इतिहासकारों की मानें तो तो प्रतिबंधित व्यापार के चलते ब्रिटिश अधिकारियों के लिए कई मुश्किलें पैदा हो गई थीं। ऐसे में तिब्बत को एक वैकल्पिक रास्ते के तौर पर देखा गया। ल्हासा के
मैदानी इलाकों को जोड़ने वाले व्यापार की बड़ी-बड़ी श्रृंखलाएं थीं जो व्यापारियों और बौद्ध भिक्षुओं के साथ ही डाकुओं के लिए भी लंबे समय तक फायदे का सौदा बनी हुई थीं। ईस्ट इंडिया कंपनी यहां पर अपना नियंत्रण चाहती थी।
भारतीय जासूस गए तिब्बत निर्दयी किंग राजवंश युद्ध की भविष्यवाणी चीन-भारत की वार्ता तिब्बत पर हमले के बाद साफ हो चुका था कि चीन, भारत के साथ लगी सीमाओं को नहीं मानता है। जब चाऊ एनलाई भारत आए तो उन्होंने सीमाओं पर भारत की समझ पर कुछ नहीं कहा। इसी समय उत्तर प्रदेश के बाराहोती पास में भारतीय सेना की मौजूदगी पर आपत्ति दर्ज कराई गई। कई बार चीन की सेना ने घुसपैठ की और पड़ोसी ने इस पर भी अपना दावा जताया। नेहरू ने दिया जवाब Navbharat Times News App: देश-दुनिया की खबरें, आपके शहर का हाल, एजुकेशन और बिज़नेस अपडेट्स, फिल्म और खेल की दुनिया की हलचल, वायरल न्यूज़ और धर्म-कर्म... पाएँ हिंदी की ताज़ा खबरें डाउनलोड करें NBT ऐप लेटेस्ट न्यूज़ से अपडेट रहने के लिए NBT फेसबुकपेज लाइक करें 1962 के भारत चीन युद्ध के समय भारत के प्रधानमंत्री कौन थे?1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान जवाहरलाल नेहरू भारत के प्रधान मंत्री थे।
चीन के प्रधानमंत्री भारत कब आए थे?मई 1954 में, चीनी प्रधानमंत्री झोउ एनलाई ने भारत का दौरा किया।
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