लिंग विभेद का समाज पर क्या प्रभाव पड़ता है? - ling vibhed ka samaaj par kya prabhaav padata hai?

लिंगीय विभेद को परिभाषित कीजिए। इसके प्रमुख कारण क्या है तथा इसकी समाप्ति के उपाय भी लिखिए।

लिंगीय विभेद को परिभाषित कीजिए। इसके प्रमुख कारण क्या है तथा इसकी समाप्ति के उपाय भी लिखिए।

उत्तर – लिंगीय विभेद (Gender bias) – लिंग आधारित भेदभाव से तात्पर्य बालक तथा बालिकाओं के मध्य व्याप्त लैंगिक असमानता से है। बालक तथा बालिकाओं में उनके लिंग के आधार पर भेद करना जिसके कारण बालिकाओं को समाज में शिक्षा में तथा पालन-पोषण में बालकों से निम्नतर स्थिति में किया जाता है, जिसस वे पिछड़ जाती हैं । प्राचीन काल से ही यह अवधारणा प्रचलित रही है कि जीवित पुत्र का मुख देखने मात्र से ही नरक और कई प्रकार के पापों से मुक्ति मिल जाती है और बालिकाओं की प्रत्येक प्रकार से सुरक्षा करनी पड़ती है। अतः बालक श्रेष्ठ है और कुल का नाम आगे ले जाने और रोशन करने के लिए  उत्तरदायी होने के कारण ही बालिकाओं की अपेक्षा प्रमुख है। इस प्रकार लिंग के आधार पर किया जाने वाला भेदभाव लिंग आधारित भेदभाव कहलाता है।

लिंग विभेद के कारण इसके लिए निबन्धात्मक प्रश्न संख्या 7 का उत्तर देखें।

लिंग विभेद समाप्ति के उपाय— भारत में शिक्षा तथा साक्षरता में वृद्धि तो दर्ज की जा रही है, परन्तु लिंगीय विभेदों के सम्बन्ध में स्थिति अभी भी चिन्ताजनक है। बालकों ओर बालिकाओं में कई प्रकार के विभेद प्रचलित हैं, जिससे आधी आबादी के मस्तिष्क का सही उपयोग देश की प्रगति में नहीं हो पा रही है। वर्तमान में कई प्रयास सरकारी, निजी, अर्द्ध- सरकारी तथा समाजसेवी उपक्रमों द्वारा किये जा रहे हैं, जिससे लैंगिक मुद्दों पर जागरूकता लायी जा सके। लिंगीय विभेदों के कारण स्त्री-पुरुष अनुपात की खाई निरन्तर बढ़ती जा रही है। हरियाणा और राजस्थान जैसे राज्यों में तो यह स्थिति और भी भयावह है। लैंगिक विभेदों को कम करने तथा शनै:- शनैः उनकी समाप्ति करने हेतु निम्नांकित उपायों को सुझावस्वरूप प्रस्तुत किया जा सकता है जो निम्नवत् हैं—

( 1 ) जन-शिक्षा का प्रसार — स्त्री-पुरुष में तब तक भेदभाव की स्थिति बनी रहेगी, जब तक जनसाधारण के मध्य शिक्षा का प्रचार-प्रसार नहीं हो जाता है। वास्तविक अर्थों में भारतीय विशाल जनसमूह के मानस को शिक्षित करना होगा, जिससे लड़के-लड़कियों के लिंग को लेकर जो पूर्वाग्रह हैं, उससे वे मुक्त होकर ईश्वर की दोनों कृतियों का सम्मान कर सकें। पहले लड़कियों को साइकिल तथा गाड़ी जब चलाने को नहीं दी जाती थी तो माना जाता था कि वे यह कार्य कर ही नहीं सकतीं, ये कार्य पुरुष ही कर सकते हैं। परन्तु शिक्षा के द्वारा लोगों में जागरूकता आयी है तथा और भी लायी जानी चाहिए, जिससे लोग यह समझ सकें कि स्त्री या पुरुष होना मायने नहीं रखता।

(2) बालिका शिक्षा का प्रसार — बालिका शिक्षा का व्यापक स्तर पर प्रसार करके भी लिंगीय विभेदों को कम किया जा सकता है। आँकड़ों को देखने से भी ज्ञात होता है कि जहाँ पर बालिकाओं की साक्षरता दर अधिक है, वहाँ बालिका लिंगानुपात भी अधिक है । इससे स्पष्ट होता है कि लिंगानुपात में शिक्षा की विशेष भूमिका है। पढ़ीलिखी लड़की घर-परिवार पर बोझ नहीं समझी जाती है, अपितु वर्तमान में तो लड़कियाँ शिक्षित होकर पारिवारिक उत्तरदायित्वों का निर्वहन भी करती हैं, जिससे लैंगिक भेदभाव में कमी आती है।

( 3 ) सामाजिक परम्पराओं तथा मान्यताओं पर कुठाराघात — समाज में प्राचीन काल से कुछ मान्यताओं तथा परम्पराओं का पालन किया जा रहा है, जिसके पालन न करने में सामाजिक तथा धार्मिक दोनों ही प्रकार के भय व्यक्तियों में व्याप्त हैं, परन्तु उन गलत परम्पराओं और मान्यताओं के तिलिस्म को धीरे-धीरे तोड़ने का कार्य किया जाना चाहिए। लड़कियाँ भी ईश्वर की अनुपम कृतियाँ हैं और वे प्रत्येक कार्य तथा संस्कार का सम्पादन करने में सक्षम हैं, सिर्फ इस कारण उन्हें वंचित  नहीं किया जा सकता और यदि स्त्रियाँ नहीं होगी तो पुरुष भी नहीं होंगे। अतः स्त्री पुरुष दोनों को ही समान दर्जा मिलना चाहिए। सामाजिक कुप्रथाओं तथा गलत मान्यताओं पर कुठाराघात करके ही स्त्री-पुरुष दोनों ही लिंगों की समानता की बात सोची जा सकती है।

( 4 ) सामाजिक कुप्रथाओं पर रोक समाज में अनेक कुप्रथाएँ व्याप्त हैं, जिसका प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष दोनों ही प्रभाव महिलाओं पर पड़ता है। समाज में सती प्रथा, पर्दा प्रथा, बाल-विवाह, विधवा विवाह निषेध, कन्या भ्रूणहत्या इत्यादि प्रचलित है, जिसके कारण स्त्रियों को शारीरिक तथा मानसिक रूप से तोड़ दिया जाता है। अतः इन कुप्रथाओं पर रोक लगानी चाहिए। इस दिशा में तमाम प्रयास किये गये हैं तथा किये भी जा रहे हैं, जैसे शारदा एक्ट द्वारा बाल विवाह पर रोक, राजा राममोहन राय के प्रयासों के परिणामस्वरूप सती प्रथा का समापन, संविधान के द्वारा बालिका विवाह की न्यूनतम आयु 18 वर्ष का निर्धारण आदि के द्वारा स्त्रियों की स्थिति में सुधार आया है। डायन बिसाही, बेमेल विवाह आदि विषयों पर जागरूकता फैलाने का कार्य सरकारी तथा गैर सरकारी दोनों ही स्तरों पर किया जा रहा है, जिससे स्त्रियों को लेकर फैली विभिन्न प्रकार की भ्रान्तियों का निराकरण करके उन्हें पुरुषों के समकक्ष स्थान समाज में दिलाकर लिंगभेद को समाप्त किया जा सकता है ।

(5) जागरूकता लाना – भारतीय समाज में अभी भी जागरूकता की कमी तथा भेड़चाल की परम्परा चली आ रही है। इसी कारण स्त्रीपुरुषों में वर्षों से चली आ रही भेदभाव की भावना अभी तक जीवित है, जिसको जागरूकता लाकर समाप्त किया जा सकता है। जागरूकता लाने के वर्तमान में तमाम साधन हैं, जैसे टेलीविजन, रेडियो, मोबाइल, इण्टरनेट, नुक्कड़ नाटक, चलचित्र, डॉम्यूमेण्ट्री फिल्म, दीवाल लेखन, पत्र-पत्रिकायें, अखबार इत्यादि हैं, जिससे लोगों को लड़का-लड़की के घटते अनुपात तथा उसके दुष्परिणामों से अवगत कराया जाना चाहिए।

( 6 ) बालिकाओं हेतु पृथक् व्यावसायिक विद्यालयों की स्थापना – बालिकाओं को आत्मनिर्भर बनाने तथा पुरुष प्रधान भारतीय समाज में अपने अस्तित्व को प्रभावित करने हेतु उनकी व्यावसायिक शिक्षा का प्रबन्धन किया जाना चाहिए। बालिकाओं की स्थिति में सुधार साक्षारता मात्र से नहीं लाया जा सकता, अपितु उनकी आत्मनिर्भरता हेतु रोजगारपरक, व्यावसायिक पाठ्यक्रमों की व्यवस्था की जाए, जिसमें उनकी आवश्यकताओं तथा अभिरुचियों पर विशेष ध्यान दिया जाए। इस आवश्यकता की पूर्ति हेतु आवासीय व्यावसायिक विद्यालयों की स्थापना महिलाओं हेतु पृथक् रूप से करनी चाहिए।