मराठा साम्राज्य के पतन के कारण विस्तार से लिखिए। - maraatha saamraajy ke patan ke kaaran vistaar se likhie.

First Published: November 20, 2021

मराठा साम्राज्य के पतन के कारण विस्तार से लिखिए। - maraatha saamraajy ke patan ke kaaran vistaar se likhie.

मराठा साम्राज्य का पतन प्रशासन और साम्राज्य की स्थापना में कई अस्थिरता का परिणाम था। इसके परिणामस्वरूप पेशवा के अधिकार का भी पतन हुआ। प्रथम आंग्ल मराठा युद्ध के बाद मराठा संघ लगातार झगड़ों से कमजोर हो गया था।
नानासाहेब के भाई रघुनाथ राव ने 1756 में अहमद शाह अब्दाली को हराकर पंजाब से भी बाहर धकेल दिया। दक्कन में निजाम की हार के बाद मराठा सफलता के शिखर पर पहुंच गए। पेशवा बालाजी बाजी राव द्वारा रोहिल्ला, शुजा-उद-दौला और नजीब-उद-दौला से बने भारतीय मुसलमानों के अफगान नेतृत्व वाले गठबंधन को चुनौती देने के लिए एक सेना भेजी गई थी। 14 जनवरी, 1761 को पानीपत की तीसरी लड़ाई में मराठा सेना की निर्णायक हार हुई। सूरजमल और राजपूतों ने मराठों को छोड़ दिया। उत्तर पश्चिम की ओर मराठा विस्तार को पानीपत में हार से रोक दिया। तब से महादजी शिंदे ने ग्वालियर से दिल्ली/आगरा को नियंत्रित किया, मध्य भारत को इंदौर से होल्करों द्वारा नियंत्रित किया गया और पश्चिमी भारत को बड़ौदा से गायकवाड़ द्वारा नियंत्रित किया गया। बाद में माधवराव पेशवा ने साम्राज्य के पुनर्निर्माण किया और पानीपत की लड़ाई के 10 साल बाद 1761 के बाद उत्तर भारत पर मराठा अधिकार बहाल किया। लेकिन माधवराव पेशवा की अल्पायु में मृत्यु मराठा साम्राज्य के लिए सर्वाधिक नुकसान हुआ।
महाराष्ट्र में कई शूरवीरों को छोटे जिलों के अर्ध-स्वायत्त प्रभार दिए गए थे, जिसके कारण सांगली, औंध, भोर, बावड़ा, जाट, फल्टन, मिराज आदि रियासतें बनीं। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने पुणे में उत्तराधिकार संघर्ष में हस्तक्षेप किया। इसने प्रथम आंग्ल-मराठा युद्ध का कारण बना और यह 1782 में पूर्व-युद्ध यथास्थिति की बहाली के साथ समाप्त हुआ। प्रथम आंग्ल-मराठा युद्ध में मराठों की जीत हुई। बाद में अंग्रेजों ने 1802 में प्रतिद्वंद्वी दावेदारों के खिलाफ सिंहासन के उत्तराधिकारी का समर्थन करने के लिए बड़ौदा में हस्तक्षेप किया। उन्होंने ब्रिटिश सर्वोच्चता की स्वीकृति के बदले में मराठा साम्राज्य से अपनी स्वतंत्रता को मान्यता देने वाले नए महाराजा के साथ एक संधि पर हस्ताक्षर किए। पेशवा बाजी राव द्वितीय ने द्वितीय आंग्ल-मराठा युद्ध (1803-1805) में इसी तरह की संधि पर हस्ताक्षर किए। मराठा स्वतंत्रता का अंतिम नुकसान तीसरे एंग्लो-मराठा युद्ध (1817-1818) द्वारा किया गया था जो संप्रभुता हासिल करने का आखिरी प्रयास था। इस युद्ध ने ब्रिटेन को अधिकांश भारत के नियंत्रण में छोड़ दिया और पेशवा को अंग्रेजों के पेंशनभोगी के रूप में बिठूर (कानपुर, उत्तर प्रदेश के पास) में निर्वासित कर दिया गया। कोल्हापुर और सतारा राज्यों को स्थानीय मराठा शासकों द्वारा बरकरार रखा गया था। दूसरी ओर ग्वालियर, इंदौर और नागपुर राज्यों को ब्रिटिश संप्रभु के अधीन रियासत घोषित किया गया था। अंतिम पेशवा, नाना साहिब, ब्रिटिश शासन के खिलाफ 1857 की लड़ाई के प्रमुख नेताओं में से एक थे। तात्या टोपे ने रानी लक्ष्मीबाई के साथ मिलकर अंग्रेजों के खिलाफ साहसपूर्वक लड़ाई लड़ी और अंग्रेजों के दिलों में दहशत पैदा कर दी।

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  • प्रश्न :

    शिवाजी की उपलब्धियों पर प्रकाश डालते हुए बताएँ कि मराठों के विस्तार में यह नीति किस प्रकार सहायक थीं? मराठों के पतन के कारणों पर प्रकाश डालें।

    11 Jan, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास

    उत्तर :

    उत्तर की रूपरेखा:

    • शिवाजी की उपलब्धियों के बारे में लिखें। 
    • स्पष्ट करें कि उनकी यह नीति मराठा साम्राज्य के विस्तार में किस प्रकार सहायक थी। 
    • मराठों के पतन के कारणों पर प्रकाश डालें।

     शिवाजी एक योग्य सेनापति तथा कुशल राजनीतिज्ञ थे, जिन्होंने अपने प्रयासों से एक मज़बूत मराठा साम्राज्य की नींव रखी। शिवाजी की उपलब्धियों को निम्नलिखित रूपों में देखा जा सकता है-

    • शिवाजी से पूर्व  मराठे कुछ छोटे-छोटे स्थानीय रियासतों में बटें थे। किंतु शिवाजी की सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि उन्होंने दक्कन से लेकर कर्नाटक तक मराठा साम्राज्य के प्रभाव में वृद्धि की और अखिल भारतीय स्तर पर इसे एक स्थान प्रदान किया।
    • शिवाजी की उपलब्धि एक कुशल प्रशासनिक व्यवस्था के निर्माण के रूप में भी देखी जा सकती है। प्रशासन में सहायता के लिये अष्टप्रधानों की नियुक्ति कर उन्होंने वित्त, सेना, गुप्तचर-व्यवस्था तथा पत्र-व्यवहार जैसे क्षेत्रों में कुशलता को बढ़ाया।
    • शिवाजी ने आय हेतु एक प्रमाणिक राजस्व व्यवस्था का गठन किया तथा सरदेशमुखी के साथ-साथ चौथ  के माध्यम से साम्राज्य का आर्थिक आधार व्यापक किया।
    • नकद वेतन पर आधारित सेना का गठन शिवाजी की एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि थी। कठोर अनुशासन पर बल देकर उन्होंने मराठा सेना की प्रभावशीलता में वृद्धि की। इसके अलावा कुशल छापामार युद्ध की नीति का विकास भी सैन्य क्षेत्र में शिवाजी की महात्त्वपूर्ण उपलब्धि थी। 
    • अपने साम्राज्य की सुरक्षा के लिये मज़बूत किलेबंदी की व्यवस्था शिवाजी की एक अन्य उपलब्धि थी। अपनी दूरदर्शिता के कारण विश्वासघात से बचने के लिये उन्होंने समान दर्जे वाले तीन व्यक्तियों को किले का प्रभार देने की नीति अपनाई।

    शिवाजी की ये नीतियाँ मराठा साम्राज्य के विकास में अत्यंत सहायक हुईं। कुशल राजस्व व्यवस्था से होने वाली आय के कारण मराठों की सैनिक शक्ति में भी वृद्धि हुई। वहीं अखिल भारतीय स्तर पर मराठों को उभारने के कारण आगे चल कर मुग़ल साम्राज्य द्वारा भी उन्हें पर्याप्त महत्त्व प्रदान किया गया। इससे मराठों के साम्राज्य का विस्तार हुआ। शिवाजी द्वारा विकसित की गई छापेमारी-युद्ध प्रणाली का प्रयोग करके ही बाजीराव प्रथम ने कृष्णा नदी से अटक तक मराठा साम्राज्य के विस्तार का प्रयास किया। 

    मराठा साम्राज्य के पतन के कारण:

    • कुशल नेतृत्व का अभाव: माधवराव जैसे कुशल पेशवा की असमय मृत्यु से मराठों की नेतृत्व क्षमता प्रभावित हुई। इससे मराठों के आत्मविश्वास में कमी आई। 
    • मराठा सरदारों में आपसी एकता का अभाव होने से सत्ता के लिये मराठा सरदारों में आपसी संघर्ष शुरू हो गए, जिसका लाभ उठा कर अंग्रेजों ने  मराठा साम्राज्य पर अपना प्रभाव बढाया। 
    • चौथ कर वसूली को जबरदस्ती थोपे जाने के कारण पैदा हुए शत्रुओं ने संकट के मराठों का साथ नहीं दिया जो आगे चल कर मराठा साम्राज्य के पतन का कारण बना।
    • इन समस्याओं के कारण मराठों का मज़बूत सैन्य संगठन भी प्रभावित हुआ और युद्ध की स्थिति में उन्हें हार का सामना करना पड़ा।  

    इन कारणों के अलावा अंग्रेजों की कूटनीति तथा सैन्य कुशलता भी मराठा साम्राज्य की कमजोरियों पर भारी पड़ी और उन्होंने ‘पुणे की संधि’ के द्वारा पेशवा के पद को समाप्त कर मराठों कीचुनौती को समाप्त कर दिया।

    मराठों के पतन का मुख्य कारण क्या था?

    मराठों के पतन के प्रमुख कारण.
    एकता का अभाव.
    दृढ़ संगठन का अभाव.
    योग्य नेतृत्व का अभाव.
    दूरदर्शिता और कूटनीतिक अयोग्यता.
    आदर्शो का त्याग.
    दोषपूर्ण सैन्य संगठन.
    कुप्रशासन और दूशित अर्थव्यव्स्था.
    भारतीय राज्यो से शत्रुता.

    मराठा साम्राज्य का अंत कैसे हुआ?

    मराठा संघ एवं मराठा साम्राज्य एक भारतीय शक्ति थी जिन्होंने 18 वी शताब्दी में भारतीय उपमहाद्वीप पर अपना प्रभुत्व जमाया हुआ था। इस साम्राज्य की शुरुआत सामान्यतः 1674 में छत्रपति शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक के साथ हुई और इसका अंत 1818 में पेशवा बाजीराव द्वितीय की हार के साथ हुआ

    मराठों की असफलता के क्या कारण थे?

    कुशल नेतृत्व का अभाव: माधवराव जैसे कुशल पेशवा की असमय मृत्यु से मराठों की नेतृत्व क्षमता प्रभावित हुई। इससे मराठों के आत्मविश्वास में कमी आई। मराठा सरदारों में आपसी एकता का अभाव होने से सत्ता के लिये मराठा सरदारों में आपसी संघर्ष शुरू हो गए, जिसका लाभ उठा कर अंग्रेजों ने मराठा साम्राज्य पर अपना प्रभाव बढाया।

    मराठा साम्राज्य का पतन कब हुआ?

    मराठा साम्राज्य या मराठा संघराज्य 18 वीं शताब्दी में दक्षिण एशिया के एक बड़े भाग पर प्रभुत्व था। साम्राज्य औपचारिक रूप से 1674 से छत्रपति शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक के साथ अस्तित्व में आया और 1818 में पेशवा बाजीराव द्वितीय की हार के साथ समाप्त हुआ