- 6 से 14 वर्ष की आयु के
प्रत्येक बच्चों का अनिवार्य प्रवेश, उपस्थिति और प्रारंभिक शिक्षा को पूरा कराना। - धारा 6 के तहत बच्चों को पड़ोस के किसी भी स्कूल में दाखिला लेने का अधिकार है। - यह एक्ट सुनिश्चित करता है कि कमजोर वर्ग के बच्चे और वंचित समूह के बच्चे के साथ भेदभाव नहीं किया जा सके। - यदि कोई बच्चा ऐसा है, जो 6 वर्ष की आयु पर किसी विद्यालय में प्रवेश नहीं ले सका है तो वह बाद में अपनी उम्र के अनुसार कक्षा में प्रवेश ले सकता है। - यदि किसी स्कूल में प्रारंभिक शिक्षा पूरा करने का प्रावधान
नहीं है, तो छात्र को किसी दूसरे स्कूल में स्थानांतरण का अधिकार प्रदान होगा। - निजी और विशेष श्रेणी वाले विद्यालय को भी आर्थिक रूप से निर्बल समुदाय के बच्चों के लिए पहली कक्षा में 25% स्थान आरक्षित करने होंगे। - स्कूल में प्रवेश तिथि के निकल जाने के बाद भी किसी बालक को प्रवेश देने से इनकार नहीं किया जा सकता। - किसी भी बच्चे को किसी भी कक्षा में दाखिले से रोका नहीं जाएगा और ना ही स्कूल से निष्कासित किया जाएगा। - बच्चों को किसी भी प्रकार की शारीरिक और मानसिक यातनाएं विद्यालय में नहीं दी जाएगी। राइट टू एजुकेशन एक्ट 2009 का महत्व आरटीई कार्यान्वयन के लिए प्रमुख चुनौतियां वित्तीय आवंटन का अभाव- करीब दो दशक से प्रमुख शिक्षाविदों द्वारा शिक्षा के लिए देश के आम बजट में कम से कम 6% आवंटित करने की मांग की जा रही है, लेकिन यह अभी तक संभव नहीं हो पाया है। सार्वजनिक शिक्षा प्रणाली के प्रति उदासीनता- आज के समय में सार्वजनिक शिक्षा प्रणाली के प्रति उदासीनता की शिकार हो गई है। देश के अंदर मध्यमवर्गीय परिवार अपने बच्चों को निजी स्कूलों में भेजना स्टेटस सिंबल समझते हैं। इनके बीच सरकारी स्कूल में अपने बच्चों को भेजना उनके गरिमा खिलाफ है। पब्लिक स्कूल प्रणाली को जब सामान्य सामुदायिक संसाधनों के रूप में देखा जाने लगेगा, तो इसमें काफी सुधार होगा। सामूहिक प्रयास का अभाव- इस एक्ट की मांग है कि कोई बच्चा स्कूल जाने से वंचित न रहे। लेकिन हकीकत कुछ और ही बयां करती है। आज भी हम अपने आसपास अनेक मासूम बच्चों को चाय की दुकान पर खाली कप उठाते और ढाबे पर बर्तन साफ करते देख सकते हैं। सरकार का प्रयास इस कानून के माध्यम से इन मासूमों को स्कूल की राह दिखाना है। लेकिन न तो अकेली सरकार और न ही अभिभावक इस प्रयास को परवान चढ़ा सकते हैं, बल्कि सामूहिक प्रयास से ही शिक्षा के अधिकार के लक्ष्यों को हासिल किया जा सकता है। अगर ऐसा नहीं हुआ तो बाकी कई नियमों की तरह यह कानून भी कागजों में सिमट कर रह जाए तो कोई हैरानी वाली बात नहीं होगी। आरटीई में इन सुधारों की जरूरत SSC CGL Exam 2022: सीजीएल परीक्षा को करना है क्रैक तो इस तरह करें पुख्ता
तैयारी - स्कूलों की रियल टाइम आधार पर निगरानी के लिये ऑनलाइन प्रबंधन प्रणाली का प्रयोग करना चाहिये। - अध्ययन गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिये सतत और व्यापक मूल्यांकन को महत्व देना चाहिये। - अध्यापन गुणवत्ता में सुधार के लिये शिक्षण-प्रशिक्षण व्यवस्थाओं पर ध्यान देना चाहिये। - 25% कोटा का पालन न करने के मामले में कड़े दंड का प्रावधान किया जाना चाहिये। Navbharat Times News App: देश-दुनिया की खबरें, आपके शहर का हाल, एजुकेशन और बिज़नेस अपडेट्स, फिल्म और खेल की दुनिया की हलचल, वायरल न्यूज़ और धर्म-कर्म... पाएँ हिंदी की ताज़ा खबरें डाउनलोड करें NBT ऐप लेटेस्ट न्यूज़ से अपडेट रहने के लिए NBT फेसबुकपेज लाइक करें भारत में शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 कब लागू हुआ?इस अधिकार को व्यवहारिक रूप देने के लिए संसद में निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा अधिनियम 2009 पारित किया। जो 1 अप्रैल 2010 से लागू हुआ ।
आरटीई अधिनियम कब संशोधित किया गया था?निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार (आरटीई) अधिनियम 2009 में संशोधन किया गया है। सरकार ने इसकी अधिसूचना जारी कर दी है। शिक्षा का अधिकार 2009 के माध्यम से तहत वंचित बच्चों को मौलिक शिक्षा देनी है।
शिक्षा का अधिकार अधिनियम का राजस्थान में क्या नाम है?गैर-सरकारी विद्यालयों को फीस का पुनर्भरण अधिनियम की धारा 12(2) तथा राजस्थान निःशुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार नियम, 2011 के अनुसार सरकार द्वारा किया जाता है। शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 की धारा 12(1)(ग) के अन्तर्गत गैर-सरकारी विद्यालयों में शैक्षिक सत्र 2012-13 से निःशुल्क सीट्स पर प्रवेश दिया जा रहा है।
भारत में शिक्षा का अधिकार क्या है?शिक्षा का अधिकार अधिनियम जिसमें संविधान के 86 वें संशोधन अधिनियम 2002 के द्वारा 21 क जोड़कर शिक्षा को मौलिक अधिकार बना दिया गया है। इसके द्वारा राज को यह कर्तव्य दिया गया कि वह 6 से 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों को निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करेगा।
|