हरिशंकर परसाई ने प्रेमचंद को क्या कहा? - harishankar parasaee ne premachand ko kya kaha?

Hindi Sahitya News: हरिशंकर परसाई हिंदी कथा-साहित्य के परंपरागत स्वरूप का वस्तु और शिल्प-दोनों स्तरों पर अतिक्रमण करते हैं. परसाई के कथा-साहित्य में रूपायित स्थितियां, घटनाएं और व्यक्ति-चरित्र अपने समाज की व्यापक और एकनिष्ठ पड़ताल का नतीजा हैं. पढ़ें पूरा व्यंग्य-

प्रेमचन्द का एक चित्र मेरे सामने है, पत्नी के साथ फोटो खिंचा रहे हैं. सिर पर किसी मोटे कपड़े की टोपी, कुरता और धोती पहिने हैं. कनपटी चिपकी हैं, गालों की हड्डियां उभर आई हैं, पर घनी मूंछें चेहरे को भरा-भरा बतलाती हैं.

पांवों में केनवस के जूते हैं, जिनके बंद बेतरतीब बंधे हैं. लापरवाही से उपयोग करने पर बंद के सिरों पर ही लोहे की पतरी निकल जाती है और छेदों में बंद डालने में परेशानी होती है. तब बंद कैसे भी कस लिए जाते हैं. दाहिने पांव का जूता ठीक है, मगर बाएं जूते में बड़ा छेद हो गया है, जिसमें से अंगुली बाहर निकल आई है.

मेरी दृष्टि इस जूते पर अटक गई है. सोचता हूं—फोटो खिंचाने की अगर यह पोशाक है, तो पहिनने की कैसी होगी? नहीं, इस आदमी की अलग-अलग पोशाकें नहीं होंगी— इसमें पोशाकें बदलने का गुण नहीं है. यह जैसा है, वैसा ही फोटो में खिंच जाता है.

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मैं चेहरे की तरफ देखता हूं. क्या तुम्हें मालूम है, मेरे साहित्यिक पुरखे कि तुम्हारा जूता फट गया है और अंगुली बाहर दिख रही है? क्या तुम्हें इसका जरा भी अहसास नहीं है? जरा लज्जा, संकोच या झेंप नहीं है? क्या तुम इतना भी नहीं जानते कि धोती को थोड़ा नीचे खींच लेने से अंगुली ढक सकती है? मगर फिर भी तुम्हारे चेहरे पर बड़ी बेपरवाही, बड़ा विश्वास है! फोटोग्राफर ने जब ‘रेडी-प्लीज’ कहा होगा, तब परम्परा के अनुसार तुमने मुस्कान लाने की कोशिश की होगी, दर्द के गहरे कुएं के तल में कहीं पड़ी मुस्कान को धीरे-धीरे खींचकर ऊपर निकाल रहे होंगे कि बीच में ही ‘क्लिक’ करके फोटोग्राफर ने ‘थैंक यू’ कह दिया होगा. विचित्र है यह अधूरी मुस्कान. यह मुस्कान नहीं है, इसमें उपहास है, व्यंग्य है!

यह कैसा आदमी है, जो खुद तो फटे जूते पहिने फोटो खिंचा रहा है, पर किसी पर हंस भी रहा है!

फोटो ही खिंचाना था, तो ठीक जूते पहिन लेते, या न खिंचाते. फोटो न खिंचाने से क्या बिगड़ता था. शायद पत्नी का आग्रह रहा हो और तुम, ‘अच्छा, चल भई’ कहकर बैठ गए होंगे. मगर यह कितनी बड़ी ‘ट्रेजडी’ है कि आदमी के पास फोटो खिंचाने को भी जूता न हो. मैं तुम्हारी यह फोटो देखते-देखते, तुम्हारे क्लेश को अपने भीतर महसूस करके जैसे रो पड़ना चाहता हूं, मगर तुम्हारी आंखों का यह तीखा दर्द भरा व्यंग्य मुझे एकदम रोक देता हैं.

तुम फोटो का महत्त्व नहीं समझते. समझते होते, तो किसी से फोटो खिंचाने के लिए जूते मांग लेते. लोगंतो मांगे के कोट से वर-दिखाई करते हैं. और मांगे की मोटर से बारात निकालते हैं. फोटो खिंचाने के लिए तो बीवी तक मांग ली जाती है, तुमसे जूते ही माँगते नहीं बने! तुम फोटो का महत्त्व नहीं जानते. लोग तो इत्र चुपड़कर फोटो खिंचाते हैं जिससे फोटो में खुशबू आ जाए. गंदे-से-गंदे आदमी की फोटो भी खुशबू देती है.

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टोपी आठ आने में मिल जाती है और जूते उस जमाने में भी पांच रुपए से कम में क्या मिलते होंगे. जूता हमेशा टोपी से कीमती रहा है. अब तो जूते की कीमत और बढ़ गई है और एक जूते पर पचीसों टोपियां न्यौछावर होती हैं. तुम भी जूते और टोपी के आनुपातिक मूल्य के मारे हुए थे. यह विडम्बना मुझे इतनी तीव्रता से पहिले कभी नहीं चुभी, जितनी आज चुभ रही है जब मैं तुम्हारा फटा जूता देख रहा हूं. तुम महान कथाकार, उपन्यास-सम्राट, युग-प्रवर्त्तक, जाने क्या-क्या कहलाते थे, मगर फोटो में भी तुम्हारा जूता फटा हुआ है.

मेरा जूता भी कोई अच्छा नहीं है. यों ऊपर से अच्छा दिखता है. अंगुली बाहर नहीं निकलती, पर अंगूठे के नीचे तला फट गया है. अंगूठा जमीन से घिसता है और पैनी गिट्टी पर कभी रगड़ खाकर लहूलुहान भी हो जाता है. पूरा तला गिर जाएगा, पूरा पंजा छिल जाएगा, मगर अंगुली बाहर नहीं दिखेगी. तुम्हारी अंगुली दिखती है, पर पांव सुरक्षित है. मेरी अंगुली ढकी है, पर पंजा नीचे घिस रहा है. तुम पर्दे का महत्त्व ही नहीं जानते, हम पर्दे पर कुर्बान हो रहे हैं!

तुम फटा जूता बड़े ठाट से पहिने हो! मैं ऐसे नहीं पहिन सकता. फोटो तो जिन्दगी-भर इस तरह नहीं खिंचाऊं, चाहे कोई जीवनी बिना फोटो के ही छाप दे.

तुम्हारी यह व्यंग्य-मुस्कान मेरे हौसले पस्त कर देती है. क्या मतलब है इसका? कौन-सी मुस्कान है यह?

—क्या होरी का गोदान हो गया?

—क्या पूस की रात में सूअर हलकू का खेत चर गए?

—क्या सुजान भगत का लड़का मर गया; क्योंकि डॉक्टर क्लब छोड़कर नहीं आ सकते?

नहीं, मुझे लगता है माधो औरत के कफन के चन्दे की शराब पी गया. वही मुस्कान मालूम होती है.

मैं तुम्हारा जूता फिर देखता हूं. कैसे फट गया यह, मेरी जनता के लेखक?

क्या बहुत चक्कर काटते रहे?

क्या बनिये के तगादे से बचने के लिए मील-दो मील का चक्कर लगाकर घर लौटते रहे?

चक्कर लगाने से जूता फटता नहीं है, घिस जाता है. कुम्भनदास का जूता भी फतेहपुर सीकरी जाने-आने में घिस गया था. उसे बड़ा पछतावा हुआ. उसने कहा—

‘आवत जात पन्हैया घिस गई, बिसर गयो हरि नाम.’

और ऐसे बुलाकर देनेवालों के लिए कहा था—’जिनके देखे दुख उपजत है, तिनको करबो परै सलाम!’

चलने से जूता घिसता है, फटता नहीं है. तुम्हारा जूता कैसे फट गया?

मुझे लगता है, तुम किसी सख्त चीज को ठोकर मारते रहे हो. कोई चीज जो परत-पर-परत सदियों से जमती गई है, उसे शायद तुमने ठोकर मार-मारकर अपना जूता फाड़ लिया. कोई टीला जो रास्ते पर खड़ा हो गया था, उस पर तुमने अपना जूता आजमाया.

तुम उसे बचाकर, उसके बगल से भी तो निकल सकते थे. टीलों से समझौता भी तो हो जाता है. सभी नदियां पहाड़ थोड़े ही फोड़ती हैं, कोई रास्ता बदलकर, घूमकर भी तो चली जाती है.

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तुम समझौता कर नहीं सके. क्या तुम्हारी भी वही कमजोरी थी, जो होरी को ले डूबी, वही ‘नेम-धरम’ वाली कमजोरी? ‘नेम-धरम’ उसकी भी जंजीर थी. मगर तुम जिस तरह मुस्करा रहे हो, उससे लगता है कि शायद –‘नेम-धरम’ तुम्हारा बन्धन नहीं था, तुम्हारी मुक्ति थी!

तुम्हारी यह पांव की अंगुली मुझे संकेत करती-सी लगती है, जिसे तुम घृणित समझते हो, उसकी तरफ हाथ की नहीं, पांव की अंगुली से इशारा करते हो?

तुम क्या उसकी तरफ इशारा कर रहे हो, जिसे ठोकर मारते-मारते तुमने जूता फाड़ लिया?

मैं समझता हूं. तुम्हारी अंगुली का इशारा भी समझता हूं और यह व्यंग्य-मुस्कान भी समझता हूं.

तुम मुझ पर या हम सभी पर हंस रहे हो, उन पर जो अंगुली छिपाये और तलुआ घिसाये चल रहे हैं, उन पर जो टीले को बरकाकर बाजू से निकल रहे हैं. तुम कह रहे हो—मैंने तो ठोकर मार-मारकर जूता फाड़ लिया, अंगुली बाहर निकल आई, पर पांव बच रहा और मैं चलता रहा, मगर तुम अंगुली को ढाँकने की चिन्ता में तलुवे का नाश कर रहे हो. तुम चलोगे कैसे?

मैं समझता हूं. मैं तुम्हारे फटे जूते की बात समझता हूं, अंगुली का इशारा समझता हूं, तुम्हारी व्यंग्य-मुस्कान समझता हूं!

किताब : परसाई रचनावली
प्रकाशन: राजकमल प्रकाशन

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Tags: Hindi Literature, Hindi Writer, Literature

FIRST PUBLISHED : July 25, 2022, 11:35 IST

लेखक हरिशंकर परसाई ने प्रेमचंद जी को क्या सलाह दे रहे हैं?

Expert-Verified Answer सामाजिक कुरीतियों के प्रति जागरूकता उत्पन्न करने वाले– प्रेमचंद ने समाज में फैली हुई कुरीतियों के प्रति लोगों को सावधान किया। वे एक स्वस्थ समाज चाहते थे तथा स्वयं भी बुराइयों से कोसों दूर रहने वाले थे।

हरिशंकर परसाई ने प्रेमचंद जी का जो चित्र प्रस्तुत किया है उससे प्रेमचंद के व्यक्तित्व की कौन सी विशेषता उभरकर आती है?

हरिशंकर परसाई ने प्रेमचंद का जो शब्दचित्र हमारे सामने प्रस्तुत किया है उससे | प्रेमचंद के व्यक्तित्व की कौन-कौन सी विशेषताएँ उभरकर आती हैं? सादा जीवन-प्रेमचंद आडंबर तथा दिखावापूर्ण जीवन से दूर रहते थे। वे गाँधी जी की तरह सादा जीवन जीते थे। उच्च विचार-प्रेमचंद के विचार बहुत ही उच्च थे।

हरिशंकर परसाई जी ने प्रेमचंद को साहित्यिक पुरखे कहकर क्यों संबोधित किया है तर्क सहित उत्तर दीजिए?

Expert-Verified Answer हरिशंकर परसाई ने प्रेमचंद का व्यक्तित्व हमारे सामने प्रस्तुत किया है उससे यह बात उभरकर सामने आई है कि प्रेमचंद एक सीधे-साधे व्यक्ति थे । वे धोती-कुर्ता कुर्ता पहनते थे। वे सिर पर मोटे कपड़े की टोपी और पैरों में केनवस का साधारण जूता पहनते थे। वे अपनी वेशभूषा पर विशेष ध्यान नहीं देते थे।

हरिशंकर परसाई को यह कैसे ज्ञात हुआ कि प्रेमचंद के जूते फटे थे?

टोपी के आनुपातिक मूल्य के मारे हुए थेयह विडंबना मुझे इतनी तीव्रता से पहले कभी नहीं चुभी, जितनी आज चुभ रही है, जब मैं तुम्हारा फटा जूता देख रहा हूँ । तुम महान कथाकार, उपन्यास - सम्राट, युग प्रवर्तक, जाने क्या- क्या कहलाते थे, मगर फोटो में भी तुम्हारा जूता फटा हुआ है !