दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा
दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा एक प्रमुख हिन्दीसेवी संस्था है जो भारत के दक्षिणी राज्यों तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, केरल और कर्नाटक में भारत के स्वतंत्रत होने के काफी पहले से हिन्दी के प्रचार-प्रसार का कार्य कर रही है। Show
सन् 1964 में संसद के अधिनियम द्वारा सभा को 'राष्ट्रीय महत्त्व की संस्था' घोषित किया गया। सभा को विश्वविद्यालय स्तर के पाठ्यक्रमों की शिक्षा देने और उपाधियाँ प्रदान करने का अधिकार प्राप्त हुआ। सभा का केन्द्रीय कार्यालय चेन्नई (मद्रास) में है। सभा की शाखाएँ दक्षिण के चारों प्रान्तों - केरल, कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश और तमिलनाडु - में हैं तथा दिल्ली में सम्पर्क कार्यालय है। सभा का उद्देश्य[संपादित करें]सभा के प्रमाणित प्रचारकों के द्वारा दक्षिण के चारों प्रान्तों के गाँव-गाँव में हिन्दी पढ़ाने की व्यवस्था तथा एतद्द्वारा राष्ट्रभाषा एवं राजभाषा हिन्दी के लिए दक्षिण भारत भर में अनुकूल वातावरण सुनिश्चित करना; हिन्दी के विकास के लिए विभिन्न क्षेत्रों में हिन्दी को हर प्रकार से समृद्ध बनाने में योग देना। अन्य कार्यकलापः
सभा द्वारा उपलब्ध सेवाएँ[संपादित करें]
संगठन[संपादित करें]दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा का मुख्यालय टी नगर चेन्नै में है। इसके चार विभाग हैं जो दक्षिण के चार राज्यों स्थित में हैं। चार क्षेत्रीय मुख्यालय ये हैं-
हिंदी सीख लेने की रुचि के आधार पर ही 1918 में मद्रास में 'हिन्दी प्रचार आन्दोलन' प्रारम्भ हुआ था और इसी वर्ष में स्थापित हिन्दी साहित्य सम्मेलन मद्रास कार्यालय आगे चलकर दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के रूप में स्थापित हुआ। 1964 में तमिल और अन्य दक्षिणी राज्यों की जनता की भावनाओं का आदर करते हुए ही इस संस्था को 'राष्ट्रीय महत्त्व की संस्था' घोषित किया गया। वर्तमान में इस संस्थान के चारों दक्षिणी राज्यों में प्रतिष्ठित शोध संस्थान है, और बड़ी संख्या में दक्षिण भारतीय इस संस्थान से हिंदी में दक्षता प्राप्त कर हिंदी की प्राणपण से सेवा कर रहें हैं। हिंदी के प्रसार और प्रतिष्ठा में संलिप्त हजारों दक्षिण भारतीय बंधु न मात्र हिंदी से अपनें रोजगार के अवसरों को स्वर्णिम बना रहें हैं अपितु दक्षिण में हिंदी प्रचार के क्रम में ऐसी कई प्रतिष्ठित संस्थाओं को भी स्थापित करते रहें हैं। इसी क्रम में केरल में 1934 में केरल हिंदी प्रचार सभा, आंध्र में 1935 में हिंदी प्रचार सभा, हैदराबाद और कर्नाटक में 1939 में कर्नाटक हिंदी प्रचार समिति, 1943 में मैसूर हिंदी प्रचार परिषद तथा 1953 में कर्नाटक महिला हिंदी सेवा समिति की स्थापना हुई। इन संस्थानों में लाखों छात्र हिंदी की परीक्षाओं में सम्मिलित व उत्तीर्ण होतें हैं। इतिहास[संपादित करें]हिन्दी प्रचार सभा एक आन्दोलन थी जो भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन के साथ ही आरम्भ हुई। हिन्दी भाषा के प्रचार के द्वारा जन-जागरण, प्रजातंत्र की जीवन-प्रणाली के प्रति आस्था उत्पन्न करने तथा राष्ट्रीय एकीकरण को सिंचित करने के पावन उद्देश्य से सन् 1918 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधीजी ने दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा की नींव डाली थी और वे आजीवन इस संस्था के अध्यक्ष रहे। सभा की स्थापना मद्रास नगर के गोखले हॉल में डॉ॰ सी.पी. रामास्वामी अय्यर की अध्यक्षता में एनी बेसेन्ट ने की थी। सन् 1918 से मद्रास में हिन्दी वर्ग चलने लगे। गांधीजी के सुपुत्र देवदास गांधी प्रथम हिन्दी प्रचारक बने। जवाहरलाल नेहरू, बाबू राजेन्द्र प्रसाद, आचार्य विनोबा भावे, काका कालेलकर, लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, श्री पी.वी. नरसिंह राव, श्री आर. वेंकटरामन, डॉ. बी.डी. जत्ती आदि मनीषियों ने सभा की गतिविधियों में सक्रिय योगदान दिया है। गांधीजी जी आजीवन इसके सभापति रहे। उन्होंने देश की अखण्डता और एकता के लिए हिन्दी के महत्त्व एवं उसके प्रचार-प्रसार पर बल दिया। कांग्रेस द्वारा स्वीकृत चौदह रचनात्मक कार्यक्रमों में राष्ट्रभाषा हिन्दी के व्यापक प्रचार-प्रसार कार्य का भी उल्लेख है। गांधीजी का विचार था कि दक्षिण भारत में हिन्दी के प्रचार का कार्य वहाँ के स्थानीय लोग ही करें। सन १९२० तक सभा का कार्यालय जार्ज टाउन, मद्रास (अब, चेन्नै) में था। कुछ वर्ष बाद यह मालापुर में आ गया। इसके बाद यह ट्रिप्लिकेन में आ गया और १९३६ तक वहीं बना रहा। महात्मा गांधी के बाद भारतरत्न डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद इस संस्था के अध्यक्ष बनाए गए, जो स्वयं हिन्दी के कट्टर उपासक थे। हिन्दी समाचार नाम की मासिक पत्रिका द्वारा सभा के उद्देश्य, प्रवृत्ति तथा अन्यान्य कार्यकलापों की विस्तृत सूचनाएँ प्रचारकों को मिलती रहती हैं। 'दक्षिण भारत' नामक त्रैमासिक साहित्यिक पत्रिका में दक्षिण भारतीय भाषाओं की रचनाओं के हिन्दी-अनुवाद और उच्चस्तर के मौलिक साहित्यिक लेख छपते हैं। हिन्दी अध्यापकों और प्रचारकों को तैयार करने के लिए सभा के शिक्षा विभाग के मार्गदर्शन में 'हिन्दी प्रचार विद्यालय' नामक प्रशिक्षण विद्यालय तथा प्रवीण विद्यालय संचालित होते हैं। प्रचार कार्य को सुसंगठित तथा शिक्षण को क्रमबद्ध और स्थायी बनाने के उद्धेश्य से सभा प्राथमिक, मध्यमा, राष्ट्रभाषा प्रवेशिका, विशारद, प्रवीण और हिन्दी प्रशिक्षण नामक परीक्षाओं का संचालन करती है। सभा की ओर से एक स्नातकोत्तर अध्ययन एवं अनुसंधान विभाग खोला गया है, जिसमें अध्ययनार्थ प्रोफेसरों की नियुक्ति होती है। पुस्तकों का प्रकाशन सभा के साहित्य विभाग की ओर से किया जाता है। हिन्दी के माध्यम से तमिल, तेलगू, कन्नड़, मलयालम चारों भाषाएँ सीखने के लिए उपयोगी पुस्तकों एवं कोश आदि के प्रकाशन का विधान है। अध्यक्ष[संपादित करें]दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा के पूर्व अध्यक्ष इस प्रकार हैं-[1]
प्रमुख दीक्षान्त भाषण-दाता[संपादित करें]महात्मा गांधी, आचार्य काका कालेलकर, रामनरेश त्रिपाठी, मुंशी प्रेमचन्द, पंडित सुन्दरलाल, बाबू पुरुषोत्तमदास टंडन, श्रीमती सरोजिनी नायडू, डॉ. पट्टाभि सीतारामय्या, आचार्य विनोबा भावे, डॉ. जाकिर हुसैन, आर.आर दिवाकर, श्रीप्रकाश, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, बाबू जगजीवन राम, डॉ. बी. गोपाल रेड्डी, डॉ. के.एल. श्रीमाली, लाल बहादुर शास्त्री, डॉ. रामधारी सिंह 'दिनकर', मोरारजी देसाई, डॉ. वी.वी. गिरी, डॉ. कर्ण सिंह, श्री कृष्ण चन्द्र पन्त, श्री एल.पी. साही, श्रीमती राम दुलारी सिन्हा, श्री अच्युत पटवर्धन, प्रो. रामलाल पारीख, श्री खुर्शीद आलम खाँ, डॉ. मोटूरी सत्यनारायण, डॉ. अर्जुन सिंह, श्रीमती कृष्णा साही, श्रीमती सुशीला रोहतगी, प्रो. नारायणदत्त तिवारी, श्री शिवमंगल सिंह 'सुमन', जस्टिस रंगनाथ मिश्र, डॉ. देवेन्द्र गुप्त, श्री राधाकृष्ण बजाज, डॉ. रजनी रॉय, प्रो. सिद्धेश्वर प्रसाद, प्रो. विष्णुकान्त शास्त्री, डॉ. हरि गौतम, श्री त्रिलोकी नाथ चतुर्वेदी आदि।[2] सभा के इतिहास की कुछ प्रमुख घटनाएँ[संपादित करें]
सभा के प्रमाणित प्रचारक[संपादित करें]सभा की राष्ट्रभाषा विशारद और राष्ट्रभाषा प्रवीण परीक्षाओं में उत्तीर्ण होने के पश्चात् उपाधिधारी (यदि उनकी आयु 18 वर्ष अथवा उससे अधिक हो तो) सभा के प्रमाणित प्रचारक बन सकते हैं। वे गाँवों व शहरों में सबेरे और शाम के समय वर्ग संचालन करके सभा की परीक्षाओं के लिए विद्यार्थी तैयार करते हैं। महिलाओं सहित इन प्रमाणित प्रचारकों की कुल संख्या इस समय (2019 में) लगभग 84,000 है। हजारों प्रचारक आज तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में काम करते हैं। रोचक बात यह है कि दक्षिणी राज्यों में तमिलनाडु इस क्रम में सबसे ऊपर है जहां 43,000 से अधिक प्रचारक हैं। इसके बाद आंध्र प्रदेश (और तेलंगाना) में 22,835 प्रचारक हैं। कर्नाटक में 6,527 प्रचारक हैं जबकि केरल में 11,334 प्रचारक हैं।[4] पुस्तक प्रकाशन व साहित्य निर्माण[संपादित करें]प्रायः प्रारंभिक व उच्च परीक्षाओं के लिए आवश्यक सभी पाठ्य-पुस्तकों की रचना व प्रकाशन सभा की ओर से किया जाता है। सभा ने पाठ्य-पुस्तकों के अलावा दक्षिण की संस्कृति, साहित्य आदि से सम्बन्धित स्तरीय ग्रंथों के साथ-साथ हिन्दी और चारों प्रान्तीय भाषाओं के कोशों का संकलन और प्रकाशन भी किया है। सभा द्वारा प्रकाशित हिन्दी-अंग्रेजी, हिन्दी-तेलुगू, हिन्दी-तमिल, हिन्दी-कन्नड़ और हिन्दी-मलयालम की स्वबोधिनियाँ अत्यंत लोकप्रिय हुई हैं। हाल ही में सभा ने त्रिभाषा “हिन्दी-अंग्रेज़ी-तमिल” कोश भी प्रकाशित किया है, जिसका सर्वत्र स्वागत हुआ है। उल्लेखनीय बात है कि अब तक सभा के द्वारा 450 से अधिक पुस्तकों का प्रकाशन हो चुका है। भारतीय प्रकाशक संघ की ओर से दक्षिण भारत में हिन्दी पुस्तक प्रकाशन एवं बिक्री के माध्यम से समाज की विशिष्ट सेवा के लिए दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा को "विशिष्ट पुस्तक विक्रेता पुरस्कार" दिया गया। राष्ट्रीय हिन्दी अकादमी की ओर से पुद्दुचेरी में आयोजित 12 वें अखिल भारतीय राजभाषा सम्मेलन में पुस्तक प्रदर्शनी का प्रथम पुरस्कार प्राप्त हुआ है। पत्रिकाएँ[संपादित करें]सभा प्रारम्भ से ही मासिक "हिन्दी पत्रिका" प्रकाशित कर रही है। पहले उसका नाम “हिन्दी प्रचारक” था। अब “हिन्दी प्रचार समाचार' है। इसमें हिन्दी प्रचारकों तथा विद्यार्थियों के लिए उपयोगी सामग्री प्रकाशित होती है। संपादक : जे. एस. रामदास पता : दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा, टी. नगर, पोस्ट ऑफिस, मद्रास (चेन्नै) - ६०००१७ इसके अलावा सभा "दक्षिण भारत" नामक एक उच्च स्तरीय त्रैमासिक साहित्यिक पत्रिका का प्रकाशन भी विगत 23 वर्षों से कर रही है। सभा की प्रमुख पत्रिकाएँ
मुद्रणालय[संपादित करें]सभा का मुद्रणालय भारत की लगभग आठ भाषाओं में मुद्रण करता है। सभा के मुद्रणालय को साफ आकर्षक और सुंदर छपाई के लिए अखिल भारतीय विशेषज्ञ संघ तथा भारत सरकार की ओर से पुरस्कार मिले हैं। सभा के महत्वपूर्ण कार्य[संपादित करें]राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की अवधारणा के अनुसार सभा ने बहुभाषी भारत में हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकारने तथा राष्ट्रीय एकता की प्रेरणा देने में अत्यन्त महत्वपूर्ण कार्य किया है। दक्षिण के चारों प्रान्तों को राष्ट्रभाषा की दृष्टि से एक इकाई मानकर सभा ने अभूतपूर्व सफलता प्राप्त की है। सभा के प्रयत्नों का ही यह परिणाम है कि स्वतन्त्रता के पहले अनेक जगहों में और स्वतंत्रता के बाद सर्वत्र दक्षिण के स्कूलों, कालेजों और विश्वविद्यालयों में हिन्दी विषय तथा हिन्दी माध्यम का प्रवेश हुआ, हिन्दी के विभाग खोले गए, जिससे हज़ारों लोग हिन्दी में उच्च शिक्षा प्राप्त कर लाभान्वित हुए और यह क्रम आज भी जारी है। स्त्री-शिक्षा की दिशा में सभा का काम महत्वपूर्ण है। जिन दिनों देश में स्त्री-शिक्षा का वातावरण सुषुप्तावस्था में था, उस समय इसने हिन्दी के द्वारा महिलाओं को शिक्षित किया, उनमें आत्मविश्वास जाग्रत किया और उनको घर के संकुचित दायरे से बाहर निकलकर समाज और देश की सेवा करने की दिशा में प्रोत्साहित किया। इसके अलावा सभा ने ऐसे कई युवकों को भी हिन्दी में शिक्षित किया, जो स्कूलों में नहीं जा पाते थे। कहने का तात्पर्य है कि सभा ने प्रौढ़ शिक्षा के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण कार्य किया है। सभा का एक और महत्वपूर्ण स्थान साहित्य के क्षेत्र में है। सभा ने दक्षिण की चारों भाषाओं में सैकड़ों ऐसे लोगों को तैयार किया, जिन्होंने हिन्दी तथा दक्षिणी भाषाओं के बीच साहित्यिक आदान-प्रदान का कार्य किया और कई मौलिक कृतियों की रचना कर साहित्य की अभिवृद्धि की। हिन्दी शिक्षण के क्षेत्र में सभा ने अत्याधुनिक इलक्ट्रानिक दृश्य-श्रव्य माध्यम के क्षेत्र में भी कदम बढ़ाए हैं। इसके अन्तर्गत सभा तीन आडियो कैसेट (ध्वयंकित पाठ) जारी कर चुकी है - (1) बोलचाल की हिन्दी (2) हिन्दी का सही प्रयोग (3) हिन्दी व्याकरण, भाग-१हाल ही में सभा ने बापू के प्रिय भजनों का ध्वन्यंकन (आडियो कैसेट) जारी किया है। निकट भविष्य में वीडियो कैसेटों के निर्माण की योजना भी कार्यान्वित होगी। सभा ने बोलचाल की हिन्दी पर ज़ोर देते हुए, “बच्चों की किताब", "रोज़मर्रा हिन्दी", "बोलचाल की हिन्दी" एवं संभाषण हिन्दी” नाम की पुस्तकों का प्रकाशन तथा बालकों को स्कूलों में अंशकालीन शिक्षा के लिए "परिचय” परीक्षा संचालन कार्य भी शुरू किया है। उच्च शिक्षा और शोध संस्थान (विश्वविद्यालय शाखा)[संपादित करें]सन् 1964 ई. में संसद में पारित अधिनियम सं. 14 के अनुसार सभा को हिन्दी में स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम चलाने और डिग्रियाँ प्रदान करने का अधिकार मिल गया है। उसी के अन्तर्गत सभा ने उच्च शिक्षा और शोध संस्थान के कार्य का शुभारम्भ किया। इस संस्थान द्वारा हिन्दी में स्नातकोत्तर स्तर पर साहित्य और प्रयोजनमूलक पाठ्यक्रम चलाए जा रहे हैं। नियमित एम.ए. के वर्ग संचालित हो रहे हैं। एम.फिल., पीएच.डी., डी.लिट., के लिए शोध कार्य सम्पन्न हो रहा है और डिग्रियाँ प्रदान की जा रही हैं। संस्थान हिन्दी शिक्षक तैयार करने की दृष्टि से बी.एड., एवं शिक्षा स्नातक कालेज चला रहा है। अब बी.ए. (तीन वर्ष), एम.ए. (हिन्दी), स्नातकोत्तर अनुवाद डिप्लोमा, एम.फिल, और पीएच.डी. का दूरस्थ शिक्षा पाठ्यक्रम भी शुरू हुआ है। एक दृष्टि में उच्च शिक्षा और शोध संस्थान
राष्ट्रीय हिन्दी अनुसन्धान ग्रन्थालय[संपादित करें]सभा ने अपनी शैक्षणिक, साहित्यिक तथा प्रचारात्मक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए एक ग्रन्थालय शुरू किया, जो धीरे-धीरे बढ़ते हुए 40,000 ग्रंथों का आगार बन गया है। इसके अलावा जबसे सभा का उच्च शिक्षा और शोध संस्थान का प्रारम्भ हुआ और शोध कार्य भी होने लगा, तबसे एक विशाल हिन्दी ग्रन्थालय की आवश्यकता अनुभव की गयी। इसके लिए एक करोड़ रुपये की लागत से चेन्नई में "राष्ट्रीय हिन्दी अनुसंधान ग्रंथालय" भवन का निर्माण किया गया। इस ग्रंथालय का निरन्तर विकास हो रहा है। अब इसमें करीब एक लाख से अधिक पुस्तकें हैं। समर्पित हिन्दी सेवी, हिन्दी प्रचारकों, हिन्दी प्रेमियों और उत्साही छात्र-समुदाय के सहयोग एवं भारत सरकार के सीमित अनुदान की सहायता से महात्मा गांधी पदवीदान मण्डप का निर्माण सन् 1985-86 में सम्पन्न हुआ है। शिक्षा विभाग[संपादित करें]प्रचारक प्रशिक्षण विद्यालय इन केन्द्रों में चल रहे हैं - हैदराबाद, विशाखपट्टणम, तेनाली, गुन्तकल, अवनिगड्डा, विजयवाड़ा, काकिनाड़ा, जनगाँव, तिरुच्ची, ऊटी व चेन्नई। परीक्षाएँ[संपादित करें]परिचय[संपादित करें]मध्यमा[संपादित करें]राष्ट्रभाषा[संपादित करें]प्रवेशिका[संपादित करें]विशारद पूर्वार्ध[संपादित करें]विशारद उत्तरार्ध[संपादित करें]प्रवीण पूर्वार्ध[संपादित करें]प्रवीण उत्तरार्ध[संपादित करें]दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा : एक दृष्टि में[संपादित करें]
सन्दर्भ[संपादित करें]
इन्हें भी देखें[संपादित करें]
बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]
हिंदी साहित्य का प्रचार प्रसार करने वाली संस्था क्या है?2. हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग हिंदी आंदोलन और प्रचार-प्रसार में सक्रिय रूप से भाग लेने वाली हिंदी-सेवी साहित्यिक संस्थाओं में 'हिंदी साहित्य सम्मेलन' का सर्वोपरि स्थान है।
हिंदी के प्रचार प्रसार में योगदान के लिए 1947 में कौन सी संस्था गठित हुई थी?हिंदी की सेवा और प्रचार-प्रसार करने वाले अहिंदी भाषी नेताओं में काका कालेलकर जी का नाम आदर के साथ लिया जाता है। कालेलकर जी गांधी जी के सच्चे अनुयायी और राष्ट्रवादी नेताओं में से थे। कालेलकर जी कांग्रेस, हिंदी साहित्य सम्मेलन, राष्ट्रभाषा प्रचार समिति आदि राजनीतिक एवं साहित्यिक संस्थाओं से सक्रिय रूप से जुड़े हुए थे।
साहित्यिक संस्था क्या है?भारत की साहित्य अकादमी भारतीय साहित्य के विकास के लिये सक्रिय कार्य करने वाली राष्ट्रीय संस्था है। इसका गठन १२ मार्च १९५४ को भारत सरकार द्वारा किया गया था। इसका उद्देश्य उच्च साहित्यिक मानदंड स्थापित करना, भारतीय भाषाओं और भारत में होनेवाली साहित्यिक गतिविधियों का पोषण और समन्वय करना है।
प्रसार साहित्य क्या है?hai T 5 T हिंदी भाषा और साहित्य का प्रसार विदेशों में हुआ है । भारत के आकाशवाणी और दूरदर्शन हिंदी को विश्व स्तर पर स्थापित करने में निरंतर कार्यरत हैं। विश्व के टी.
|