जेब टटोली कौड़ी न पाई पंक्ति में कौड़ी न पाई से कवयित्री का क्या आशय है? - jeb tatolee kaudee na paee pankti mein kaudee na paee se kavayitree ka kya aashay hai?

‘जेब टटोली कौड़ी न पाई’ के माध्यम से कवयित्री ने क्या कहना चाहा है? इससे मनुष्य को क्या शिक्षा मिलती है?

‘जेब टटोली कौड़ी न पाई’ के माध्यम से कवयित्री यह कहना चाहती है कि हठयोग, आडंबर, भक्ति का दिखावा आदि के माध्यम से प्रभु को प्राप्त करने का प्रयास असफल ही होता है। इस तरह का प्रयास भले ही आजीवन किया जाए पर उसके हाथ भक्ति के नाम कुछ नहीं लगता है। भवसागर को पार करने के लिए मनुष्य जब अपनी जेब टटोलता है तो वह खाली मिलती है। इससे मनुष्य को यह शिक्षा मिलती है कि भक्ति का दिखावा एवं आडंबर नहीं करना चाहिए।

वाख पाठ के आधार पर जेब टटोली कौड़ी न पाई में जेब टटोलने का क्या भाव है?

इसका अर्थ यह है कि कवयित्री इस सांसारिक माया जाल से मुक्ति चाहती है अर्थात् परमात्मा से मिलन और मोक्ष की प्राप्ति चाहती है। 4 भाव स्पष्ट कीजिए (क) जेब टटोली कौड़ी न पाई । (ख) खा-खाकर कुछ पाएगा नहीं, खाकर बनेगा अहंकारी । बंद द्वार की साँकल खोलने के लिए ललद्यद ने क्या उपाय सुझाया है?

जेब टटोली कौड़ी न पाई इस पंक्ति से क्या आशय है?

(ख) भाव यह है कि भूखे रहकर तू ईश्वर साधना नहीं कर सकता अर्थात् व्रत पूजा करके भगवान नहीं पाया जा सकता अपितु हम अहंकार के वश में वशीभूत होकर राह भटक जाते हैं। (कि हमने इतने व्रत रखे आदि)। Q.

जेब टटोलने पर कवयित्री को क्या हाथ लगी वाख के आधार पर लिखिए?

उत्तर : ( क ) 'जेब टटोली कौड़ी न पाई' पंक्ति का भाव यह है कि कवयित्री ने जीवन भर हठयोग साधना की है, किंतु उसमें वे सफलता नहीं पा सकीं। अतः वे मानती हैं कि जीवन भर परिश्रम करने पर भी उनकी जेब खाली की खाली ही रही । 'रस्सी' यहाँ किसके लिए प्रयुक्त हुई है और वह कैसी प्रश्न 4.

कवयित्री के अनुसार मध्यम मार्ग क्या है?

उत्तर:- प्रस्तुत पंक्तियों में कवयित्री मनुष्य को ईश्वर प्राप्ति के लिए मध्यम मार्ग अपनाने को कह रही है। कवयित्री कहती है कि मनुष्य को भोग विलास में पड़कर कुछ भी प्राप्त होने वाला नहीं है। मनुष्य जब सांसारिक भोगों को पूरी तरह से त्याग देता है तब उसके मन में अंहकार की भावना पैदा हो जाती है।