हम आर्थिक गतिविधियों और ग्रामीण क्षेत्रों को कैसे बढ़ा सकते हैं? - ham aarthik gatividhiyon aur graameen kshetron ko kaise badha sakate hain?

ग्रामीण विकास का अर्थ लोगों का आर्थिक सुधार और बड़ा समाजिक बदलाव दोनों ही है। ग्रामीण विकास कार्यक्रमों में लोगों का बढ़ी हुई भागीदारी, योजनाओं का विकेन्द्रीकरण, भूमि सुधारों को बेहतर तरीके से लागू करना और ऋण की आसान उपलब्धि करवाकर लोगों के जीवन को बेहतर बनाने का लक्ष्य होता है।

प्रारंभ में, विकास के लिए मुख्य जोर कृषि, उद्योग, संचार, शिक्षा, स्वास्थ्य और संबंधित क्षेत्रों पर दिया गया था। बाद में यह समझने पर कि त्वरित विकास केवल तभी संभव है जब सरकारी प्रयासों के साथ साथ पर्याप्त रूप से जमीनी स्तर पर लोगों की प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष भागीदारी हो, सोच बदल गई।

ग्रामीण विकास विभाग द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में निम्नलिखित बड़े कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं:

(i) रोज़गार देने के लिए महात्मा गाँधी नेशनल रूरल एम्प्लॉयमेंट गारंटी एक्ट (मनरेगा)

(ii) स्व रोज़गार और कौशल विकास के लिए नेशनल रूरल लाइवलीहूडस मिशन (एनआरएलएम)

(iii) गरीबी रेखा से नीचे वाले परिवारों को आवास देने के लिए इंदिरा आवास योजना (आईएवाई)

(iv) अच्छी सड़कें बनाने के लिए प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (पीएमजीएसवाई)

(v) सामाजिक पेंशन के लिए नेशनल सोशल असिस्टेंस प्रोग्राम (एनएसएपी)

(vi) आदर्श ग्रामों के लिए सांसद आदर्श ग्राम योजना (एसएजीवाई)

(vii) गामीण विकास केंद्रों के लिए श्यामा प्रसाद मुख़र्जी रूर्बन मिशन

इसके आलावा मंत्रालय के पास ग्रामीण पदाधिकारियों की क्षमता के विकास; सूचना, शिक्षा और संचार; और निगरानी व मूल्यांकन के लिए भी योजनायें हैं।

ग्रामीण अर्थव्यवस्था कैसे संभली रही?

  • पाणिनी आनंद
  • बीबीसी संवाददाता, दिल्ली

11 सितंबर 2009

अपडेटेड 12 सितंबर 2009

हम आर्थिक गतिविधियों और ग्रामीण क्षेत्रों को कैसे बढ़ा सकते हैं? - ham aarthik gatividhiyon aur graameen kshetron ko kaise badha sakate hain?

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ग्रामीण क्षेत्र की अर्थव्यवस्था ने भी भारत को आर्थिक संकट के दौर में स्थिर रखने में मदद दी

वैश्विक आर्थिक मंदी के दौर में भारत के ग्रामीण विकास और ग्रामीण अर्थव्यवस्था के बारे में जानी मानी अर्थशास्त्री जयति घोष कहती हैं कि जहां संयुक्त प्रगतिशील गंठबंधन सरकार की पहली पारी गंभीर और सकारात्मक रही, वहीं दूसरी पारी में सरकार कम गंभीर नज़र आ रही है. उनका मानना है कि सरकार की कुछ तैयारियों और बदलावों के संकेत स्वागत योग्य नहीं हैं.

उनका मानना है कि वैश्विक आर्थिक मंदी के दौर में भारत की अर्थव्यवस्था के कुछ स्थिर और संभले रहने के पीछे की वजह यहाँ है की ग्रामीण अर्थव्यवस्था मज़बूत है.

ग्रामीण अर्थव्यवस्था के ऐसे कौन से पहलु हैं जिनके कारण भारतीय अर्थव्यवस्था को प्रतिकूल समय में भी मज़बूती मिली? इसे किन चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है?

ग्रामीण अर्थव्यवस्था के कई पहलुओं पर जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की प्रोफ़ेसर और जानी मानी अर्थशास्त्री जयति घोष से बीबीसी की विशेष बातचीत:

क्या आप सहमत हैं कि वैश्विक आर्थिक मंदी के दौर में भारतीय अर्थव्यवस्था के कुछ संभले रहने में ग्रामीण क्षेत्र की अर्थव्यवस्था का योगदान है? यदि हाँ, तो किस रूप में.

बिल्कुल है. बहुत अहम भूमिका है क्योंकि अभी भी 70 प्रतिशत श्रम ग्रामीण क्षेत्रों में ही है. इसकी एक अहम वजह यह भी है कि ग्रामीण क्षेत्र की अर्थव्यवस्था बहुत मज़बूत तो नहीं है मगर दुनिया की हलचल से थोड़ी सी अलग है.

ये बात अलग है कि पिछले 10-15 साल से ग्रामीण क्षेत्र की अर्थव्यवस्था के सामने भी कई संकट पैदा हुए हैं लेकिन यूपीए की सरकार 2004 में बनने के बाद ग्रामीण क्षेत्र की ओर थोड़ा सा ध्यान बढ़ा है. पैसा ग्रामीण क्षेत्रों में गया है. किसानों के बैंकों से लिए गए ऋण माफ़ किए गए हैं और सबसे बड़ी बात तो यह है कि रोज़गार गारंटी क़ानून जैसी चीज़ ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को मिली है.

इन कुछ वजहों से ग्रामीण अर्थव्यवस्था में थोड़ा सा सुधार आया है और इस सुधार ने देश की पूरी अर्थव्यवस्था को संभाले रखने में अपनी भूमिका निभाई है.

पर चिंता अब इस बात को लेकर है कि देश में आर्थिक संकट के कारण जो कुछ समस्याएं पैदा हुई हैं, उसके साथ सूखा भी पड़ गया है. इसकी वजह से किसानों के सामने एक बड़ी संकट की स्थिति पैदा हो गई है.

किसानों के हिसाब से देखें तो पिछले वर्ष खाद्यान्न का दाम बढ़ा और फिर नीचे गिरा. इसी तरह कैशक्रॉप का दाम जैसे तिलहन, गन्ना आदि भी ऊपर गया और फिर दाम नीचे गिरे. यह भी एक संकट है.

इन सारी स्थितियों को देखते हुए ग्रामीण क्षेत्र में संकट की स्थिति पैदा होने की आशंका है. इस ओर ध्यान देने की ज़रूरत है.

आख़िर ऐसा क्या हुआ कि ग्रामीण स्तर के बाज़ार संभले रहे?

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केंद्रीय मंत्री सीपी जोशी ने रोज़गार गारंटी क़ानून में बदलावों की बात की है जिनसे कई विशेषज्ञ और कार्यकर्ता असहमत हैं

देखिए, पहली बात तो है कि किसानों की कर्ज़ माफ़ी ने आबादी को कुछ राहत दी. हालांकि सारे किसान न तो बैंकों से ऋण ले पाते हैं और न ही उन तक इसका लाभ पहुँचा है, पर कुछ किसानों के कर्ज़ का बोझ घटा और उनको राहत मिली है.

दूसरा और सबसे बड़ा योगदान है रोज़गार गारंटी क़ानून का. रोज़गार क़ानून की वजह से लोगों को गांव में एक तरह की गारंटी तो मिली कि 100 दिन का काम मिलेगा. जहाँ गांवों में कोई विशेष राहत योजनाएँ नहीं चल रही थीं, स्थितियां और बिगड़ सकती थीं पर रोज़गार क़ानून ने स्थितियों को संभाला.

लोगों को न्यूनतम मज़दूरी नहीं मिलती थी. यहाँ उस मजदूरी के साथ 100 दिन का वादा था. सौ दिन न सही, 30-40 दिन तो काम मिला ही. इससे बहुत राहत मिली है लोगों को.

हम ऐसा भी न सोचें कि गांव की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से दुनिया के बाज़ार से अलग है. बल्कि पिछले 15 बरसों में इनका संबंध गहरा हुआ है क्योंकि अब किसान भी दुनिया के बाज़ार की ओर देखकर ही बीज बोते हैं, फ़सल पैदा करते हैं. उन्हें भी बाज़ार से बीज या खाद खरीदनी ही पड़ती है.

दूसरी बात यह है कि भारत का जो निर्यात पर आधारित बाज़ार है - जैसे आईटी या टैक्सटाइल के क्षेत्रों में हमारे गांवों से पलायन करके गए मजदूर - उनका भी बहुत अहम योगदान है. अगर प्रोफ़ेशनल के तौर पर नहीं तो सिक्योरिटी, क्लीनर, ड्राइवर जैसी कितनी ही ज़िम्मेदारियां ग्रामीण क्षेत्र से गए लोग उठाते हैं. इन लोगों के काम का मेहनताना कम है और इस वजह से इन लोगों ने हमारे कामों की कुल लागत को कम ही रखा है. इसलिए भी हम दुनिया के सामने मज़बूती से खड़े रहे.

अब निर्यात घटने की वजह से इनमें से काफी लोग वापस जा रहे हैं. ये लोग उन्हीं इलाकों में वापस जा रहे हैं जहाँ स्थितियां पहले ही खराब हैं. नक्सलवाद की समस्या है, विकास न होने की समस्या है, आधारभूत ढांचे के न होने की समस्या है. यह पूरी स्थिति विस्फोटक हो सकती थी लेकिन ऐसा नहीं हुआ और स्थिति संभली रही है और इसकी वजह बना है रोज़गार गारंटी क़ानून.

अभी तो ग्रामीण अर्थव्यवस्था ने एक अहम भूमिका निभाई है पर यदि यह स्थिति दोबारा पैदा होती है तो ग्रामीण अर्थव्यवस्था को किस तरह से तैयार रहने की ज़रूरत होगी.

देखिए, आर्थिक संकट हो या न हो, ग्रामीण अर्थव्यवस्था को संभालना तो है ही. सबसे पहले जो बुनियादी ज़रूरतें हैं, उन्हें लोगों तक पहुंचाने के लिए प्रयास किए जाने चाहिए. हर घर में बिजली पहुँचाना, यह तो कोई बड़ी बात नहीं है. हर गांव तक पक्का रास्ता पहुँचाना, यह कोई मुश्किल काम तो नहीं है. बांग्लादेश तक ने ऐसा सुनिश्चित कर लिया है तो फिर भारत में ये क्यों नहीं हो पा रहा है. पीने का साफ़ पानी घर-घर तक पहुँचना ज़रूरी है. इतना तो किया भी जा सकता है.

दूसरा ध्यान देना होगा सामाजिक स्तर पर आधारभूत ढांचा खड़ा करने की ओर..सुविधाएं उपलब्ध कराने की ओर.. जैसे स्वास्थ्य, शिक्षा आदि...

अगर भारत ऐसा कर पाता है तो एक तो रोज़गार बढ़ेगा, दूसरा ग्रामीण क्षेत्र की राष्ट्रीय आय में वृद्धि होगी. उत्पादन में बढ़त होगी. और इन सब चीज़ों से खुद विकास दिखाई देने लगेगा. अगर हम ग्रामीण विकास को मज़बूत कर लें तो हमारी अर्थव्यवस्था को इस बात की चिंता नहीं करनी पड़ेगी कि दुनिया की अर्थव्यवस्था में क्या हो रहा है.

क्या आपको लगता है कि आम आदमी का नारा देकर चलने वाली यूपीए सरकार ग्रामीण विकास को लेकर, ग्रामीण भारत की आर्थिक और बुनियादी स्थिति को लेकर गंभीर है?

अगर सरकार समग्र विकास की बात कह रही है तो यह तभी पूरा हो सकता है जब वह ग्रामीण विकास भी सुनिश्चित करें.

अभी तक के प्रयासों से यही दिखाई देता है कि सरकार तब तक इस दिशा में कोई क़दम उठाती है जब तक कि उस पर इसका दबाव हो. इससे पहले की सरकार में (2004-09) वामदलों का काफ़ी योगदान ग्रामीण क्षेत्र को लेकर रहा. उनकी ओर से सरकार पर ऐसा दबाव रहा जिसके चलते ग्रामीण विकास पर ज़ोर दिया गया. प्रगतिशील अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ा गया.

इस बार स्थितियां बदली हुई हैं. ग्रामीण विकास के प्रति सरकार उतनी गंभीर नहीं है. सभी के लिए खाद्य सुरक्षा की बात छोड़कर कुछ की खाद्य सुरक्षा की बात करने लगी है. रोज़गार गारंटी क़ानून के साथ भी कुछ बदलाव लाने की कोशिश की जा रही है जो कि इसके ख़र्च और प्रभाव को सीमित करेंगे.

ये कोई अच्छे संकेत नहीं हैं. यदि सरकार पर सामाजिक स्तर पर दबाव बनेगा तब ही वह चुनाव से पहले किए गए वादों को ईमानदारी से निभाएगी.

ग्रामीण क्षेत्रों में कौन सी गतिविधि की जाती है?

प्रत्येक क्षेत्र के उत्पादक संसाधनों का विकास। आधारिक संरचना का विकास जैसे बिजली, सिंचाई, साख (ऋण), विपणन, परिवहन सुविधाएँ – ग्रामीण सड़कों के निर्माण सहित राजमार्ग की पोषक सड़कें बनाना, कृषि अनुसंधान विस्तार और सूचना प्रसार की सुविधाएँ।

ग्रामीण आर्थिक प्रणाली क्या है?

ग्रामीण क्षेत्रों के आर्थिक विकास को और बेहतर बनाने के लिए यह आवश्यक है कि ग्रामीण विकास कार्यक्रमों के अंतर्गत ज्यादा-से-ज्यादा लोगों को सम्मिलित किया जाए, योजनाओं का विकेन्द्रीकरण किया जाए, भूमि सुधार संबंधी नियमों को बेहतर तरीक़े से लागू किया जाए एवं किसानों को ऋण संबंधी सुविधाएँ उपलब्ध करवाई जाएँ।

भारत में ग्रामीण विकास की आवश्यकता क्यों है?

ग्रामीण विकास का अर्थ लोगों का आर्थिक सुधार और बड़ा समाजिक बदलाव दोनों ही है। ग्रामीण विकास कार्यक्रमों में लोगों का बढ़ी हुई भागीदारी, योजनाओं का विकेन्द्रीकरण, भूमि सुधारों को बेहतर तरीके से लागू करना और ऋण की आसान उपलब्धि करवाकर लोगों के जीवन को बेहतर बनाने का लक्ष्य होता है।

ग्रामीण क्षेत्रों में साख की मांग क्यों होती है?

सामान्यतः इसकी अवधि एक-दो दिन अथवा एक सप्ताह होती है तथा मांग पर देय होता है। अल्पकालीन साख :- अल्पकाल के लिए प्रदान किए जाने वाले ऋणों को अल्पकालीन साख कहते है । इसकी अवधि सामान्यतः 6 माह तक होती है ।