का अनादर व गाली गलौच करेंगे तो कितना भी स्कूलों में नैतिक शिक्षा दी जाए, बच्चों में वही चीजें घर करेंगी, जो वह घर पर देखता है। ऐसे में बड़ों को भी सतर्क रहने की आवश्यकता है। केवल स्कूलों में फीस जमा करवा देने मात्र से बच्चों के प्रति जिम्मेदारी पूरी नहीं हो जाती। बच्चे को सफल बनाने के लिए केवल एकेडमिक ज्ञान ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि उनमें नैतिक मूल्यों का संचार भी बहुत आवश्यक है। माता पिता को यह समझना बहुत जरूरी है।

- डॉ. निर्मल यादव, प्राचार्य, सीसीए स्कूल, सेक्टर चार।

नैतिक मूल्य का आधार क्या है?

सभी नैतिक मूल्यों का नैतिक आधार सत्य ही है। यद्यपि सत्य एक व्यापक दार्शनिक अवधारणा है लेकिन संक्षेप में इसे वस्तुस्थिति को ज्यों का त्यों कहना कहा जाता है। अर्थात्‌ बिना किसी पूर्वाग्रह के किसी वस्तुस्थिति को देखना, समझना और व्यक्त करने को ही सच्चाई कहते हैं। मनुष्य में दयालुता नामक सदगुण भी विद्यमान होता है।

11 नैतिक मूल्यों का क्या आधार है ?`?

व्यक्ति का बौद्धिक और चारित्रिक निर्माण बहुत सीमा तक उपलब्ध शिक्षा प्रणाली पर निर्भर करता है। आज ऐसी शिक्षा की आवश्कता है, जो पूरे समाज और देश में नैतिकता उत्पन्न कर सके। यह नैतिकता नैतिक शिक्षा के द्वारा ही उत्पन्न की जा सकती है। चूँकि संस्कृत में नय धातू का अर्थ है जाना, ले जाना तथा रक्षा करना ।

नैतिकता का मूल्य क्या है?

नैतिकता/नैतिक मूल्य वास्तव में ऐसी सामाजिक अवधारणा है जिसका मूल्यांकन किया जा सकता है. यह कर्तव्य की आंतरिक भावना है और उन आचरण के प्रतिमानों का समन्वित रूप है जिसके आधार पर सत्य असत्य, अच्छा-बुरा, उचित-अनुचित का निर्णय किया जा सकता है और यह विवेक के बल से संचालित होती है.

नैतिक मूल्य क्या है इसके महत्व पर प्रकाश डालिए?

नैतिक मूल्य अच्छे तथा बुरे कार्यों के बीच अंतर पैदा करने वाले मानक है। जो किसी भी सज्जन व्यक्ति का एक प्रमुख गुण होता है क्योंकि इन्हीं नैतिक मूल्यों के द्वारा वह अपने व्यवहार तथा कार्यों को नियंत्रित करता है। नैतिक मूल्यों का किसी भा समाज के उन्नति तथा पतन में एक महत्वपूर्ण स्थान होता है।