कोई भी बिल कानून कैसे बनता है? - koee bhee bil kaanoon kaise banata hai?

कानून बनाना संसद का प्रमुख काम माना जाता है। इसके लिए पहल अधिकांशतया कार्यपालिका द्वारा की जाती है। सरकार विधायी प्रस्‍ताव पेश करती है। उस पर चर्चा तथा वाद विवाद के पश्‍चात संसद उस पर अनुमोदन की अपनी मुहर लगाती है।

सभी कानूनी प्रस्‍ताव विधेयक के रूप में संसद में पेश किए जाते हैं। विधेयक विधायी प्रस्‍ताव का मसौदा होता है। विधेयक संसद के किसी एक सदन में सरकार द्वारा या किसी गैर-सरकारी सदस्‍य द्वारा पेश किया जा सकता है। इस प्रकार मोटे तौर पर, विधेयक दो प्रकार के होते हैं : (1) सरकारी विधेयक और (ख) गैर-सरकारी सदस्‍यों के विधेयक। विधि का रूप लेने वाले अधिकांश विधेयक सरकारी विधेयक होते हैं। वैसे तो गैर सरकारी सदस्‍यों के बहुत कम विधेयक विधि का रूप लेते हैं।� ‍िफर भी उनके द्वारा यह बात सरकार और लोगों के ध्‍यान में लाई जाती है कि मौजूदा कानून में संशोधन करने या कोई आवश्‍यक विधान बनाने की आवश्‍यकता है।�

विधेयक का मसौदा उस विषय से संबंधित सरकार के मंत्रालय में विधि मंत्रालय की सहायता से तैयार किया जाता है। मंत्रिमंडल के अनुमोदन के बाद इसे संसद के सामने लाया जाता है। संबंधित मंत्री द्वारा उसे संसद के दोनों सदनों में से किसी भी सदन में पेश किया जा सकता है। केवल धन विधेयक के मामले में यह पाबंदी है कि वह राज्‍य सभा में पेश नहीं किया जा सकता।

अधिनियम का रूप लेने से पूर्व विधेयक को संसद में विभिन्‍न अवस्‍थाओं से गुजरना पड़ता है। प्रत्‍येक विधेयक के प्रत्‍येक सदन में तीन वचन होते हैं। अर्थात पहला वाचन, दूसरा वाचन और तीसरा

आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि बिल कैसे बनता है, और किसको है अधिकार इसको बनाने। तो आइये जानिए इसके बारे में।

कोई भी बिल कानून कैसे बनता है? - koee bhee bil kaanoon kaise banata hai?
कोई भी बिल कानून कैसे बनता है? - koee bhee bil kaanoon kaise banata hai?

सबसे पहले आपको बता दें कि कानून बनाने का मुख्य काम संसद में होता है, यह भारत की राजधानी दिल्ली में स्थित है। किसी भी तरह का प्रस्तावित कानून, संसद में एक बिल के रूप में प्रतिस्थापित किया जाता है।

आपको बता दें कि संसद में बिल तभी पास होता है, जब उसको राष्ट्रपति की अनुमति मिलती यानि कि विधेयक (बिल) बनाने का विशेष अधिकार राष्ट्रपति को ही होता उसकी अनुमति के बिना बिल नहीं बनता।

संसद में पेश किये जाने वाले बिल दो तरह के होते हैं।

सरकारी बिल

गैर-सरकारी विधेयक

सरकारी विधेयक मंत्रिमंडल के सदस्यों द्वारा पेश किये जाते हैं, जबकि गैर-सरकारी विधेयक अन्य सदस्यों द्वारा ले जाते हैं, जो मंत्रिपरिषद के सदस्य नहीं होते हैं।

विधेयक बनने की प्रक्रिया।

प्रथम वाचन

इसमें बिल की प्रतिस्थापना के साथ-साथ विधेयक का प्रथम वाचन प्रारम्भ हो जाता है। यह अवस्था बड़ी सरल होती है। आपको बता दें कि जो मंत्री विधेयक को प्रस्तावित करता है, वह अध्यक्ष को सूचित करता है। अध्यक्ष यह प्रश्न सदन के सामने रखता है। जब सभी मंत्रियों का सामान्य मत हो जाता है, तो इस विधेयक को प्रस्थापित करने के लिए बुलाया जाता है।

द्वितीय वाचन

सामान्य चर्चा के पश्चात सदन के पास चार विकल्प होते हैं।

सदन स्वयं विधेयक पर विस्तृत धारावार चर्चा करें।

विधेयक सदन की प्रवर समिति को भेज दें।

दोनों सदनों की संयुक्त समिति को भेज दें।

जनमत जानने के लिए जनता में वितरित करें।

यदि विधेयक प्रवर समिति को सौपा जाता है। तो संबंधित समिति विधेयक का विस्तृत निरीक्षण करती है। समिति चाहे तो वह विषय विशेषज्ञों तथा विधिवेताओं से भी उनकी राय ले सकती है। पूरे विचार विमर्श के पश्चात समिति अपनी रिपोर्ट सदन को भेज देती है।

तृतीय वाचन

द्वितीय वाचन पूरा हो जाने के बाद, मंत्री विधेयक को पास करने के लिए सदन से अनुरोध करता है। इस अवस्था में प्राय: कोर्इ चर्चा नहीं की जाती। सदस्य केवल विधेयक विरोध या पास करने के लिए बिल का समर्थन अथवा उसका विरोध कर सकते हैं। इसके लिए उपस्थित तथा मतदान करने वाले सदस्यों का साधारण बहुमत आवश्यक है।

द्वितीय सदन में बिल का कार्य

आपको बता दें कि जब विधेयक किसी एक सदन से पास हो जाता है, तो उसको दूसरे सदन में भेज दिया जाता है। यहां पर भी वही तीन वाचनों वाली प्रक्रिया अपनार्इ जाती है। जो कुछ इस प्रकार होती हैं।

अगर विधेयक दोनों सदनों में पास होता है, तो उसको राष्ट्रपति की अनुमति के लिए भेज दिया जाता है।

अगर विधेयक में कुछ संशोधन करना हो, तो उसको संशोधन की दशा में बिल पहले पास करने वाले सदन को वापस भेज दिया जाता है। इस दशा में पहला सदन संशोधनों पर विचार करेगा और अगर वो उन्हें स्वीकार कर लेता है, तो बिल राष्ट्रपति की अनुमति के लिए भेज दिया जाता हैं, यदि पहला सदन संशोधनों को मानने से मना कर दे, तब इसे गतिरोध माना जाता है।

दूसरा सदन भी विधेयक को अस्वीकार कर सकता है, वो भी गतिरोध ही कहलाता है। दोनों सदनों की गतिरोध को समापित करने के लिए बिल को राष्ट्रपति की अनुमति के लिए भेज दिया जाता है, क्योंकि राष्ट्रपति के पास कुछ विकल्प होतें हैं, इसको हल करने के लिए।

जब राष्ट्रपति अपनी अनुमति प्रदान करता है, तो बिल या कानून बन जाता है।

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    भारत में एक बिल कैसे कानून बनता है?

    कानून बनाने में राष्ट्रपति की भूमिका संसद के दोनों सदनों द्वारा अनुमोदित होने के बाद उसे एक अधिनियम बनने के लिए एक बिल की पुष्टि करनी होती है। जब किसी बिल को दोनों सदनों से अनुमोदन प्राप्त करने के बाद राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है, तो उसके पास अपनी सहमति देने या अनुपस्थित रहने का विकल्प होता है।

    नया कानून कौन बनाता है?

    Solution : भारत में कानून बनाने का काम संसद का होता है और राष्ट्र स्तर पर कानूनों का निर्माण हमारी संसद करती है। राज्य स्तर पर कानूनों का निर्माण राज्य विधायिका करती है विधि निर्माण का कार्य विधेयक प्रस्ताव के द्वारा किया जाता है।

    कानून बनाना क्या है?

    कानून बनाना संसद का प्रमुख काम माना जाता है। इसके लिए पहल अधिकांशतया कार्यपालिका द्वारा की जाती है। सरकार विधायी प्रस्‍ताव पेश करती है। उस पर चर्चा तथा वाद विवाद के पश्‍चात संसद उस पर अनुमोदन की अपनी मुहर लगाती है।

    विधेयक कितने प्रकार के होते हैं?

    सरकारी विधेयक दो प्रकार के होते हैं। सामान्य सार्वजनिक विधेयक तथा धन विधेयक। पर जब संसद का कोई साधारण सदस्य सार्वजनिक विधेयक प्रस्तुत करता है तब इसे प्राइवट सदस्य का सार्वजनिक विधेयक कहते हैं। सार्वजनिक तथा असार्वजनिक विधेयकों को पारित करने की प्रक्रिया में अंतर होता है।