लोकतन्त्रीय समाज में शिक्षा के क्या उद्देश्य होने चाहिए? उनमें से किसी एक की सविस्तार विवेचना कीजिए।
प्रजातन्त्र में शिक्षा का प्रथम उद्देश्य उत्तम नागरिक उत्पन्न करना है। मानव का सर्वांगीण विकास स्वतन्त्र वातावरण में ही सम्भव है। केवल प्रजातन्त्रीय व्यवस्था में ही मानव को पूर्ण स्वतन्त्रता प्राप्त हो सकती है। शिक्षा, मानव के सर्वांगीण विकास का एक मात्र साधन है। वह मनुष्य में समानता की भावना उत्पन्न करती है। अतः शिक्षा का प्रमुख लक्ष्य प्रजातन्त्रीय व्यवस्था स्थापित करने तथा प्रजातन्त्रीय विचारधारा के प्रसार के लिए यह आवश्यक है कि शिक्षा में प्रेम, सहयोग, समानता और दूसरे के दृष्टि कोण को
समझने की भावना उत्पन्न करने की क्षमता है। प्रजातान्त्रिक शिक्षा मनुष्य में इन गुणों का विकास करती है, वह व्यक्ति की व्यावसायिक योग्यता और व्यावसायिक नैतिकता का विकास करती है तथा उसके शारीरिक और मानसिक विकास में महान योगदान देती है। इस सम्बन्ध में माध्यमिक शिक्षा आयोग ने लिखा है- “प्रजातन्त्र के प्रशिक्षण के लिए सन्तुलित शिक्षा की आवश्यकता है जिसमें बौठ्ठिक विकास के साथ-साथ सामाजिक गुणों तथा व्यवहार कुशलता का भी विकास होता है।” दूसरी तरफ किलपैट्रिक के
अनुसार समानता, कर्तव्य, जन सहयोग एवं विचार विमर्श लोकतन्त्रीय समाज में शिक्षा के उद्देश्य होने चाहिए। विभिन्न शिक्षाशास्त्रियों के विचारों का जो निष्कर्ष निकाला गया है उसके अनुसार लोकतन्त्रीय समाज में शिक्षा के निम्न तीन उद्देश्य माने गये हैं- (1) बालक का शारीरिक विकास- शिक्षा आयोग के अनुसार प्रजातन्त्र में
व्यक्ति स्वयं साध्य है इसलिए शिक्षा का प्रमुख कार्य उसकी अपनी शक्तियों के पूर्ण विकास के लिए अधिक से अधिक अवसर प्रदान करना है।” देश की सुरक्षा व उन्नति के लिए व्यक्तियों का शारीरिक दृष्टि से स्वथ्य होना अति आवश्यक है। पण्डित जवाहर लाल नेहरू ने भी कहा है कि- “मानसिक प्रगति का आधार अच्छा स्वास्थ्य है। “ (2) बालक का बौद्धिक विकास बालक का मानसिक विकास करना शिक्षा का प्रमुख दायित्व है। प्रजातन्त्र देश के लिए यह आवश्यक है कि उसके नागरिकों के ज्ञान रूपी चक्षु खुले रहें और उनकी
तर्क, चिन्तन, विचार एवं निर्णय शक्ति पूर्णरूपेण विकसित हो । बौद्धिक दृष्टि से परिपक्व व्यक्ति अपनी सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक समस्याओं का समाधान कर सकता है और वह जीवन की सफलता हेतु परमावश्यक है। (3) बालक चारित्रिक विकास- आज भारतीय प्रजातन्त्र के सामने बहुत ही विकराल समस्या है उसके नागरिकों के गिरते हुए चरित्र को रोकना। यह चारित्रिक पतन हमें स्वार्थपूर्ण भावनाओं से भर देता है जिससे हम देशहित एवं देश की समृद्धि के बारे में नहीं सोचते हैं। डॉ. जाकिर हुसैन ने ठीक ही कहा था- “हमारे शिक्षा कार्य का पुनर्गठन और व्यक्तियों का नैतिक पुनरूत्थान एक-दूसरे में अविच्छिन्न रूप से गुथे हुए है।” (4) बालक का आध्यात्मिक विकास- भारतीय संस्कृति सदैव से आध्यात्मिक संस्कृति की श्रेणी में रही है परन्तु आज दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि हम भौतिकवाद की चकाचधि से इतना प्रभावित हो रहे हैं कि धीरे-धीरे अपनी मूलभूत संस्कृति को भुला रहे हैं। इस कारण आज बालक के लिए ऐसी शिक्षा की आवश्यकता है जो आध्यात्मिक मूल्यों को बालक के अन्दर जीवित रखने में मदद दें। स्वामी विवेकानन्द ने ठीक ही कहा था- “शिक्षा का उद्देश्य बालक को उस अलौकिक व दिव्य शक्ति का ज्ञान देना है जो इस संसार के सभी क्रिया-कलापों में विद्यमान है।” (5) बालक का सांस्कृतिक विकास- आज हमें भारतीय संस्कृति को सिर्फ जीवित रखने का ही दायित्व नही निभाना है वरन् संस्कृति का विकास भी करना है और यह तभी सम्भव है जबकि बालक देश की संस्कृति को समझे, उसके प्रति आस्था रखे एवं अपने व्यक्तित्व को उस संस्कृति के अनुकूल ढाले । (6) बालक के वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास प्रत्येक प्रगतिशील देश के लिए ऐसे व्यक्तियों की आवश्यकता होती है जो विज्ञान एवं तकनीकी में समझ व रूचि रखते हों। भारत जैसे देश में यदि हम रूढ़िवाद एवं अन्धविश्वासों से मुक्त होना चाहते हैं तो व्यक्ति के अन्दर वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास करना परमावश्यक है चूंकि वैज्ञानिक दृष्टिकोण वाला व्यक्ति विचार करने में तर्क का सहारा लेता है, भावनाओं का नहीं। (7) अवकाश में समय का सदुपयोग- शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य बालक के बहुआयामी व्यक्तित्व का विकास करना होना चाहिए जिससे व्यक्ति अपने खाली समय को लाभप्रद गतिविधियों में व्यतीत कर सके एवं उससे समाज को कुछ उपयोगी देन दे सके। (8) आर्थिक सक्षमता का विकास शिक्षा का एक महत्वपूर्ण दृष्टिकोण प्रजातन्त्र में बालक को आत्म-निर्भर बनाना होना चाहिए। इस सम्बन्ध में जॉन ड्यूवी ने कहा है कि शिक्षा के द्वारा बालक में औद्योगिक सक्षमता का विकास होना चाहिए जिससे वह अपनी एवं अपने पर निर्भर व्यक्तियों की आवश्कताओं की पूर्ति कर सके। (9) अच्छी रुचियों का विकास- हरबर्ट की विचारधारा है कि रूचियाँ, चरित्र का निर्धारण करती है। इस कारण शिक्षा का उद्देश्य बालक के अन्दर अच्छी रूचियों का विकास करना होना चाहिए जिससे वह अपना चारित्रिक उत्थान कर सके। (10) बालक की चिन्तन शक्ति का विकास करना- इस सम्बन्ध में जॉन ड्यूवी ने कहा है कि- “जो कुछ भी स्कूल बालक के लिए करता है या उसे करना चाहिए, वह है उसमें विचार करने की योग्यता उत्पन्न करना।” (11) बालक में नागरिकता की भावना का विकास करना नागरिकता की भावना का विकास करने के अन्तर्गत दो बातें सम्मिलित की जा सकती है- प्रथम, छात्रों के अन्दर अच्छी आदतों का विकास करना, दूसरे, उनमें नेतृत्व की क्षमता का विकास करना। माध्यमिक शिक्षा आयोग की रिपोर्ट के अनुसार- “कोई भी वह शिक्षा जो बालक में अपने साथियों के साथ गौरवपूर्ण, कुशलतापूर्ण व सन्तुलित रूप में साथ रहने के गुणों को उत्पन्न नहीं करती, अच्छी नहीं कह जा सकती है।” (12) व्यावसायिक शिक्षा की व्यवस्था करना- छात्र समाज के उपयोगी सदस्य बन सके। इस हेतु आवश्यक है कि शिक्षा के पाठ्यक्रम में ऐसे हस्त उद्योग एवं कौशल हों जो उन्हें व्यावसायिक रूप में सहायता प्रदान कर सकें। हैन्डरसन ने प्रजातान्त्रिक शिक्षा के निम्नलिखित उद्देश्य बतायें है- (1) छात्रों को प्रजातन्त्र समझने एवं जीवन में सामाजिक उन्नति को अपना लक्ष्य बनाने में सहयोग प्रदान करना। (2) प्रजातान्त्रिक सत्य के अनुकूल आत्महित हेतु चिन्तन की क्षमता का विकास करना । (3) आत्मानुशासन की जटिल कला के शिक्षण एवं सामान्य हित में रूचि उत्पन्न करना । (4) छात्रों में मानवीय व्यक्तित्व हेतु सम्मान एवं श्रठ्ठा के भाव विकसित करना। IMPORTANT LINK
Disclaimer Disclaimer: Target Notes does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: You may also likeAbout the authorइस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद.. क्या शिक्षा लोकतंत्र व्यवस्था को सुगम बनाती है चर्चा कीजिए?दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि लोकतंत्र का कार्य समाज को इस प्रकार संगठित करना है जिससे व्यक्ति समाज के लिए हितप्रद कार्यों द्वारा अपने व्यक्तित्व का विकास कर सके । अतः लोकतंत्र में शिक्षा की उपेक्षा नहीं की जा सकती है, क्योंकि शिक्षा ही व्यक्ति में ज्ञान, रुचियों, आदर्शों और शक्तियों का विकास करती है।
लोकतंत्र और शिक्षा में क्या संबंध है स्पष्ट कीजिए?लोकतंत्र और शिक्षा का आपस में अन्योन्याश्रित सम्बन्ध है और एक के अभाव में दूसरा सफल नहीं हो सकता । लोकतंत्र लोगों को स्वतंत्रता प्रदान करने में विश्वास करता है । परंतु, यदि लोग शिक्षित नहीं हैं तो उनकी स्वतंत्रता अराजकता और अनुशासनहीनता की तरफ जा सकती है। लोकतांत्रिक शिक्षा के लिए आर्थिक - आत्मनिर्भरता भी आवश्यक है।
लोकतंत्र में शिक्षा की क्या भूमिका है?लोकतंत्र में व्यक्ति स्वयं साध्य है और इसलिये शिक्षा का प्रमुख कार्य उसको अपनी शक्तियों के पूर्ण विकास के लिये अधिकाधिक अवसर प्रदान करना है। शिक्षा द्वारा मानव ने उम्पादन शक्ति को उत्पन्न एवं विकसित किया जाये जिससे राष्ट्रीय सम्पत्ति में वृद्धि हो सके। शिक्षा नागरिकों को दायित्व निर्वहन के प्रति सजगता उम्पन्न करे।
लोकतांत्रिक शिक्षा का मुख्य उद्देश्य क्या है?लोकतांत्रिक शिक्षा का उद्देश्य हर व्यक्ति के व्यक्तित्व का सम्पूर्ण विकास करना है। अर्थात् शिक्षा छात्रों के समुदाय में रहने की कला का विकास आधार है। भारतीय समाज " एकता में अनेकता” का व्यापक उदाहरण प्रस्तुत करता है। भारत अपनी क्षेत्रीय सीमाओं के पार व्यापक विविधताओं के साथ एक राष्ट्र राज्य है।
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