निम्नलिखित में से कौन सी घटना भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कराची अधिवेशन 1931 से संबंधित है? - nimnalikhit mein se kaun see ghatana bhaarateey raashtreey kaangres ke karaachee adhiveshan 1931 se sambandhit hai?

5 मार्च सन् 1931 को लंदन द्वितीय गोल मेज सम्मेलन के पूर्व महात्मा गांधी और तत्कालीन वाइसराय लार्ड इरविन के बीच एक राजनैतिक समझौता जिसे गांधी-इरविन समझौता (Gandhi–Irwin Pact) कहते हैं। इसे "दिल्ली पेक्ट" भी कहते हैं।[कृपया उद्धरण जोड़ें]

ब्रिटिश सरकार प्रथम गोलमेज सम्मेलन से समझ गई कि बिना कांग्रेस के सहयोग के कोई फैसला संभव नहीं है। वायसराय लार्ड इरविन एवं महात्मा गांधी के बीच 5 मार्च 1931 को गाँधी-इरविन समझौता सम्पन्न हुआ। इस समझौते में लार्ड इरविन ने स्वीकार किया कि -

  1. हिंसा के आरोपियों को छोड़कर बाकी सभी राजनीतिक बन्दियों को रिहा कर दिया जाएगा।
  2. भारतीयों को समुद्र किनारे नमक बनाने का अधिकार दिया जाएगा।
  3. भारतीय शराब एवं विदेशी कपड़ों की दुकानों के सामने धरना दे सकते हैं।
  4. आन्दोलन के दौरान त्यागपत्र देने वालों को उनके पदों पर पुनः बहाल किया जायेगा।
  5. आन्दोलन के दौरान जब्त सम्पत्ति वापस की जाएगी।

कांग्रेस की ओर से गांधीजी ने निम्न शर्तें स्वीकार की -

  1. सविनय अवज्ञा आन्दोलन स्थगित कर दिया जाएगा।
  2. कांग्रेस द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भाग लेगी।
  3. कांग्रेस ब्रिटिश सामान का बहिष्कार नहीं करेगी।
  4. गाँधीजी पुलिस की ज्यादतियों की जाँच की माँग छोड़ देंगे।

यह समझौता इसलिए महत्वपूर्ण था क्योंकि पहली बार ब्रिटिश सरकार ने भारतीयों के साथ समानता के स्तर पर समझौता किया।

कांग्रेस का कराची अधिवेशन[संपादित करें]

गांधी-इरविन समझौते को स्वीकृति प्रदान करने के लिए 29 मार्च 1931 को कराची में कांग्रेस का अधिवेशन आयोजित किया गया। वल्लभ भाई पटेल इसके अध्यक्ष थे। इससे 6 दिन पहले ही भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दी गई थी जिसके कारण भारत के लोग गांधीजी से तीव्र नाराज थे। गांधीजी को अपनी कराची यात्रा के दौरान जनता के तीव्र रोष का सामना करना पड़ा।

कराची में कांग्रेस का प्रस्ताव[संपादित करें]

किसी भी तरह की राजनीतिक हिंसा का समर्थन न करने की बात दोहराते हुए भी कांग्रेस ने इन क्रांतिकारियों की वीरता और बलिदान की प्रशंसा की। दिल्ली समझौते को मंजूरी दी गयी। पूर्ण स्वराज के लक्ष्य को पुनः दोहराया गया। कांग्रेस ने मुख्यतः दो प्रस्ताव को अपनाया। इनमें से एक मौलिक अधिकारों से सम्बन्धित था और दूसरा राष्ट्रीय आर्थिक कार्यक्रम से संबंधित था।

मौलिक अधिकार
  • अभिव्यक्ति एवं प्रेस की पूर्ण स्वतंत्रता
  • संगठन बनाने की स्वतंत्रता
  • सार्वभौम वयस्क मताधिकार के आधार पर चुनावों की स्वतंत्रता
  • सभा एवं सम्मेलन आयोजित करने की स्वतंत्रता
  • जाति, धर्म एवं लिंग इत्यादि से हटकर कानून के समक्ष समानता का अधिकार
  • सभी धर्मों के प्रति राज्य का तटस्थ भाव । निःशुल्क एवं अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा की गारंटी
  • अल्पसंख्यकों तथा विभिन्न भाषाई क्षेत्रों की संस्कृति , भाषा एवं लिपि की सुरक्षा की गारंटी
राष्ट्रीय आर्थिक कार्यक्रम
  • लगान और मालगुजारी में उचित कटौती
  • अलाभकर जोतों को लगान से मुक्ति
  • किसानों को कर्ज से राहत और सूदखोरों पर नियंत्रण
  • मजदूरों के लिये बेहतर सेवा शर्तें , महिला मजदूरों की सुरक्षा तथा काम के नियमित घंटे
  • मजदूरों और किसानों को अपने संघ बनाने की स्वतंत्रता
  • प्रमुख उद्योगों , परिवहन और खदान को सरकारी स्वामित्व एवं नियंत्रण में रखने का वायदा

इस अधिवेशन में कांग्रेस ने पहली बार पूर्ण स्वराज्य को परिभाषित किया और बताया कि जनता के लिये पूर्ण स्वराज्य का अर्थ क्या है। कांग्रेस ने यह भी घोषित किया कि 'जनता के शोषण को समाप्त करने के लिये राजनीतिक आजादी के साथ-साथ आर्थिक आजादी भी आवश्यक है ' । कांग्रेस का 'कराची प्रस्ताव' वास्तविक रूप से कांग्रेस की मूलभूत राजनीतिक व आर्थिक नीतियों का दस्तावेज था जो बाद के वर्षों में भी निरन्तर बरकरार रहा ।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • गोलमेज सम्मेलन

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निम्नलिखित में से कौन सी घटना भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कराची अधिवेशन 1931 से संबंधित है? - nimnalikhit mein se kaun see ghatana bhaarateey raashtreey kaangres ke karaachee adhiveshan 1931 se sambandhit hai?

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निम्नलिखित में से कौन सी घटना भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कराची अधिवेशन 1931 से संबंधित है? - nimnalikhit mein se kaun see ghatana bhaarateey raashtreey kaangres ke karaachee adhiveshan 1931 se sambandhit hai?

1931

गांधी-इरविन समझौते या दिल्ली समझौते को स्वीकृति प्रदान करने के लिये कांग्रेस का अधिवेशन 29 मार्च 1931 में कराची में आयोजित किया गया। वल्लभभाई पटेल इसके अध्यक्ष थे। इससे छह दिन पहले भगत सिंह, राजगुरु एवं सुखदेव को फांसी दी गयी थी। यद्यपि गांधीजी ने इन्हें बचाने की कोशिश की थी, किंतु भारतीय गांधीजी से तीव्र नाराज थे। गांधीजी से अपेक्षा थी कि वे समझौते पर हस्ताक्षर नहीं करेंगे। गांधीजी को अपनी कराची यात्रा के दौरान जनता के तीव्र रोष का सामना करना पड़ा। उनके खिलाफ प्रदर्शन किये गये तथा उन्हें काले झंडे दिखाये गये। पंजाब नौजवान सभा ने भगत सिंह एवं उनके कामरेड साथियों को फांसी की सजा से न बचा पाने के लिये गांधीजी की तीव्र आलोचना की।

कराची में कांग्रेस का प्रस्ताव

  • किसी भी तरह की राजनीतिक हिंसा का समर्थन न करने की बात दोहराते हुये भी कांग्रेस ने इन क्रांतिकारियों के वीरता और बलिदान की प्रशंसा की।
  • दिल्ली समझौते को मंजूरी दे दी।
  • पूर्ण स्वराज्य के लक्ष्य को पुनः दोहराया गया।
  • कांग्रेस ने दो मुख्य प्रस्तावों को अपनाया- इनमें से एक मौलिक अधिकारों और दूसरा राष्ट्रीय आर्थिक कार्यक्रमों से सम्बद्ध था। इन प्रस्तावों के कारण कराची सत्र एक यादगार सत्र बन गया। मौलिक अधिकारों से सम्बद्ध प्रस्ताव में निम्न प्रावधानों को सुनिश्चित किया गया-
  • अभिव्यक्त एवं प्रेस की पूर्ण स्वतंत्रता।
  • संगठन बनाने की स्वतंत्रता।
  • सार्वभौम वयस्क मताधिकार के आधार पर चुनावों की स्वतंत्रता।
  • सभा एवं सम्मेलन आयोजित करने की स्वतंत्रता।
  • जाति, धर्म एवं लिंग इत्यादि से हटकर कानून के समक्ष समानता का अधिकार।
  • सभी धमों के प्रति राज्य का तटस्थ भाव।
  • निःशुल्क एवं अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा की गारंटी।
  • अल्पसंख्यकों तथा विभिन्न भाषाई क्षेत्रों की संस्कृति, भाषा एवं लिपि की सुरक्षा की गारंटी।

राष्ट्रीय आर्थिक कार्यक्रमों से सम्बद्ध जो प्रस्ताव पारित किये गये, उनमें सम्मिलित थे

  • लगान और मालगुजारी में उचित कटौती।
  • अलाभकर जोतों को लगान से मुक्ति।
  • किसानों को कर्ज से राहत और सूदखोरों पर नियंत्रण।
  • मजदूरों के लिये बेहतर सेवा शर्ते, महिला मजदूरों की सुरक्षा तथा काम के नियमित घंटे।
  • मजदूरों और किसानों को अपने यूनियन बनाने की स्वतंत्रता।
  • प्रमुख उद्योगों, परिवहन और खदान को सरकारी स्वामित्व एवं नियत्रंण में रखने का वायदा।

इस अधिवेशन में कांग्रेस ने पहली बार पूर्ण स्वराज्य को परिभाषित किया और बताया कि जनता के लिये पूर्ण स्वराज्य का अर्थ क्या है। कांग्रेस ने यह भी घोषित किया कि ‘जनता के शोषण को समाप्त करने के लिये राजनीतिक आजादी के साथ-साथ आर्थिक आजादी भी आवश्यक है’।

कांग्रेस का कराची प्रस्ताव वास्तविक रूप से कांग्रेस की मूलभूत राजनीतिक व आर्थिक नीतियों का दस्तावेज था, जो बाद के वर्षों में भी निरंतर बरकरार रहा ।


कौन सी घटना भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कराची अधिवेशन 1931 से संबंधित है?

1931 में कांग्रेस कराची अधिवेशन भारत के इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण घटना थी। यह सरदार वल्लभ भाई पटेल की अध्यक्षता में एकमात्र कांग्रेस सत्र था। इस अधिवेशन में गांधी-इरविन समझौते का समर्थन किया गया, जिसने कांग्रेस को सरकार के साथ समान स्तर पर बात करने का अवसर प्रदान किया।

कांग्रेस का कराची अधिवेशन क्या है?

29 मार्च 1931 में कराची में कांग्रेस का अधिवेशन आयोजित किया गया, जिसकी अध्यक्षता सरदार वल्लभ भाई पटेल ने की थी। इस अधिवेशन में 'दिल्ली समझौते' यानि गांधी-इरविन समझौते को स्वीकृति प्रदान की गई। 'पूर्ण स्वराज्य' के लक्ष्य को फिर से दोहराया गया तथा भगतसिंह, राजगुरु व सुखदेव की वीरता और बलिदान की प्रशंसा की गई।

कराची अधिवेशन में क्या हुआ था?

पूर्ण स्वराज पर संकल्प पारित करने के लिए। 3. मौलिक अधिकारों और आर्थिक नीति पर प्रस्ताव पारित करने के लिए। 4.