Rajasthan Board RBSE Class 11 Geography Important Questions Chapter 2 पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विकास Important Questions and Answers. Show RBSE Class 11 Geography Important Questions Chapter 2 पृथ्वी की उत्पत्ति एवं विकासबहविकल्पीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. सुमेलन सम्बन्धी प्रश्न -
उत्तर:
रिक्त स्थान पूर्ति सम्बन्धी प्रश्न निम्न वाक्यों में रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए - सत्य-असत्य कथन सम्बन्धी प्रश्न निम्न कथनों में से सत्य-असत्य कथन की पहचान कीजिए - अतिलघु उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. प्रश्न 14. प्रश्न 15. प्रश्न 16. प्रश्न 17. प्रश्न 18. प्रश्न 19. प्रश्न 20. प्रश्न 21. प्रश्न 22. प्रश्न 23. प्रश्न 24.
प्रश्न 25. प्रश्न 26.
प्रश्न 27. प्रश्न 28.
प्रश्न 29. प्रश्न 30. प्रश्न 31. प्रश्न 32. प्रश्न 33. प्रश्न 34. प्रश्न 36.
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प्रश्न 40.
प्रश्न 41. प्रश्न 42. प्रश्न 43.
प्रश्न 44. प्रश्न 45. प्रश्न 46. प्रश्न 47. प्रश्न 48. लघु उत्तरीय प्रश्न (SA1 प्रश्न) प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. नोट: प्रश्न 4.
प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12.
(अ) बाह्य क्रोड प्रश्न 13.
प्रश्न 14. प्रश्न 15. लघु उत्तरीय प्रश्न (SA2 प्रश्न) प्रश्न 1. (1) एकतारक परिकल्पना - इसे 'अद्वैतवादी' या 'एकतारक संकल्पना' भी कहा जाता है। इसमें ग्रहों तथा पृथ्वी की उत्पत्ति एक ही तारे से हुई मानी जाती है। इसके अन्तर्गत 'कास्त द बफन', काण्ट, लाप्लेस, रॉस एवं लॉकियर आदि के विचारों को सम्मिलित किया जाता है। (2) द्वैतारक परिकल्पना - इसे द्वैतवादी सिद्धान्त (Bi-Parental Concept) भी कहा जाता है। इसमें पृथ्वी व ग्रहों की उत्पत्ति सूर्य एवं उसके साथ एक या दो तारों के सहयोग से मानी गयी है। इस संकल्पना के अन्तर्गत चेम्बरलेन एवं मोल्टन की ग्रहाणु परिकल्पना, जेम्स जीन्स एवं जेफरीज की ज्वारीय संकल्पना तथा एच. एन. रसेल की द्वैतारक परिकल्पना को सम्मिलित किया जाता है। प्रश्न 2. नोट: प्रश्न 3. (ii) द्वितीय अवस्था - इस अवस्था में गैसीय बादल का संघनन आरम्भ हुआ तथा क्रोड को ढकने वाला पदार्थ छोटे गोलों के रूप में विकसित हुआ। ये छोटे गोल पारस्परिक आकर्षण प्रक्रिया द्वारा ग्रहाणुओं के रूप में विकसित हुए। ये ग्रहाणु गुरुत्वाकर्षण बल के परिणामस्वरूप आपस में जुड़ गये। (iii) तृतीय अवस्था - ग्रहों के विकास की इस अन्तिम अवस्था में इन अनेक छोटे-छोटे ग्रहाणुओं के सहवर्धित होने पर कुछ बड़े पिण्ड ग्रहों के रूप में निर्मित हुए। इस तरह ग्रहों का निर्माण एवं विकास हुआ। प्रश्न 4. (1) आन्तरिक ग्रह इन्हें 'पार्थिव ग्रह' भी कहते हैं। बुध, शुक्र, मंगल तथा पृथ्वी को इसके अन्तर्गत सम्मिलित किया गया है। ये ग्रह पृथ्वी की भाँति ही शैलों तथा धातुओं से बने हैं और अपेक्षाकृत अधिक घनत्व वाले हैं। (2) बाह्य ग्रह अन्य चार ग्रह बृहस्पति, शनि, अरुण एवं वरुण को बाह्य ग्रह कहा गया है। बृहस्पति (Jupiter) की भाँति होने के कारण इन ग्रहों को जोवियन (Jovian) ग्रह भी कहा जाता है। ये ग्रह आकार में अपेक्षाकृत बड़े हैं। इनका घनत्व अपेक्षाकृत कम है तथा इनका सघन वायुमण्डल हाइड्रोजन तथा हीलियम गैस से बना है। प्रश्न 5.
प्रश्न 6. प्रश्न 7. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. ग्रह - ग्रह वे आकाशीय पिण्ड हैं, जो निश्चित कक्षाओं पर सूर्य की परिक्रमा करते हैं। ग्रहों में अपना प्रकाश नहीं होता है। वे अपारदर्शी होते हैं और सूर्य के प्रकाश को परावर्तित करते हैं। ग्रह अपने अक्ष पर घूमते हैं। ग्रहों का वर्गीकरण - सौरमण्डल में ग्रहों की संख्या 8 है। सूर्य से दूरी के क्रम में इनके नाम इस प्रकार हैं - बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति, शनि, यूरेनस (अरुण) व नेप्च्यून (वरुण)। अभी तक प्लूटो को भी एक ग्रह माना जाता था किन्तु अन्तर्राष्ट्रीय खगोलिकी संगठन ने अगस्त 2006 में अपनी बैठक में इसे बौने ग्रह के रूप में परिभाषित किया। सौरमण्डल के ग्रहों को दो भागों में विभाजित किया गया है - (i) आन्तरिक ग्रह - क्षुद्र ग्रहों की पट्टी और सूर्य के बीच स्थित ग्रहों बुध, शुक्र, पृथ्वी और मंगल को आन्तरिक ग्रह कहते हैं। इन्हें पार्थिव ग्रह भी कहते हैं। ये चारों ग्रह पृथ्वी के समान ठोस हैं तथा अपेक्षाकृत उच्च घनत्व वाले चट्टानी खनिजों एवं धातुओं से बने हैं। (ii) बाह्य ग्रह - क्षुद्र ग्रहों की पट्टी के बाहर वाले ग्रहों-बृहस्पति, शनि, यूरेनस (अरुण) एवं नेप्च्यून (वरुण) को बाह्य ग्रह कहते हैं। बृहस्पति की भाँति होने के कारण इन ग्रहों को जोवियन ग्रह भी कहते हैं। ये ग्रह आकार में अपेक्षाकृत बड़े हैं। इनका घनत्व अपेक्षाकृत कम है। ये सभी ग्रह मुख्यतः तरल और गैसीय पदार्थों से बने हैं। गैसों में हाइड्रोजन एवं हीलियम की प्रधानता है। ग्रहों के निर्माण व विकास की अवस्थाएँ - समस्त ग्रहों का निर्माण लगभग 4.6 अरब वर्ष पूर्व हुआ। ग्रहों के निर्माण व विकास की विभिन्न अवस्थाएँ मानी गयी हैं, जो निम्नलिखित हैं - (i) गैस व धूलिकणों की तश्तरी विकसित होना - नीहारिका के अन्दर गैस के गुंथित झुंड के रूप में तारे पाये जाते हैं। इन गुंथित झुण्डों में गुरुत्वाकर्षण बल से गैसीय बादल में गैसीय क्रोड का निर्माण हुआ। इन गैसीय क्रोड के चारों ओर गैस व धूलिकणों की घूमती हुई तश्तरी विकसित हुई। (ii) ग्रहाणुओं का विकास होना - ग्रहों के विकास की द्वितीय अवस्था में गैसीय बादल का संघनन प्रारम्भ हुआ तथा क्रोड को ढकने वाला पदार्थ छोटे गोलों के रूप में विकसित हुआ। ये छोटे गोले पारस्परिक आकर्षण प्रक्रिया द्वारा ग्रहाणुओं के रूप में विकसित हुए। ये ग्रहाणु गुरुत्वाकर्षण बल के परिणामस्वरूप आपस में जुड़ गए। (iii) बड़े पिण्डों से ग्रहों का निर्माण होना - ग्रहों के विकास की अन्तिम अवस्था में अनेक छोटे-छोटे ग्रहाणुओं के सहवर्धित होने पर कुछ बड़े पिण्ड ग्रहों के रूप में निर्मित हुए। इस तरह ग्रहों का निर्माण एवं विकास हुआ। प्रश्न 2.
प्रश्न 3. (i) प्रथम अवस्था - वायुमण्डल के विकास की प्रारम्भिक अवस्था में धरातल पर हाइड्रोजन व हीलियम गैसों की अधिकता थी। यह वायुमण्डल सौर पवन के कारण पृथ्वी से दूर हो गया। सौर पवन सूर्य द्वारा उत्सर्जित गैसों का आवेशित बादल है जो कि सूर्य में सभी दिशाओं में गमन करता है। ऐसी स्थिति पृथ्वी सहित समस्त पार्थिव ग्रहों—बुध, शुक्र व मंगल पर भी हुई। समस्त पार्थिव ग्रहों से सौर पवन के प्रभाव के कारण आदिकालिक वायुमण्डल या तो दूर धकेल दिया गया या समाप्त हो गया। (ii) द्वितीय अवस्था - वायुमण्डल के विकास की इस अवस्था में पृथ्वी के ठण्डा होने एवं विभेदन के दौरान पृथ्वी के आन्तरिक भाग से अनेक गैसें व जलवाष्प बाहर निकले। इसी से आज के वायुमण्डल का उद्भव हुआ। आरम्भ में वायुमण्डल में जलवाष्प, नाइट्रोजन, कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन, अमोनिया आदि गैसें अधिक मात्रा में तथा स्वतन्त्र ऑक्सीजन बहुत कम मात्रा में थी। (iii) तृतीय अवस्था - वायुमण्डल के विकास की इस अवस्था में वायुमण्डल की संरचना को जैवमण्डल के प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया ने संशोधित किया। जलमण्डल का विकास - पृथ्वी पर लगातार ज्वालामुखीय विस्फोट होने से वायुमण्डल में जलवाष्प व गैसों की मात्रा बढ़ने लगी। पृथ्वी के ठंडा होने के साथ-साथ जलवाष्प का संघनन होना प्रारम्भ हो गया। वायुमण्डल में उपस्थित कार्बन डाईऑक्साइड गैस के वर्षा के पानी में घुलने से पृथ्वी के तापमान में और अधिक कमी आने लगी। फलस्वरूप अधिक संघनन हुआ और लाखों वर्षों तक निरन्तर मूसलाधार वर्षा होती रही। बादलों की भयंकर गड़गड़ाहट और बिजली की तेज चमक के साथ प्रलयंकारी वर्षा होती रही। पृथ्वी के गड्डों में जल भर गया तथा वे महासागर बन गये। पृथ्वी पर उपस्थित महासागर पृथ्वी की उत्पत्ति से लगभग 50 करोड़ वर्षों के अन्तर्गत बने। इस तरह पृथ्वी पर जलमण्डल का विकास हुआ। विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे गए इस अध्याय से सम्बन्धित महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11.
प्रश्न 12. प्रश्न 13. प्रश्न 14. प्रश्न 15. प्रश्न 16. निहारिका परिकल्पना के जनक कौन है?(iii) बिग बैंग से 3 लाख वर्षों के दौरान, तापमान 4500 केल्विन तक गिर गया और परमाणवीय पदार्थ का निर्माण हुआ । ब्रह्मांड पारदर्शी हो गया। ब्रह्मांड के विस्तार का अर्थ है आकाशगंगाओं के बीच की दूरी में विस्तार का होना ।
नीहारिका परिकल्पना का प्रतिपादन किसने व कब किया?Dileep Vishwakarma. लाप्लास की निहारिका परिकल्पना (Nebular Hypothesis of Laplas): फ्रांसीसी विद्वान लाप्लास ने 1796 ई. में कांट के सिद्धांत को संशोधित करते हुए बताया कि एक विशाल तप्त निहारिका से पहले एक ही छल्ला बाहर निकला जो कई छल्लों में विभाजित हो गया तथा ये छल्ले अपने पितृ छल्ले के चारों ओर एक दिशा में घूमने लगे ।
निहारिका की उत्पत्ति कैसे हुई?कुछ नीहारिकाओं का गठन सुपरनोवा में होनेवाले विस्फोट अर्थात् विशाल और अल्प-जीवी तारों के अंत के परिणामस्वरुप होता है। सुपरनोवा के विस्फोट से बिखरनेवाली सामग्री ऊर्जा द्वारा आयनित होती है और इससे निर्मित हो सकनेवाली ठोस वस्तु का गठन होता है। वृष तारामंडल का क्रैब नेबुला इसका स्रवश्रेष्ट उदाहरण है।
निहारिका कितने प्रकार के होते हैं?निहारिका के कुछ प्रकार. उत्सर्जन निहारिका उत्सर्जन निहारिका वह निहारिका होती है, जो तरंग दैर्ध्य रंग बिरंगे प्रकाश का उत्सर्जन करती है। ... . परावर्तन निहारिका परावर्तन निहारिका तारों के प्रकाश को परिवर्तित करती रहती हैं। ... . श्याम निहारिका ... . ग्रहीय नीहारिका. |