राजनीतिक एकीकरण का जो कार्य हर्यक वंशीय नरेशों ने प्रारम्भ किया था, उसे मोर्यों ने पूर्ण किया। Show साहित्य
विदेशी विवरण
ब्राह्मण साहित्य के साक्ष्य (41 B.C.)
बौद्ध साहित्य के साक्ष्य
जैन साहित्य का साक्ष्य
प्रारम्भिक जीवन
नन्दों का उन्मूलन
सेल्यूकस के विरूद्ध युद्ध
पश्चिमी भारत की विजय
शासन काल
मेगस्थनीज का विवरण
मण्डल, जिला तथा नगर प्रशासन
ग्रामों का प्रबन्ध
न्याय व्यवस्था
गुप्तचर विभाग
सेना का प्रबन्ध
नगरों से आय- नगरों से अनेक प्रकार की आय होती थी। इस आय को ‘दुर्ग कहते थे।
बिन्दुसार ‘अमित्रघात’ (298 र्इसा पूर्व)
अशोक प्रियदर्शी (273-230 र्इसा पूर्व)
पिता- बिन्दुसार माता- ब्राह्मण कन्या- दिव्यावदान के अनुसार सुभद्रांगी- अशोकावदानमाला के अनुसार धम्मा- महाबोधिवंश के अनुसार यूनानी राजकुमारी-टार्न आदि कतिपय विद्वानों के अनुसार भार्इ-सुमन तिष्य- सुसीम और विगतशोक बहिन- कुमार अग्रिब्रह्म की माता पत्नी
पुत्र
पुत्री
पौत्र
अशोक का धर्म
धम्म प्रचार के उपाय
कर प्रणाली : एक नजर में · राजा ‘भाग’ के अतिरिक्त अन्य कर भी लेता था जो ‘बलि’ कहलाता था। · संकट कालीन अवस्था में कौटिल्य ने राजा को ‘प्रणय’ वसूल करने का अधिकार दिया था। · पिण्डकर- इसे राजा पूरे गाँव से वर्ष में एक बार वसूल करता था। · सेनाभक्तकर- सेना के प्रयाण के समय प्रजा से तेल और चावल के रूप में लिया जाता था। · औपायनिक-विशेष अवसरों पर राजा को दी जाने वाली भेंट। · पाश्र्व-अधिक लाभ होने पर व्यापारियों से लिया जाता था। · कौष्ठेयक- सरकारी जलाशयों के नीचे की भूमि पर लगाया जाने वाला कर। · परिहीनक- सरकारी भूमि पर पशुओं द्वारा की गयी हानि के बदले में हर्जाने के रूप में लिया जाता था। · धु्रवाधिकरण- भूमिकर संग्रहकर्ता था। · रज्जु- भूमि की नाप के समय जो कर लिया जाता था। · बिवीत- पशुओं की रक्षा के लिए लिया जाता था। · सेतु – फल-फूल पर लिया जाने वाला कर। · भाग- किसानों की भूमि से लिया जाने वाला भूमिकर।
मौर्य वंश के पतन के कारण
(321-185 र्इ. पू.)
अशोक के प्रशासनिक सुधार
प्रान्तीय शासन
प्रशासनिक पदाधिकारी
युक्त- ये जिले के अधिकारी होते थे जो राजस्व वसूल करते तथा उसका लेखा-जोखा रखते थे और सम्राट की सम्पत्ति का भी प्रबन्ध करते थे। राजुक-इस प्रकार के पदाधिकारी भूमि की पैमाइश करने के लिए अपने पास रस्सी रखते थे। वे आजकल के ‘बदोबस्त अधिकारी’ की भांति होते थे। प्रादेशिक- यह मंडल का प्रधान अधिकारी होता था। उसका कार्य आजकल के संभागीय आयुक्त जैसा था।
मौर्यकालीन सिक्के · व्यापार व व्यवसाय में नियमित रूप से सिक्कों का प्रचलन हो चुका था। · सोने के सिक्के को ‘निष्क या सुवर्ण’ कहा जाता था। · चाँदी के सिक्कों को कार्षापण या धरण कहा जाता था। · ताँबे के सिक्के मापक कहलाते थे। · ताँबे के छोटे सिक्कों को काकणी कहा जाता था। · ये सिक्के शासकों, सौदागरों एवं निगमों द्वारा प्रचलित किए जाते थे, तथा इन पर स्वामित्व सूचक चिह् लगाये जाते थे। · अर्थशास्त्र के अनुसार वार्षिक ब्याजदर 15 % होती थी।
सामाजिक वशा
रीति
विवाह
सामाजिक अवस्था
आर्थिक व्यवस्था
भोजन पान
आमोद–प्रमोद
आर्थिक अवस्था
उद्योग धन्धे
धातु–कर्म
व्यापार
मुद्रा
लिपि
शिक्षा और साहित्य
धार्मिक अवस्था
कला और स्थापत्य
मूर्तिकला
मौर्य साम्राज्य में राज्य का प्रधान कौन होता था ?)?चक्रवर्ती सम्राट अशोक के राज्य में मौर्यवंश का वृहद स्तर पर विस्तार हुआ। सम्राट अशोक के कारण ही मौर्य साम्राज्य सबसे महान एवं शक्तिशाली बनकर विश्वभर में प्रसिद्ध हुआ।
मौर्य साम्राज्य में कितने राज्य हैं?शाही राजधानी पाटलिपुत्र के साथ मौर्य साम्राज्य चार प्रांतों में विभाजित था।
मौर्य वंश का सबसे बड़ा राजा कौन है?अशोक सबसे प्रसिद्ध मौर्य शासक था। वह लोगों तक अपना संदेश पहुंचाने के लिए शिलालेखों का उपयोग करने वाला पहला शासक था। अशोक के अधिकांश शिलालेख प्राकृत में थे और ब्राह्मी लिपि में लिखे गए थे।
मौर्य काल में जिले को क्या कहा जाता था?मौर्यकाल में जिलों को विषय कहा जाता था। जिले का सर्वोच्च अधिकारी/प्रशासक विजय पति होता था। प्रादेशिक - यह क्षेत्र में दौरा करता था तथा जिले व गांव के अधिकारियों का विवरण समाहर्ता को देता था।
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