जीवन में कठिन समय आने पर आप क्या करते हो? - jeevan mein kathin samay aane par aap kya karate ho?

स्मिथ विगलस्वर्थ का जन्म 8 जून 1859 में यॉर्कशाइर में दरिद्र घर में हुआ। एक छोटे बच्चे के रूप में वह खेत में काम करते थे अपनी माँ के साथ सब्जी तोड़ते हुए। तेईस वर्ष की उम्र तक वह अनपढ़ थे, उन्होंने पॉली से विवाह किया, जिसने उन्हें पढ़ना सिखाया। उन्होंने अक्सर कहा कि उन्होंने केवल एक किताब पढ़ी थी, वह थी बाईबल।

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वह एक प्लंबर का काम करते थे लेकिन उन्हे यह काम छोड़ना पड़ा क्योंकि वह प्रचार और चंगाई की अद्भुत सेवकाई में बहुत व्यस्त हो गए। ऐसी घटना भी हुई है कि उनकी सेवकाई के द्वारा लोग मरे हुओं में से जी उठे। फिर भी, उन्होंने एक बार कहा कि वह उनके प्रचार के द्वारा 10000 चंगाई से अधिक एक व्यक्ति का उद्धार होता हुआ देखना पसंद करेंगे।

स्मिथ विगलस्वर्थ के लिए जीवन हमेशा आसान नहीं था, वह थोड़े कठिन समय से गुजरे थे। उन्होंने लिखा, ‘महान विश्वास, महान लड़ाई का उत्पाद है। महान गवाहियाँ महान परीक्षा का परिणाम है। महान विजय केवल महान परीक्षा से प्राप्त हो सकती है।’

बाईबल बहुत सापेक्षिक है। हम एक पतन विश्व में रहते हैं। हर कोई कठिन समय से गुजरता है और कुछ लोग अपने आपको ऐसी परिस्थितियों में पाते हैं जो जीवन को हर समय कठिन बनाते हैं।

बुद्धि

भजन संहिता 119:65-72तेथ्

65 हे यहोवा, तूने अपने दास पर भलाईयाँ की है।
 तूने ठीक वैसा ही किया जैसा तूने करने का वचन दिया था।
66 हे यहोवा, मुझे ज्ञान दे कि मैं विवेकपूर्ण निर्णय लूँ,
 तेरे आदेशों पर मुझको भरोसा है।
67 संकट में पड़ने से पहले, मैंने बहुत से बुरे काम किये थे।
 किन्तु अब, सावधानी के साथ मैं तेरे आदेशों पर चलता हूँ।
68 हे परमेश्वर, तू खरा है, और तू खरे काम करता है,
 तू अपनी विधान की शिक्षा मुझको दे।
69 कुछ लोग जो सोचते हैं कि वे मुझ से उत्तम हैं, मेरे विषय में बुरी बातें बनाते हैं।
 किन्तु यहोवा मैं अपने पूर्ण मन के साथ तेरे आदेशों को निरन्तर पालता हूँ।
70 वे लोग महा मूर्ख हैं।
 किन्तु मैं तेरी शिक्षाओं को पढ़ने में रस लेता हूँ।
71 मेरे लिये संकट अच्छ बन गया था।
 मैंने तेरी शिक्षाओं को सीख लिया।
72 हे यहोवा, तेरी शिक्षाएँ मेरे लिए भली है।
 तेरी शिक्षाएँ हजार चाँदी के टुकड़ों और सोने के टुकड़ों से उत्तम हैं।

समीक्षा

कठिन समयो को परमेश्वर के प्रशिक्षण विद्यालय के रूप में देखिये

कष्ट अपने आपमें अच्छी बात नहीं है, लेकिन परमेश्वर इसका इस्तेमाल भलाई में कर सकते हैं (रोमियो 8:28)। कभी कभी परमेश्वर हमें प्रशिक्षित करने के लिए हमारे कष्ट का इस्तेमाल करते हैं। जैसा कि माली डालियों को छाँटता है (यूहन्ना 15:2), माता-पिता अपने बच्चों को अनुशासित करते हैं (इब्रानियों 12:10) और धातु का काम करने वाला चाँदी और सोने को आग में शुद्ध करता है (1पतरस 1:6-7)।

भजनसंहिता के लेखक लिखते हैं, ‘ मुझे भला विवेक – शक्ति और ज्ञान दे...उससे पहले कि मैं दुःखित हुआ, मैं भटकता था; परन्तु अब मैं तेरे वचन को मानता हूँ। तू भला है, और भला करता भी है; मुझे अपनी विधियाँ सिखा’ (भजनसंहिता 119:66-68, एम.एस.जी)। यह तथ्य कि वह कठिन समय से गुजर रहे थे, इसके कारण उन्होंने परमेश्वर की भलाई पर संदेह नहीं किया। इसके बजाय, उन्होंने इसे परमेश्वर के प्रशिक्षण विद्यालय के रूप में देखा।

अनुचित आलोचना ग्रहण करना कठिन बात है। भजनसंहिता के लेखक लिखते हैं, ‘ अभिमानियों ने तो मेरे विरुध्द झूठ बात गढ़ी है, परन्तु मैं तेरे उपदेशों को पूरे मन से पकड़े रहूँगा’ (व.69, एम.एस.जी)। ‘जिनका मन मोटा हो गया है’ उनकी ओर से प्रहार आ सकता है। फिर भी, इनके बीच में, आप भी परमेश्वर के वचन में ‘आनंद’ पा सकते हैं (व.70)।

वह देख पाते हैं कि परमेश्वर ने वास्तव में उनकी परेशानियों, क्लेश और कष्ट का इस्तेमाल कियाः’ मुझे जो दुःख हुआ वह मेरे लिये भला ही हुआ है, जिससे मैं तेरी विधियों को सीख सकूँ। तेरी दी हुई व्यवस्था मेरे लिये हजारों रुपयों और मुहरों से भी उत्तम है’ (वव.71-72, एम.एस.जी)।

प्रार्थना

परमेश्वर, ‘मुझे भली विवेक – शक्ति और ज्ञान दे’ (व.66)। आपका धन्यवाद कि जैसे ही मैं अपने जीवन को देखता हूँ मैं अक्सर देख सकता हूँ कि कैसे आपने कठिन समय का इस्तेमाल किया है। आपका धन्यवाद कि आपके मुँह के वचन चाँदी और सोने के हजार टुकड़ो से अधिक मूल्यवान हैं।

नए करार

1 तीमुथियुस 5:1-6:25किसी बड़ी आयु के व्यक्ति के साथ कठोरता से मत बोलो, बल्कि उन्हें पिता के रूप में देखते हुए उनके प्रति विनम्र रहो। अपने से छोटों के साथ भाइयों जैसा बर्ताव करो। 2 बड़ी महिलाओं को माँ समझो तथा युवा स्त्रियों को अपनी बहन समझ कर पूर्ण पवित्रता के साथ बर्ताव करो।बिधवाओं की देखभाल करना

3 उन विधवाओं का विशेष ध्यान रखो जो वास्तव में विधवा हैं। 4 किन्तु यदि किसी विधवा के पुत्र-पुत्री अथवा नाती-पोते हैं तो उन्हें सबसे पहले अपने धर्म पर चलते हुए अपने परिवार की देखभाल करना सीखना चाहिए। उन्हें चाहिए कि वे अपने माता-पिताओं के पालन-पोषण का बदला चुकायें क्योंकि इससे परमेश्वर प्रसन्न होता है। 5 वह स्त्री जो वास्तव में विधवा है और जिसका ध्यान रखने वाला कोई नहीं है, तथा परमेश्वर ही जिसकी आशाओं का सहारा है वह दिन रात विनती तथा प्रार्थना में लगी रहती है। 6 किन्तु विषय भोग की दास विधवा जीते जी मरे हुए के समान है। 7 इसलिए विश्वासी लोगों को इन बातों का (उनकी सहायता का) आदेश दो ताकि कोई भी उनकी आलोचना न कर पाए। 8 किन्तु यदि कोई अपने रिश्तेदारों, विशेषकर अपने परिवार के सदस्यों की सहायता नहीं करता, तो वह विश्वास से फिर गया है तथा किसी अविश्वासी से भी अधिक बुरा है।

9 उन विधवाओं की विशेष सूची में जो आर्थिक सहायता ले रही हैं उसी विधवा का नाम लिखा जाए जो कम से कम साठ साल की हो चुकी हो तथा जो पतिव्रता रही हो 10 तथा जो बाल बच्चों को पालते हुए, अतिथि सत्कार करते हुए, पवित्र लोगों के पांव धोते हुए दुखियों की सहायता करते हुए, अच्छे कामों के प्रति समर्पित होकर सब तरह के उत्तम कार्यों के लिए जानी-मानी जाती हो।

11 किन्तु युवती-विधवाओं को इस सूची में सम्मिलित मत करो क्योंकि मसीह के प्रती उनके समर्पण पर जब उनकी विषय वासना पूर्ण इच्छाएँ हावी होती हैं तो वे फिर विवाह करना चाहती हैं। 12 वे अपराधिनी हैं क्योंकि उन्होंने अपनी मूलभूत प्रतिज्ञा को तोड़ा है। 13 इसके अतिरिक्त उन्हें आलस की आदत पड़ जाती है। वे एक घर से दूसरे घर घूमती फिरती हैं तथा वे न केवल आलसी हो जाती हैं, बल्कि वे बातूनी बन कर लोगों के कामों में टाँग अड़ाने लगाती हैं और ऐसी बातें बोलने लगती हैं जो उन्हें नहीं बोलनी चाहिए। 14 इसलिए मैं चाहता हूँ कि युवती-विधवाएँ विवाह कर लें और संतान का पालन-पोषण करते हुए अपने घर बार की देखभाल करें ताकि हमारे शत्रुओं को हम पर कटाक्ष करने का कोई अवसर न मिल पाए। 15 मैं यह इसलिए बता रहा हूँ कि कुछ विधवाएँ भटक कर शैतान के पीछे चलने लगी हैं।

16 यदि किसी विश्वासी महिला के घर में विधवाएँ हैं तो उसे उनकी सहायता स्वयं करनी चाहिए और कलीसिया पर कोई भार नहीं डालना चाहिए ताकि कलीसिया सच्ची विधवाओं को सहायता कर सके।

बुज़ुर्ग एवं अन्य बातों के बारे में

17 जो बुज़ुर्ग कलीसिया की उत्तम अगुआई करते हैं, वे दुगुने सम्मान के पात्र होने चाहिए। विशेष कर वे जिनका काम उपदेश देना और पढ़ाना है। 18 क्योंकि शास्त्र में कहा गया है, “बैल जब खलिहान में हो तो उसका मुँह मत बाँधो।” तथा, “मज़दूर को अपनी मज़दूरी पाने का अधिकार है।”

19 किसी बुज़ुर्ग पर लगाए गए किसी लांछन को तब तक स्वीकार मत करो जब तक दो या तीन गवाहियाँ न हों। 20 जो सदा पाप में लगे रहते हैं उन्हें सब के सामने डाँटो-फटकारो ताकि बाकी के लोग भी डरें।

21 परमेश्वर, यीशु मसीह और चुने हुए स्वर्गदूतों के सामने मैं सच्चाई के साथ आदेश देता हूँ कि तू बिना किसी पूर्वाग्रह के इन बातों का पालन कर। पक्षपात के साथ कोई काम मत कर।

22 बिना विचारे किसी को कलीसिया का मुखिया बनाने के लिए उस पर जल्दी में हाथ मत रख। किसी के पापों में भागीदार मत बन। अपने को सदा पवित्र रख।

23 केवल पानी ही मत पीता रह। बल्कि अपने हाज़में और बार-बार बीमार पड़ने से बचने के लिए थोड़ा सा दाखरस भी ले लिया कर।

24 कुछ लोगों के पाप स्पष्ट रूप से प्रकट हो जाते हैं और न्याय के लिए प्रस्तुत कर दिए जाते हैं किन्तु दूसरे लोगों के पाप बाद में प्रकट होते हैं। 25 इसी प्रकार भले कार्य भी स्पष्ट रूप से प्रकट हो जाते हैं किन्तु जो प्रकट नहीं होते वे भी छिपे नहीं रह सकते।

दासों के बारे में विशेष निर्देश

6लोग जो अंध विश्वासियों के जूए के नीचे दास बने हैं, उन्हें अपने स्वामियों को सम्मान के योग्य समझना चाहिए ताकि परमेश्वर के नाम और हमारे उपदेशों की निन्दा न हो। 2 और ऐसे दासों को भी जिनके स्वामी विश्वासी हैं, बस इसलिए कि वे उनके धर्म भाई हैं, उनके प्रति कम सम्मान नहीं दिखाना चाहिए, बल्कि उन्हें तो अपने स्वामियों की और अधिक सेवा करनी चाहिए क्योंकि जिन्हें इसका लाभ मिल रहा है, वे विश्वासी हैं, जिन्हें वे प्रेम करते हैं।

इन बातों को सिखाते रहो तथा इनका प्रचार करते रहो।

समीक्षा

उन लोगों का ध्यान रखो जो कठिन समय से गुजर रहे हैं

बाईबल बहुत ही प्रायोगिक पुस्तक है। पौलुस तीमुथी को तर्कसंगत और प्रायोगिक निर्देश देते हैं कि कैसे मंडली का ध्यान रखना है जो कठिन समय से गुजर रहे हैं।

1. बूढ़े और जवान का ध्यान रखो

पौलुस कहते हैं कि ‘किसी बूढ़े, को न डाँट, पर उसे पिता जानकर समझा दे, और जवानो को भाई जानकर; बूढ़ी स्त्रियों को माता जानकर; और जवान स्त्रियों को पूरी पवित्रता से बहन जानकर समझा दे’ (वव.1-2)। एक बार किसी ने ध्यान दिया कि बहुत से मनुष्यों को यह वचन उनके कम्प्युटर में स्क्रिन पर रखना चाहिएः’ जवान स्त्रियों को पूरी पवित्रता से बहन जानकर समझा दे’ (व.2)।

2. जरुरतमंद की देखभाल कर

उदाहरण के लिए, चर्च को विधवा की मदद करनी चाहिए, जिनकी मदद करने के लिए कोई परिवार नहीं हैः’ उन विधवाओं का, जो सचमुच विधवा हैं, आदर कर’ (व.3)। यदि किसी का परिवार है, तो उन्होंने उनकी मदद करनी चाहिए (व.4)।

3. अपने विस्तारित परिवार की देखभाल करें

पौलुस एक मुद्दा उठाते हैं जिसका आज भी महत्व है। ना केवल हमारा कर्तव्य है कि हमारी पत्नी और बच्चे की देखभाल करें, लेकिन हमें हमारे ‘परिवार के दूसरे सदस्य’, हमारे माता-पिता और दादा-दादी, नाना-नानी की भी देखभाल करनी चाहिए (वव.7-8)।

4. लीडर्स की देखभाल कीजिए

चर्च को लीडर्स की भी मदद करनी चाहिए ‘जो चर्च का अच्छा प्रबंध करते हैं’ (व.17)। ‘मजदूर अपनी मजदूरी का हक्कदार है।’ (व.18, एन.एल.टी.)। उत्तरदायित्व के उनके पद का अर्थ है कि हमें उनके विरूद्ध शिकायत को आसानी से नहीं लेना चाहिएः’ कोई दोष किसी प्राचीन पर लगाया जाए तो बिना दो या तीन गवाहों के उसको न सुन’ (व.19, एम.एस.जी)। लेकिन उसी समय, पाप के परिणाम उनके लिए बड़े हैं जो लीडरशिप के पद पर हैं (व.20)। पौलुस चेतावनी देते हैं, ‘अपने आपको जाँचो’ (व.21, एम.एस.जी)।

5. अपने आप पर ध्यान दो

तीमुथी को पेट की परेशानी थी और वे ‘बार-बार बीमार पड़ते थे (व.23)। पौलुस ने उनकी बीमारी के कारण उन्हें डाँटा नहीं। इसके बजाय, वह उन्हें कुछ प्रायोगिक सलाह देते हैं (जो शायद से हमारे आधुनिक कानों को विचित्र लगे):’ भविष्य में केवल जल ही का पीने वाला न रह, पर अपने पेट के और अपने बार – बार बीमार होने के कारण थोड़ा – थोड़ा दाखरस भी काम में लाया कर’ (व.23)।

6. काम पर ध्यान दे

यह पत्र उस समय लिखा गया जब मसीह दासत्व के विरूद्ध लड़ाई करने की स्थिति में नहीं थे। वह एक साम्राज्य में छोटी जनसंख्या थे, जहाँ पर बड़ी जनसंख्या दास थे। पौलुस दासत्व पर सहमति नहीं जता रहे है। इसके बजाय, वह प्रायोगिक सलाह दे रहे हैं कि जब हम अपने आपको अच्छी परिस्थितियों में नहीं पाते हैं, तब कैसे जीना है। ‘ जितने दासता के जुए के नीचे हैं, वे अपने अपने स्वामी को बड़े आदर के योग्य जानें, ताकि परमेश्वर के नाम और उपदेश की निन्दा न हो’ (6:1)।

प्रार्थना

परमेश्वर, हमारी सहायता कीजिए कि एक चर्च के रूप में उन लोगों की देखभाल करें जो कठिन समय से गुजर रहे हैं। होने दीजिए कि हम ऐसा समुदाय बने जो जरुरतमंदों, बीमार, और कुचले हुओं की देखभाल करता है -यीशु के कदमों पर चलते हुए।

जूना करार

यिर्मयाह 43:1-45:543इस प्रकार यिर्मयाह ने लोगों को यहोवा उसके परमेश्वर का सन्देश देना पूरा किया। यिर्मयाह ने लोगों को वह सब कुछ बता दिया जिसे लोगों से कहने के लिये यहोवा ने उसे भेजा था।2 होशाया का पुत्र अजर्याह, कारेह का पुत्र योहानान और कुछ अन्य लोग घमण्डी और हठी थी। वे लोग यिर्मयाह पर क्रोधित हो गए। उन लोगों ने यिर्मयाह से कहा, “यिर्मयाह, तुम झूठ बोलते हो! हमारे परमेश्वर यहोवा ने तुम से हमें यह कहने को नहीं भेजा, ‘तुम लोगों को मिस्र में रहने के लिये नहीं जाना चाहिये।’ 3 यिर्मयाह, हम समझते हैं कि नेरिय्याह का पुत्र बारुक तुम्हें हम लोगों के विरुद्ध होने के लिये उकसा रहा है। वह चाहता है कि तुम हमें कसदी लोगों के हाथ में दे दो। वह यह इसलिये चाहता है जिससे वे हमें मार डालें या वह तुमसे यह इसलिये चाहता है कि वे हमें बन्दी बना लें और बाबुल ले जाये।”4 इसलिये योहानान सैनिक अधिकारी और सभी लोगों ने यहोवा की आज्ञा का उल्लंघन किया। यहोवा ने उन्हें यहूदा में रहने का आदेश दिया था। 5 किन्तु यहोवा की आज्ञा मानने के स्थान पर योहानान और सैनिक अधिकारी उन बचे लोगों को यहूदा से मिस्र ले गए। बीते समय में, शत्रु उन बचे हुओं को अन्य देशों को ले गया था। किन्तु वे यहूदा वापस आ गए थे। 6 अब योहानान और सभी सैनिक अधिकारी, सभी पुरुषों, स्त्रियों और बच्चों को मिस्र ले गए। उन लोगों में राजा की पुत्रियाँ थीं। (नबूजरदान ने गदल्याह को उन लोगों का प्रशासक नियुक्त किया था। नबूजरदान बाबुल के राजा के विशेष रक्षकों का अधिनायक था।) योहानान यिर्मयाह नबी और नेरिय्याह के पुत्र बारूक को भी साथ ले गया। 7 उन लोगों ने यहोवा की एक न सुनी। अत: वे सभी लोग मिस्र गए। वे तहपन्हेस नगर को गए।8 तहपन्हेस नगर में यिर्मयाह ने यहोवा से यह सन्देश पाया, 9 “यिर्मयाह, कुछ बड़े पत्थर लो। उन्हें लो और उन्हें तहपन्हेस में फिरौन के राजमहल के प्रवेश द्वार के ईंटें के चबूतरे के पास मिट्टी में गाड़ो। यह तब करो जब यहूदा के लोग तुम्हें ऐसा करते देख रहे हो। 10 तब यहूदा के उन लोगों से कहो जो तुम्हें देख रहे हो, ‘इस्राएल का परमेश्वर सर्वशक्तिमान यहोवा जो कहता है, वह यह है: मैं बाबुल के राजा नबूकदनेस्सर को यहाँ आने के लिये बुलावा भेजूँगा। वह मेरा सेवक है और मैं उसके राज सिंहासन को इन पत्थरों पर रखूँगा जिन्हें मैंने यहाँ गाड़ा है। नबूकदनेस्सर अपनी चंदोवा इन पत्थरों के ऊपर फैलाएगा। 11 नबूकदनेस्सर यहाँ आएगा और मिस्र पर आक्रमण करेगा। वह उन्हें मृत्यु के घाट उतारेगा जो मरने वाले हैं। जो बन्दी बनाये जाने के योग्य है वह उन्हें बन्दी बनायेगा और वह उन्हें तलवार के घाट उतारेगा जिन्हें तलवार से मारना है। 12 नबूकदनेस्सर मिस्र के असत्य देवताओं के मन्दिरों में आग लगा देगा। वह उन मन्दिरों को जला देगा और उन देवमूर्तियों को अलग करेगा। गडेरिया अपने कपड़ों को स्वच्छ रखने के लिये उसमें से जूँ और अन्य खटमलों को दूर फेंकता है। ठीक इसी प्रकार नबूकदनेस्सर मिस्र को स्वच्छ करने के लिये कुछ को दूर करेगा। तब वह सुरक्षापूर्वक मिस्र को छोड़ेगा। 13 नबूकदनेस्सर उन स्मृतिपाषाणों को नष्ट करेगा जो मिस्र में सूर्य देवता के मन्दिर में है और वह मिस्र के असत्य देवों के मन्दिरों को जला देगा।’”यहूदा और मिस्र के लोगों को यहोवा का सन्देश

44यिर्मयाह को यहोवा से एक सन्देश मिला। यह सन्देश मिस्र में रहने वाले यहूदा के सभी लोगों के लिये था। यह सन्देश यहूदा के उन लोगों के लिए था जो मिग्दोल, तहपन्हेस, नोप और दक्षिणी मिस्र में रहते थे। सन्देश यह था: 2 “इस्राएल का परमेश्वर सर्वशक्तिमान यहोवा कहता है, ‘तुम लोगों ने उन भयंकर घटनाओं को देखा जिन्हें मैं यरूशलेम नगर और यहूदा के अन्य सभी नगर के विरुद्ध लाया। वे नगर आज पत्थरों के खाली ढेर हैं। 3 वे स्थान नष्ट किए गए क्योंकि उनमें रहने वाले लोगों ने बुरे काम किये। उन लोगों ने अन्य देवताओं को बलिभेंट की, और इसने मुझे क्रोधित किया। तुम्हारे लोग और तुम्हारे पूर्वज अतीतकाल में उन देवताओं को नहीं पूजते थे। 4 मैंने अपने नबी उन लोगों के पास बार बार भेजे। वे नबी मेरे सेवक थे। उन नबियों ने मेरे सन्देश दिये और लोगों से कहा, “यह भयंकर काम न करो जिससे मैं घृणा करता हूँ। क्योंकि तुम देवमूर्तियों की पूजा करते हो?” 5 किन्तु उन लोगों ने नबियों की एक न सुनी। उन्होंने उन नबियों पर ध्यान न दिया। उन लोगों ने दुष्टता भरे काम करने नहीं छोड़े। उन्होंने अन्य देवताओं को बलि भेंट करना बन्द नहीं किया। 6 इसलिये मैंने अपना क्रोध उन लोगों के विरुद्ध प्रकट किया। मैंने यहूदा के नगरों और यरूशलेम की सड़कों को दण्ड दिया। मेरे क्रोध ने यरूशलेम और यहूदा के नगरों को सूने पत्थरों का ढेर बनाया, जैसे वे आज है।’

7 “अत: इस्राएल का परमेश्वर सर्वशक्तिमान यहोवा यह कहता है, ‘देवमूर्ति की पूजा करते रह कर तुम अपने को क्यों चोट पहुँचाते हो, तुम पुरुष, स्त्रियों, बच्चों और शिशुओं को यहूदा के परिवार से अलग कर रहे हो। तुममें से कोई भी नहीं जीवित रहेगा। 8 लोगों देवमूर्तियाँ बनाकर तुम मुझे क्रोधित करना क्यों चाहते हो अब तुम मिस्र में रह रहे हो और अब मिस्र के असत्य देवताओं को भेंट चढ़ाकर तुम मुझे क्रोधित कर रहे हो। लोगों तुम अपने को नष्ट कर डालोगे। यह तुम्हारे अपने दोष के कारण होगा। तुम अपने को कुछ ऐसा बना लोगे कि अन्य राष्ट्रों के लोग, तुम्हारी बुराई करेंगे और पृथ्वी के अन्य राष्ट्रों के लोग तुम्हारा मजाक उड़ायेंगे। 9 क्या तुम उन दुष्टता भरे कामों को भूल चुके हो जिन्हें तुम्हारे पूर्वजों ने किया क्या तुम उन दुष्टतापूर्ण कामों को भूल चुके हो जिन्हें यहूदा के राजा और रानियों ने किया। क्या तुम उन दुष्टतापूर्ण कामों को भूल चुके हो जिन्हें तुमने और तुम्हारी पत्नियों ने यहूदा की धरती पर और यरूशलेम की सड़कों पर किया 10 आज भी यहूदा के लोगों ने अपने को विनम्र नहीं बनाया। उन्होंने मुझे कोई सम्मान नहीं दिया और उन लोगों ने मेरी शिक्षाओं का अनुसरण नहीं किया। उन्होंने उन नियमों का पालन नहीं किया जिन्हें मैंने तुम्हें और तुम्हारे पूर्वजों को दिया।’

11 “अत: इस्राएल का परमेश्वर सर्वशक्तिमान यहोवा जो कहता है, वह यह है: ‘मैंने तुम पर भयंकर विपत्ति ढाने का निश्चय किया है। मैं यहूदा के पूरे परिवार को नष्ट कर दूँगा। 12 यहूदा के थोड़े से लोग ही बचे थे। वे लोग यहाँ मिस्र में आए हैं। किन्तु मैं यहूदा के परिवार के उन कुछ बचे लोगों को नष्ट कर दूँगा। वे तलवार के घाट उतरेंगे या भूख से मरेंगे। वे कुछ ऐसे होंगे कि अन्य राष्ट्रों के लोग उनके बारे में बुरा कहेंगे। अन्य राष्ट्र उससे भयभीत होंगे जो उन लोगों के साथ घटित होगा। वे लोग अभिशाप वाणी बन जायेंगे। अन्य राष्ट्र यहूदा के उन लोगों का अपमान करेंगे। 13 मैं उन लोगों को दण्ड दूँगा जो मिस्र में रहने चले गए हैं। मैं उन्हें दण्ड देने के लिये तलवार, भूख और भयंकर बीमारी का उपयोग करूँगा। मैं उन लोगों को वैसे ही दण्ड दूँगा जैसे मैंने यरूशलेम नगर को दण्ड दिया। 14 इन थोड़े बचे हुओं में से, जो मिस्र में रहने चले गए हैं, कोई भी मेरे दण्ड से नहीं बचेगा। उनमें से कोई भी यहूदा वापस आने के लिये नहीं बच पायेगा। वे लोग यहूदा वापस लौटना और वहाँ रहना चाहते हैं किन्तु उनमें से एक भी व्यक्ति संभवत: कुछ बच निकलने वालों के अतिरिक्त वापस नहीं लौटेगा।’

15 मिस्र में रहने वाली यहूदा की स्त्रियों में से अनेक अन्य देवताओं को बलि भेंट कर रही थी। उनके पति इसे जानते थे, किन्तु उन्हें रोकते नहीं थे। वहाँ यहूदा के लोगों का एक विशाल समूह एक साथ इकट्ठा होता था। वे यहूदा के लोग थे जो दक्षिणी मिस्र में रह रहे थे। उन सभी व्यक्तियों ने यिर्मयाह से कहा, 16 “हम यहोवा का सन्देश नहीं सुनेंगे जो तुम दोगे। 17 हमने स्वर्ग की रानी को बलि भेंट करने की प्रतिज्ञा की है और हम वह सब करेंगे जिसकी हमने प्रतिज्ञा की है। हम उसकी पूजा में बलि चढ़ायेंगे और पेय भेंट देंगे। यह हमने अतीत में किया और हमारे पूर्वजों, राजाओं और हमारे पदाधिकारियों ने अतीत में यह किया। हम सब ने यहूदा के नगरों और यरूशलेम की सड़कों पर यह किया। जिन दिनों हम स्वर्ग की रानी की पूजा करते थे हमारे पास बहुत अन्न होता था। हम सफल होते थे। हम लोगों का कुछ भी बुरा नहीं हुआ। 18 किन्तु तभी हम लोगों ने स्वर्ग की रानी की पूजा छोड़ दी और हमने उसे पेय भेंट देनी बन्द कर दी। जबसे हमने उसकी पूजा में वे काम बन्द किये तब से ही समस्यायें उत्पन्न हुई हैं। हमारे लोग तलवार और भूख से मरे हैं।”

19 तब स्त्रियाँ बोल पड़ीं। उन्होंने यिर्मयाह से कहा, “हमारे पति जानते थे कि हम क्या कर रहे थे। हमने स्वर्ग की रानी को बलि देने के लिये उनसे स्वीकृति ली थी। मदिरा भेंट चढ़ाने के लिये हमें उनकी स्वीकृति प्राप्त थी। हमारे पति यह भी जानते थे कि हम ऐसी विशेष रोटी बनाते थे जो उनकी तरह दिखाई पड़ती थी।”

20 तब यिर्मयाह ने उन सभी स्त्रियों और पुरुषों से बातें कीं। उसने उन लोगों से बातें कीं जिन्होंने वे बातें अभी कही थीं। 21 यिर्मयाह ने उन लोगों से कहा, “यहोवा को याद था कि तुमने यहूदा के नगर और यरूशलेम की सड़कों पर बलि भेंट की थी। तुमने और तुम्हारे पूर्वजों, तुम्हारे राजाओं, तुम्हारे अधिकारियों और देश के लोगों ने उसे किया। यहोवा को याद था और उसने तुम्हारे किये गये कर्मों के बारे में सोचा। 22 अत: यहोवा तुम्हारे प्रति और अधिक चुप नहीं रह सका। यहोवा ने उन भयंकर कामों से घृणा की जो तुमने किये। इसीलिये यहोवा ने तुम्हारे देश को सूनी मरुभूमि बना दिया। अब वहाँ कोई व्यक्ति नहीं रहता। अन्य लोग उस देश के बारे में बुरी बातें कहते हैं। 23 वे सभी बुरी घटनायें तुम्हारे साथ घटी क्योंकि तुमने अन्य देवताओं को बलि भेंट की। तुमने यहोवा के विरुद्ध पाप किये। तुमने यहोवा की आज्ञा का पालन नहीं किया। तुमने उसके उपदेशों या उसके दिये नियमों का अनुसरण नहीं किया। तुमने उसके साथ की गयी वाचा का पालन नहीं किया।”

24 तब यिर्मयाह ने उन सभी पुरुष और स्त्रियों से बात की। यिर्मयाह ने कहा, “मिस्र में रहने वाले यहूदा के तुम सभी लोगों यहोवा के यहाँ से सन्देश सुनो: 25 इस्राएल के लोगों का परमेश्वर सर्वशक्तिमान यहोवा कहता है: ‘स्त्रियों, तुमने वह किया जो तुमने करने को कहा। तुमने कहा, “हमने जो प्रतिज्ञा की है उसका पालन हम करेंगे। हम ने प्रतिज्ञा की है कि हम स्वर्ग की देवी को बलि भेंट करेंगे और पेय भेंट डालेंगे।” अत: ऐसा करती रहो। वह करो जो तुमने करने की प्रतिज्ञा की है। अपनी प्रतिज्ञा को पूरा करो।’ 26 किन्तु मिस्र में रहने वाले सभी लोगों यहोवा के सन्देश को सुनो: मैंने अपने बड़े नाम का उपयोग करते हुए यह प्रतिज्ञा की है: ‘मैं प्रतिज्ञा करता हूँ कि अब मिस्र में रहने वाला यहूदा का कोई भी व्यक्ति प्रतिज्ञा करने के लिये मेरे नाम का उपयोग कभी नहीं कर पायेगा। वे फिर कभी नहीं कहेंगे, “जैसा कि यहोवा शाश्वत है।” 27 मैं यहूदा के उन लोगों पर नजर रख रहा हूँ। किन्तु मैं उन पर नजर उनकी देखरेख के लिये नहीं रख रहा हूँ। मैं उन पर चोट पहुँचाने के लिये नजर रख रहा हूँ। मिस्र में रहने वाले यहूदा के लोग भूख से मरेंगे और तलवार से मारे जायेंगे। वे तब तक मरते चले जायेंगे जब तक वे समाप्त नहीं होंगे। 28 यहूदा के कुछ लोग तलवार से मरने से बच निकलेंगे। वे मिस्र से यहूदा वापस लौटेंगे। किन्तु बहुत थोड़े से यहूदा के लोग बच निकलेंगे। तब यहूदा के बचे हुए वे लोग जो मिस्र में आकर रहेंगे यह समझेंगे कि किसका सन्देश सत्य घटित होता है। वे जानेंगे कि मेरा सन्देश अथवा उनका सन्देश सच निकलता है। 29 लोगों मैं तुम्हें इसका प्रमाण दूँगा’ यह यहोवा के यहाँ से सन्देश है कि मैं तुम्हें मिस्र में दण्ड दूँगा। तब तुम निश्चय ही समझ जाओगे कि तुम्हें चोट पहुँचाने की मेरी प्रतिज्ञा, सच ही घटित होगी। 30 जो मैं कहता हूँ वह करूँगा यह तुम्हारे लिए प्रमाण होगा। जो यहोवा कहता है, यह वह है ‘होप्रा फ़िरौन मिस्र का राजा है। उसके शत्रु उसे मार डालना चाहते हैं। मैं होप्रा फिरौन को उसके शत्रुओं को दूँगा। सिदकिय्याह यहूदा का राजा था। नबूकदनेस्सर सिदकिय्याह का शत्रु था और मैंने सिदकिय्याह को उसके शत्रु को दिया। उसी प्रकार मैं होप्रा फिरौन को उसके शत्रु को दूँगा।’”

बारुक को सन्देश

45यहोयाकीम योशिय्याह का पुत्र था। यहोयाकीम के यहूदा में राज्यकाल के चौथे वर्ष यिर्मयाह नबी ने नेरिय्याह के पुत्र बारुक से यह कहा। बारुक ने इन तथ्यों को पत्रक पर लिखा। यिर्मयाह ने बारुक से जो कहा, वह यह है: 2 “इस्राएल का परमेश्वर यहोवा जो तुमसे कहता है, वह यह है: 3 ‘बारुक, तुमने कहा है: यह मेरे लिये बहुत बुरा है। यहोवा ने मेरी पीड़ा के साथ मुझे शोक दिया है। मैं बहुत थक गया हूँ। अपने कष्टों के कारण मैं क्षीण हो गया हूँ। मैं आराम नहीं पा सकता।” 4 यिर्मयाह, बारुक से यह कहो: “यहोवा जो कहता है, वह यह है: मैं उसे ध्वस्त कर दूँगा जिसे मैंने बनाया है। मैंने जिसे रोपा है उसे मैं उखाड़ फेंकूँगा। मैं यहूदा में सर्वत्र यही करूँगा। 5 बारुक, तुम अपने लिये कुछ बड़ी बात होने की आशा कर रहे हो। किन्तु उन चीज़ों की आशा न करो। उनकी ओर नजर न रखो क्योंकि मैं सभी लोगों के लिये कुछ भयंकर विपत्ति उत्पन्न करुँगा।’ ये बातें यहोवा ने कही, ‘तुम्हें अनेकों स्थानों पर जाना पड़ेगा। किन्तु तुम चाहे जहाँ जाओ, मैं तुम्हें जीवित बचकर निकल जाने दूँगा।’”

समीक्षा

कठिन समय में परमेश्वर के प्रति वफादार बने रहे

मदर टेरिसा ने कहा, ‘मैं सफलता के लिए प्रार्थना नहीं करती। मैं वफादारी को माँगती हूँ।’

अपनी सेवकाई में इस समय, यिर्मयाह शायद से साठ वर्ष के आस-पास थे। वह सैंतालीस वर्ष से एक भविष्यवक्ता थे। इस समय के दौरान, उन्होंने यरुशलेम को बरबाद होते हुए देखा था। उन्होंने वफादारी से परमेश्वर का वचन सुनाया था, लेकिन नियमित रूप से उनके संदेश को उनके द्वारा नजरअंदाज किया गया और नकारा गया, जिनके पास वह भेजे गए थे। उनके विरोध और अनाज्ञाकारिता के कारण उन्होंने बहुत कष्ट भी उठाये थे। यिर्मयाह के लिए यह सब अवश्य ही बहुत निराश और हताश करने वाली बात होगी।

यह सब होने के बाद, और यद्यपि उनकी पहले की भविष्यवाणीयाँ पूरी हुई, लोगों तक ने भी सुनना मना कर दिया। यिर्मयाह उनसे कह रहे थे ‘वह सब जो परमेश्वर ने उन्हें बताने के लिए भेजा था’ (43:1)। वह सत्य को बता रहे थे। लेकिन इस बात से वह बहुत ही निराश हुए होंगे कि उनसे कहा गया, ‘तू झूठ बोलता है’ (व.2)।

यिर्मयाह की चेतावनी के बावजूद, उन्होंने ‘परमेश्वर की आज्ञा नहीं मानी’ (व.4)। ‘परमेश्वर की आज्ञा न मानकर वे मिस्र में चले गए’ (व.7)। यद्यपि परमेश्वर ने ‘बार-बार’ उन्हें चेतावनी दी (44:4), ‘उन्होंने बात नहीं मानी या ध्यान नहीं दिया’ (व.5)। उन्होंने यिर्मयाह से कहा, ‘ जो वचन तू ने हम को यहोवा के नाम से सुनाया है, उसको हम नहीं सुनने के’ (व.16)। यिर्मयाह के संदेश का विरोध इसे सुनने वालो ने किया।

यिर्मयाह की सेवकाई अवश्य ही एक असफलता दिखाई देती होगी; एक बार फिर निराशा और निरूत्साह से भरी हुई। तब भी, वह काम के प्रति सच्चे बने रहे जो परमेश्वर ने उन्हें दिया था और वफादारी से लोगों को परमेश्वर का वचन सुनाया।

अध्याय 45 में हम दूसरे व्यक्ति की निराशा और निरुत्साह को देखते हैं –यिर्मयाह का साथी बारुक। बारुक को, उच्चकुल का होने के बावजूद, यिर्मयाह के लिए काम करना पड़ता था। उनका काम था यिर्मयाह की भविष्यवाणीयों को लिखना। वह अपने प्रयास के फलदायीपन के कारण उदास हो गए। उन्होंने कहा, ‘ हाय मुझ पर! क्योंकि यहोवा ने मुझे दुःख पर दुःख दिया है; मैं कराहते कराहते थक गया और मुझे कुछ चैन नहीं मिलता’ (45:3)।

लेकिन परमेश्वर कहते हैं, ‘ इसलिये सुन, क्या तू अपने लिये बढ़ाई खोज रहा है? उसे मत खोज’ (व.5)।

हमेशा एक प्रलोभन आता है कि स्वार्थी बने और अपने आपके लिए महान चीजों को खोजे -चाहे पैसे, सफलता, पद, प्रसिद्धी, यश या सम्मान के द्वारा – लेकिन हमें अवश्य ही अपने लिए इन चीजों की खोज नहीं करनी चाहिए। अंत में, इस बात से अंतर नही पड़ता है कि हमारे जीवन असफल दिखाई देते हैं और निराशा में समाप्त होते हैं। परमेश्वर के प्रति वफादारी महत्वपूर्ण है। परमेश्वर हर एक को उनकी वफादारी के अनुसार पुरस्कार देंगे, नाकि उनकी दिखने वाली सफलता के कारण (मत्ती 25:14-30 देखें)।

जब आप परमेश्वर के प्रति वफादार होते हैं, तब आप उन्हें अपने जीवन के द्वारा काम करने देते हैं और उनकी योजनाओं को पूरा करने देते हैं। यिर्मयाह और बारुक ने अवश्य ही असफल व्यक्ति की तरह महसूस किया होगा, और फिर भी इतिहास में केवल थोड़े ही लोगों ने उनसे अधिक महान प्रभाव बनाया है। जो भविष्यवाणीयाँ उन्होंने लिखी, वे विश्व के लिए परमेश्वर के प्रकटीकरण का एक मुख्य भाग हैं, और इसमें पुराने नियम में यीशु के विषय में सबसे महत्वपूर्ण भविष्यवाणीयाँ हैं – और कितने लेखक उनकी मृत्यु के बाद 2500 वर्ष से अधिक समय से अरबों लोगों तक पहुँच सकते हैं।

प्रार्थना

परमेश्वर, मेरी सहायता कीजिए कि आपके प्रति वफादार रहूँ कठिन समयों के बावजूद क्लेश, निंदा और कठिनाई। होने दीजिए कि मैं कभी भी अपने लिए महान चीजों की खोज न करुँ बल्कि आपके नाम को महिमा देने की खोज करुँ।

पिप्पा भी कहते है

1तीमुथियुस 5:1-2

‘ किसी बूढ़े, को न डाँट, पर उसे पिता जानकर समझा दे, बूढ़ी स्त्रियों को माता जानकर;’

मैं चाहती हूँ कि हमारे समाज में बूढो का बहुत सम्मान हो। जीवन अवश्य ही जटिल लगता है जब तकनीकी बदलती है और जब हलचल धीमी और दर्दभरी हो जाती है, यहाँ तक की जीवन में सरल चीजों को करना एक संघर्ष है। मसीह समुदाय बहुत ही महत्वपूर्ण है, और हमें और ज्यादा करने की जरुरत है।

दिन का वचन

1तीमुथियुस 5:22

“किसी पर शीघ्र हाथ न रखना और दूसरों के पापों में भागी न होना: अपने आप को पवित्र बनाए रख।”

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संदर्भ

जहाँ पर कुछ बताया न गया हो, उन वचनों को पवित्र बाइबल, न्यू इंटरनैशनल संस्करण एन्ग्लिसाइड से लिया गया है, कॉपीराइट © 1979, 1984, 2011 बिबलिका, पहले इंटरनैशनल बाइबल सोसाइटी, हूडर और स्टोगन पब्लिशर की अनुमति से प्रयोग किया गया, एक हॅचेट यूके कंपनी सभी अधिकार सुरक्षित। ‘एनआईवी’, बिबलिका यू के का पंजीकृत ट्रेडमार्क संख्या 1448790 है।

जिन वचनों को (एएमपी, AMP) से चिन्हित किया गया है उन्हें एम्प्लीफाइड® बाइबल से लिया गया है. कॉपीराइट © 1954, 1958, 1962, 1964, 1965, 1987 लॉकमैन फाउंडेशन द्वारा प्राप्त अनुमति से उपयोग किया गया है। (www.Lockman.org)

जिन वचनों को (एमएसजी MSG) से चिन्हित किया गया है उन्हें मैसेज से लिया गया है। कॉपीराइट © 1993, 1994, 1995, 1996, 2000, 2001, 2002. जिनका प्रयोग एनएवीप्रेस पब्लिशिंग ग्रुप की अनुमति से किया गया है।

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आपके अनुसार जीवन में सबसे मुश्किल समय कब होता है ? जब एक निसहाय औरत पर हाथ उठाया जाता है । जी आप कहेंगे वही गढ़े मुर्दे उखाड़ने की बात है यह तो। वही पुराना रंगमंच , ससुराल ।