ज्वार भाटा की उत्पत्तिमहासागरों में ज्वार की उत्पत्ति मुख्य रूप से सूर्य और चन्द्रमा की आकर्षण शक्ति से होती है। सूर्य, पूथ्वी से 14,99,37,000 किमी दूर है, जबकि चन्द्रमा केवल 3,92,595 किमी दूर है, अत: चन्द्रमा की आकर्षण शक्ति सूर्य की आकर्षण शक्ति से 2 1 /2 गुना अधिक प्रभाव डालती है। फलत: पृथ्वी का एक भाग जो ठीक चन्द्रमा के सामने होता है, चन्द्रमा की ओर आकर्षित होता है। Show
इस प्रकार ज्वार-भाटा की उत्पत्ति में चन्द्रमा की आकर्षण शक्ति प्रमुख कारक हैं। पृथ्वी का वह भाग जो ठीक चन्द्रमा के सामने होता है, चन्द्रमा की ओर सबसे अधिक आकर्षित होता है और जैसे-जैसे चन्द्रमा के तल से पृथ्वी के भागों की दूरी बढ़ती जाती है, आकर्षण शक्ति का प्रभाव भी कम होता जाता है। यहॉं तक कि पृथ्वी के केन्द्र पर चन्द्रमा की आकर्षण शक्ति कम और पृथ्वी के विपरीत भाग पर नगण्य हो जाती है, चन्द्रमा की आकर्षण शक्ति के कारण पृथ्वी के भागों पर खिंचाव होता है तब जल का तल ऊपर होता है, उसे ज्वार तथा जल का तल नीचा होने से उसे भाटा कहते हैं।
चन्द्रमा पृथ्वी तल पर एक समय में दो विपरीत स्थानों पर ज्वार उत्पन्न करता है। इन ज्वार वाले स्थानों की ओर पृथ्वी के अन्य भागों का जल खिंचकर चला जाता है। अत: इन दोनों स्थानों के मध्य भाग में सागर जल-तल अपने सामान्य जल-तल से भी नीचा हो जाता है। वहॉ नीचा ज्वार या भाटा कहलाता है। पृथ्वी अपने अक्ष पर चौबीस घण्टे में पूरा परिभ्रमण करती है। इस परिभ्रमण गति के कारण पृथ्वी का प्रत्येक स्थान चौबीस घण्टे में एक बार चन्द्रमा के सम्मुख और एक बार विपरीत स्थिति में आता है। इस कारण प्रत्येक स्थान पर प्रतिदिन दो बार ज्वार और दो बार भाटा होता है। ज्वार-भाटा के समय में अन्तरसामान्यत: ज्वार-भाटा दिन में दो बर आता है, किन्तु एक ज्वार के बाद दूसरा ज्वार 12 घण्टे बाद न आकर 12 घण्टे 26 मिनट बाद और तीसरा ज्वार 24 घण्टे 52 मिनट बाद आता है। इसका कारण यह है कि पृथ्वी की परिभ्रमण गाति के साथ-साथ चन्द्रमा भी पृथ्वी के चारों ओर परिक्रमा करता है। फलत: पृथ्वी का वह स्थान जो चन्द्रमा के सामने है, पृथ्वी की दैनिक गति के कारण चक्कर लगाकर जब तक पुन: उसी स्थान पर 24 घण्टे में आयेगा, तब तक चन्द्रमा पृथ्वी की परिक्रमा में आगे निकल जाता हैं। अत: उस स्थान को पुन: चन्द्रमा के सामने पहॅुचने में 52 मिनट का अतिरिक्त समय लगता है। इसीलिये ज्वार के आने के समय में अन्तर आता है। ज्वार भाटा के लाभ1. ज्वार भाटा के व्यापारिक लाभ
2. ज्वार भाटा के अन्य लाभ
इस पेज पर आप ज्वार भाटा की समस्त जानकारी पढ़ने वाले हैं तो आर्टिकल को पूरा जरूर पढ़िए। पिछले पेज पर हमने कार्बन कैप्चर टेक्नोलॉजी की जानकारी शेयर की हैं तो उस पोस्ट को भी पढ़े। चलिए आज हम ज्वार भाटा की जानकारी को पढ़कर समझते हैं।
ज्वार भाटा किसे कहते हैंसूर्य तथा चंद्रमा के आकर्षण के कारण सागर के जल के ऊपर उठने या नीचे गिरने को ज्वार भाटा कहा जाता है। इससे उत्पन्न तरंगों को ज्वारीय तरंग कहा जाता हैं। समुद्र में ज्वार भाटा का महत्व सबसे अधिक है क्योंकि इसके कारण सागर के तल से लेकर सागर तलिय तक का जल प्रभावित होता हैं। सागर के जल के ऊपर उठकर आगे बढ़ने से ज्वार तथा उस समय जल स्तर को उच्च ज्वार कहते हैं जबकि जल के नीचे गिर कर पीछे लौटने को भाटा और इस समय बने जल स्तर को निम्न ज्वार कहते हैं। ज्वार की उत्पत्ति कैसे होती हैंज्वार भाटाज्वार भाटा आसानी से मापे जा सकते हैं। पृथ्वी के महासागरीय जल के ज्वार की उत्पत्ति चंद्रमा तथा सूर्य के आकर्षण बलों द्वारा होती हैं। पृथ्वी का व्यास 12,800 किलोमीटर है जिससे पृथ्वी की सतह पृथ्वी के केंद्र की तुलना में चंद्रमा से ज्यादा नजदीक हैं। चंद्रमा के सामने वाले भाग पर चंद्रमा की आकर्षण शक्ति का सबसे अधिक प्रभाव होता है और उसके पीछे वाले भाग पर सबसे कम। जिसके कारण चंद्रमा के सामने पृथ्वी का जल ऊपर खींच जाता है जिस कारण निम्न ज्वार उत्पन्न होता हैं। इसके कारण 24 घंटे में प्रत्येक स्थान पर दो बार ज्वार और दो बार भाटा आता हैं। वैसे ही जब सूर्य और चंद्रमा एक सीधी रेखा में होते हैं तो दोनों की आकर्षण शक्ति मिलकर एक साथ काम करती है। तब उच्च ज्वार उत्पन्न होता है। यह स्थिति सिजगी कहलाती है यह स्थिति पूर्णमासी या अमावस्या को होती हैं। इसके उल्टा जब सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा मिलकर समकोण बनाते हैं तो सूर्य तथा चंद्रमा के आकर्षण बल एक दूसरे से उल्टा काम करते हैं। जिसके कारण निम्न ज्वार उत्पन्न होता है। यह स्थिति प्रत्येक महीने के कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की अष्टमी को होती हैं। ज्वार का समयप्रत्येक स्थान पर सामान्य तौर पर दिन में दो बार ज्वार आता हैं। पृथ्वी 24 घंटे में एक पूरा चक्कर लगा लेती है जिससे प्रत्येक स्थान पर 12 घंटे के बाद ज्वार आना चाहिए लेकिन ऐसा नहीं होता हैं। प्रतिदिन ज्वार लगभग 26 मिनट देर से आता है। इसका कारण चंद्रमा का भी अपनी धुरी पर चक्कर लगाते हुए पृथ्वी की परिक्रमा करना हैं। पृथ्वी पश्चिम से पूरब दिशा में चक्कर लगाती है जिससे ज्वार केन्द्र पूरब से पश्चिम दिशा की ओर आते हैं। ज्वार केंद्र जब अपना एक पूरा चक्कर लगा लेते हैं तो चंद्रमा उसके कुछ आगे निकल गया रहता है क्योंकि वह भी पृथ्वी की परिक्रमा करता हैं। जिससे ज्वार केंद्र को चंद्रमा के नीचे पहुंचने के लिए लगभग 52 मिनट लगते हैं। इस तरह ज्वार केंद्र को चंद्रमा के सामने आने में 24 घंटे 52 मिनट लगते हैं। जिससे ज्वार आने में 26 मिनट की देरी होती हैं। ज्वार के प्रकार क्या हैंज्वार के कुछ मुख्य प्रकार निम्नलिखित हैं। 1. दीर्घ ज्वार या वसंत ज्वारसूर्य, पृथ्वी तथा चंद्रमा जब एक सीधी रेखा में होते हैं तो इस स्थिति के कारण चंद्रमा तथा सूर्य के आकर्षण बल एक साथ मिलकर कार्य करते हैं जिस कारण उच्च ज्वार आता हैं। इस ज्वार की ऊंचाई सामान्य ज्वार से 20% अधिक होती हैं। वसंत ऋतु का वसंत ज्वार से कोई लेना-देना नहीं है। इस तरह के दीर्घ ज्वार महीने में दो बार अमावस्या और पूर्णिमासी को आते हैं। और इनका समय निश्चित होता है। इसे ‘किंग टाइड’ के नाम से भी जाना जाता है। 2. लघु ज्वारयह वसंत ज्वार के सात दिन बाद होता है। प्रत्येक महीने के शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की सप्तमी और अष्टमी को सूर्य, चंद्रमा और पृथ्वी मिलकर समकोण बनाते हैं। जिससे सूर्य तथा चंद्रमा का आकर्षण बल एक दूसरे के विपरीत कार्य करते हैं। इसमें सामान्य ज्वार से भी नीचे ज्वार आता है इसे लघु ज्वार कहा जाता हैं। यह सामान्य ज्वार से 20% नीचे होता है। इसमें ज्वार तथा भाटे की जल की ऊंचाई का अंतर बहुत कम होता है। 3. अयन वृतिय ज्वार तथा भूमध्य रेखीय ज्वारजब चंद्रमा का उत्तर की ओर ज्यादा झुकाव होता है तो चंद्रमा की किरणें कर्क रेखा के पास लंबवत पड़ती है जिस कारण उच्च ज्वार आता हैं। यह स्थिति महीने में दो बार होती है। इन स्थितियों में कर्क तथा मकर रेखाओं के पास आने वाले ज्वार को अयन वृत्तिय ज्वार कहते हैं। प्रत्येक महीने में चंद्रमा भूमध्य रेखा पर लंबवत होता है जिसके कारण इनके बीच अंतर नहीं होता हैं। जिससे दो उच्च ज्वार की ऊंचाई तथा दो निम्न ज्वार की ऊंचाई एक समान होती है इसे भूमध्य रेखीय ज्वार कहते हैं। 4. दैनिक ज्वारकिसी एक स्थान पर एक दिन में आने वाले एक ज्वार तथा एक भाटा को दैनिक ज्वार भाटा कहते हैं। यह ज्वार प्रतिदिन 52 मिनट की देरी से आता है। इस तरह का ज्वार चंद्रमा के झुकाव के कारण आता है। 5. अर्ध दैनिक ज्वारकिसी स्थान पर प्रतिदिन दो बार आने वाले ज्वार को अर्ध दैनिक ज्वार कहते हैं। प्रत्येक ज्वार 12 घंटे 26 मिनट बाद आता हैं। दोनों ज्वार की ऊंचाई तथा दोनों भाटा की नीचाई समान होती है। 6. मिश्रित ज्वारकिसी स्थान में आने वाले असामान और अर्ध दैनिक ज्वार को मिश्रित ज्वार कहते हैं। मतलब दिन में दो बार ज्वार तो आते हैं लेकिन एक ज्वार की ऊंचाई दूसरे ज्वार की तुलना में कम और एक भाटा की निचाई दूसरे भाटा की तुलना में कम होती है। ज्वार का प्रभावज्वार भाटा का अच्छा और बुरा दोनो तरह से प्रभाव पड़ता है जो निम्नलिखित हैं। ज्वार भाटा के लाभ
ज्वार भाटा के नुकसान
ज्वार और लहर में अंतरज्वार और लहरों के बीच अंतर को नीचे बताया गया हैं।
विश्व के सबसे अधिक उच्च ज्वारविश्व के सबसे अधिक उच्च ज्वार निम्नलिखित देशों में आते हैं।
ज्वार के बारे मे रोचक तथ्य
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उम्मीद हैं आपको ज्वार भाटा की जानकारी पसंद आयी होगीं। यदि आपको ज्वार भाटा की जानकारी पसंद आयी हो तो दोस्तों के साथ शेयर कीजिए। ज्वार भाटा की उत्पत्ति कैसे होती है इसके प्रकारों का वर्णन कीजिए?पृथ्वी, चन्द्रमा और सूर्य की पारस्परिक गुरुत्वाकर्षण शक्ति की क्रियाशीलता ही ज्वार-भाटा की उत्पत्ति का प्रमुख कारण हैं। चन्द्रमा का ज्वार-उत्पादक बल सूर्य की अपेक्षा दोगुना होता है क्युकी यह सूर्य की तुलना में पृथ्वी के अधिक निकट है।
ज्वार भाटा के कितने प्रकार होते हैं?ज्वार-भाटा के प्रकार. दीर्घ अथवा उच्च ज्वार (Spring Tide). लघु या निम्न ज्वार (Neap Tide). दैनिक ज्वार (Diurnal Tide). अर्द्ध-दैनिक ज्वार (Semi-Diurnal). मिश्रित ज्वार (Mixed Tide). अयनवृत्तीय और विषुवत रेखीय ज्वार. ज्वार से आप क्या समझते हैं इसकी उत्पत्ति के बारे में सिद्धांतों की व्याख्या करें?समुद्र का जल 24 घण्टे में दो बार तट की तरफ बढ़ता है अर्थात् ऊपर उठता है एवं दो बार उतरता है अर्थात् नीचे गिरता है । इस प्रकार प्रत्येक स्थान पर 12 घण्टे 26 मिनट बाद ज्वार तथा 6 घण्टे 13 मिनट बाद भाटा आता है । ज्वार - भाटा की उत्पत्ति का कारण चन्द्रमा , सूर्य तथा पृथ्वी की पारस्परिक गुरुत्वाकर्षण शक्ति है ।
ज्वार भाटा क्या है इसके महत्व की चर्चा कीजिए?ज्वार – भाटा के महत्व : 1. हमे मालूम है कि पृथ्वी, चंद्रमा व सूर्य की उपस्तिथि ज्वार की उत्पत्ति का कारण है और इनकी स्थिति के सही ज्ञान से ज्वारों का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है। यह नौसंचालकों व मछुआरों को उनके कार्य संबंधी योजनाओं में मदद करता है।
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