कान्ह में कान्ह में कौन सा अलंकार है? - kaanh mein kaanh mein kaun sa alankaar hai?

दखि दुपहरी घाम की, छाहौ चाहति छाह। - में निम्न में से कौन सा अलंकार है?

  1. श्लेष अलंकार
  2. यमक अलंकार
  3. अनुप्रास अलंकार
  4. उपमा अलंकार

Answer (Detailed Solution Below)

Option 3 : अनुप्रास अलंकार

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हिन्दी वर्णमाला सरल टेस्ट

10 Questions 10 Marks 10 Mins

दिए गए पंक्तियों में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग हुआ है। अन्य विकल्प असंगत है।

कान्ह में कान्ह में कौन सा अलंकार है? - kaanh mein kaanh mein kaun sa alankaar hai?
Key Points

पंक्ति का अर्थ :

बाहर जेठ मास की तपती दोपहरी है । आराम के लिए कहीं छाया नहीं है। ऐसे समय में छाया भी छाँव को ढूँढने चली गई हो । गर्मी से बचने के लिए वह अपने भवन रुपी सघन में चल गयी हो । ऐसे भयंकर ताप से वह भी परेशान से विश्राम करने चली गई है ।

अन्य विकल्प

अलंकार

परिभाषा

उदाहरण

यमक अलंकार

जिस काव्य में समान शब्द के अलग-अलग अर्थों में आवृत्ति हो, उसे यमक अलंकार कहते हैं। यानी जहाँ एक ही शब्द जितनी बार आए उतने ही अलग-अलग अर्थ दे।

जैसे - काली ‘घटा’ का घमंड ‘घटा’।

अनुप्रास अलंकार

वर्णों की आवृत्ति को अनुप्रास कहते है।आवृत्ति का अर्थ किसी वर्ण का एक से अधिक बार आना है।

जैसे - चारु चन्द्र की चंचल किरणें खेल रही थी जल थल में

उपमा अलंकार

मान धर्म के आधार पर जहाँ एक वस्तु की समानता या तुलना किसी दूसरी वस्तु से की जाती है, वहाँ उपमा अलंकार होता हैं।

कर कमल-सा कोमल है।

श्लेष अलंकार

जब एक ही शब्द के विभिन्न अर्थ निकलते हों।

जैसे – ‘रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून ‘पानी’ गए न ऊबरे मोती मानस चून’

Latest MP Jail Prahari Updates

Last updated on Sep 22, 2022

The Madhya Pradesh Professional Examination Board (MPPEB) has released the final result for MP Jail Pahari on its official website. There was a total vacancy of 282. The candidates can check UP Jail Pahari results from here. The candidates who could not make it this year should not lose their hearts as the notification for 2022 recruitment is expected to be out very soon. Meanwhile, the candidates should check out the list of MP Jail Pahari books and maximize their chances of selection.

राग धनाश्री

किलकत कान्ह घुटुरुवनि आवत ।
मनिमय कनक नंद कै आँगन, बिंब पकरिबैं धावत ॥
कबहुँ निरखि हरि आपु छाहँ कौं, कर सौं पकरन चाहत ।
किलकि हँसत राजत द्वै दतियाँ, पुनि-पुनि तिहिं अवगाहत ॥
कनक-भूमि पद कर-पग-छाया, यह उपमा इक राजति ।
करि-करि प्रतिपद प्रति मनि बसुधा, कमल बैठकी साजति ॥
बाल-दसा-सुख निरखि जसोदा, पुनि-पुनि नंद बुलावति ।
अँचरा तर लै ढाँकि, सूर के प्रभु कौं दूध पियावति ॥

भावार्थ :-- कन्हाई किलकारी मारता घुटनों चलता आ रहा है । श्रीनन्द जी के मणिमय आँगन में वह अपना प्रतिबिम्ब पकड़ने दौड़ रहा है । श्याम कभी अपने प्रतिबिम्ब को देखकर उसे हाथ से पकड़ना चाहता है । किलकारी मारकर हँसते समय उसकी दोनों दँतुलियाँ बहुत शोभा देती हैं, वह बार-बार उसी(प्रतिबिम्ब) को पकड़ना चाहता है । स्वर्णभूमि पर हाथ और चरणों की छाया ऐसी पड़ती है कि यह एक उपमा (उसके लिये) शोभा देनेवाली है कि मानो पृथ्वी (मोहन के) प्रत्येक पद पर प्रत्येक मणि में कमल प्रकट करके उसके लिये (बैठने को) आसन सजाती है । बालविनोद के आनन्द को देखकर माता यशोदा बार-बार श्रीनन्द जी को वहाँ (वह आनन्द देखने के लिये)बुलाती हैं । सूरदास के स्वामी को (मैया) अञ्चल के नीचे लेकर ढक कर दूध पिलाती हैं ।

These Solutions are part of UP Board Solutions for Class 10 Hindi. Here we have given UP Board Solutions for Class 10 Hindi Chapter 3 रसखान (काव्य-खण्ड).

कवि-परिचय

प्रश्न 1.
रसखान का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनकी रचनाओं को स्पष्ट कीजिए। [2010]
या
कवि रसखान का जीवन-परिचय दीजिए तथा उनकी एक रचना का नाम लिखिए। [2011, 12, 13, 14, 15, 17]
उत्तर
हिन्दी काव्य की श्रीवृद्धि न जाने कितने ही मुसलमान कवियों के द्वारा की गयी, किन्तु इन सभी कवियों में रसखान जैसा सुकोमल, सरस और ललित काव्य किसी का भी नहीं है। इन्हें अत्यधिक भावुक कवि-हृदय मिला था, जिसके कारण ये श्रीकृष्ण के दीवाने हो गये थे। इनके हृदय से निकला हुआ समस्त काव्य रस और भाव से आकुल कर देने वाला है। कृष्ण-भक्ति शाखा के ये अद्वितीय कवि माने जाते हैं।

जीवन-परिचय—-रसखान दिल्ली के पठान सरदार थे। इनका पूरा नाम सैयद इब्राहीम रसखान था। इनके द्वारा रचित ‘प्रेम वाटिका’ ग्रन्थ से यह संकेत प्राप्त होता है कि ये दिल्ली के राजवंश में उत्पन्न हुए थे और इनका रचना-काल जहाँगीर का राज्य-काल था। इनका जन्म सन् 1558 ई० (सं० 1615 वि०) के लगभग दिल्ली में हुआ था। ‘हिन्दी-साहित्य का प्रथम इतिहास के अनुसार इनका जन्म सन् 1533 ई० में पिहानी, जिला हरदोई (उ०प्र०) में हुआ था। हरदोई में सैयदों की बस्ती भी है। डॉ० नगेन्द्र ने भी अपने ‘हिन्दी-साहित्य के इतिहास में इनका जन्म सन् 1533 ई० के आस-पास ही स्वीकार किया है। (UPBoardSolutions.com) ऐसा माना जाता है कि इन्होंने दिल्ली में कोई विप्लव होता देखा, जिससे व्यथित होकर ये गोवर्धन चले आये और यहाँ आकर श्रीनाथ की शरणागत हुए। इनकी रचनाओं से यह प्रमाणित होता है कि ये पहले रसिक-प्रेमी थे, बाद में अलौकिक प्रेम की ओर आकृष्ट हुए और कृष्णभक्त बन गये। गोस्वामी बिट्ठलनाथ ने पुष्टिमार्ग में इन्हें दीक्षा प्रदान की थी। इनका अधिकांश जीवन ब्रजभूमि में व्यतीत हुआ। यही कारण है कि ये कंचन धाम को भी वृन्दावन के करील-कुंजों पर न्योछावर करने और अपने अगले जन्मों में ब्रज में शरीर धारण करने की कामना करते थे। कृष्णभक्त कवि रसखान की मृत्यु सन् 1618 ई० (सं० 1675 वि०) के लगभग हुई।

कान्ह में कान्ह में कौन सा अलंकार है? - kaanh mein kaanh mein kaun sa alankaar hai?

कृतियाँ (रचनाएँ)–रसखान की निम्नलिखित दो रचनाएँ प्रसिद्ध हैं—

(1) सुजान रसखान-इसकी रचना कवित्त और सवैया छन्दों में की गयी है। यह भक्ति और प्रेम-विषयक मुक्तक काव्य है। इसमें 139 भावपूर्ण छन्द हैं।
(2) प्रेमवाटिका—इसमें 25 दोहों में प्रेम के त्यागमय और निष्काम स्वरूप का काव्यात्मक वर्णन है। तथा प्रेम का पूर्ण परिपाक हुआ है।

साहित्य में स्थान-रसखान का स्थान भक्त-कवियों में विशेष महत्त्वपूर्ण है। इनके बारे में डॉ० विजयेन्द्र स्नातक ने लिखा है कि “इनकी भक्ति हृदय की मुक्त साधना है और इनका श्रृंगार वर्णन भावुक हृदय की उन्मुक्त अभिव्यक्ति है। इनके काव्य इनके स्वच्छन्द मन के (UPBoardSolutions.com) सहज उद्गार हैं। यही कारण है कि इन्हें स्वच्छन्द काव्य-धारा का प्रवर्तक भी कहा जाता है। इनके काव्य में भावनाओं की तीव्रता, गहनता और तन्मयता को देखकर भारतेन्दु जी ने कहा था-‘इन मुसलमान हरिजनन पैकोटिन हिन्दू वारिये।।

पद्यांशों की ससन्दर्भ व्याख्या सवैये

प्रश्न 1.
मानुष हौं तो वही रसखानि, बसौं बज गोकुल गाँव के ग्वारन ।
जौ पसु हौं तो कहा बस मेरो, चरौं नित नंद की धेनु मँझारन ॥
पाहन हौं तो वही गिरि को, जो धर्यौ कर छत्र पुरंदर-धारन ।
जो खग हौं तो बसेरो करौं मिलि कालिंदी-कूल कदंब की डारन ॥ [2009, 11, 18]
उत्तर
[ मानुष = मनुष्य। ग्वारन = ग्वाले। धेनु = गाय। मॅझारन = मध्य में। पाहन = पाषाण, पत्थर। पुरंदर = इन्द्रा खग = पक्षी। बसेरो करौं = निवास करू। कालिंदी-कूल = यमुना का किनारा। डारन = डाल पर, शाखा पर।]
सन्दर्भ-प्रस्तुत पद्य रसखान कवि द्वारा रचित ‘सुजान-रसखान’ से हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी के ‘काव्य-खण्ड में संकलित ‘सवैये’ शीर्षक से अवतरित है।

[ विशेष—इस शीर्षक के शेष सभी पद्यों के लिए यही सन्दर्भ प्रयुक्त होगा। ]

कान्ह में कान्ह में कौन सा अलंकार है? - kaanh mein kaanh mein kaun sa alankaar hai?

प्रसंग-इस पद्य में रसखान ने पुनर्जन्म में विश्वास व्यक्त किया है और अगले जन्म में श्रीकृष्ण की जन्म-भूमि (ब्रज) में जन्म लेने एवं उनके समीप ही रहने की कामना की है।

व्याख्या-रसखान कवि कहते हैं कि हे भगवान्! मैं मृत्यु के बाद अगले जन्म में यदि मनुष्य के रूप में जन्म प्राप्त करू तो मेरी इच्छा है कि मैं ब्रजभूमि में गोकुल के ग्वालों के मध्य निवास करूं। यदि मैं पशु योनि में जन्म ग्रहण करू, जिसमें मेरा कोई वश (UPBoardSolutions.com) नहीं है, फिर भी मेरी इच्छा है कि मैं नन्द जी की गायों के बीच विचरण करता रहूँ। यदि मैं अगले जन्म में पत्थर ही बना तो भी मेरी इच्छा है कि मैं उसी गोवर्धन पर्वत का पत्थर बनें, जिसे आपने इन्द्र का घमण्ड चूर करने के लिए और जलमग्न होने से गोकुल ग्राम की रक्षा करने के लिए अपनी अँगुली पर छाते के समान उठा लिया था। यदि मुझे पक्षी योनि में भी जन्म लेना पड़ा तो भी मेरी इच्छा है कि मैं यमुना नदी के किनारे स्थित कदम्ब वृक्ष की शाखाओं पर ही निवास करू।

काव्यगत सौन्दर्य-

  1. रसखान कवि की कृष्ण के प्रति असीम भक्ति को प्रदर्शित किया गया है। उनकी भक्ति इतनी उत्कट है कि वह अगले जन्म में भी श्रीकृष्ण के समीप ही रहना चाहते हैं।
  2. भाषा– ब्रज।
  3. शैली-मुक्तक
  4. रस-शान्त एवं भक्ति।
  5. छन्द-सवैया।
  6. अलंकार-‘कालिंदी-कुल कदंब की डारन’ में अनुप्रास।
  7. गुण–प्रसाद।

प्रश्न 2.
आजु गयी हुती भोर ही हौं, रसखानि रई बहि नंद के भौनहिं ।।
वाको जियौ जुग लाख करोर, जसोमति को सूख जात कह्यौ नहिं॥
तेल लगाइ लगाई कै अँजन, भौंहैं बनाई बनाई डिठौनहिं ।
डारि हमेलनि हार निहारत बारत ज्यौं पुचकारत छौनहिं ॥
उत्तर
[ हुती = थी। भोर = प्रात:काल। हौं = मैं। रई बहि = प्रेम में डूब गयी। भौनहिं = भवन में। वाको = उसका, यशोदा का। जुग = युग। डिठौनहिं == काला टीका। हमेलनि = हमेल (सोने का एक आभूषण) को। निहारत = देख रही थी। बारत = न्योछावर करते हुए। पुचकारत = पुचकार रही थी। छौनहिं = पुत्र को।]

कान्ह में कान्ह में कौन सा अलंकार है? - kaanh mein kaanh mein kaun sa alankaar hai?

प्रसंग-इसे पद्य में कवि ने श्रीकृष्ण के प्रति यशोदा के वात्सल्य भाव का चित्रण किया है।

व्याख्या-एक गोपी दूसरी गोपी से कहती है कि हे सखी ! आज प्रात:काल के समय श्रीकृष्ण के प्रेम में मग्न हुई मैं नन्द जी के घर गयी थी। मेरी कामना है कि उनका पुत्र श्रीकृष्ण लाखों-करोड़ों युगों तक जीवित रहे। यशोदा के सुख के बारे में (UPBoardSolutions.com) कुछ कहते नहीं बनता है; अर्थात् उनको अवर्णनीय सुख की प्राप्ति हो रही है। वे अपने पुत्र का श्रृंगार कर रही थीं। वे श्रीकृष्ण के शरीर में तेल लगाकर आँखों में काजल लगा रही थीं। उन्होंने उनकी सुन्दर-सी भौंहें सँवारकर बुरी नजर से बचाने के लिए माथे पर टीका (डिठौना) लगा दिया था। वे उनके गले में सोने का हार डालकर और एकाग्रता से उनके रूप को निहारकर अपने जीवन को न्योछावर कर रही थीं और प्रेमावेश में बार-बार अपने पुत्र को पुचकार रही थीं।

काव्यगत सौन्दर्य-

  1. प्रस्तुत छन्द में माता यशोदा के वात्सल्य-भाव और श्रीकृष्ण के प्रात:कालीन श्रृंगार का अनुपम वर्णन किया गया है।
  2. भाषा-ब्रज।
  3.  शैली-चित्रात्मक और मुक्तक।
  4. रसवात्सल्य
  5. छन्द-सवैया।
  6. अलंकार-यमक, अनुप्रास और पुनरुक्तिप्रकाश।
  7. गुण–प्रसाद।

प्रश्न 3.
धूरि भरे अति सोभित स्यामजू, तैसी बनी सिर सुंदर चोटी ।
खेलत खात फिरै अँगनी, पग पैंजनी बाजति पीरी कछोटी ॥
वा छबि को रसखानि बिलोकत, वारत काम कला निज कोटी ।
काग के भाग बड़े सजनी हरि-हाथ सों लै गयौ माखन-रोटी ॥ [2012, 15]
उत्तर
[ बनी = सुशोभित। पैंजनी = पायजेब। पीरी = पीला। कछोटी = कच्छा। सजनी = सखी।] |

कान्ह में कान्ह में कौन सा अलंकार है? - kaanh mein kaanh mein kaun sa alankaar hai?

प्रसंग–इसे पद्य में कवि ने बालक कृष्ण के मोहक रूप का चित्रण किया है। श्रीकृष्ण के सौन्दर्य को देखकर एक गोपी अपनी सखी से उनके सौन्दर्य का वर्णन करती है।

व्याख्या–हे सखी! श्यामवर्ण के कृष्ण धूल से धूसरित हैं और अत्यधिक शोभायमान हो रहे हैं। वैसे ही उनके सिर पर सुन्दर चोटी सुशोभित हो रही है। वे खेलते और खाते हुए अपने घर के आँगन में विचरण कर रहे हैं। उनके पैरों में पायल बज रही है और (UPBoardSolutions.com) वे पीले रंग की छोटी-सी धोती पहने हुए हैं। रसखान कवि कहते हैं कि उनके उस सौन्दर्य को देखकर कामदेव भी उन पर अपनी कोटि-कोटि कलाओं को न्योछावर करता है। हे सखी! उस कौवे के भाग्य का क्या कहना, जो कृष्ण के हाथ से मक्खन और रोटी छीनकर ले गया। भाव यह है कि कृष्ण की जूठी मक्खन-रोटी खाने का अवसर जिसको प्राप्त हो गया, वह धन्य है।

काव्यगत सौन्दर्य-

  1. प्रस्तुत छन्द में श्रीकृष्ण के बाल-सौन्दर्य का बड़ा ही मोहक वर्णन ” किया गया है।
  2. भाषा-ब्रज
  3. शैली—चित्रात्मक और मुक्तक
  4. रसवात्सल्य और भक्ति।
  5. छन्द-सवैया।
  6. अलंकार-पद्य में सर्वत्र अनुप्रास, ‘वारत काम कला निज कोटी’ में प्रतीप।
  7. गुण-माधुर्य।
  8. भावसाम्य-गोस्वामी जी ने भी श्रीराम की धूल से भरी बाल छवि का ऐसा ही चित्र खींचा है-अति सुन्दर सोहत धूरि भरे, छवि भूरि अनंग की दूरि धरें।

प्रश्न 4.
जा दिन तें वह नंद को छोहरा, या बन धेनु चराई गयी है।
मोहिनी ताननि गोधन गावत, बेनु बजाइ रिझाइ गयौ है ॥
वा दिन सो कछु टोना सो कै, रसखानि हियै मैं समाई गयी है।
कोऊ न काहू की कानि करै, सिगरो ब्रज बीर बिकाइ गयौ है ।
उत्तर
[ छोहरा = पुत्र। धेनु = गाय। बेनु = वंशी। टोना = जादू। सिगरो = सम्पूर्ण।] |

प्रसंग-इस पद्य में ब्रज की गोपियों पर श्रीकृष्ण के मनमोहक प्रभाव का सुन्दर चित्रण हुआ है।

कान्ह में कान्ह में कौन सा अलंकार है? - kaanh mein kaanh mein kaun sa alankaar hai?

व्याख्या–एक गोपी दूसरी गोपी से कहती है कि हे सखी! जिस दिन से वह नन्द का लाड़ला बालक इस वन में आकर गायों को चरा गया है तथा अपनी मोहनी तान सुनाकर और वंशी बजाकर हम सबको रिझा गया है, उसी दिन से ऐसा जान पड़ता है (UPBoardSolutions.com) कि वह कोई जादू-सा करके हमारे मन में बस गया है। इसलिए अब कोई भी गोपी किसी की मर्यादा का पालन नहीं करती है, उन्होंने तो अपनी लज्जा एवं संकोच सब कुछ त्याग दिया है। ऐसा मालूम पड़ता है कि सम्पूर्ण ब्रज ही उस कृष्ण के हाथों बिक गया है, अर्थात् उसके वशीभूत हो गया है। ||

काव्यगत सौन्दर्य-

  1. यहाँ गोपियों पर कृष्ण-प्रेम के जादू का सजीव वर्णन किया गया है।
  2. भाषा-ब्रज।
  3. शैली-मुक्तक।
  4. छन्द-सवैया।
  5. रस-शृंगार।
  6. अलंकार-‘कोऊ न काहु की कानि करै’, ‘ब्रज बीर बिकाइ गयौ’, ‘बेनु बजाइ’, ‘गोधन गावत’ में अनुप्रास।
  7. गुण-माधुर्य।
  8. भावसाम्य-रसखान ने अन्यत्र भी इसी प्रकार का वर्णन किया है कोऊ न काहु की कानि करै, कछु चेटक सो जु कियौ जदुरैया।

कान्ह में कान्ह में कौन सा अलंकार है? - kaanh mein kaanh mein kaun sa alankaar hai?

प्रश्न 5.
कान्ह भये बस बाँसुरी के, अब कौन सखी, हमकौं चहिहै ।
निसद्यौस रहै सँग-साथ लगी, यह सौतिन तापन क्यौं सहिहै ॥
जिन मोहि लियौ मनमोहन कौं, रसखानि सदा हमकौं दहिहै ।
मिलि आओ सबै सखि, भागि चलें अब तो ब्रज मैं बँसुरी रहिहै ॥
उत्तर
[चहिहै = चाहेगा। निसद्यौस = रात-दिन। तापन = सन्तापों को। सहिहै = सहन करेगी। मोहि लियौ = मोहित कर लिया है। दहिहै = जलाती है।

प्रसंग-इन पंक्तियों में श्रीकृष्ण के वंशी-प्रेम एवं गोपियों के उसके प्रति सौतिया डाह का सजीव वर्णन किया गया है।

व्याख्या–एक गोपी अपनी सखी से कहती है कि हे सखी! श्रीकृष्ण अब बाँसुरी के वश में हो गये हैं, अब हमसे कौन प्रेम करेगा? श्रीकृष्ण हमसे बहुत प्रेम करते थे, किन्तु अब वे इस दुष्ट बाँसुरी से प्रेम करने लगे हैं। यह बाँसुरी रात-दिन उनके साथ लगी रहती है। यह अब गोपीरूपी सौत की ईष्र्या के सन्ताप को क्यों सहन करेगी? जिस बाँसुरी ने हमारे मन को मोहने वाले कृष्ण को अपने प्रेम से मोहित कर लिया है, वह हमें सदी ईर्ष्या से जलाती (UPBoardSolutions.com) रहेगी। हे सखी! आओ हम सब मिलकर ब्रज छोड़कर अन्यत्र चलें; क्योंकि यहाँ अब केवल बाँसुरी ही रह सकेगी अर्थात् कृष्ण के प्रेम से वंचित होकर हमारा अब ब्रज में निर्वाह नहीं हो सकता।

कान्ह में कान्ह में कौन सा अलंकार है? - kaanh mein kaanh mein kaun sa alankaar hai?

काव्यगत सौन्दर्य-

  1. प्रस्तुत छन्द में गोपियों की मुरली के प्रति स्वाभाविक ईष्र्या का सजीव वर्णन किया गया है।
  2. भाषा-सुललित ब्रज।
  3. शैली—चित्रोपम मुक्तक
  4. रस- श्रृंगार।
  5. छन्द-सवैया
  6. अलंकार-अनुप्रास।
  7. भावसाम्य–महाकवि सूरदास ने भी मुरली के प्रति गोपियों की ऐसी ही ईष्र्या को व्यक्त किया है। उनकी गोपियाँ तो ईवश मुरली को ही चुरा लेना चाहती हैं

 सखी री, मुरली लीजै चोरि ।
जिनि गुपाल कीन्हें अपनें बस, प्रीति सबनि की तोरि॥

प्रश्न 6.
मोर-पखा सिर ऊपर राखिहौं, गुंज की माल गरें पहिरौंगी।
ओढिपितम्बर लै लकुटी, बन गोधन ग्वारन संग फिरौंगी॥
भावतो वोहि मेरो रसखानि, सो तेरे कहै सब स्वाँग करौंगी।
या मुरली मुरलीधर की, अधरान धरी अधरा न धरींगी ॥
उत्तर
[ मोर-पखा = मोर के पंखों से बना हुआ मुकुट गरें = गले में। पितम्बर = पीताम्बर, पीला वस्त्र। लकुटी = छोटी लाठी। स्वाँग = श्रृंगार अभिनय। अधरान = होंठों पर। अधरा न= होंठों पर नहीं

प्रसंग-प्रस्तुत सवैये में कृष्ण के वियोग में व्याकुल गोपियों की मनोदशा का मोहक वर्णन किया गया है। कृष्ण-प्रेम में मग्न गोपियाँ कृष्ण का वेश धारणकर अपने हृदय को सान्त्वना देती हैं।

व्याख्या-एक गोपी अपनी दूसरी सखी से कहती है कि हे सखी! मैं तुम्हारे कहने से अपने सिर पर मोर के पंखों से बना मुकुट धारण करूंगी, अपने गले में गुंजा की माला पहन लूंगी, कृष्ण की तरह पीले वस्त्र पहनकर और हाथ में लाठी लिये हुए (UPBoardSolutions.com) ग्वालों के साथ गायों को चराती हुई वन-वने घूमती रहूंगी। ये सभी कार्य मुझे अच्छे लगते हैं और तेरे कहने से मैं कृष्ण के सभी वेश भी धारण कर लूंगी, परन्तु उनके होठों पर रखी हुई बाँसुरी का अपने होठों से स्पर्श नहीं करूंगी। तात्पर्य यह है कि कृष्ण गोपियों के प्रेम की परवाह न करके दिनभर बाँसुरी को साथ रखते हैं और उसे अपने होंठों से लगाये रहते हैं; अत: गोपियाँ उसे सौत मानकर उसका स्पर्श भी नहीं करना चाहती हैं; क्योंकि वह श्रीकृष्ण के ज्यादा ही मुँह लगी हुई है।

कान्ह में कान्ह में कौन सा अलंकार है? - kaanh mein kaanh mein kaun sa alankaar hai?

काव्यगत सौन्दर्य-

  1. प्रस्तुत छन्द में कृष्ण के प्रति गोपियों के अनन्य प्रेम और बाँसुरी के प्रति स्त्रियोचित ईष्र्या का स्वाभाविक चित्रण किया गया है।
  2. भाषा-ब्रज।
  3. शैली-मुक्तक।
  4. गुणमाधुर्य।
  5. रस-शृंगार।
  6. छन्द-सवैया।
  7. अलंकार-‘या मुरली मुरलीधर की, अधरान धरी अधरा न धरौंगी’ में अनुप्रास तथा यमक।

कवित्त

प्रश्न 1.
गोरज बिराजै भाल लहलही बनमाल,
आगे गैयाँ पाछे ग्वाल गावै मृदु बानि री।
तैसी धुनि बाँसुरी की मधुर-मधुर जैसी,
बंक चितवन मंद मंद मुसंकानि री ॥
कदम बिटप के निकट तटिनी के तट,
अटा चढ़ि चाहि पीत पट फहरानि री ।
रस बरसावै तन-तपनि बुझावै नैन,
प्राननि रिझावै वह आवै रसखानि री ॥
उत्तर
[ गोरज = गायों के पैरों से उड़ी हुई धूल। लहलही = शोभायमान हो रही है। बानि = वाणी। बंक = टेढ़ी। तटिनी = (यमुना) नदी। तन-तपनि = शरीर की गर्मी।]

सन्दर्भ-प्रस्तुत पंक्तियाँ रसखान कवि द्वारा रचित ‘सुजान-रसखान’ (UPBoardSolutions.com) से हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी’ के ‘काव्य-खण्ड में संकलित ‘कवित्त’ शीर्षक से अवतरित हैं।

कान्ह में कान्ह में कौन सा अलंकार है? - kaanh mein kaanh mein kaun sa alankaar hai?

प्रसंग-इन पंक्तियों में सायं के समय वन से गायों के साथ लौटते हुए कृष्ण की अनुपम शोभा का वर्णन एक गोपी अपनी सखी से कर रही है।

व्याख्या-गोपी कहती है कि हे सखी! वन से गायों के साथ लौटते हुए कृष्ण के मस्तक पर गायों के चलने से उड़ी धूल सुशोभित हो रही है। उनके गले में वन के पुष्पों की माला पड़ी हुई है। कृष्ण के आगे-आगे गायें चल रही हैं और पीछे मधुर स्वर में गाते हुए ग्वाल-बाल चल रहे हैं। जितनी मधुर और बाँकी श्रीकृष्ण की चितवन है, उतनी ही बाँकी उनकी धीमी-धीमी मुस्कान हैं। उनकी इस मधुर छवि के अनुरूप ही उनकी वंशी की मधुर-मधुर तान है। हे सखी! कदम्ब वृक्ष के पास यमुना नदी के किनारे खड़े कृष्ण के पीले वस्त्रों का फहराना, जरा अटारी पर चढ़कर तो देख लो। रस की खान वह श्रीकृष्ण चारों ओर सौन्दर्य (UPBoardSolutions.com) और प्रेम-रस की वर्षा करते हुए शरीर और मन की जलन को शान्त कर रहे हैं। उनका सौन्दर्य नेत्रों की प्यास को बुझा रहा है और प्राणों को अपनी ओर खींचकर रिझा रहा है।

काव्यगत सौन्दर्य-

  1. प्रस्तुत छन्द में गोचारण से लौटते हुए श्रीकृष्ण के अनुपम सौन्दर्य का मोहक चित्रण हुआ है।
  2. भाषा-सरल, सरस ब्रज।
  3.  शैली—मुक्तक।
  4.  रस-शृंगार।
  5.  छन्द-मनहरण कवित्त।
  6. अलंकार-‘भाल लहलही बनमाल’ में अनुप्रास, ‘मधुर-मधुर, मन्द-मन्द में पुनरुक्तिप्रकाश तथा ‘रसखानि री’ में श्लेष का मंजुल प्रयोग द्रष्टव्य है।
  7. गुण-माधुर्य।

कान्ह में कान्ह में कौन सा अलंकार है? - kaanh mein kaanh mein kaun sa alankaar hai?

काव्य-सौन्दर्य एवं व्याकरण-बोध

प्रश्न 1
निम्नलिखित पंक्तियों में कौन-सा रस है, उसके स्थायी भाव का नाम लिखिए
(क) तेल लगाइ लगाह के अंजन, भाँहँ बनाइ बनाइ डिठौनहिं ।
(ख) जिन मोहि लियौ मनमोहन , रसखानि सदा हम दहिहै ।
मिलि आओ सबै सखि भागि चलें अब तो ब्रज में बँसुरी रहिहै ।।
उत्तर
(क) रसवात्सल्य, स्थायी भाव-स्नेह (रति)।
(ख) रस-श्रृंगार, स्थायी भाव–रति।

प्रश्न 2
निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकार का नाम बताते हुए उसका स्पष्टीकरण दीजिए
(क) वा छबि को रसखानि बिलोकत, वारत काम कला निज कोटी।
(ख) या मुरली मुरलीधर की, अधरान धरी अधरा न धराँगी ।
(ग) रस बरसावे तन-तपनि बुझावै नैन,
प्राननि रिझावै वह आवै रसखानि री ॥
उत्तर
(क) अनुप्रास-‘क’ वर्ण की आवृत्ति के कारण अनुप्रास अलंकार है।

प्रतीप-“वारत काम कला निज कोटी’ यहाँ कृष्ण (UPBoardSolutions.com) के सौन्दर्य को देखकर कामदेव स्वयं अपनी करोड़ों कलाएँ निछावर कर रहा है। उपमान को उपमेय बना देने के कारण यहाँ प्रतीप अलंकार है।

कान्ह में कान्ह में कौन सा अलंकार है? - kaanh mein kaanh mein kaun sa alankaar hai?

(ख) अनुप्रास, यमक-‘म’, ‘ध’, ‘र’ वर्गों की आवृत्ति के कारण अनुप्रास तथा एक ‘अधरान का अर्थ ‘होठों पर’ एवं दूसरे ‘अधरा न’ का अर्थ होठों पर नहीं होने के कारण यमक है।

(ग) श्लेष—यहाँ ‘रसखानि री’ के दो अर्थ–रस की खान श्रीकृष्ण तथा कवि रसखान हैं; अतः इसमें श्लेष है।

प्रश्न 3
सवैये और कवित्त का लक्षण लिखते हुए पाठ से एक-एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर
सवैया–बाइस से छब्बीस तक के वर्णवृत्त सवैया कहलाते हैं। उदाहरण पाठ से देखें। |

कवित्त—यह दण्डक वृत्त है। इसके प्रत्येक चरण में 31 वर्ण होते हैं। (UPBoardSolutions.com) 16-15 वर्षों पर यति होती है। अन्त में एक गुरु वर्ण होता है। इसे मनहरण कवित्त भी कहते हैं। उदाहरण पाठ से देखें।

प्रश्न 4
निम्नलिखित शब्दों के खड़ी बोली रूप लिखिए-
करोर, सिगरी, दुति, लकुटी, काग, अँगुरी, भाजति, संजम।
उत्तर

कान्ह में कान्ह में कौन सा अलंकार है? - kaanh mein kaanh mein kaun sa alankaar hai?

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कान्ह कान्ह में कौन सा अलंकार है?

'कान्ह - कान्ह' में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है ।

गुर चाँटी ज्यों पागी में कौन सा अलंकार है?

Answer: सूरदास अवला हम भोरी,गुर चांटी ज्यों पागी" में उपमा अलंकार है।

संदेसनि सुनि सुनि में कौन सा अलंकार प्रयुक्त हुआ है?

अनुप्रास अलंकार का अर्थ है, जब किसी काव्य को सुंदर बनाने के लिए किसी वर्ण की बार-बार आवृति होती है, वह अनुप्रास अलंकार कहलाता है