महाभारत की कहानी: कर्ण महाभारत का एक अहम पात्र था, उनकी प्रशंशा युगों युगों से की जाती है. वह कुशल होने के साथ साथ एक बहुत अच्छा योद्धा भी थे. Show
कुंती-सूर्य पुत्र कर्ण को महाभारत का एक महत्वपूर्ण योद्धा माना जाता है. कर्ण के धर्मपिता तो पांडु थे, लेकिन पालक पिता अधिरथ और पालक माता राधा थी। कर्ण दानवीर के रूप में प्रसिद्ध थे, उन्होंने अपने कवच-कुण्डल दान में दिए और अंतिम समय में सोने का दांत भी दे दिया था. भगवान कृष्ण ने अर्जुन को यही उपदेश दिया था कि दान करते वक्त मन में अगर कोई भी भावना हो कि किए गए दान का खास फल प्राप्त होगा तो दान करने का पुण्य फल नहीं मिलता और दान करना निष्फल हो जाता है. भगवान् कृष्ण ने भी कर्ण को सबसे बड़ा दानी माना है. अर्जुन को कर्ण की प्रसंशा पसंद नहीं थी, इसी कारण से उन्होंने एक बार कृष्ण से पूछा की सब कर्ण की इतनी प्रशंशा क्यों करते हैं. कृष्ण ने दो पर्वतों को सोने में बदल दिया और कहा के इस सोने को गांव वालों में बाँट दो, अर्जुन ने सारे गांव वालों को बुलाया और पर्वत काट काट कर देने लगे और कुछ समय बाद थक कर बैठ गए. तब कृष्ण ने कर्ण को बुलाया और सोने को बांटने के लिए कहा तो कर्ण ने बिना कुछ सोचे समझे गांव वालों को कह दिया के ये सारा सोना गांव वालों का है और वे इसे आपस में बाँट ले. तब कृष्ण ने समझाया के कर्ण दान करने से पहले अपने हित के बारे में नहीं सोचता. इसी बात के कारण उन्हें सबसे बड़ा दानवीर कहा जाता है. अपनी दानवीरता का असली परिचय उन्होंने अपने कवच और कुण्डल दान करते वक्त दिया. कर्ण जब सूर्य की उपासना कर रहे थे तब इंद्र वेश बदल कर ब्रह्मा के रूप में आये और कर्ण से उनके कवच और कुण्डल की मांग की. सूर्य ने कर्ण को कवच और कुण्डल देने से मना किया था पर कर्ण किसी को निराश नहीं करते थे इसलिए उन्होंने अपना कवच और कुण्डल का दान कर दिया. कर्ण ये जानते थे की यह दान उनकी मृत्यु का कारन बन सकता है, तब भी उन्होंने अपने हित के बारे में बिना सोचे दान कर दिया, और एक बार फिर ये साबित कर दिया के उनसे बड़ा दानवीर और कोई नहीं है. कर्ण दान करने के लिए काफी प्रसिद्ध था. कर्ण जब युद्ध क्षेत्र में आखिरी सांस ले रहा था तो भगवान कृष्ण ने उसकी दानशीलता की परीक्षा लेनी चाही. वे गरीब ब्राह्मण बनकर कर्ण के पास गए और कहा कि तुम्हारे बारे में काफी सुना है और तुमसे मुझे अभी कुछ उपहार चाहिए. कर्ण ने उत्तर में कहा कि आप जो भी चाहें मांग लें. ब्राह्मण ने सोना मांगा. कर्ण ने कहा कि सोना तो उसके दांत में है और आप इसे ले सकते हैं. ब्राह्मण ने जवाब दिया कि मैं इतना कायर नहीं हूं कि तुम्हारे दांत तोड़ूं. कर्ण ने तब एक पत्थर उठाया और अपने दांत तोड़ लिए. ब्राह्मण ने इसे भी लेने से इंकार करते हुए कहा कि खून से सना हुआ यह सोना वह नहीं ले सकता. कर्ण ने इसके बाद एक बाण उठाया और आसमान की तरफ चलाया. इसके बाद बारिश होने लगी और दांत धुल गया. (यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं, इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.) ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज अपडेट के लिए हमें फेसबुक पर लाइक करें या ट्विटर पर फॉलो करें. India.Com पर विस्तार से पढ़ें धर्म की और अन्य ताजा-तरीन खबरें दान बहुत बड़ा पुण्य माना जाता है, जो तन, मन व धन से होता है। ध्यान रहे कि यह बिल्कुल भी जरूरी नहीं है कि धन होने से ही आप दान कर सकते हैं। अगर आप सच्चे दिल से किसी को सहानुभूति देते हैं या फिर किसी तरह की सहायता करते हैं, तो उसे भी दान ही माना जाता है। हालांकि दान देने की प्रक्रिया उस मनुष्य में ज्यादा पायी जाती है, जिसका दिल मक्खन से भी नर्म होता है। अब आप सोच रहे होंगे कि ऐसा क्यों… ऐसा इसलिए क्योंकि मक्खन को गर्मी चाहिए तब वह पिघलेगा, लेकिन अच्छे इंसान का दिल दूसरों का दुख देखते ही पिघल जाता है इसलिए जिसका दिल मक्खन के समान नर्म है, उसे संत के तुल्य माना जाता है। महाभारत को दो बड़े योद्धा युधिष्ठिर व कर्ण में बड़ा दानवीर कौनमहाभारत की कथा को हम सबने पढ़ी व देखी है। यूं तो दानवीरों में महाभारत के समय में हुए ‘महारथी कर्ण’ का नाम सबसे पहले आता है, जिन्होंने हमेशा उनके पास जो भी आया उसकी जरूरत के अनुसार वह दान दे दिया करते थे। गौरतलब है कि अर्जुन के दिल में भी यह बात आई थी कि मेरे बड़े भाई युधिष्ठिर तो सत्य के पूजारी के साथ-साथ दानवीर भी हैं, फिर ‘कर्ण’ को मेरे भाई युधिष्ठिर से बड़ा दानवीर क्यों माना जाता है? ऐसे में तब भगवान कृष्ण ने उनकी शंका दूर करने के लिए, एक दिन तेज़ बारिश के समय में ब्राह्मण का भेष बनाया और दोनों सबसे पहले युधिष्ठिर के पास जा पहुंचे। साधु के भेष में भगवान कृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा कि हमें हवन के लिए सूखी चंदन की लकड़ियों की आवश्यक्ता है। युधिष्ठिर जी ने कहा कि ब्राह्मण देवता बारिश की वजह से सभी लकड़ियां गीली हो गई हैं, इसलिए मैं सूखी चंदन की लकड़ी देने में असमर्थ हूं… अब दोनों ‘कर्ण’ के पास पहुंच गए। ‘कर्ण’ ने उनसे कहा, पहले आप भोजन कर लें, सूखी चंदन की लकड़ी की व्यवस्था मैं कर दूंगा। भोजन करने के बाद ‘कर्ण’ ने अपने मकान में लगे दरवाजे एवं अपने पलंग को तुड़वाकर उनको लकड़ी भेंट कर दी जोकि चंदन की लकड़ी के बने हुए थे और साथ ही उन्हें चंदन की लकड़ियां देने से पहले अपने तरकश से बाण छोड़ कर गंगाजी का पानी बहाकर पूरी लकड़ियों को धुलवाया और फिर तरकश से दूसरा बाण छोड़कर गर्मी पैदा करके सभी लकडिय़ों को सुखा भी दिया। और तब भगवान कृष्ण ने अर्जुन से कहा कि अब आप देख सकते हैं कि श्रेष्ठ दानवीर कौन है… युधिष्ठिर या फिर कर्ण। दान का क्या है महत्वध्यान रखें कि परोपकार के कार्य हमें सदैव ही आनंद प्रदान करते हैं और जीवनभर यही हमारा लक्ष्य भी ज़रूर होना चाहिए। बता दें कि प्रेम में अनगिनत शक्ति छिपी होती है। यह हमारे मन व मस्तिष्क से दूषित विचारों को निकालकर उसे दैवीय भावों से भर देती है। अगर एक गरीब आदमी अपनी कमाई का 10 प्रतिशत भी दान करता है, तो उसके दान का महत्व एक धनी आदमी के द्वारा अपनी कमाई का 10 प्रतिशत दान से अधिक महत्व रखता है, क्योंकि एक गरीब आदमी अपनी कमाई का 10 प्रतिशत अपने दैनिक खर्च से काटकर देता है जबकि एक धनी आदमी अपने विलासी जीवन के साधन में से। दोस्तों प्यार में ऐसी शक्ति है कि मन के सारे मैल धोकर एक पवित्र भाव से भर देता है। महाभारत के अनुसार दानवीर कौन था?कर्ण को एक दानवीर और महान योद्धा माना जाता है। उन्हें दानवीर और अंगराज कर्ण भी कहा जाता है।
दुनिया का सबसे बड़ा दानी कौन है?एक बार राजा विक्रमादित्य ने एक महाभोज का आयोजन किया। उस भोज में असंख्य विद्धान, ब्राह्मण, व्यापारी तथा दरबारी आमन्त्रित थे। भोज के मध्य में इस बात पर चर्चा चली कि संसार में सबसे बड़ा दानी कौन है। सभी ने एक स्वर से विक्रमादित्य को दुनिया का सर्वश्रेष्ठ दानवीर घोषित किया।
महाभारत में दानवीर कर्ण का अंतिम दान क्या था?एक दानवीर राजा होने के कारण भगवान कृष्ण ने कर्ण के अंतिम समय में उसकी परीक्षा ली और कर्ण से दान माँगा तब कर्ण ने दान में अपने सोने के दांत तोड़कर भगवान कृष्ण को अर्पण कर दिए. इस दानवीरता से प्रसन्ना होकर भगवान कृष्ण ने कर्ण को वरदान मांगने को कहा.
क्या कर्ण सच में दानवीर था?जी हां, पूरे महाभारत काल में महावीर कर्ण से बड़ा दानवीर कोई नहीं था, जिसने अर्जुन के हाथों घायल होकर उखड़ती सांसों के बावजूद दान मांगने गए कृष्ण की मनोकामना पूरी करके ही अंतिम सांस ली. महाभारत युद्ध में अर्जुन रथ धंसने पर नीचे उतरकर पहिया निकालते हुए कर्ण को बाण मारकर बेदम कर देते हैं.
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