कृष्ण और सुदामा की दोस्ती कैसे हुई? - krshn aur sudaama kee dostee kaise huee?

श्री कृष्ण ने अपने आंसू से धोएं थे मित्र सुदामा के पैर, दोनों की मित्रता बन गई मिसाल

कृष्ण और सुदामा की दोस्ती कैसे हुई? - krshn aur sudaama kee dostee kaise huee?

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श्री कृष्ण ने अपने आंसू से धोएं थे मित्र सुदामा के पैर, दोनों की मित्रता बन गई मिसाल

Sudama aur Krishna ki Dosti: श्री कृष और सुदामा (Lord Krishna and Sudama) की कहानी. जब कभी मित्रता की बात होती है तो कृष्ण और सुदामा की मिसाल दी जाती है. आइए जानते हैं क्यों कृष्णा और सुदामा की दोस्ती को मिसाल की तरह पेश किया जाता है, और क्यों युगों बाद आज भी श्री कृष्ण और सुदामा की दोस्ती के चर्चे हैं.

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  • News18Hindi
  • Last Updated : January 07, 2022, 10:20 IST

    Sudama aur Krishna ki Dosti: भारतीय परंपरा (Indian Culture) में मित्र का बहुत महत्त्वपूर्ण योगदान होता है. जीवन में माता पिता और गुरु के बाद मित्र को ही स्थान दिया जाता है. मित्र ही हमारे जीवन में एक ऐसा व्यक्ति होता है जिसके साथ हम अपने सुख दुःख को बांट सकते हैं जीवन में कितनी ही कठोर परिस्तिथि हो, मित्र (Friend) हमेशा साथ देते हैं. हिन्दू सभ्यताओं में मित्रता को लेकर कई सारी कहानियां प्रचलित है और इन्हीं कहानियों में से एक है श्री कृष और सुदामा (Lord Krishna and Sudama) की कहानी. जब कभी मित्रता की बात होती है तो कृष्ण और सुदामा की मिसाल दी जाती है. आइए जानते हैं क्यों कृष्णा और सुदामा की दोस्ती को मिसाल की तरह पेश किया जाता है, और क्यों युगों बाद आज भी श्री कृष्ण और सुदामा की दोस्ती के चर्चे हैं.

    पौराणिक कथा
    भगवान श्री कृष्ण और सुदामा की मित्रता आज भी एक मिसाल के रूप में देखी जाती है. बाल्यकाल में जब श्री कृष्ण, ऋषि संदीपन के यहां आश्रम में शिक्षा ग्रहण करने आये तो उनकी मित्रता सुदामा से हुई. श्री कृष्ण एक राज परिवार के राजकुमार थे और सुदामा गरीब ब्राम्हण परिवार में पैदा हुए थे, लेकिन फिर भी श्री कृष्ण और सुदामा की मित्रता आज भी प्रसिद्द है. शिक्षा दीक्षा समाप्त होने के बाद श्री कृष्ण राजा बन गए और सुदामा का विवाह हो गया और वे गांव में ही धर्म कर्म के कार्य करके अपना जीवन यापन करने लगे.

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    विवाह के पश्चात्य उनके जीवन में कई सारी परेशानियां आने लगीं. जब सुदामा की पत्नी को पता चला की राजा कृष्ण सुदामा के मित्र है तो उन्होंने श्री कृष्ण से उनकी आर्थिक स्तिथि ठीक करने के लिए मदद मांगने को कहा और सुदामा को श्री कृष्ण से मिलने भेजा. अपनी पत्नी की जिद्द के आगे सुदामा की एक न चली और वे श्री कृष्ण से मिलने द्वारिका पहुंच गए. द्वारिका को देख वे हैरान रह गए वह सभी लोग सुखी और संपन्न थे. सुदामा किसी तरह कृष के बारे में पूछते हुए उन्हें महल तक पहुंच गए, और जब वहां के पहरेदारों ने उनसे पूछा कि श्री कृष्ण से क्या काम है तो उन्होंने बताया कि कृष्ण मेरे मित्र हैं. ये जानकारी द्वारपालों ने जब श्री कृष्ण को दी कि कोई सुदामा नामक ब्राम्हण उनसे मिलने आया है. तब राजा कृष्ण अपने मित्र के आने की खबर पाकर स्वयं ही नंगे पैर उनसे मिलने के लिए दौड़ पड़े.

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    मित्र सुदामा की दयनीय हालत देखकर भगवान कृष्ण के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे. भगवान श्री कृष ने उन्हें गले से लगा लिया और उन्हें अपने महल में लेकर गए. भगवान श्री कृष्ण ने सुदामा को अपने स्थान पर बैठाया और स्वयं नीचे बैठकर अपने आंसुओं से सुदामा के पैर धुलवाए. यह घटना भगवान कृष्ण का अपने मित्र सुदामा के प्रति अनन्य प्रेम को दर्शाती है, इसीलिए कृष्ण और सुदामा की दोस्ती की मिसाल दी जाती है.(Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारियां और सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं. Hindi news18 इनकी पुष्टि नहीं करता है. इन पर अमल करने से पहले संबधित विशेषज्ञ से संपर्क करें)

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    Tags: Religion

    FIRST PUBLISHED : January 07, 2022, 10:20 IST

    हिंदी न्यूज़ धर्मFriendship Day: ..तो इसलिए कृष्ण-सुदामा की मित्रता है दोस्ती की सर्वश्रेष्ठ मिसाल

    जब भी मित्रता की बात होती है तो लोग द्वापर युग वाली कृष्ण-सुदामा की मित्रता की किसाल देना

    कृष्ण ने मुश्किल समय में की सुदामा की मदद

    कृष्ण और सुदामा की दोस्ती कैसे हुई? - krshn aur sudaama kee dostee kaise huee?
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    भारतीय परंपरा में हमेशा से ही मित्रता का महत्व रहा है। हमारे जीवन में माता- पिता और गुरू के बाद मित्र को स्थान दिया गया है। लेकिन जब भी मित्रता की बात होती है तो लोग द्वापर युग वाली कृष्ण-सुदामा की मित्रता की किसाल देना नहीं भूलते।

    कृष्ण और सुदामा की मित्रता को इतनी शोहरत क्यों मिली इसे एक प्रचलित कहानी के माध्यम से समझा जा सकता है-

    बेहद गरीब थे सुदामा-

    भगवान कृष्ण के सहपाठी रहे सुदामा एक बहुत ही गरीब ब्राह्मण परिवा से थे। उनके सामने हालात ऐसे थे बच्चों को पेट भरना भी मुश्किल हो गया था। गरीबी से तंग आकर एक दिन सुदामा की पत्‍नी ने उनसे कहा कि वे खुद भूखे रह सकते हैं लेकिन बच्चों को भूखा नहीं देख सकते। ऐसे कहते -कहते उनकी आंखों में आंसू आ गए।

    ऐसा देखकर सुदामा बहुत दुखी हुए और पत्नी से इसका उपाय पूछा। इस पर सुदामा की पत्नी ने कहा- आप बताते रहते हैं कि द्वारका के राजा कृष्ण आपके मित्र हैं। और द्वारका के राजा के आपके मित्र हैं तो क्यों एक बार क्यों नहीं उनके पास चले जाते? वह आपके दोस्त हैं तो आपकी हालत देखकर बिना मांगे ही कुछ न कुछ दे देंगे। इस पर सुदामा बड़ी मुश्किल से अपने सखा कृष्ण से मिलने के लिए तैयार हुए। उन्होंने अपनी पत्‍नी सुशीला से कहा कि किसी मित्र के यहां खाली हाथ मिलने नहीं जाते इसलिए कुछ उपहार उन्हें लेकर जाना चाहिए। लेकिन उनके घर में अन्न का एक दाना तक नहीं था। कहते हैं कि सुदामा के बहुत जिद करने पर उनकी पत्‍नी सुशीला ने पड़ोस चार मुट्ठी चावल मांगकर लाईं और वही कृष्ण के लिए उपहार के रूप में एक पोटली में बांध दिया।

    सुदामा को देख कृष्ण की आखों में आए आंसू

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    सुदामा जब द्वारका पहुंचे तो वहां का वैभव देखकर हैरान रह गए। पूरी नगरी सोने की थी। लोग बहुत ही सुखी और संपन्न थे। सुदामा किसी तरह से लोगों से पूछते हुए कृष्ण के महल तक पहुंचे और द्वार पर खड़े पहरेदारों से कहा कि वह कृष्ण से मिलना चाहते हैं। लेकिन उनकी हालत देखकर द्वारपालों ने पूछा कि क्या काम है? सुमामा- कृष्ण मेरे मित्र हैं।

    द्वारपालों ने महल में जाकर भगवान कृष्ण को बताया कोई गरीब ब्राह्मण उनसे मिलने आया है। वह अपना नाम सुदामा बता रहा है। इस सुदामा नाम सुनते ही भगवान कृष्ण नंगे पांव सुदामा को लेने के लिए दौड़ पड़े। इस वहां मौजूद लोग हैरान रह गए कि एक राजा और एक गरीब साधू में कैसी दोस्ती हो सकती है।

    भगवान कृष्ण सुदामा को अपने महल में ले गए और पाठशाला के दिनों की यादें ताजा कीं। कृष्ण ने सुदामा से पूछा कि भाभी ने उनके लिए क्या भेजा है है? इस सुदामा संकोच में पड़ गए और चावल की पोटली छुपाने लगे। ऐसा देखकर कृष्ण ने उनसे चावल की पोटली छीन ली। भगवान कृष्ण सूखे चावल ही खाने लगे। सुदामा की गरीबी देखकर उनके आखों में आंसू आ गए।

    बिना मांगे ही सबकुछ दिया

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    सुदामा कुछ दिन द्वारिकापुरी में रहे लेकिन संकोचवश कुछ मांग नहीं सके। विदा करते वक्त कृष्ण उन्हें कुछ दूर तक छोड़ने आए और उनसे गले लगे। सुदामा जब अपने घर लौटने लगे तो सोचने लगे कि पत्नी पूछेगी कि क्या लाए हो तो वह क्या जवाब देंगे? 

    सुदामा घर पहुंचे तो वहां उन्हें अपनी झोपड़ी नजर ही नहीं आई। वह अपनी झोपड़ी ढूंढ़ रहे थे तभी एक सुंदर घर से उनकी पत्नी बाहर आईं। उन्होंने सुंदर कपड़े पहने थे। सुशीला ने सुदामा से कहा, देखा कृष्ण का प्रताप, हमारी गरीबी दूर कर कृष्ण ने हमारे सारे दुःख हर लिए। सुदामा को कृष्ण का प्रेम याद आया। उनकी आंखों में खूशी के आंसू आ गए।

    दोस्तों, कृष्ण और सुदामा का प्रेम यानी सच्ची मित्रता यही थी। कहा जाता है कि कृष्ण ने सुदामा को अपने से भी ज्यादा धनवान बना दिया था। दोस्ती के इसी नेक इरादे की लोग आज भी मिसाल देते हैं।

    कृष्ण-सुदामा की दोस्ती लोगों को इतनी प्रभावित करती है कि बहुत से लोग तो कॉलरट्यून में भी - 'अरे द्वारपालो कन्हैया से कह दो...' की धुन लगा रखते हैं। 

    कृष्ण और सुदामा की दोस्ती कैसे हुई? - krshn aur sudaama kee dostee kaise huee?

    कृष्ण और सुदामा की मित्रता कैसे हुई?

    पत्नी के जिद्द को मानकर सुदामा अपने बाल सखा कृष्ण से मिलने द्वारिका गए। जब राजा कृष्ण अपने मित्र सुदामा के आने का संदेश पाकर कृष्ण नंगे पैर ही उन्हें लेने के लिए दौड़ पड़ते हैं। मित्र सुदामा की दयनीय हालत देखकर भगवान कृष्ण के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे। भगवान कृष्ण ने मित्र सुदामा का पैर अपने आंसुओं से धूल दिया।

    कृष्ण और सुदामा की मित्रता कहाँ हुई थी?

    इसके उपरांत वसुदेव और देवकी ने कृष्ण को यज्ञोपवीत संस्कार और शिक्षा के लिए उज्जैन में संदीपनी ऋषि के आश्रम में भेज दिया। यहां ही कृष्ण ने चौंसठ दिन में चौंसठ कलाएं सीखीं तथा वेद-पुराण का अध्ययन किया। आश्रम में ही कृष्ण और सुदामा की भेंट हुई, जो बाद में अटूट मित्रता बन गई।

    सुदामा मित्र कृष्ण से मिलने क्यों गए थे?

    जब सुदामा की पत्नी को पता चला की राजा कृष्ण सुदामा के मित्र है तो उन्होंने श्री कृष्ण से उनकी आर्थिक स्तिथि ठीक करने के लिए मदद मांगने को कहा और सुदामा को श्री कृष्ण से मिलने भेजा. अपनी पत्नी की जिद्द के आगे सुदामा की एक न चली और वे श्री कृष्ण से मिलने द्वारिका पहुंच गए.

    सुदामा के दोस्त कृष्ण कहाँ के राजा थे?

    सुदामा एक गरीब ब्राह्मण थे। विवाह के बाद वे अपनी पत्नी सुशीला और बच्चों को बताते रहते थे कि मेरे मित्र द्वारिका के राजा श्रीकृष्ण है जो बहुत ही उदार और परोपकारी हैं।