सामूहिक सुरक्षा और निशस्त्रीकरण की समस्या में क्या अंतर है? - saamoohik suraksha aur nishastreekaran kee samasya mein kya antar hai?

सामूहिक सुरक्षा और निशस्त्रीकरण की समस्या में क्या अंतर है? - saamoohik suraksha aur nishastreekaran kee samasya mein kya antar hai?

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Published in Journal

Year: Feb, 2019
Volume: 16 / Issue: 2
Pages: 605 - 608 (4)
Publisher: Ignited Minds Journals
Source:
E-ISSN: 2230-7540
DOI:
Published URL: http://ignited.in/I/a/89329
Published On: Feb, 2019

Article Details

सामूहिक सुरक्षा: एक अध्ययन | Original Article


सामूहिक सुरक्षा और निशस्त्रीकरण की समस्या में क्या अंतर है? - saamoohik suraksha aur nishastreekaran kee samasya mein kya antar hai?
"Share your Knowledge, It’s a way to achieve Immortality"

  • शस्त्रों में बना रहने वाला निरन्तर विश्वास-
  • शक्ति के अनुपात पर समझौते की समस्या-
  • निःशस्त्रीकरण तथा शस्त्र-नियन्त्रण के अनुपात पर समझौता लागू करने की समस्या–
  • अविश्वास की समस्या-
  • असुरक्षा-
  • राजनीतिक शत्रुता तथा विरोध-
  • निष्कर्ष

निःशस्त्रीकरण की समस्याएं

“विश्व को सम्भावित परमाणु विध्वंस तथा पूर्ण विनाश से बचाना” सभी देशों का मुख्य उद्देश्य है, और होना भी चाहिए। यद्यपि इस उद्देश्य की प्राप्ति का एक मुख्य साधन निश्चय ही निःशस्त्रीकरण तथा शस्त्र-नियन्त्रणहै, लेकिन अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धोंनिःशस्त्रीकरण का विषय सदा से ही एक जटिल तथा विवादास्पद विषय रहा है। एक ओर, विश्व जनमत स्पष्टतया शस्त्र-नियन्त्रण के पक्ष में है तो दूसरी ओर इस उद्देश्य को प्राप्त करने के रास्ते में बड़ी-बड़ी कठिनाइयाँ विद्यमान हैं। वी० वी० डाइक द्वारा दी गई निम्नलिखित कठिनाइयाँ मुख्यरूप से निःशस्त्रीकरण तथा शस्त्र-नियन्त्रण में बाधक रही हैं-

  1. शस्त्रों में बना रहने वाला निरन्तर विश्वास-

    निःशस्त्रीकरण के मार्ग में सबसे पहली कठिनाई का विचार है जो किसी राज्य की शक्ति के प्रदर्शन के लिए आवश्यक साधन के रूप में शस्त्रास्त्रों का समर्थन करता है। जब तक यह विचार कि शस्त्रास्त्रों के कई महत्त्वपूर्ण कार्य हैं तथा वे कई उद्देश्यों को पूरा करते हैं, लोकप्रिय विचार बना हुआ है जब तक राज्य इन पर निर्भर करते हैं या जब तक वे इनका परित्याग नहीं करते या इन पर कोई गम्भीर प्रतिबन्ध लगाना स्वीकार नहीं करते अथवा जब तक इसी कार्य को पूरा करने वाला कोई अन्य विकल्प उनके सामने नहीं आ जाता, तब तक निःशस्त्रीकरण तथा शस्त्र-नियन्त्रण के सम्बन्ध में दिए जाने वाले सभी प्रयल तथा वार्ताएं व्यर्थ ही रहेंगी।

  2. शक्ति के अनुपात पर समझौते की समस्या-

    पूर्व स्वीकृति द्वारा निःशस्त्रीकरण के रास्ते की एक अन्य मूलभूत कठिनाई इस तथ्य से पैदा होती है कि निःशस्त्रीकरण के किसी भी समझौते से पहले विभिन्न राष्ट्रों की शस्त्र तथा सशस्त्रों संस्थाओं की शक्ति के अनुपात पर समझौता होना चाहिए। लेकिन विभिन्न राष्ट्रों के पास जो शस्त्रास्त्र तथा सशस्त्र संस्थान हैं उनका अनुपात निश्चित करने के लिए कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। अलग-अलग राष्ट्रों के अलग-अलग शस्त्रों की संख्या तथा प्रकारों का निर्धारण करने का निर्णय करने के लिए कोई एक मापदण्ड नहीं है।

  3. निःशस्त्रीकरण तथा शस्त्र-नियन्त्रण के अनुपात पर समझौता लागू करने की समस्या

    यदि निःशस्त्रीकरण की इच्छा रखने वाले राष्ट्रों के बीच शक्ति के अनुपात में कोई समझौता हो भी जाता है तो भी निःशस्त्रीकरण के लिए एक रुकावट पैदा होगी। शक्ति-निर्धारण के निश्चित अनुपात के बावजूद अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में विभिन्न राष्ट्र कम या अधिक शक्ति का प्रयोग करेंगे। ऐसा इसलिए होगा क्योंकि किसी राष्ट्र की राष्ट्रीय-शक्ति का मुख्य आधार केवल सैन्य शक्ति नहीं क्योंकि सैन्य शक्ति भी भूगोल; जनसंख्या, नैतिक मनोबल तथा अन्य ऐसे ही भौतिक तथा मानवीय तत्त्वों पर निर्भर करती है। वे राष्ट्र जिनमें अनुपात के आधार पर शस्त्रास्त्रों तथा सैन्य शक्ति का निर्धारण होगा वे युद्ध के पक्ष तथा विपक्ष में विभिन्न कारणों से प्रेरित होंगे इसलिए शस्त्रास्त्रों की मात्रा का अनुपात-निर्धारण भी निःशस्त्रीकरण की समस्या को हल नहीं कर सकता।

  4. अविश्वास की समस्या-

    विभिन्न राष्ट्रों के बीच भारी अविश्वास के अस्तित्व ने अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय के लिए निःशस्त्रीकरण तथा शस्त्र-नियन्त्रण के रास्ते में कठिनाई पैदा कर दी है। जब तक ऐसी स्थिति बनी रहेगी निःशस्त्रीकरण तथा शस्त्र-नियन्त्रण के प्रति प्रगति सीमित तथा धीमी बनी रहेगी। विभिन्न राष्ट्रों द्वारा समय-समय पर पेश की गई निःशस्त्रीकरण की योजनाएँ हमेशा हर तथा विश्वास पर आधारित रही हैं और इसलिए इनमें हमेशा कुछ न कुछ आरक्षण तथा व्यर्थ की धाराएँ मौजूद रहती हैं, जिन्हें राष्ट्र कभी नहीं मानते।

  5. असुरक्षा-

    अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय के सदस्यों के सामने निःशस्त्रीकरण से सम्बन्धित जो कठिनाइयाँ पेश आ रही हैं वे असुरक्षा की भावना के कारण भी हैं। शस्त्रास्त्रों को सुरक्षा का प्रतीक माना जाता है तथा निःशस्त्रीकरण को एक ऐसी स्थिति समझा जाता है जिसमें राष्ट्रों के बीच असुरक्षा की भावना पैदा हो जायेगी। इसके अतिरिक्त टैंक, हवाई जहाज, राकेट, बम आदि के प्रदर्शन से किसी भी राज्य की शक्ति तथा उपलब्धि का प्रदर्शन करना सरल हो जाता है।

  6. राजनीतिक शत्रुता तथा विरोध-

    अपनी-अपनी सैन्य शक्ति तथा दूसरे राष्ट्रों पर अपना प्रभाव बढ़ा कर विश्व में सब से अधिक शक्तिशाली बनने के प्रयत्नों के कारण उत्पन्न राजनीतिक शत्रुता निःशस्त्रीकरण की राह में काँटे बिछा देती है। विभिन्न राजनीतिक संकटों ने भी निःशस्त्रीकरण की ओर हो रही प्रगति की प्रक्रिया को कुंठित कर दिया है। राज्यों के बीच राजनीतिक शत्रुता, अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों की होड़ का बहुत बड़ा कारण है तथा इस तरह यह निःशस्त्रीकरण तथा शस्त्र-नियन्त्रण के रास्ते में हमेशा रुकावट बन कर खड़ी रही है।

इन छः मुख्य तत्त्वों के अतिरिक्त सैन्य तकनीक की भारी गतिशीलता, तथा आर्थिक-व्यवस्था में शस्त्रास्त्र उद्योग का महत्त्व वर्तमान समय की दो मुख्य कठिनाइयाँ रही हैं। इनके साथ-साथ प्रत्येक राष्ट्र का अपनी प्रभुसत्ता के साथ संकीर्ण प्रकार का प्रेम निःशस्त्रीकरण तथा शस्त्र-नियन्त्रण के रास्ते की कठिनाई है।

वास्तविक प्रक्रिया में समकालीन अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में निःशस्त्रीकरण तथा शस्त्र-नियन्त्रण के रास्ते में अन्य बड़ी कठिनाई इस उद्देश्य के सम्बन्ध में विभिन्न देशों के बीच दृष्टिकोणों का अन्तर रहा है। अन्तरिक्ष की खोज के प्रश्न को अर्थात् सुरक्षा व्यवस्था के प्रश्न को जिसमें बाह्य अन्तरिक्ष का प्रयोग भी आया है, छोड़कर आज अमरीका अपने को सामरिक तथा मध्यम मारक-शक्ति वाले शस्त्रों के सम्बन्ध में निःशस्त्रीकरण तथा शस्त्र-नियन्त्रण से जोड़ना चाहता है। सोवियत संघ के विघटन के बाद उत्तराधिकारी बना रूस निःशस्त्रीकरण तथा शस्त्र-नियन्त्रण के सभी पहलुओं पर बातचीत करना चाहता है तथा वह चाहता है कि अमरीका शस्त्र-नियन्त्रण के हित में अपने सितारा-युद्ध कार्यक्रम का परित्याग करने के लिए तैयार हो। INF, START-I, START-II तथा रासायनिक शस्त्रों की समाप्ति सम्बन्धी सन्धि ने एक नये सकारात्मक तथा उत्साहपूर्ण वातावरण को जन्म दिया। पिछले कुछ वर्षों से परमाणु शस्त्रधारी राज्यों ने नये परमाणु परीक्षण न करने की नीति अपनाई, परन्तु परमाणु निःशस्त्रीकरण-शस्त्र नियन्त्रण तथा साधारण निःशस्त्रीकरण के सम्बन्ध में कोई विशेष प्रगति न हो सकी। CTBT का मुद्दा भी लटक ही गया विशेषकर अमरीकी सीनेट द्वारा CTBT पर अमरीकी हस्ताक्षरों की पुष्टि न करने के बाद। अब अमरीकी ने राष्ट्रीय मिसाइल सुरक्षा प्रोग्राम आरम्भ कर दिया है जिसका रूस और चीन विरोध कर रहे हैं। रूस यह समझता है कि इससे ABM सन्धि टूट जायेगी। अमरीकी प्रशासन अपने नये प्रोग्राम को चलाने के लिये दृढ़ संकल्प है। एक बार फिर निःशस्त्रीकरण और शस्त्र-नियन्त्रण का मुद्दा उलझता दिखाई दे रहा है। अक्तूबर 2001 में आतंकवाद के विरुद्ध आरम्भ हुए युद्ध ने एक बार फिर शस्त्रों तथा सशस्त्र सैनिकों की आवश्यकता को प्रकट किया।

निष्कर्ष

इस तरह निःशस्त्रीकरण के रास्ते में विभिन्न कठिनाइयाँ विद्यमान हैं तथा इस अवधारणा के साथ कितनी ही समस्याएं जुड़ी हैं। निःशस्त्रीकरण समझौते की सम्भावनाओं का विश्लेषण करते हुए श्लीचर ने बड़ी अच्छी तरह सारे विषय का सार प्रस्तुत किया है, “निःशस्त्रीकरण तथा शस्त्र-नियन्त्रण पर अन्तर्राष्ट्रीय समझौते की सम्भावनाएँ, इसका स्वरूप तथा प्रभाव कई मुख्य तत्त्वों पर आधारित हैं। इनमें से दो अनुकूल विशेषताएँ हैं- (i) परमाणु युद्ध का डर, तथा (ii) शान्ति की इच्छा और यह विश्वास कि शस्त्रों के तनाव से युद्ध बढ़ते हैं तथा अनियम्बित शस्त्र-दौड़ से अस्थिरताएँ और जोखिम। दूसरी तरफ तीन गम्भीर कठिनाइयाँ हैं (i) राष्ट्रवाद तथा संप्रभुता का तत्त्व, (ii) अनुपात की समस्या तथा (iii) राष्ट्रों के बीच अविश्वास । दो अतिरिक्त तत्त्व-(i) निःशस्त्रीकरण को या फिर शस्त्र नियंत्रण को प्राथमिकता तथा (ii) राजनीतिक समस्याओं का निपटारा या फिर आर्थिक मुद्दों पर ध्यान समझौते के पक्ष तथा विपक्ष दोनों में शामिल किए जा सकते हैं। इन तत्त्वों में से रुकावट डालने वाले तत्त्व इस समय तक अनुकूल तत्त्वों से अधिक शक्तिशाली रहे हैं। लेकिन आज परमाणु निःशस्त्रीकरण तथा शस्त्र-नियन्त्रण के पक्ष में विश्व जनमत दृढ़ हो रहा है। नवम्बर 2001 में अमरीका तथा रूस ने अपने-अपने परमाणु शस्त्र भण्डारों में काफी कटौती करने का सैद्धांतिक रूप में निर्णय लिया।

महत्वपूर्ण लिंक

  • परमाणु शस्त्र, अप्रसार सन्धि (NPT) और CTBT : भारत-जापान मतभेद
  • पोखरण परीक्षण-II के बाद भारत-जापान सम्बन्ध
  • सामूहिक सुरक्षा (Collective Security)- अर्थ, अवधारणा एवं सैद्धांतिक आधार
  • सामूहिक सुरक्षा एवं सामूहिक प्रतिरक्षा, प्रादेशिक संगठन, निरस्त्रीकरण, शक्ति संतुलन
  • निःशस्त्रीकरण एवं शस्त्र-नियन्त्रण- अर्थ, स्वरुप, दोनों में संबंध एवं अंतर
  • निःशस्त्रीकरण के सिद्धान्त- (शांति, आर्थिक, एवं नैतिक सिद्धांत)

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समूह सुरक्षा तथा निशस्त्रीकरण की समस्या में क्या अंतर है?

(4) सामूहिक सुरक्षा व्यवस्था सामान्य सहयोग के आधार पर आक्रमणकारी का विरोध करती है, जबकि शक्ति सन्तलन सिद्धान्त गटबन्दी के आधार पर आक्रमणकारी का विरोध करता है। (5) सामूहिक सुरक्षा का सिद्धान्त यह मानता है कि किसी एक राष्ट्र पर किया गया आक्रमण शान्ति के लिए संकट है और इसका विरोध करने के लिए राष्ट्र का कटिबद्ध रहना चाहिए।

सामूहिक सुरक्षा क्या है सामूहिक सुरक्षा की समस्या की विवेचना कीजिए?

सामूहिक सुरक्षा का अर्थ जो अंतरराष्ट्रीय राजनीति में शांति व्यवस्था स्थापित करने का या फिर बाहरी देशों द्वारा आक्रमण को रोकने के एक साधन के रूप में अपना विशेष महत्व रखता है । साधरण शब्दों में कहा जाए तो सामुहिक सुरक्षा दूसरे देशों द्वारा आक्रमण को एकत्रित रूप में रोकने की व्यवस्था है ।

सामूहिक सुरक्षा के लिए कौन सा तत्व अनिवार्य है?

सामूहिक सुरक्षा के तत्व (samuhik suraksha ke tatva) सामूहिक सुरक्षा के लिए सामूहिक प्रयास को स्पष्ट करने से पूर्व Aggression शब्द का अर्थ जान लेना आवश्‍यक हैं। यह स्पष्ट है कि जो आक्रमण से पहले करता है वह आक्रमणकारी होता है। यदि A, B पर आक्रमण इसलिए करता है क्योंकि वह इससे भयभीत है तो दोष बंट जाता हैं।

शक्ति संतुलन से क्या अभिप्राय है?

शक्‍ति-संतुलन का सिद्धान्त (balance of power theory) यह मानता है कि कोई राष्ट्र तब अधिक सुरक्षित होता है जब सैनिक क्षमता इस प्रकार बंटी हुई हो कि कोई अकेला राज्य इतना शक्तिशाली न हो कि वह अकेले अन्य राज्यों को दबा दे।