हमने बस के द्वारा यात्रा की |

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बस द्वारा यात्रा

Bus Dwara Yatra 

दिल्ली एक विशाल तथा भीड़ दाला नगर है। निम्न तथा मध्यम वर्ग के लोगों के लिए रैड लाइन की बसें ही एकमात्र यात्रा का साधन हैं। बहुत-से लोग थोड़ी दूरी को साइकिल पर तय कर लेते हैं। किराये की दर ऊंची होने के कारण केवल धनी व्यक्ति ही स्कूटर, रिक्शा या टैक्सी किराये पर ले सकते हैं। बस स्टॉप हर समय भीड़ का दृश्य प्रस्तुत करते हैं। मनुष्य वहां पंक्तिबद्ध खड़े होकर कड़ी धूप, कठोर सर्दी (शीत) तथा वर्षा को सहते रहते हैं। बस की प्रतीक्षा करना बड़ा दुःखदायी होता है। वहां खड़े-खड़े मनुष्य ऊब जाते हैं, तथा बोरियत का अनुभव करते हैं। प्रत्येक यात्री रैड लाइनों के मालिकों की आलोचना करता है तथा उन्हें कोसता है तथा बसों की अनियमित सेवाओं के लिए उन्हें उत्तरदायी ठहराता है। वहां पर गन्दी राजनीति सम्बन्धी चर्चाएं चलती हैं जो कई बार झगड़े का रूप धारण कर लेती हैं। रैड लाइनों की बसों में प्रतिदिन यात्रा करने वाले व्यक्ति को बड़े कटु तजुर्बे होते हैं जिन्हें सुनने व सुनाने वालों के पास काफी समय होना चाहिये। कितनी परेशानी होती है जब दफ्तर में जाते समय बस में कोई खराबी हो जाती है। कन्डक्टरों का रूखा तथा असभ्य व्यवहार, तेज गति से चलने वाले वाहन, यात्रियों का जमघट और सीधी बसों का अभाव सभी कष्टदायक होते हैं। आप अपने घर से कितने ही जल्दी चल दीजिए फिर भी ड्यूटी पर समय पर पहुंचना निश्चित नहीं है।

गत रविवार को नटराज सिनेमा हाल में ‘जागृति’ फिल्म देखने का मेरा विचार था। मेरी पत्नी तथा बच्चे मुझे विवश कर रहे थे तथा उत्सुकता से रविवार की प्रतीक्षा कर रहे थे। मैंने पहले ही टिकटों का प्रबन्ध कर लिया था। तीन बजे फिल्म प्रारम्भ होनी थी। स्कूटर पर सिनेमा हाल तक पहुंचना सुरक्षित नहीं था। अतः मैंने तीन पहिए वाला स्कूटर किराये पर लेने का निर्णय किया। पन्द्रह कि.मी. दूरी थी, अत: स्कूटर चालक ने 50 रुपये मांगे। मुझे अपना विचार बदलना पड़ा तथा रैड लाइन की बस में यात्रा करने का अन्तिम निर्णय लेना पड़ा।

हम 1 बजे पंक्ति में खड़े हो गए। यह मध्याह्न का समय था। कोई बस नजर नहीं आ रही थी। हवा बन्द थी। सभी व्यक्ति हांफ रहे थे। तीव्र गर्मी के कारण पसीना निकल रहा था। बड़ी अधीरता से 45 मिनट तक बस की प्रतीक्षा करते रहे। एक बस आई। मैंने अपनी पत्नी तथा बच्चों को बस में चढ़ने के लिए कहा। बस चालक ने कुछ दूरी पर बस को खड़ा कर दिया। लोगों ने पंक्ति तोड़ दी तथा बस की तरफ दौड़े। बस खचाखच भरी हुई थी । भाग्यवश मैं पायदान पर चढ़ गया। कुछ और यात्री भी अन्दर घुस गये । कन्डक्टर ने घंटी बजाई और ड्राइवर ने बस चला दी। मुझे बड़ी चिन्ता हुई क्योंकि मेरी बीवी तथा बच्चे बस में नहीं चढ़ सके थे। मैंने कन्डक्टर से बस रुकवाने की प्रार्थना की। उसने मेरी प्रार्थना को अनसुना कर दिया। उसने मुझे लापरवाह कहा। बस की गति तेज हो चुकी थी। मुझे चलती हुई बस से नीचे कूदना पड़ा। मैं सड़क पर चित्त गिर पड़ा, मेरे कपड़े धूल में सन गए तथा फट गए। मुझे कई खरोचें आ गईं तथा मेरे टखने में मोच आ गई। मेरे बच्चे चिन्तित हो गए तथा रोने लगे। किसी तरह लंगड़ाता हुआ मैं उनके पास पहुंचा। मेरे बाल धूल में सन गए थे। मुझे जोर का पसीना आया हुआ। था। मेरी पत्नी आंसू बहा रही थी। उसने मुझसे घर लौटने के लिए आग्रह किया परन्तु मैं वैसा नहीं कर सकता था। मैं टिकटों पर जो 100 रुपये खर्च कर चुका था वह सारे बेकार चले जाते। मैंने उन्हें ढाढस बंधाया तथा अगले प्रयास के लिए स्वयं भी साहस बटोरा। 2.30 का समय था। मुझे पीडा हो रही थी। मुझे एक गिलास गर्म दूध पीना पड़ा। कपड़े बदलने का या खून के धब्बों को धोने का मेरे पास समय भी कहां था। जब मैंने देखा कि 160 रुपये समेत मेरा बटुआ गायब है तो मुझे बड़ा आघात पहुंचा। मेरी पत्नी अधिक चिन्तित न हो जाए इस भय से यह अशुभ समाचार मैंने उसे नहीं सुनाया।

भाग्यवश वहां एक खाली बस आ गई। मैंने अपनी पत्नी तथा बच्चों से कहा कि इस बार पीछे न रह जाना। काफी धक्का-मुक्की के उपरांत मैंने उन्हें बस में चढ़ा दिया। एक सीट पर बैठकर उन्होंने सुख की सांस ली। थोड़ी देर बाद मैं भी बस में चढ गया। मैंने अपनी पत्नी से टिकटें खरीदने के लिए कहा। मैं भी सीट पर बैठ गया। मैंने देखा कि मेरी पत्नी के कान की एक बाली दिखाई नहीं दे रही है। इस विषय में जब मैंने उसे बताया तो वह रोने लग गई। हमने सारे यात्रियों से पूछताछ की और सीटों के पास ढूंढा। फिर सीटें छोड़कर पायदान के चारों ओर तथा जमीन पर भी तलाश की परन्तु सब व्यर्थ रहा। हमारे साथी यात्रियों ने हमारी सीटें भी कब्जे में कर लीं। किसी को भी मेरी चोट तथा नुकसान पर दुःख नहीं हुआ। इस कठोर यात्रा से तथा लोगों के थोथे उपदेशों से केवल मेरे दुःख में वृद्धि हुई। अब हम मंजिल के समीप पहुंच गए थे। मैंने ड्राइवर से बस रोकने के लिए नम्र निवेदन किया। उसने बस रोक दी। मेरी पत्नी तथा बच्चे नीचे उतर चुके थे। मैं दर्द के कारण लंगड़ा रहा था। ड्राइवर ने बस को विलम्बित करने के लिए मुझे गाली दी तथा बस को चला दिया। तब मैं छलांग नहीं लगा सकता था। मैं ड्राइवर के रहम पर था। कुछ यात्री उठे और उन्होंने बस रोकने के लिए ड्राइवर को विवश कर दिया। इच्छा न होते हुए भी उसे बस रोकनी ही पड़ी। पीड़ा तथा तिरस्कार को सहन करता हुआ आधी फर्लाग की दूरी तय करके मैं अपने परिवार से जा मिला।

हमारे हॉल में पहुंचने से पूर्व ही फिल्म शुरू हो चुकी थी। फिल्म का प्रारम्भिक भाग न देखने के कारण हमारा सारा मजा किरकिरा हो गया। जलपान के लिए भी थोड़े पैसे बचे हुए थे। फिल्म समाप्त हुई। हमने स्कूटर किराए पर लिया तथा घर पहुंचकर उसके पैसे चुकाए।

अपने व्यक्तिगत कटु तजुर्बे के आधार पर मैं इस निष्कर्ष पर पहुंच पाया हूं कि बच्चों के साथ रैड लाइन की बसों में यात्रा करना सुगम नहीं है।

रैड लाइन की बसें अधिकतर खचाखच भरी हुई होती हैं। कन्डक्टर, जेबकतरों तथा चरित्रहीन व्यक्तियों को मुंह लगाए रहते हैं। नवयुवतियों की इज्जत हमेशा ताक पर रखी रहती है। विद्यार्थियों और कन्डक्टरों के बीच प्रायः नोक-झोंक होती रहती है। बसों के सर तोड़ तथा अंधाधुंध चलने के कारण बहुधा दुर्घटनाएं होती रहती हैं। कई बार चालक बसों को बिलकुल नहीं रोकते हैं तथा कई बार एक ही स्थान पर वे आधा घन्टे से अधिक बस को रोके रखते हैं। रेड लाइन की बस द्वारा यात्रा समयनाशक, असुविधापूर्ण तथा जीवन के लिए जोखिमपूर्ण होती है। कन्डक्टर, यात्रियों से अधिक भाड़ा लेने के लिए सदा तैयार रहते हैं।

February 24, 2020Hindi (Sr. Secondary), LanguagesNo Comment Hindi Essay, Hindi essays

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