मानकभाषा से आप क्या समझते है मानकीकरण की प्रक्रिया को समझाइये? - maanakabhaasha se aap kya samajhate hai maanakeekaran kee prakriya ko samajhaiye?

मानक हिन्दी हिन्दी का मानक स्वरूप है जिसका शिक्षा, कार्यालयीन कार्यों आदि में प्रयोग किया जाता है। भाषा का क्षेत्र देश, काल और पात्र की दृष्टि से व्यापक है। इसलिये सभी भाषाओं के विविध रूप मिलते हैं। इन विविध रूपों में एकता का प्रयत्न किया जाता है और उसे मानक भाषा कहा जाता है।

हिन्दी में ‘मानक भाषा’ के अर्थ में पहले ‘साधु भाषा’, ‘टकसाली भाषा’, ‘शुद्ध भाषा’, ‘आदर्श भाषा’ तथा ‘परिनिष्ठित भाषा’ आदि का प्रयोग होता था। वह जो कड़ा होकर, स्पष्टतः औरों से अलग प्रतिमान का काम करे। ‘मानक भाषा’ भी अमानक भाषा-रूपों से अलग एक प्रतिमान का काम करती है। उसी के आधार पर किसी के द्वारा प्रयुक्त भाषा की मानकता अमानकता का निर्णय किया जाता है।

परिभाषा manak bhasha ki[संपादित करें]

‘मानक भाषा’ को लोगों ने तरह-तरह से स्पष्ट करने का यत्न किया है। रॉबिन्स (१९६६) के अनुसार सामाजिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण लोगों की बोली को मानक भाषा का नाम दिया जाता है। स्टिवर्ट (१९६८) ने प्रकृति, आंतरिक व्यवस्था तथा सामाजिक प्रयोग आदि के आधार पर भाषा के विभिन्न प्रकारों में अंतर दिखाने के लिए चार आधार माने हैं।

ऐतिहासिकता[संपादित करें]

‘ऐतिहासिकता’ का अर्थ है, भाषा की प्राचीन परम्परा और काल की दृष्टि से उसका विकास। अधिकांश भाषाएँ एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक फिर दूसरी से तीसरी तक और ऐसे ही आगे पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलती रहती हैं। यही उनकी ऐतिहासिकता है। यह उल्लेख है कि एस्पिरैंतो, इदो, लौंग्लन जैसी कृतिम भाषाओं में इस ऐतिहासिकता का अभाव होता है।

मानकीकरण[संपादित करें]

अर्थात भाषा को एक मानक रूप देना। ऐसा रूप जिसमें प्राप्त सभी विकल्पों में एक को मानक मान लिया गया हो तथा जिस भाषा रूप को उस भाषा के सारे बोलने वाले मानक स्वीकार करते हों। यह बात ध्यान देने की है कि सारे विश्व की अधिकांश समुन्नत भाषाओं का मानक रूप होता है, जबकि अवभाषा (वर्नाक्यूलर), बोली क्रियोल आदि का मानक रूप नहीं होता। मानकीकरण के कारण ही कोई भाषा अपने पूरे क्षेत्र में शब्दावली तथा व्याकरण की दृष्टि से समरुप होती है, इसीलिए वह सभी लोगों के लिए बोधगम्य भी होती है। साथ ही वह सभी लोगों द्वारा मान्य होती है अतः अन्य भाषा रूपों की तुलना में वह अधिक प्रतिष्ठित भी होती है।

जीवंतता[संपादित करें]

अर्थात भाषा का प्रयोक्ता कोई समाज हो जिसमें बोलचाल तथा लेखन आदि में उस भाषा का प्रयोग होता हो। जीवंत भाषा में निरंतर विकास होता रहता है। विश्व में बोली जाने वाली सभी भाषाओं और बोलियों में जीवंतता मिलती है। हाँ, संस्कृत, लैटिन, पालि, प्राकृत, अपभ्रंश जैसी पुरानी या क्लासिक भाषाएँ आज सामान्य प्रयोग में नहीं हैं, इसीलिए उनमें जीवंतता नहीं मानी जा सकती।

स्वायत्तता[संपादित करें]

स्वायत्तता से आश्य है अपने अस्तित्व के लिए किसी भाषा का किसी अन्य भाषा पर निर्भर न होना। सामान्यतः भाषाएँ स्वायत्त होती हैं, किंतु बोलियाँ स्वायत्त नहीं होतीं; वे अपने अस्तित्व के लिए भाषा पर निर्भर करती हैं। इसीलिए हमें प्रत्येक बोली के लिए यह कहना पड़ता है कि वह बोली अमुक भाषा की है किंतु भाषा के संबंध में ऐसी कोई बाध्यता नहीं है।

इन आधारों को लेकर हम विचार करें तो क्लासिक भाषा में ऐतिहासिकता होती है, मानकता होती है, किंतु जीवंतता नहीं होती, बोली में मानकता तथा स्वायत्तता नहीं होती, अवभाषा (वर्नाक्यूलर) में मानकता नहीं होती क्रतिम भाषा में केवल मानकता होती है, पिजिन में मात्र ऐतिहासिकता होती है, क्रियोल में अन्य सभी होती है, किंतु मानकता नहीं होती। मानक भाषा में ये चारो ही विशेषताएँ होती हैं। वस्तुतः स्टिवर्ट की ये बातें यह तो बतलाती हैं कि मानक भाषा में उपर्युक्त चार विशेषताएँ होती हैं, ‘किंतु मानक भाषा में मानकता भी होती है’ का तब तक कोई अर्थ नहीं, जब तक कि हम यह न बताएँ कि मानकता क्या है।

मानकता में निम्नांकित बातें आती हैं—

  • (१) मानकता का आधार कोई व्याकरणिक या भाषावैज्ञानिक तथ्य अथवा नियम नहीं होते। इसका आधार मूलतः सामाजिक स्वीकृति है। समाज विशेष के लोग भाषा के जिस रूप को अपनी मानक भाषा मान लें, उनके लिए वही मानक हो जाती है।
  • (२) इस तरह भाषा की मानकता का प्रश्न तत्त्वतः भाषाविज्ञान का न होकर समाज-भाषाविज्ञान का है। भाषाविज्ञान भाषा की संरचना का अध्ययन करता है और संरचना मानक भाषा की भी होती है और अमानक भाषा की भी। उसका इससे कोई संबंध नहीं कि समाज किसे शुद्ध मानता है और किसे नहीं। इस तरह मानक भाषा की संकल्पना को संरचनात्मक न कहकर सामाजिक कहना उपयुक्त होगा।
  • (३) जब हम समाज विशेष से किसी भाषा-रूप के मानक माने जाने की बात करते हैं, तो समाज से आशय होता है सुशिक्षित और शिष्ट लोगों का वह समाज जो पूरे भाषा-भाषी क्षेत्र में प्रभावशाली एवं महत्त्वपूर्ण माना जाता है। वस्तुतः उस भाषा-रूप की प्रतिष्ठा उसके उन महत्त्वपूर्ण प्रयोक्ताओं पर ही आधारित होती है। दूसरे शब्दों में उस भाषा के बोलनेवालों में यही वर्ग एक प्रकार से मानक वर्ग होता है।
  • (४) समाज द्वारा मान्य होने के कारण भाषा के अन्य प्रकारों की तुलना में मानक भाषा की प्रतिष्ठा होती है। इस तरह मानक भाषा सामाजिक प्रतिष्ठा का प्रतीक है।
  • (५) सामान्यत- मानक भाषा मूलतः किसी देश की राजधानी या अन्य दृष्टियों से किसी महत्त्वपूर्ण केन्द्र की बोली होती है, जिसे राजनीतिक अथवा धार्मिक अथवा सामाजिक कारणों से प्रतिष्ठा और स्वीकृति प्राप्त हो जाती है।
  • (६) बोली का प्रयोग अपने क्षेत्र तक सीमित रहता है, किंतु मानक भाषा का क्षेत्र अपने मूल क्षेत्र के भी बाहर अन्य बोली-क्षेत्रों में होता है।
  • (७) यदि किसी भाषा का मानक रूप है तो साहित्य में, शिक्षा के माध्यम के रूप में, अंतःक्षेत्रीय प्रयोग में तथा सभी औपरचारिक परिस्थितियों में उस मानक रूप का ही प्रयोग होता है, अमानक रूप या बोली आदि का नहीं।
  • (८) किसी भाषा के बोलने वाले अन्य भाषा-भाषियों के साथ प्रायः उस भाषा के मानक रूप का ही प्रयोग करते हैं, किसी बोली का अथवा अमानक रूप का नहीं।

संक्षेप में[संपादित करें]

‘मानक भाषा’ किसी भाषा के उस रूप को कहते हैं जो उस भाषा के पूरे क्षेत्र में शुद्ध माना जाता है तथा जिसे उस प्रदेश का शिक्षित और शिष्ट समाज अपनी भाषा का आदर्श रूप मानता है और प्रायः सभी औपचारिक परिस्थितियों में, लेखन में, प्रशासन और शिक्षा, के माध्यम के रूप में यथासाध्य उसी का प्रयोग करने का प्रयत्न करता है।

भाषाओं को मानक रूप देने की भावना जिन अनेक कारणों से विश्व में जगी, उनमें सामाजिक आवाश्यकता, प्रेस का प्रचार, वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास से एकरूपता के प्रति रूझान तथा स्व की अस्मिता आदि मुख्य हैं। यहाँ इनमें एक-दो को थोड़े विस्तार से देख लेना अन्यथा न होगा। उदाहरण के लिए मानक भाषा की सामाजिक आवश्यकता से इनकार नहीं किया जा सकता। किसी भी क्षेत्र को लें, सभी बोलियों में प्रशासन साहित्य-रचना, शिक्षा देना या आपस में बातचीत कठिन भी है, अव्यावहारिक भी। हिन्दी की ही बात लें तो उसकी बीस-पच्चीस बोलियों में ऐसा करना बहुत संभव नहीं है। आज तो कुमायूंनी भाषी नामक हिंदी के जरिए मैथिली भाषी से बातचीत करता है किंतु यदि मानक हिंदी न होती तो दोनों एक दूसरे की बात समझ न पाते। सभी बोलियों में अन्य बोलियों के साहित्य का अनुवाद भी साधनों की कमी से बहुत संभंव नहीं है, ऐसी स्थिति में शैलेश मटियानी (कुमायूँनी भाषा) के साहित्य का आनंद मैथिली भाषी नहीं ले सकता था, न नागार्जुन (मैथिली भाषी) के साहित्य का आनंद कुमायूँनी, गढ़वाली या हरियानी भाषी। इस प्रकार सभी बोलियों के ऊपर एक मानक भाषा को इसलिए आरोपित करना, अच्छा या बुरा जो भी हो, उसकी सामाजिक अनिवार्यता है और इसलिए विभिन्न क्षेत्रों में कुछ मानक भाषाएँ स्वयं विकसित हुई हैं, कुछ की गई हैं और उन्होंने उन क्षेत्रों को अधिक दूर-दूर तक समझे जानेवाले माध्यम के रूप में अनंत सुविधाएं प्रदान की हैं। ऐसे ही प्रेस के अविष्कार तथा प्रचार ने भी मानकता को अनिवार्य बनाया है।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • हिन्दी वर्तनी मानकीकरण
  • मानक हिंदी वर्तनी (केंद्रीय हिंदी निदेशालय द्वारा जारी)

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

  • मानक हिन्दी का स्वरूप (गूगल पुस्तक ; लेखक - भोलानाथ तिवारी)
  • मानक हिंदी वर्तनी के नियम (केंद्रीय हिंदी निदेशालय द्वारा निर्धारित)
  • मानक हिंदी वर्तनी के प्रमुख नियम (बालसुब्रमणियम)
  • The Union: Official Language
  • Official Unicode Chart for Devanagari (PDF)
  • Romanized to Unicode Hindi transliterator
  • English to Hindi Transliteration Editor developed by C-DAC Mumbai.

मानक भाषा से आप क्या समझते है मानकीकरण की प्रक्रिया को समझाइये?

'मानक भाषा' किसी भाषा के उस रूप को कहते हैं जो उस भाषा के पूरे क्षेत्र में शुद्ध माना जाता है तथा जिसे उस प्रदेश का शिक्षित और शिष्ट समाज अपनी भाषा का आदर्श रूप मानता है और प्रायः सभी औपचारिक परिस्थितियों में, लेखन में, प्रशासन और शिक्षा, के माध्यम के रूप में यथासाध्य उसी का प्रयोग करने का प्रयत्न करता है।

मानक भाषा से आप क्या समझते है?

मानक भाषा (standard language) किसी भाषा की वह भाषा प्रयुक्ति या भाषिका होती है जो किसी समुदाय, राज्य या राष्ट्र में सम्पर्क भाषा का दर्जा रखे और लोक-संवाद में प्रयोग हो।

मानकीकरण प्रक्रिया क्या है?

मानकीकरण मुख्य रूप से विशिष्ट मानव भाषा विकास के साथ संबंध है और तभी हो सकता है जब एक समाज को अपनी भाषा और मिलनसार पद्धति की मौजूदा खेती है, जिसके बाद, समाज तो एक राज्य के लिए एक आवश्यकता व्यक्त करना चाहिए वर्दी किसी भी अनियमितताओं से छुटकारा पाने और दो या अधिक दलों के बीच एक सुसंगत संचार प्रणाली बनाने के द्वारा ।

मानक भाषा से आप क्या समझते हैं मानक भाषा के विभिन्न लक्ष्य पर प्रकाश डालिए?

मानक भाषा - मानक भाषा से आशय ऐसी भाषा से है जो सभी जगह मान्य हो। इसका प्रयोग करने पर विचारों या भावों को स्पष्टतया आसान ढंग से ग्रहण कर सके, समझने में किसी प्रकार की कठिनाई न हो, ऐसी भाषा को मानक भाषा कहा जाता है। मानक भाषा को आदर्श, टकसाली तथा परिनिष्ठित भाषा भी कहते हैं। ऐसी भाषा का एक निश्चित व्याकरण होता है।