Balbharti Maharashtra State Board Class 9 Hindi Solutions Lokbharti Chapter 3 कबीर Notes, Textbook Exercise Important Questions and Answers. Hindi Lokbharti 9th Std Digest Chapter 3 कबीर Textbook Questions and
Answers पठनीय : सूचना के अनुसार कृतीयँ : 1. संजाल : प्रश्न 1. उत्तर: 2. परिच्छेद पढ़कर प्राप्त होने वाली प्रेरणा लिखिए। प्रश्न 1. लेखनीय : ‘कबीर संत ही नहीं समाज सुधारक भी थे’, इस पर अपने विचार लिखिए । प्रश्न 1. संभाषणीय : दोहों की प्रतियोगिता के संदर्भ में आपस में चर्चा संभाषणीय कीजिए। प्रश्न 1.
मौलिक सृजन : प्रश्न 1. यही इस बात का साक्षी है कि समय-समय पर इस धरती पर महान संतों ने जन्म लिया और अपने विचारों तथा उपदेशों के जरिए समाज में परिवर्तन लाने का प्रयास किया। इन संतों ने लोगों को यह समझाने का प्रयास किया कि अंधविश्वासों तथा कुरीतियों से जकड़ा समाज कभी आगे नहीं बढ़ सकता है। इसके लिए समाज में खुलापन होना तथा लोगों का समझदार होना आवश्यक है। इस प्रकार संतों के वचन समाज परिवर्तन में अवश्य सहायक होते हैं। आसपास : मन की एकाग्रता बढ़ाने की कार्य पद्धति की जानकारी अंतरजाल/यू ट्यूब से प्राप्त कीजिए। प्रश्न 1. पाठ के आँगन में : 1. सूचना के अनुसार कृतियाँ कीजिए : संजाल : प्रश्न 1. संजाल : उत्तर: 2. सही विकल्प चुनकर वाक्य फिर से लिखिए : प्रश्न क. प्रश्न ख. पाठ से आगे : कबीर जी की रचनाएँ यू टूयूब पर सुनिए । प्रश्न 1. भाषा बिंदु : रेखांकित शब्दों से उपसर्ग और प्रत्यय अलग करके लिखिए। प्रश्न 1. उत्तर: Hindi Lokbharti 9th Answers Chapter 3 कबीर Additional Important Questions and Answers (क) गद्यांश पढ़कर दी गई सूचना के अनुसार कृतियाँ कीजिए। कृति (1) आकलन कृति प्रश्न 1. i. कबीरदास की वाणी वह लता है, जो ……….. ii. उत्तर के हठयोगियों के लिए समाज की ऊँच-नीच भावना, मजाक और ……………. प्रश्न 2. प्रश्न 3.
उत्तर:
प्रश्न 4. प्रश्न 5.
उत्तर:
(ख) गद्यांश पढ़कर दी गई सूचना के अनुसार कृतियाँ कीजिए। कृति (1) आकलन कृति प्रश्न 1. प्रश्न 2. कृति (2) स्वमत अभिव्यक्ति प्रश्न 1. (ग) गद्यांश पढ़कर दी गई सूचना के अनुसार कृतियाँ कीजिए। कृति (1) आकलन कृति प्रश्न 1. प्रश्न 2. i. केवल शारीरिक और मानसिक कवायद से दिखने वाली ज्योति ………….. है। ii. कबीर की यह घर-फूंक मस्ती, फक्कड़ना लापरवाही और निर्मम अक्खड़ता परिणाम थी – प्रश्न 3.
उत्तर:
प्रश्न
4. प्रश्न 5. (घ) गद्यांश पढ़कर दी गई सूचना के अनुसार कृतियाँ कीजिए। कृति (1) आकलन कृति प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. ii. प्रेमरूपी मदिरा की विशेषता कबीर Summary in Hindiलेखक-परिचय : जीवन-परिचय : आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का जन्म उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के दूबे-का-छपरा नामक ग्राम में हुआ था। द्विवेदी जी हिंदी के शीर्षस्थ साहित्यकारों में से एक हैं। उनका स्वभाव बड़ा सरल और उदार था। वे उच्चकोटि के निबंधकार,
उपन्यासकार, आलोचक, चिंतक एवं शोधकर्ता थे। गद्य-परिचय : आलोचना किसी विषय वस्तु के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए उसके गुण-दोष एवं उपयुक्तता का विवेचन करने वाली विधा आलोचना है। प्रस्तावना । प्रस्तुत पाठ ‘कबीर’ के माध्यम से द्विवेदी जी ने संत कबीर के व्यक्तित्व, उनके उपदेश, उनकी साधना, उनके स्वभाव के विभिन्न गुणों को बड़े ही रोचक ढंग से स्पष्ट किया है। सारांश : प्रस्तुत पूरक पठन में द्विवेदी जी ने कबीर के व्यक्तित्व, दार्शनिक विचार और उनकी साधना को दर्शाया है। हिंदी साहित्य के इतिहास में कबीर जैसा व्यक्तित्व लेकर कोई लेखक उत्पन्न नहीं हुआ। उन्होंने कबीर का प्रतिद्वंद्वी तुलसीदास को बताया है परंतु तुलसीदास व कबीर के व्यक्तित्व में बहुत अंतर था। यद्यपि दोनों ही भक्त थे परंतु दोनों स्वभाव, संस्कार और दृष्टिकोण में भिन्न थे। मस्ती, फक्कड़ाना स्वभाव और सब कुछ झाड़-फटकारकर चल देने वाले तेज ने कबीर को हिंदी साहित्य का अद्वितीय व्यक्ति बना दिया था। कबीर की वाणी का अनुकरण नहीं हो सकता। उनकी वाणी वह लता है जो योग के क्षेत्र में भक्ति का बीज पड़ने से अंकुरित हुई थी। कबीर जी सर्वजगत के पाप को अपने ऊपर ले लेने की इच्छा से विचलित नहीं होते थे बल्कि और भी कठोर व शुष्क होकर ध्यान वैराग्य का उपदेश देते थे। अक्खड़ता कबीर का गुण नहीं है। जब वे योगी को संबोधन करते हैं तभी उनकी अक्खड़ता पूरे चढ़ाव पर होती है। वे फक्कड़ स्वभाव के थे। अच्छा हो या बुरा, खरा हो या खोटा, जिससे एक बार चिपट गए उससे जिदंगी भर चिपटे रहो’ यह सिद्धांत उन्हें मान्य नहीं था। वे सत्य के जिज्ञासु थे और कोई माया-ममता उन्हें अपने मार्ग से विचलित नहीं कर सकती थी वे बिल्कुल मस्त-मौला थे। वे प्रेम के मतवाले थे परंतु अपने को उन दीवानों में नहीं गिनते थे जो अपनी प्रेमिका के लिए सिर पर कफ़न बाँधे फिरते हैं। उन्हें संसार की अच्छी-बुरी टिप्पणियों की परवाह नहीं थी। योग के संबंध में कबीर कहते हैं कि केवल शारीरिक और मानसिक कार्यों की नियमावली से दीखने वाली ज्योति जड़ चित्त की कल्पना मात्र है। केवल क्रिया बाह्य है, ज्ञान चाहिए। बिना ज्ञान के योग व्यर्थ है। द्विवेदी जी ने कहा है कि कबीर के लिए साधना एक विकट संग्राम स्थली थी, जहाँ कोई विरला शूरवीर ही टिक सकता है। कबीर के मतानुसार प्रेम किसी खेत में नहीं उगता, किसी बाज़ार में नहीं बिकता, फिर जो कोई भी, इसे चाहेगा, पा लेगा। वह राजा हो या प्रजा, उसे सिर्फ एक शर्त माननी होगी, वह शर्त है सिर उतारकर धरती पर रख ले। जिसमें साहस व विश्वास नहीं, वह प्रेम की गली में नहीं जा सकता। विश्वास ही प्रेम की कुंजी है जिसमें संकोच नहीं, दुविधा नहीं और कोई बाधा नहीं। कबीर युगावतारी शक्ति और विश्वास लेकर पैदा हुए थे और युगप्रवर्तक की दृढ़ता उनमें विद्यमान थी इसलिए वे युग प्रवर्तन कर सकें। द्विवेदी जी ने कबीर जी के व्यक्तित्व के लिए एक वाक्य में कहा है कि, “कबीर सिर से पैर तक मस्त-मौला थे, बेपरवाह, दृढ़, उग्र, फूल से भी कोमल और बज्र से भी कठोर थे।” शब्दार्थ :
मुहावरे
कबीर के समाज सुधार पर अपने विचार व्यक्त करें?उनके समकालीन समाज में अनेक अंधविश्वासों, आडम्बरों, कुरीतियों एवं विभिन्न धर्मों का बोलबाला था। कबीर ने इन सब का विरोध करते हुए समाज को एक नवीन दिशा देने का पूर्ण प्रयास किया। उन्होंने जाती-पांति के भेदभाव को दूर करते हुए शोषित जनों के उद्धार का प्रयत्न किया तथा हिंदू मुस्लिम एकता पर बल दिया उनका मत था।
कबीर एक सच्चे समाज सुधारक थे स्पष्ट कीजिए?कबीर दास समाज सुधारक के साथ ही हिंदी साहित्य के एक महान समाज कवि थे । उन्होंने अनोखा सत्य के माध्यम से समाज का मार्गदर्शन तथा कल्याण किया। जिससे मानव कुसंगति, छल कपट, निंदा, अंहकार, जाति भेदभाव, धार्मिक पाखंड आदि को छोड़कर एक सच्चा मानव बल सकता है। उन्होंने समाज में चल रहे अंधविश्वासों, रूढ़ियों पर करारा प्रहार किया।
कबीर एक समाज सुधारक इस विषय पर 100 शब्दों का एक लेख लिखिए?कबीर दास जी हमारे हिंदी साहित्य के एक जाने माने महान कवि होने के साथ ही एक समाज सुधारक भी थे, उन्होंने समाज में हो रहे अत्याचारों और कुरीतिओं को ख़त्म करने की बहुत कोशिश की, जिसके लिये उन्हें समाज से बहिष्कृत भी होना पड़ा, परन्तु वे अपने इरादों में अडिग रहे और अपनी अंतिम श्वास तक जगत कल्याण के लिये जीते रहे।
कबीर दास के समाज सुधारक दोहे इन हिंदी?kabirdas ke samaaj-sudhaarak dohe
या ते तो चक्की भली पीस खाये संसार ।। जो ब्राह्मन ब्राह्मनी जाया और राह है क्यों न आया । कंकड़ पत्थर जोरि कर मस्जिद लई बनाय । ता चढि़ मुल्ला बांग दे, क्या बहरा हुआ खुदाय ।।
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