लंदन: आज हम आपको महारानी एलिजाबेथ की परदादी, क्वीन विक्टोरिया का वह किस्सा बताने जा रहे हैं, जो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है। क्वीन विक्टोरिया का यह किस्सा उनकी लव लाइफ से जुड़ा है और इस कहानी में उनका हीरो एक भारतीय अब्दुल करीम था। यह एलिजाबेथ के परिवार का एक और सबसे विवादित किस्सा था। साल 1901 में महारानी की मृत्यु के बाद अब्दुल को शाही इतिहास से ही हटा दिया गया था। टेलीग्राफ की एक रिपोर्ट के मुताबिक विक्टोरिया के बेटे एडवर्ड ने साफ कर दिया था कि अगर दोनों के बीच भेजी गई चिट्ठियां अगर शाही घर में मिलीं तो उसे जला दिया जाएगा। जानिए कौन था यह अब्दुल और क्या था वह किस्सा। कौन था अब्दुल करीम अब्दुल करीम एक खानसामा था और विक्टोरिया के साथ उसके रिश्तों के बारे में पता लगने पर उस घर से भी उन्हें निकाल दिया गया था जो महारानी ने दिया था। इसके साथ ही उन्हें वापस भारत भेज दिया गया। विक्टोरिया की बेटी बेट्रिस ने महारानी के हर जर्नल से करीम का नाम मिटा दिया था। विक्टोरिया और अब्दुल के बीच रिश्ते एक दशक से भी ज्यादा रहे थे। क्वीन विक्टोरिया, अब्दुल को अपना सबसे करीबी मानती थीं। अब्दुल करीम का हर जिक्र मिटा दिया गया था लेकिन विक्टोरिया के समर होम में एक जर्नलिस्ट को अब्दुल के बारे में एक कड़ी मिली। इसके बाद जब जांच की गई तो विक्टोरिया और अब्दुल के रिश्ते सामने आए। इतिहासकारों का कहना है कि करीम अकेला नौकर था जो विक्टोरिया के करीब रह सकता था। ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ की ड्राइविंग से डर गए थे सऊदी किंग, कहा था- जरा धीरे चलाइए, जानें पूरी कहानी जॉन ब्राउन के बाद अब्दुल करीम क्वीन विक्टोरिया के एक करीबी सेवक जॉन ब्राउन की मौत के बाद अब्दुल करीम उनका सबसे बड़ा भरोसेमंद साथी बन गया था। महारानी की वजह से अब्दुल के पिता को पेंशन मिल सकती थी। महारानी ने अब्दुल करीम के कई चित्र लगा रखे थे और इन्हीं फोटोग्राफ्स की वजह से उनकी छिपी हुई रिलेशनशिप सामने आ गई थी। इतिहासकार शर्बानी बासु ने साल 2003 क्वीन विक्टोरिया के स्कॉटलैंड स्थित घर बाल्मोरल कैसल का दौरा किया था। शर्बानी ने एक किताब लिखी जिसका टाइटल था, 'विक्टोरिया एंड अब्दुल: द ट्रू स्टोरी ऑफ द क्वीन' में इस रिलेशनशिप के बारे में विस्तार से लिखा है। इस किताब में लिखा है कि महारानी को सन् 1887 भारतीय सीमाओं पर कब्जे के 50 सालों का जश्न मनाना था। वह काफी उत्साहित भी थीं और उन्होंने भारतीय स्टाफ मेंबर्स से एक अनुरोध किया। उन्होंने कहा था कि वो देशों के मुखियाओं के लिए खाना पकाए। इंग्लैंड में करीम के साथ बर्ताव अब्दुल करीम, भारत के उत्तरी शहर आगरा के रहने वाले थे। दो नौकरों में से अब्दुल करीम को सेलेक्ट किया गया था। महारानी को उनके शासन के 50 साल पूरे होने पर ये नौकर भारत की तरफ से तोहफे के तौर पर दिए गए थे। जॉन ब्राउन की मौत के चार साल बाद करीम इंग्लैंड गए और उनकी सेवा में लग गए। विक्टोरिया ने करीम को एक 'हैनडसम' पुरुष बताया था। इतिहासकार कैरॉली एरिकसन ने अपनी किताब 'हर लिटिल मैजेस्टी' में लिखा था, 'भारत से आए एक अश्वेत भारतीय नौकर को महारानी के करीब देखना श्वेत नौकरों के लिए असहनीय था। उनके साथ एक ही टेबल पर बैठकर खाना खाना और रोजाना उनके साथ उठना बैठना, बाकी लोगों को नाराज करने वाला था।' ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ के इस महल में आज भी घूमता है एक 'भूत', जानिए क्या है इसकी कहानी विक्टोरिया को पसंद था दाल चिकन महारानी विक्टोरिया को करीम के हाथ बना चिकन, सब्जी और दाल काफी पसंद आता था। अब्दुल करीम बाल्मोरल कैसल में अक्सर यह खाना महारानी के लिए पकाते थे। करीम ने क्वीन विक्टोरिया को उर्दू भी सिखाई थी और यहां से भारतीय संस्कृति के प्रति उनका लगाव बढ़ता गया। जल्द ही करीम कुक से मुंशी और भारतीय क्लर्क तक पहुंच गए थे और उनकी सैलरी 12 पौंड प्रतिमाह हो गइ थी। इसके बाद वह विक्टोरिया के सेक्रेटरी तक बने। विक्टोरिया ने अपनी डायरी में लिखा था, 'मुझे वह काफी अच्छा लगता है। वह काफी दयालु और समझदार पुरुष है और यह बात मुझे काफी सुकून देती है।' कलकत्ता के बाद शाही अतिथि बेंगलुरु पहुंचे, जहां मैसूर के महाराजा और बेंगलुरु के मेयर ने उनका स्वागत किया. यहां उन्होंने बॉटेनिकल गार्डन लाल बाग में पौधे भी लगाए. महारानी अपने दौरे के अंतिम चरण में बॉम्बे और बनारस भी गईं, जहां उन्होंने गंगा घाट पर नाव की सवारी भी की. 1983 में भारत दौरे के दौरान उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से मुलाकात की और बाद में मदर टेरेसा से भी मिलीं. अपने 70 साल के शासनकाल के दौरान, एलिजाबेथ ने 1961, 1983 और 1997 में तीन बार भारत आई। देश के आजाद होने के 14 साल बाद उनकी पहली भारत यात्रा थी जो उनके लिए बहुत यादगार साबित हुई थी। महात्मा गांधी की हत्या के 13 साल बाद महारानी एलिजाबेथ उनकी समाधि पर श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए गई थी। उस समय उनके साथ प्रिंस फिलिप भी आए थे। समाधि परिसर में प्रवेश करने से पहले उन्होंने अपने जूते और चप्पल बाहर ही खोल दिए थे। स्वागत के लिए गए थे नेहरु 1961 में पहली बार भारत के दौरे पर आई थी। उनके स्वागत के लिए तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद, प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू और उपराष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन दिल्ली हवाई अड्डे पर मौजूद थे। वह 50 वर्षों में भारत आने वाली पहली ब्रिटिश शासक थी। भारत जब अंग्रेजों के कब्जे में था तब उनके दादा किंग जॉर्ज पंचम और क्वीन मैरी 1911 में भारत की यात्रा पर आए थे। उस समय भारत को लेकर अंग्रेजों की सोच अलग थी। एलिजाबेथ अपने पिता किंग जॉर्ज VI की मृत्यु के बाद 6 फरवरी 1952 में सत्ता का बागडोर संभाला। वह उस भारत के पड़ोसी देश नेपाल और पाकिस्तान में भी दौरा पर गई थी। यहीं कहा था धन्यवाद ताजमहल का दिदार करने पहुंचे जब पाकिस्तान से भारत लौटी तो दुर्गापुर स्टील प्लांट पहुंची, जिसे कुछ साल पहले ब्रिटेन की मदद से बनाया गया था। इसके बाद वो कोलकत्ता चली गई जहां पर वो अपने समर्थकों को संबोधित किया। एलिजाबेथ द्वितीय और उनके दिवंगत पति प्रिंस फिलिप ने मुंबई, चेन्नई और कोलकाता का दौरा किया था। जलियांवाला बाग का किया दौरा Latest India News India TV पर हिंदी में ब्रेकिंग न्यूज़ Hindi News देश-विदेश की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट और स्पेशल स्टोरी पढ़ें और अपने आप को रखें अप-टू-डेट। National News in Hindi के लिए क्लिक करें भारत सेक्शन |