कन्यादान कविता का मूल भाव क्या है? - kanyaadaan kavita ka mool bhaav kya hai?

‘कन्यादान’ कविता में माँ द्वारा बेटी को स्त्री के परंपरागत ‘आदर्श’ रूप से हटकर सीख दी गई है। कवि का मानना है। कि सामाजिक-व्यवस्था द्वारा स्त्रियों के आचरण संबंधी जो प्रतिमान गढ़ लिए जाते हैं वे आदर्श होकर भी बंधन होते हैं। कोमलता’ में कमजोरी का उपहास, लड़की जैसा न दिखाई देने में आदर्श का प्रतिकार है। माँ की बेटी से निकटता के कारण उसे अंतिम पूँजी कहा गया है। इस कविता में माँ की कोरी भावुकता नहीं, बल्कि माँ के संचित अनुभवों की प्रामाणिक अभिव्यक्ति है।

कन्यादान पाठ के पाठ सार, पाठ-व्याख्या, कठिन शब्दों के अर्थ और NCERT की पुस्तक के अनुसार प्रश्नों के उत्तर

Kanyadan Summary of CBSE Class 10 Hindi (Course A) Kshitij Bhag-2 Chapter 8 summary and detailed explanation of the lesson along with meanings of difficult words. Here is the complete explanation of the lesson, along with all the exercises, Questions and Answers given at the back of the lesson.

इस लेख में हम हिंदी कक्षा 10-अ  ” क्षितिज भाग-2 ” के पाठ-8 ” कन्यादान ”  कविता के पाठ- प्रवेश , पाठ-सार , पाठ-व्याख्या , कठिन-शब्दों के अर्थ और NCERT की पुस्तक के अनुसार प्रश्नों के उत्तर , इन सभी के बारे में चर्चा करेंगे  

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  • कन्यादानके पद पाठ प्रवेश
  • कन्यादान पाठ सार
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“ कन्यादान ”

कन्यादान पाठ प्रवेश  (Kanyadaan –  Introduction to the chapter)

 ‘ कन्यादान ‘ कविता के कवि ‘ ऋतुराज ‘ जी हैं। इस कविता में एक माँ अपनी बेटी को उसके विवाह के अवसर पर स्त्री के परंपरागत ‘ आदर्श ’ रूप से हटकर सीख दे रही है। कहने का तात्पर्य यह है कि जैसे हर माँ अपनी बेटी को उसके वैवाहिक जीवन को सुखी बनाने के लिए कुछ सीख देती है उसी तरह कविता में भी एक माँ अपनी बेटी को सीख दे रही है। अंतर केवल इतना है कि कविता में वर्णित माँ अन्य माँओं की तरह नहीं बल्कि कुछ हट कर सीख दे रही है। कवि का मानना है कि समाज – व्यवस्था द्वारा स्त्रियों के लिए आचरण संबंधी जो आदर्श स्थापित कर लिए जाते हैं , वे आदर्श के मुलम्मे में बंधन होते हैं। अर्थात जिस तरह किसी अन्य धातु पर सोनी की परत चढ़ा कर उस निम्न सी धातु के कीमती होने का भ्र्म होता है उसी तरह स्त्रियों के लिए आचरण संबंधी जो आदर्श स्थापित किए गए हैं वे केवल भ्र्म मात्र है। जैसे स्त्रियों को ‘ कोमल ’ कहा जाता है और इसे स्त्रियों का एक आदर्श कहा जाता है किन्तु इसके पीछे इसी आदर्श को स्त्रियों की ‘ कमजोरी ’ कह कर उनका मज़ाक भी बनाया जाता है। कविता की अन्तिम पंक्ति में कवि के द्वारा कहा गया ‘ लड़की जैसा न दिखाई देना ‘ इसमें इसी आदर्शीकरण का विरोध है। बेटी माँ के सबसे निकट और उसके सुख – दुख की साथी होती है। इसी कारण उसे कविता में अंतिम पूँजी भी कहा गया है। इस कविता में केवल भावुकता नहीं है बल्कि एक माँ के पुरे जीवन के इकट्ठे किए गए अनुभवों की पीड़ा को दर्शाया गया है। इस छोटी – सी कविता में स्त्री जीवन के प्रति ऋतुराज जी की गहरी संवेदनशीलता प्रकट हुई है।

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कन्यादान  पाठ सार (Summary of the Chapter Kanyadaan)

 ” कन्यदान ” कविता के कवि ” ऋतुराज ” जी हैं। इस कविता में उस दृश्य का वर्णन है जब एक माँ अपनी बेटी का कन्यादान कर रही है। बेटियाँ ब्याह के बाद पराई हो जाती हैं। जिस बेटी को कोई भी माता – पिता बड़े जतन से पाल पोसकर बड़ा करते हैं , वह शादी के बाद दूसरे घर की सदस्य हो जाती है। इसके बाद बेटी अपने माँ बाप के लिए एक मेहमान बन जाती है। इसलिए लड़की के लिए कन्यादान शब्द का प्रयोग किया जाता है। जाहिर है कि जिस संतान को किसी माँ ने इतने जतन से पाल पोस कर बड़ा किया हो , उसे किसी अन्य को सौंपने में गहरी पीड़ा होती है। बच्चे को पालने में माँ को कहीं अधिक दर्द का सामना करना पड़ता है , इसलिए उसे दान करते वक्त लगता है कि वह अपनी आखिरी जमा पूँजी किसी और को सौंप रही हो। कविता की पंक्ति ” लड़की अभी सयानी नहीं हुई थी ” इसका मतलब है कि हालाँकि वह बड़ी हो गई थी लेकिन उसमें अभी भी दुनियादारी की पूरी समझ नहीं थी। वह इतनी भोली थी कि खुशियाँ मनाने तो उसे आता था लेकिन यह नहीं पता था कि दुख का सामना कैसे किया जाए। उसके लिए बाहरी दुनिया किसी धुँधले तसवीर की तरह थी या फिर किसी गीत के टुकड़े की तरह थी। ऐसा अक्सर होता है कि जब तक कोई अपने माता – पिता के घर को छोड़कर कहीं और नहीं रहना शुरु कर देता है तब तक उसका सर्वांगीण विकास नहीं हो पाता है । क्योंकि माता – पिता की छाया में केवल सुख  अनुभव होता है , दुःख को माता – पिता बच्चों तक पहुँचाने ही नहीं देते। माँ अपनी बेटी की विदाई के वक्त उसे जीवन जीने की सबसे बड़ी सीख उपहार स्वरूप दे रही है , जो जीवन भर उसके काम आने वाली है। माँ सीख देते हुए कहती है कि सुंदरता अस्थाई है। इसलिए कभी भी अपनी सुंदरता पर इतराना नहीं चाहिए , असली सुंदरता तो मन की सुंदरता होती है। फिर माँ अपनी बेटी को कहती है कि आग का प्रयोग सिर्फ खाना बनाने या रोटियाँ सेंकने के लिए ही करना। लेकिन अगर आग का प्रयोग जलने या जलाने के लिए करते हुए देखो तो तुरंत उसका विरोध करना। कवि इन पंक्तियों के माध्यम से उन लोगों पर कटाक्ष करना चाहते हैं जो दहेज के लालच में आकर अपनी बहुओं को आग के हवाले करने में भी नहीं हिचकिचाते हैं। वस्त्र और आभूषण महिलाओं को बहुत आकर्षित करते हैं। लेकिन माँ , वस्त्र और आभूषणों को सौंदर्य बढ़ाने वाली वस्तु न मानकर , इनको महिलाओं के लिए एक बंधन मानती है। इसीलिए वो अपनी बेटी से कहती है कि वस्त्र और आभूषणों के लालच में कभी मत पड़ना क्योंकि ये सब महिलाओं के लिए किसी बंधन से कम नहीं हैं। उपरोक्त पंक्तियों में माँ अपनी बेटी को अबला व कमजोर नारी की जगह एक सशक्त व मजबूत इंसान बनने को कहती हैं ताकि वह अपनी सुरक्षा व अधिकारों के प्रति जागरूक रह कर , हर विपरीत परिस्थिति का पूरी दृढ़ता के साथ सामना कर सके क्योंकि लोग महिलाओं को कमजोर समझ कर उनका शोषण व अत्याचार करते हैं। आखिर में माँ कहती है कि लड़की जैसी दिखाई मत देना। इसके कई मतलब हो सकते हैं। एक मतलब हो सकता है कि माँ उसे अब एक जिम्मेदार औरत की भूमिका में देखना चाहती है और चाहती है कि वह अपना लड़कपन छोड़ दे। दूसरा मतलब हो सकता है कि उसे हर संभव यह कोशिश करनी होगी कि लोगों की बुरी नजर से बचे। हमारे समाज में लड़कियों की कमजोर स्थिति के कारण उनपर यौन अत्याचार का खतरा हमेशा बना रहता है। ऐसे में कई माँएं अपनी लड़कियों को ये नसीहत देती हैं कि वे अपने यौवन को जितना हो सके दूसरों से छुपाकर रखें।

कवि ऋतुराज ने कन्यादान कविता के माध्यम से शादी के बाद स्त्री जीवन में आने वाली विकट परिस्थितियों के बारे में एक संदेश देने की कोशिश की है। कविता में विवाह के पश्चात बेटी की विदाई के वक्त एक मां अपने जीवन के सभी अच्छे व बुरे अनुभवों को निचोड़ कर एक सही व तर्कसंगत सीख देने की कोशिश करती है। ताकि उसकी बेटी ससुराल में सुख व सम्मान पूर्वक जी सके। हिंसा , अत्याचार व शोषण के खिलाफ आवाज उठा सके। कविता में माँ परंपरागत मान्यताओं से बिल्कुल भिन्न हैं। जो अपनी बेटी को “ परंपरागत आदर्शों ” से हट कर सीख दे रही है।

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कन्यादान  पाठ व्याख्या (Kanyadaan Explanation)

काव्यांश 1 –

कितना प्रामाणिक था उसका दुख

लड़की को दान में देते वक्त

जैसे वही उसकी अंतिम पूँजी हो

शब्दार्थ –

प्रामाणिक – जो प्रमाण के रूप में माना जाता हो या माना जा सकता हो , जो शास्त्रों आदि द्वारा प्रमाणित या सिद्ध हो , जिसकी सत्यता पर कोई संदेह न हो , सत्य , विश्वसनीय

दान – धर्म एवं श्रद्धा की दृष्टि से किसी को कुछ देना

वक्त –  समय , काल

अंतिम – आख़िरी , अंत का , ( फ़ाइनल )

पूँजी –  संचित धन , जमा किया हुआ धन

नोट – इस कविता में उस दृश्य का वर्णन है जब एक माँ अपनी बेटी का कन्यादान कर रही है। बेटियाँ ब्याह के बाद पराई हो जाती हैं। जिस बेटी को कोई भी माता पिता बड़े जतन से पाल पोसकर बड़ी करते हैं, वह शादी के बाद दूसरे घर की सदस्य हो जाती है। इसके बाद बेटी अपने माँ बाप के लिए एक मेहमान बन जाती है। इसलिए लड़की के लिए कन्यादान शब्द का प्रयोग किया जाता है। जाहिर है कि जिस संतान को किसी माँ ने इतने जतन से पाल पोस कर बड़ा किया हो, उसे किसी अन्य को सौंपने में गहरी पीड़ा होती है। बच्चे को पालने में माँ को कहीं अधिक दर्द का सामना करना पड़ता है, इसलिए उसे दान करते वक्त लगता है कि वह अपनी आखिरी जमा पूँजी किसी और को सौंप रही हो।

व्याख्या – उपरोक्त पंक्तियों में कवि ने कन्यादान करते वक्त एक माता के दुःख का बड़े ही मनमोहक तरीके से वर्णन किया हैं। कवि कहते हैं कि उस माँ के दुःख की सत्यता पर कोई संदेह नहीं कर सकता कि उसे अपनी बेटी के कन्यादान के समय कितना अधिक दुःख हुआ होगा। उसके दुःख को देख कर ऐसा लग रहा था जैसे उसकी वह बेटी ही उसकी जीवन भर की कमाई गई दौलत हो और उस दौलत को वह आज दान कर रही हो। कहने का तात्पर्य यह है कि एक माँ को उसकी बेटी की विदाई के समय कितना दुःख होता है यह केवल उस माँ का मन ही जानता है। उस दुःख की कल्पना मात्र भी कोई नहीं कर सकता।

भावार्थ – कवि इन पंक्तियों में कहते हैं कि कन्यादान करते वक्त या बेटी की विदाई करते वक्त माँ का दुःख बड़ा ही स्वाभाविक व प्रामाणिक होता हैं। दरअसल बेटी ही माँ के सबसे निकट व उसके जीवन के सुख – दुःख में उसकी सच्ची सहेली होती हैं। अब जब वही उससे दूर जा रही है , तो माँ को कन्यादान करते वक्त ऐसा लग रहा है मानो जैसे वह अपने जीवन की सबसे अनमोल अर्थात अपनी आख़िरी पूँजी को दान करने जा रही है।

काव्यांश 2 –

लड़की अभी सयानी नहीं थी

अभी इतनी भोली सरल थी

कि उसे सुख का आभास तो होता था

लेकिन दुख बाँचना नहीं आता था

पाठिका थी वह धुँधले प्रकाश की

कुछ तुकों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों की

शब्दार्थ –

सयानी – चतुराई , चालाकी , अनुभवी तथा बुद्धिमान् स्त्री

भोली – जिसे दुनियादारी की पूरी समझ न हो

सरल –  जिसके मन में छल – कपट न हो , सच्चा , भोला , ईमानदार

आभास – प्रतीति , सादृश्य , संकेत , अनुभूति होने का भाव

बाँचना –  पढ़ना , पत्र, लेख, पुस्तक आदि को पढ़ कर सुनाना , समझ न आना

पाठिका – विद्यार्थी , छात्रा ,पाठ पढ़ने वाली

धुँधले – जो साफ न हो

तुक – किसी कविता , गीत का कोई पद , चरण या कड़ी जिसमें ध्वनि साम्य हो

लयबद्ध – लय से बँधा हुआ , लय से युक्त जैसे – साँसों की लयबद्ध गति

नोट – उपरोक्त पंक्तियों में कवि वर्णन कर रहे हैं कि किस तरह माँ अपनी बेटी की चिंता में डूबी रहती है , किस तरह माँ अपनी बेटी के भविष्य के बारे में सोच – विचार करती रहती है।

व्याख्या – उपरोक्त पंक्तियों में कवि ऋतुराज कहते हैं कि लड़की अभी सयानी नहीं हुई थी कहने का तात्पर्य यह है कि हालाँकि वह लड़की जिसकी शादी हो रही है वह बड़ी हो गई थी लेकिन उसमें अभी भी दुनियादारी की पूरी तरह से समझने की बुद्धिमानी और अनुभव की कमी थी। वह इतनी भोली – भाली और छल – कपट से दूर थी कि खुशियाँ मनाने तो उसे आता था लेकिन उसे यह नहीं पता था कि दुख का सामना कैसे किया जाए। अर्थात उसे अभी तक यह नहीं पता था कि अगर जीवन में कठिनाइयों का सामना करना पड़े तो किस तरह निडर और आत्मविश्वास से भरपूर रहना है। उसके लिए बाहरी दुनिया किसी धुँधली  तसवीर की तरह थी या फिर किसी गीत के किसी अंश की तरह थी। जिसे वह अभी केवल समझने का ही प्रयास कर रही थी। अर्थात अभी वह अपने जीवन में आने वाली कठिनायों का सामना करना सीख ही रही थी , उसमें वह निपुण नहीं हुई थी।

भावार्थ – ऐसा अक्सर होता है कि जब तक कोई अपने माता पिता के घर को छोड़कर कहीं और नहीं रहना शुरु कर देता है , तब तक उसका समुचित विकास नहीं हो पाता है। उपरोक्त पंक्तियों में भी कवि ऋतुराज यही कहते हैं कि लड़की को अभी व्यावहारिकता का बिल्कुल भी ज्ञान नहीं है। ससुराल में आने वाली जिम्मेदारियाँ , कठिन परिस्थितियों व संघर्षों के बारे में उसको अभी कुछ भी अंदाजा नहीं है यानि उसके पास जो भी जानकारी हैं वह आधी अधूरी व अस्पष्ट हैं।

काव्यांश 3 –

माँ ने कहा पानी में झाँककर

अपने चेहरे पर मत रीझना

आग रोटियाँ सेंकने के लिए है

जलने के लिए नहीं

वस्त्र और आभूषण शाब्दिक भ्रमों की तरह

बंधन हैं स्त्री जीवन के

माँ ने कहा लड़की होना

पर लड़की जैसी दिखाई मत देना।

शब्दार्थ –

रीझना – किसी की विशेष चेष्टा , गुण , रूप देखकर मुग्ध या अनुरक्त होना , किसी पर प्रसन्न होना , मोहित होना

सेंकना – पकाना

वस्त्र – कपड़ा , परिधान , पोशाक

आभूषण –  आभरण , गहना , अलंकार

शाब्दिक – शब्द संबंधी , शब्द का , शब्द पर आश्रित

भ्रम – दुविधा , संदेह , संशय

नोट – कविता के इस भाग में , माँ अपनी बेटी की विदाई के वक्त उसे जीवन जीने की सबसे बड़ी सीख उपहार स्वरूप दे रही है , जो जीवन भर उसके काम आने वाली है। माँ सीख देते हुए कहती है कि सुंदरता अस्थाई हैं। इसलिए उस पर ध्यान मत देना , अपने ऊपर या किसी पर भी अत्याचार मत होने देना , सांसारिक चीज़ों के बंधन के मोह में मत पड़ना और अपने स्त्रीत्व के स्वाभाविक गुणों को हमेशा बरकरार रखना। उनको कभी मत छोड़ना लेकिन कभी भी कमजोर व असहाय मत बनना। अपने खिलाफ होने वाले हर अन्याय और अत्याचार का हमेशा डटकर सामना करना , उसके खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करना।

व्याख्या – कविता की इन आखरी पंक्तियों में कवि वर्णन करते हैं कि माँ अपनी बेटी को कई नसीहतें दे रही है। माँ कहती हैं कि कभी भी अपनी सुंदरता पर इतराना नहीं चाहिए क्योंकि बाहरी सुंदरता तो अस्थाई हैं। असली सुंदरता तो मन की सुंदरता होती है। फिर माँ अपनी बेटी को कहती है कि आग का प्रयोग सिर्फ खाना बनाने या रोटियाँ सेंकने के लिए ही करना। लेकिन अगर आग का प्रयोग जलने या जलाने के लिए करते हुए देखो तो तुरंत उसका विरोध करना। कवि इन पंक्तियों के माध्यम से उन लोगों पर कटाक्ष करना चाहते हैं जो दहेज के लालच में आकर अपनी बहुओं को आग के हवाले करने में भी नहीं हिचकिचाते हैं। वस्त्र और आभूषण महिलाओं को बहुत आकर्षित करते हैं। लेकिन माँ , वस्त्र और आभूषणों को सौंदर्य बढ़ाने वाली वस्तु न मानकर , इनको महिलाओं के लिए एक बंधन मानती है। इसीलिए वो अपनी बेटी से कहती है कि वस्त्र और आभूषणों के लालच में कभी मत पड़ना क्योंकि ये सब महिलाओं के लिए किसी बंधन से कम नहीं हैं। उपरोक्त पंक्तियों में माँ अपनी बेटी को अबला व कमजोर नारी की जगह एक सशक्त व मजबूत इंसान बनने को कहती हैं ताकि वह अपनी सुरक्षा व अधिकारों के प्रति जागरूक रह कर , हर विपरीत परिस्थिति का पूरी दृढ़ता के साथ सामना कर सके क्योंकि लोग महिलाओं को कमजोर समझ कर उनका शोषण व अत्याचार करते हैं।

भावार्थ – उपरोक्त पंक्तियों में माँ अपनी बेटी को जीवन की अनमोल सीख देते हुए कह रही हैं कि अपने स्त्रीत्व के स्वाभाविक गुणों को हमेशा बरकरार रखना। उनको कभी मत छोड़ना लेकिन कभी भी कमजोर व असहाय मत बनना। अपने खिलाफ होने वाले हर अन्याय और अत्याचार का हमेशा डटकर सामना करना , उसके खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करना। आखिर में माँ कहती है कि ‘ लड़की जैसी दिखाई मत देना। ‘ इसके कई मतलब हो सकते हैं। एक मतलब हो सकता है कि माँ उसे अब एक जिम्मेदार औरत की भूमिका में देखना चाहती है और चाहती है कि वह अपना लड़कपन छोड़ दे। दूसरा मतलब हो सकता है कि उसे हर संभव यह कोशिश करनी होगी कि लोगों की बुरी नजर से बचे। हमारे समाज में लड़कियों की कमजोर स्थिति के कारण उनपर यौन अत्याचार का खतरा हमेशा बना रहता है। ऐसे में कई माँएं अपनी लड़कियों को ये नसीहत देती हैं कि वे अपने यौवन को जितना हो सके दूसरों से छुपाकर रखें।

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कन्यादान  प्रश्न – अभ्यास  Kanyadaan Question Answers

प्रश्न 1 – आपके विचार से माँ ने ऐसा क्यों कहा कि लड़की होना पर लड़की जैसा मत दिखाई देना ?

उत्तर – ”  लड़की होना पर लड़की जैसी मत दिखाई देना ”  हमारे विचार से लड़की की माँ ने ऐसा इसलिए कहा होगा ताकि लड़की अपने नारी सुलभ गुणों अर्थात सरलता , निश्छलता , विनम्रता आदि गुणों को तो बनाए रखे परंतु वह इतनी कमजोर भी न होने पाए कि लड़की समझकर ससुराल के लोग उसका शोषण करने लगे। इसके अलावा वह भावी जीवन की कठिनाइयों का साहसपूर्वक मुकाबला कर सके। अपने ऊपर होने वाले अत्याचारों के विरुद्ध आवाज उठा सके।

प्रश्न 2 – ‘ आग रोटियाँ सेंकने के लिए है।

जलने के लिए नहीं। ‘

( क ) इन पंक्तियों में समाज में स्त्री की किस स्थिति की ओर संकेत किया गया है ?

( ख ) माँ ने बेटी को सचेत करना क्यों जरूरी समझा ?

उत्तर –

( क ) इन पंक्तियों में समाज में स्त्रियों की कमज़ोर स्थिति और ससुराल में परिजनों द्वारा शोषण करने की ओर संकेत किया गया है। कभी – कभी बहुएँ इस शोषण से मुक्ति पाने के लिए स्वयं को आग के हवाले करके अपनी जीवन – लीला समाप्त कर लेती है। या ससुराल वाले ही दहेज के कारण अपनी बहुओं को जला डालते हैं।

( ख ) माँ ने बेटी को इसलिए सचेत करना उचित समझा क्योंकि उसकी बेटी अभी भोली और नासमझ थी , जिसे दुनियादारी और छल – कपट का पता न था। वह लोगों की शोषण प्रवृत्ति और सामाजिक बुराइयों से अनजान थी। इसके अलावा वह शादी – विवाह को सुखमय एवं मोहक कल्पना का साधन समझती थी। वह ससुराल के दूसरे पक्ष से अनभिज्ञ थी। इसी कारण माँ ने अपनी बेटी को जाते हुए सचेत करना उचित समझा ताकि वह निडर हो कर सभी कठिनाइयों का सामना कर सके।

प्रश्न 3 – ‘ पाठिका थी वह धुंधले प्रकाश की

कुछ तुकों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों की ’

इन पंक्तियों को पढ़कर लड़की की जो छवि आपके सामने उभरकर आ रही है उसे शब्दबद्ध कीजिए।

उत्तर – उपर्युक्त काव्य पंक्तियों को पढ़कर हमारे मन में लड़की की जो छवि उभरती है वह कुछ इस प्रकार है

  1. लड़की अभी सयानी नहीं है।
  2. लड़की दुनिया की समझ की जानकारी नहीं है वह दुनिया के एक पक्ष को तो जानते हैं परंतु दूसरे पक्षी जिसके अंतर्गत छल कपट शोषण इत्यादि है उसकी जानकारी उसे बिल्कुल भी नहीं है।
  3. लड़की विवाह की सुखद कल्पना में खोई है।
  4. उसे केवल सुखों का अहसास है, दुखों का नहीं।
  5. उसे ससुराल की प्रतिकूल परिस्थितियों का ज्ञान नहीं है।

प्रश्न 4 – माँ को अपनी , बेटी ‘ अंतिम पूँजी ’ क्यों लग रही थी ?

उत्तर – माँ को अपनी बेटी ‘ अंतिम पूँजी ‘ इसलिए लग रही थी क्योंकि कन्यादान के बाद माँ एकदम अकेली रह जाएगी। उसकी बेटी ही उसके दुख – सुख की साथी थी , जिसके साथ वह अपनी निजी बातें बाँट लिया करती थी। इसके अलावा बेटी माँ के लिए सबसे प्रिय वस्तु ( पूँजी ) की तरह थी , जिसे अब वह दूसरे के हाथ में सौंपने जा रही थी। इसके बाद वह नितांत अकेली रह जाएगी।

प्रश्न 5 – माँ ने बेटी को क्या – क्या सीख दी ?

उत्तर – माँ ने कन्यादान के बाद अपनी बेटी को विदा करते समय निम्नलिखित सीख दी –

  1. वह ससुराल में दूसरों द्वारा की गई प्रशंसा से अपने रूप – सौंदर्य पर आत्ममुग्ध न हो जाए।
  2. आग का उपयोग रोटियाँ पकाने के लिए करना। उसका दुरुपयोग अपने जलने के लिए मत करना।
  3. वस्त्र – आभूषणों के मोह में फँसकर इनके बंधन में न बँध जाना।
  4. नारी सुलभ गुण बनाए रखना पर कमजोर मत पड़ना।

 
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कन्यादान कविता का मूल संदेश क्या है?

'कन्यादान' कविता में माँ द्वारा बेटी को स्त्री के परंपरागत 'आदर्श' रूप से हटकर सीख दी गई है। कवि का मानना है। कि सामाजिक-व्यवस्था द्वारा स्त्रियों के आचरण संबंधी जो प्रतिमान गढ़ लिए जाते हैं वे आदर्श होकर भी बंधन होते हैं। कोमलता' में कमजोरी का उपहास, लड़की जैसा न दिखाई देने में आदर्श का प्रतिकार है।

कन्यादान पाठ से हमें क्या सीख मिलती है?

कन्यादान' कविता में माँ ने बेटी को किन परंपराओं से हटकर जीवन जीने की शिक्षा दी है? माँ ने बेटी को शिक्षा दी कि वह केवल शारीरिक सुंदरता, सुंदर कपड़ों और गहनों की प्राप्ति की ओर ही ध्यान न दे। उसे चाहिए कि वह समाज में आए परिवर्तन को खुली आँखों से देखे और अपने भीतर हिम्मत और साहस को बटोरें।

कन्यादान कविता के माध्यम से कवि ने क्या भाव व्यक्त किए हैं?

व्याख्या- कवि कहता है कि माँ ने अपना जीवन जीते हुए जिन दुःखों को भोगा था; सहा था उसे अपनी लड़की का विवाह करते हुए कन्यादान के समय वह सब समझाना और उसे इसकी जानकारी देना बहुत अधिक आवश्यक था; सच्चा था। उसकी बेटी ही तो उसकी अंतिम संपत्ति थी। जीवन के सारे सुख-दुःख वह अपनी बेटी के साथ ही तो बांटती थी।

कन्यादान कविता क्या संदेश प्रसारित करता है?

अपठित काव्यांश उपर्युक्त काव्य पंक्तियों में मजदूर की शक्ति का महत्त्व प्रतिपादित किया गया है ।