लेखक को ऐसा क्यों लगा कि कहीं भगत जी पागल तो नहीं हो गए हैं? - lekhak ko aisa kyon laga ki kaheen bhagat jee paagal to nahin ho gae hain?

निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिये:
बेटे को आँगन में एक चटाई पर लिटाकर एक सफेद कपड़े से ढक रखा है। बह कुछ फूल तो हमेशा ही रोपे रहते, उन फूलों में से कुछ तोड़कर उस पर बिखरा दिए हैं, फूल और तुलसीदल भी। सिरहाने एक चिराग जला रखा है और, उसके सामने जमीन पर ही आसन जमाए गीत गाए चले जा रहे हैं। वही पुराना स्वर, वही पुरानी तल्लीनता। पर में पतोहू से रही है, जिसे गाँव की स्त्रियाँ चुप कराने की कोशिश कर रही हैं। किंतु, बालगोबिन भगत गाए जा रहे हैं। हाँ, गाते-गाते कभी-कभी पतोहू के नज़दीक भी जाते और उसे रोने के बदले उत्सव मनाने को कहते। आत्मा परमात्मा के पास चली गई, विरहिनी अपने प्रेमी से जा मिली, भला इससे बढ़कर आनंद की कौन बात? मैं कभी-कभी सोचता, यह पागल तो नहीं हो गए। किंतु, नहीं, वह जो कुछ कह रहे थे, उसमें उनका विश्वास बोल रहा था-वह चरम विश्वास, जो हमेशा ही मृत्यु पर विजयी होता आया है।
लेखक बालगोबिन के संबंध में क्या और क्यों सोचता है?


लेखक को कभी-कभी यह लगता था कि कहीं बालगोबिन पागल तो नहीं हो गए हैं क्योंकि वे अपने एकमात्र पुत्र की मृत्यु पर भी शोक मनाने पर आनंद मना रहे हैं तथा अपनी पतोहू को भी रोने के स्थान पर उत्सव मनाने के लिए कह रहे हैं। उन्हें मृत्यु आनंद मनाने का अवसर लगता है। इस दिन आत्मा परमात्मा से मिल जाती है।

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बालगोबिन भगत की दिनचर्या लोगों के अचरज का कारण क्यों थी?


बालगोबिन भगत की दिनचर्या लोगों के आश्चर्य का कारण इसलिए थी कि वे अपने नियमों का दृढ़ता से पालन करते थे। वे सुबह मुँह अँधेरे उठते, गाँव से दो मील दूर नदी पर स्नान के लिए जाते थे। वापसी में पोखर के ऊँचे स्थान पर खंजड़ी बजाते हुए गीत गाते थे। यह नियम न सर्दी देखता और न ही गर्मी। वे बिना पूछे न ही किसी की वस्तु छूते और न ही व्यवहार में लाते थे। कई बार तो वे अपने नियमों पर इतने दृढ़ हो जाते कि शौच के लिए भी दूसरों के खेतों का प्रयोग नहीं करते थे। उनकी नियमों पर दृढ़ता ही लोगों के आश्चर्य का कारण बनती थी।

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लेखक को ऐसा क्यों लगता है कि भगत पागल हो गए हैं?

लेखक को कभी-कभी यह लगता था कि कहीं बालगोबिन पागल तो नहीं हो गए हैं क्योंकि वे अपने एकमात्र पुत्र की मृत्यु पर भी शोक मनाने पर आनंद मना रहे हैं तथा अपनी पतोहू को भी रोने के स्थान पर उत्सव मनाने के लिए कह रहे हैं। उन्हें मृत्यु आनंद मनाने का अवसर लगता है। इस दिन आत्मा परमात्मा से मिल जाती है।

भगत को संबल लेने का हक क्यों नहीं था?

- (ख) 'संबल' का अर्थ है- आश्रय, सहारा भगत जी को संबल लेने का कोई हक नहीं था इसका कारण यह था कि वह यह मानते थे कि साधु को संबल लेने का कोई हक नहीं है। ये स्वाभिमान और विनम्रता को साधुता का प्रमुख गुण मानते थे। किसी से कुछ माँगना अथवा हाथ फैलाना उन्हें गवारा नहीं था। वे गंगा स्नान के लिए पैदल जाते थे।

लेखक ने बाल गोबिन भगत को साधु क्यों कहा है?

बालगोबिन भगत कबीर के पक्के भक्त थे। वे कभी झूठ नहीं बोलते थे और हमेशा खरा व्यवहार करते थे। वे किसी की चीज का उपयोग बिना अनुमति माँगे नहीं करते थे। उनकी इन्हीं विशेषताओं के कारण वे साधु कहलाते थे।

भगत जी कौन सा काम करते थे?

बालगोबिन भगत एक गृहस्थ थे लेकिन उनमें साधु संन्यासियों के गुण भी थे। वे अपने किसी काम के लिए दूसरों को कष्ट नहीं देना चाहते थे। बिना अनुमति के किसी की वस्तु को हाथ नहीं लगाते थे। कबीर के आर्दशों का पालन करते थे