गौतम बुद्ध और भगवान बुद्ध में क्या अंतर है? - gautam buddh aur bhagavaan buddh mein kya antar hai?

गौतम बुद्ध का जन्म ईसा से 563 साल पहले नेपाल के लुम्बिनी वन में हुआ। उनकी माता कपिलवस्तु की महारानी महामाया देवी जब अपने नैहर देवदह जा रही थीं तो उन्होंने रास्ते में लुम्बिनी वन में बुद्ध को जन्म दिया। कपिलवस्तु और देवदह के बीच नौतनवा स्टेशन से 8 मील दूर पश्चिम में रुक्मिनदेई नामक स्थान के पास उस काल में लुम्बिनी वन हुआ करता था। उनका जन्म नाम सिद्धार्थ रखा गया। सिद्धार्थ के पिता शुद्धोदन कपिलवस्तु के राजा थे और उनका सम्मान नेपाल ही नहीं, समूचे भारत में था। सिद्धार्थ की मौसी गौतमी ने उनका लालन-पालन किया, क्योंकि सिद्धार्थ के जन्म के 7 दिन बाद ही उनकी मां का देहांत हो गया था।

Show

गौतम बुद्ध का मूल नाम सिद्धार्थ है। गौतम उनका गोत्र था। शाक्य वंश में जन्मे सिद्धार्थ का 16 वर्ष की उम्र में दंडपाणि शाक्य की कन्या यशोधरा के साथ विवाह हुआ। यशोधरा से उनको एक पुत्र मिला जिसका नाम राहुल रखा गया। बाद में यशोधरा और राहुल दोनों बुद्ध के भिक्षु हो गए थे।

सिद्धार्थ के पिता का नाम शुद्धोदन और शुद्धोदन के पिता का नाम शाक्य था। प्राचीन भारत में शाक्य नाम का एक जनपद था जिसमें कई छोटे बड़े राजाओं का राज्य था। कहते हैं कि शाक्यों की जनसंख्‍या उस काल में 10 लाख के लगभग थी। उनकी राजधानी कपिलवस्तु थी। उनका राज्य नेपाल की तराई में पूरब से लेकर पश्‍चिम में लगभग 40 मील तक फैला था।

कुछ लोग कहते हैं कि श्रीमद्भागवत महापुराण और विष्णुपुराण में हमें शाक्यों की वंशावली के बारे में उल्लेख पढ़ने को मिलता है। कहते हैं कि राम के 2 पुत्रों लव और कुश में से कुश का वंश ही आगे चल पाया। कुश के वंश में ही आगे चलकर शल्य हुए, जो कि कुश की 50वीं पीढ़ी में महाभारत काल में उपस्थित थे। इन्हीं शल्य की लगभग 25वीं पीढ़ी में ही गौतम बुद्ध हुए थे। इसका क्रम इस प्रकार बताया गया है।

शल्य के बाद बहत्क्षय, ऊरुक्षय, बत्सद्रोह, प्रतिव्योम, दिवाकर, सहदेव, ध्रुवाश्च, भानुरथ, प्रतीताश्व, सुप्रतीप, मरुदेव, सुनक्षत्र, किन्नराश्रव, अंतरिक्ष, सुषेण, सुमित्र, बृहद्रज, धर्म, कृतज्जय, व्रात, रणज्जय, संजय, शाक्य, शुद्धोधन और फिर सिद्धार्थ हुए, जो आगे चलकर गौतम बुद्ध कहलाए। इन्हीं सिद्धार्थ के पुत्र राहुल थे। राहुल को कहीं-कहीं लांगल लिखा गया है। राहुल के बाद प्रसेनजित, क्षुद्रक, कुलक, सुरथ, सुमित्र हुए। इस तरह का उल्लेख शाक्यवंशी समाज की पुस्तकों में मिलता है। शाक्यवार समाज भी ऐसा ही मानता है।

#

राम के दोनों पुत्रों में कुश का वंश ही आगे बढ़ा तो कुश से अतिथि और अतिथि से, निषधन से, नभ से, पुण्डरीक से, क्षेमन्धवा से, देवानीक से, अहीनक से, रुरु से, पारियात्र से, दल से, छल से, उक्थ से, वज्रनाभ से, गण से, व्युषिताश्व से, विश्वसह से, हिरण्यनाभ से, पुष्य से, ध्रुवसंधि से, सुदर्शन से, अग्रिवर्ण से, पद्मवर्ण से, शीघ्र से, मरु से, प्रयुश्रुत से, उदावसु से, नंदीवर्धन से, सकेतु से, देवरात से, बृहदुक्थ से, महावीर्य से, सुधृति से, धृष्टकेतु से, हर्यव से, मरु से, प्रतीन्धक से, कुतिरथ से, देवमीढ़ से, विबुध से, महाधृति से, कीर्तिरात से, महारोमा से, स्वर्णरोमा से और ह्रस्वरोमा से सीरध्वज का जन्म हुआ।

कुश वंश के राजा सीरध्वज को सीता नाम की एक पुत्री हुईं। सूर्यवंश इसके आगे भी बढ़ा जिसमें कृति नामक राजा का पुत्र जनक हुआ जिसने योग मार्ग का रास्ता अपनाया था। कुश वंश से ही कुशवाह, मौर्य, सैनी, शाक्य संप्रदाय की स्थापना मानी जाती है, हालांकि अभी भी यह एक शोध का विषय है।

भगवान बुद्ध और उनका धम्म  
लेखक बोधिसत्व डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर
मूल शीर्षक The Buddha and His Dhamma
अनुवादक डॉ. भदन्त आनन्द कौशल्यायन
देश भारत
भाषा अंग्रेज़ी
श्रृंखला बुद्धिस्ट
प्रकार बौद्ध धम्म
प्रकाशक सिद्धार्थ महाविद्यालय प्रकाशन, मुंबई[1]
प्रकाशन तिथि १९५७
पृष्ठ ५९९
उत्तरवर्ती Dr. Babasheb Ambedkar, writings and speeches, v. 12. Unpublished writings ; Ancient Indian commerce ; Notes on laws ; Waiting for a visa ; Miscellaneous notes, etc.

भगवान बुद्ध और उनका धम्म यह डॉ॰ बाबासाहेब आंबेडकर द्वारा रचित प्रसिद्ध ग्रन्थ है।इस ग्रन्थ में डॉ॰ अम्बेडकर ने भगवान बुद्ध , महात्मा बुद्ध के विचारों की व्याख्या की है। यह तथागत बुद्ध के जीवन और बौद्ध धम्म के सिद्धान्तों पर प्रकाश डालता है। यह डॉ॰ बाबासाहेब आंबेडकर द्वारा रचित अंतिम ग्रन्थ है। यह ग्रंथ बुधिस्टी बौद्ध अनुयायिओं का धम्मग्रंथ है और उनके द्वारा एक पवित्र ग्रन्थ के रूप में उपयोग किया जाता है। । संपूर्ण विश्व भर और मुख्यतः बौद्ध जगत में यह ग्रंथ अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।[2]

यह ग्रंथ मूलतः अंग्रेज़ी में 'द बुद्धा ऐण्ड हिज़ धम्मा' (The Buddha and His Dhamma) नाम से लिखा हुआ है और हिन्दी, गुजराती, तेलुगु, तमिल, मराठी, मलयालम, कन्नड़, जापानी सहित और कई भाषाओं में अनुवाद किया गया है। प्रसिद्ध बौद्ध विद्वान और भिक्खू डॉ. भदन्त आनंद कौसल्यायन जी ने इस ग्रंथ का हिंदी अनुवाद किया है।

डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने उल्लेख किया है कि उनकी बौद्ध धम्म की सोच जानने के लिए उनकी तीन किताबें पढनी आवश्यक है- (१) भगवान बुद्ध और उनका धम्म, (२) बुद्ध और कार्ल मार्क्स; और (३) भारत में क्रांति और प्रतिक्रांति।[3]

ब्रिटेन के एक बौद्ध विहार में डॉ॰ बाबासाहेब की मूर्ति स्थापित है, और वहां डॉ॰ बाबासाहेब के हाथ में ‘भगवान बुद्ध और उनका धम्म’ ग्रंथ है।

इतिहास[संपादित करें]

यह ग्रन्थ का पहली बार बाबासाहेब के महापरिनिर्वाण ६ दिसंबर १९५६ के बाद १९५७ में प्रकाशित हुआ था। फिर से सरकार के शिक्षा विभाग द्वारा १९७९ में 'डॉ. आंबेडकर का सम्पूर्ण लेखन और भाषण' के रूप में ग्यारह भागों में प्रकाशित किया गया था। [4]

डॉ. आंबेडकर का ग्रंथ लिखने का उद्देश्य

इस किताब को लिखने के लिए में आग्रह करता हूं कि यह एक अलग कार्य है। 1951 में कलकत्ता की महाबोधि सोसायटी के (जर्नल , पत्रकारिता) के संपादक ने मुझसे कहा वैशाख (बुद्ध जयंती) के लिए एक लेख लिखिए। मैंने लेख लिखा तथा उस लेख में मैंने तर्क दिया कि बुद्ध का धम्म ही वह धर्म है जो भारतीय समाज को विज्ञान से जागृत कर , स्वीकार कर , विकसित कर सकता है। मैंने यह भी बताया है कि आधुनिक दुनिया के लिए बौद्ध धम्म ही उत्तम धर्म है जो वह इस दुनिया को विज्ञानवाद को बढ़ाते हुए विकसित कराते हुए सुख शांति प्रदान करते हुए आगे ले जायेगा। बौद्ध धम्म का तत्व ही विज्ञान है । बौद्ध धम्म का साहित्य इतना विशाल है। कोई भी इस बुद्ध धम्म के बारे में पूरा पढ़ सकते है। इसी वजह से यह विकास की गति को बढ़ाता है। इस लेख के प्रकाशन पर मैंने कई फोन, लिखित पत्र और मौखिक संबोधन, प्राप्त किया है तथा सभी ने मुझे बुद्ध और उनका धम्म ( budha and his Dhamma ) यह किताब लिखने को कहा ।।[3]

हिन्दी संस्करण[संपादित करें]

इस प्रसिद्ध ग्रंथ के अनुवादक पु. डॉ॰ भदन्त आनन्द कौसल्यायन (१९०५-१९८८) सन् १९५८ में थाईलैंड जाने के लिए बम्बई (अब मुंबई) से कलकत्ता जा रहे थे। स्टेशन पर उन्हें The Buddha and His Dhamma' की एक प्रति उपलब्ध कराई गई थी। कलकत्ता पहुंचते पहुंचते उन्होंने उसे अधिकांश पढ डाला और अनुवाद आरंभ कर दिया।

विश्व बौद्ध सम्मेलन के उत्सव के समय वे थाईलैंड में दो महिने तक इस ग्रंथ का अनुवाद समाप्त करने की वजह से रूके रहे। वहा महाधात, बैंकाक के उनके स्नेहीओं ने भी उनके अनुवाद कार्य में हर तरह से संभव मदद , सहायता की।

अनुवाद का कार्य समाप्त कर वे बैंकाक से जापान और बर्मा (म्यान्मार) गए। वे बर्मा से भारत आये एवं सन १९५९ जून महिने में श्रीलंका रवाना हो गये।

जब सन १९५७ में मूल अंग्रेजी ग्रंथ द बुद्ध एँड हिज् धम्म सर्व प्रथम प्रकाशित हुआ तो भारत एवं कई बौद्ध देशों के साथ दुनिया भर में इसका स्वागत हुआ। बोधिसत्व डॉ बाबासाहेब आंबेडकर का इस ग्रंथ के प्रकाशन पूर्व ही महापरिनिर्वाण हुआ था ।इसी कारण उन्होंने इस मूल अंग्रेजी ग्रंथ में किसी प्रकार के फूट नोट्स या उद्धारण नहीं दे पाए थे। आलोचकों का मुंह बंद करने के लिए प्राचीन ग्रंथो में से आधार खोजे गये। भन्तेजी कौसल्यायन ने श्रीलंका में मूल पालि ग्रंथों को देखकर फूट नोट्स तैयार किये और इसका अंग्रेजी अनुवाद तैयार कर अंग्रेजी संस्करण में जोडे है। इस प्रकार इस महान ग्रंथ की प्रामाणिकता सिद्ध की गई है।

सन १९६० में विश्व विद्यालय के अवकाश के दिनों में भन्तेजी भारत आये। भगवान बुद्ध और उनका धम्म की पांडुलिपि उनके साथ थी। वे मुंबई गये और उस समय के पिपल्स एज्युकेशन सोसाईटी के अध्यक्ष न्यायमूर्ति आर आर भोले से कहां मैंने बाबा साहेब के ग्रंथ का अनुवाद किया है।आप इसको छपवाने की व्यवस्था करें।

भोले साहब ने डॉ॰ आनंद कौसल्यायन द्वारा किए अनुवाद को दो तीन जगह , लोगों से पढवाकर , सुना और कहां कि मैं संतुष्ट हूँ और में विश्वास दिलाता हूं कि यह किताब जल्द ही छपेंगी।

इस का पहला हिन्दी संस्करण सन १९६१ में प्रकाशित हुआ। तब से आज तक इसके कई संस्करण निकले। भन्तेजी ने इस ग्रंथ का पंजाबी भाषा में भी अनुवाद किया है।

यह ग्रंथ ताईवान में पहुंचा तो दि कार्पोरेट बॉडी ऑफ दि बुद्धा एज्युकेशन फाउंडेशन, ताईवान के पदाधिकारीओं ने इसका हिन्दी एवं अंग्रेजी संस्करण छपवाकर बिना मूल्य वितरित करने की इच्छा व्यक्त की है। भारतीय बौद्ध उनके इस सराहनीय पुण्यमय कार्य के लिए अत्यंत कृत्यज्ञ है। सब्बे सत्ता सुखी होंतु।

सामग्री[5][संपादित करें]

परिचय[संपादित करें]

पुस्तक में बौद्ध धम्म के तत्वों को आधुनिक छात्रों के लिए एक जवाब के रूप में लिखा है। लेखक के सूचीबद्ध चार सवाल और उत्तर :

१)पहला सवाल भगवान बुद्ध के जीवन की प्रधान घटना प्रव्रज्या के संबंध में ही है । भगवान बुद्ध ने प्रव्रज्या क्यों ग्रहण की? परंपरागत जवाब यह है कि उन्होंने प्रव्रज्या लि क्योंकि उन्होंने एक वृद्ध व्यक्ति, एक बीमार व्यक्ति और एक मृत व्यक्ति को देखा था । स्पष्ट है कि यह उत्तर प्रभावित करने वाला नही है । भगवान बुद्ध ने 29 साल की उम्र में परिव्रजा लि । यह कैसे हो सकता है की उन्होंने इन तिन्हो जगहो को पहले नहीं देखा था ? ये सैकड़ों द्वारा होने वाली आम घटनाये हैं।

सही उत्तर यह है कि भगवान बुद्ध का जीवन आमतौर पर पूर्ण सुख समृद्धि पूर्ण था। बाहरी जीवन की कढ़िनाईया उनके जीवन में नही थी। लेकिन भगवान बुद्ध ने जब इन घटनाओं को देखा तो उनके मन में इन दुखों के बारे में सवाल उठ खड़े हुए । वह इन घटनाओं से काफी दुखी हुए।उनके मन में मानव दुखों को कम करने , दुख निवारण करने की इच्छा जागृत हुई , वह उस घटना के बाद से हमेशा दुख निवारण की खोज करने की सोच में डूबे रहते । इसी कारण उन्होंने प्रवज्या ग्रहण की।

२) दूसरा सवाल चार आर्य सत्य द्वारा बनाई गई बुद्ध की शिक्षाओं को मूल हिस्से के रूप में है? इस सिंधान्त को बौद्ध धर्म की जड़ माना जाता है। जीवन दु: ख है, मृत्यु दु: ख है। कैसे? जवाब यह है की मानव जीवन यह दुखों से भरा है , और इन दुखों का निवारण किया जा सकता है , दुख का कारण है तो निवारण भी रहेगा , और निवारण का मार्ग भी रहेगा और इसी मार्ग की राह से मानव सुख प्राप्त कर सकता है। यह सिंधांत बतानेवाले भगवान बुद्ध पहले इंसान है। इस सिद्धांत की वजह से दुनिया के लोग दुख मुक्ति के मार्ग पर चलकर सुख की और अग्रसर हुई। भगवान बुद्ध के बताए मार्ग पर दुनिया के लोग चलने लगे है।

३) तीसरा सवाल आत्मा के सिद्धांतों, कर्म और पुनर्जन्म से संबंधित है।भगवान बुद्ध ने आत्मा के अस्तित्व को इनकार किया। कैसे ? भगवान बुद्ध का सीधा सा सिंधांत है की इस सृष्टि में हर तरह के प्राणी , पशु पक्षी , मानव , और निसर्ग है जिनका अपना एक चक्र है । जो की सृष्टि नियमो से परिचालित होता है । उसमे आत्मा , परमात्मा , मोक्ष , पुनर्जन्म जैसे विचारो का कोई महत्व , तथ्य नहीं है। जीवन है तो मृत्यु भी रहेंगा, जन्म है तो मरण है । किसी तरह का कोई स्वर्ग या नरक नहीं है। जीवन और मृत्यु यह निसर्ग का ही चक्र है।


४)चौथा सवाल भिक्खु से संबंधित है। भिक्खु बनाने में बुद्ध की सोच क्या थी? भिक्खू को एक सही आदमी बनाने के लिए बनाया गया था? या लोगों की सेवा और उनके दोस्त, मार्गदर्शक बनने के लिए बनाया था। भिक्खु को एक सामाजिक सेवक बनाने के लिए बुद्ध का उद्देश्य था? यह एक बहुत ही असली सवाल है। बुद्ध ने भिक्खू को इसलिए बनाया ताकि वह अपने मानवता वादी विचार पूरे संसार में फैला सके । पूरी दुनिया के दुख को सुख की नई रोशनी का मार्ग बता सके तथा मानव जीवन को दुख से मुक्त करने के मार्ग पर ले जा सके। इस मार्ग की राह से आज संसार के सभी मानवजाति प्रभावित हुए है । इसीलिए पूरे संसार में बुद्ध को मानने वाले लोग मिलते है । पूरी दुनिया में बुद्ध के विचार विज्ञान वादी माने जाते है ।

विषय-सूचि[संपादित करें]

"भगवान बुद्ध उनका धम्म’ ग्रंथ कि विषय-सूचि

प्रथम सर्ग : सिद्धार्थ गौतम–बोधिसत्व किस प्रकार बुद्ध बने[संपादित करें]

  • भाग I - जन्म से प्रव्रज्या (गृहत्याग)
  • भाग II - सदा के लिए अभिनिष्क्रमण
  • भाग III - नये प्रकार की खोज में
  • भाग IV - ज्ञान-प्राप्ति और नए मार्ग का दर्शन
  • भाग V - बुद्ध और उनके पूर्वज
  • भाग VI - बुद्ध तथा उनके समकालीन
  • भाग VII - समानता तथा विषमता

द्वितीय सर्ग: धम्म दीक्षाओं का आन्दोलन[संपादित करें]

  • भाग I - बुद्ध और उनका विषाद योग
  • भाग II - परिव्रजकों की दीक्षा
  • भाग III - कुलीनों तथा धार्मिकों की धम्म-दीक्षा
  • भाग IV - जन्म भूमि का आवाहन
  • भाग V - धम्म दीक्षा का पुनरारम्भ
  • भाग VI - निम्नस्तर के लोगों की धम्म दीक्षा
  • भाग VII - महिलाओं की धम्म दीक्षा
  • भाग VIII - पतितों और अपराधियों की धम्म दीक्षा

तृतीय सर्ग: बुद्ध ने क्या सिखाया[संपादित करें]

  • भाग I - धम्म में भगवान बुद्ध की अपनी जगह
  • भाग II - बुद्ध के धम्म के बारें में विभिन्न विचार
  • भाग III - धम्म क्या है ?
  • भाग IV - अधम्म क्या है ?
  • भाग V - सद्धम्म क्या है ?

चतुर्थ सर्ग: धर्म (मज़हब) और धम्म[संपादित करें]

  • भाग I - मजहब और धम्म
  • भाग II - किस प्रकार शाब्दिक समानता तात्विक भेद को छिपाे रकती है
  • भाग III - बौद्ध जीवन का मार्ग
  • भाग IV - बुद्ध के उपदेश

दुनिया को बदल सकते है

पंचम सर्ग: संघ[संपादित करें]

  • भाग I - संघ
  • भाग II - भिक्खु: भगवान बुद्ध की कल्पना
  • भाग III - भिक्खु के कर्तव्य
  • भाग IV - भिक्खु और गृहस्थ समाज
  • भाग V - गृहस्थ धर्मावलंबियों के लिए विनय (जीवन-नियम)

षष्ठ सर्ग: भगवान बुद्ध और उनके समकालीन[संपादित करें]

  • भाग I - बुद्ध के समर्थक
  • भाग II - बुद्ध के विरोधी
  • भाग III - उनके सिद्धांतों (धम्म) के आलोचक
  • भाग IV - समर्थक और प्रशंसक

सप्तम सर्ग: महान परिव्राजक की अन्तिम चारिका[संपादित करें]

  • भाग I- निकटस्थ जनों से भेट
  • भाग II - वैशाली से विदाई
  • भाग III - महा-परिनिर्वाण

अष्टम सर्ग: महामानव सिद्धार्थ गौतम[संपादित करें]

  • भाग I - उनका व्यक्तित्व
  • भाग II - उनकी मानवता
  • भाग III - उन्हें क्या नापसंद था और क्या पसंद था ?

समाप्ति[संपादित करें]

नमो तस्स भगवतो अरहतो सम्मासम्बुद्धस्स

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • नवयान
  • दलित बौद्ध आंदोलन
  • दीक्षाभूमि
  • चैत्य भूमि
  • आंबेडकरवाद
  • आंबेडकर जयंती
  • भारत में बौद्ध धर्म का पुनरुत्थान

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. Ambedkar,Dr. B. R. The BUDDHA and HIS DHAMMA Archived 2016-12-10 at the Wayback Machine, retrieved 2008-12-27
  2. आंबेडकर, डॉ॰ भीमराव (1957). द बुद्ध एंड हिज़ धम्म [भगवान बुद्ध और उनका धम्म] (अंग्रेज़ी में). मुंबई: सिद्धार्थ महाविद्यालय, मुंबई. पृ॰ 599.
  3. ↑ अ आ "00_pref_unpub". www.columbia.edu. मूल से 2 मई 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 10 मार्च 2020.
  4. "Welcome to Open Library | Open Library". openlibrary.org. मूल से 19 जुलाई 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 19 जुलाई 2019.
  5. "The Buddha and His Dhamma, by Dr. B. R. Ambedkar". www.columbia.edu. मूल से 6 फ़रवरी 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 7 जनवरी 2017.

ग्रन्थसूची[संपादित करें]

  • Fiske, एडेल (2004)। बी.आर. में बौद्ध धर्म ग्रंथों का उपयोग अम्बेडकर की द बुद्ध और उनके धम्म। में: Jondhale, सुरेंद्र; बेल्ट्ज़, जोहानिस (सं।)। दुनिया के पुनर्निर्माण: बी.आर. अम्बेडकर और बौद्ध धर्म भारत में। नई दिल्ली: ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

  • ddha And His Dhamma Book Online
  • Dr.Ambedkar Website
  • Science journey channel

क्या गौतम बुद्ध भगवान थे?

गौतम बुद्ध शुद्धोदन व माया के पुत्र थे, जबकि शाक्यसिंह यानी भगवान गौतम बुद्ध बहुत ही ज्ञानी व्यक्ति थे, कठिन तपस्या के बाद जब उन्हें तत्त्वानुभूति हुई तो वे बुद्ध कहलाए यही भगवान बुद्ध विष्णु के अवतार हैं। इस बात की प्रमाणिकता ऐतिहासिक ग्रंथों में मिलती है।

गौतम बुद्ध कौन से भगवान को मानते थे?

ऐसा माना जाता है की बुद्ध किसी भी भगवान को नहीं मानते थे. उनके लिए सभी धर्म के भगवान समान थे. इसलिए वह किसी भी एक भगवान में नहीं मानते थे.

गौतम बुद्ध किसकी पूजा करते थे?

किंवदंती है कि देवी तारा की आराधना भगवान बुद्ध करते थे। हिन्‍दुओं के लिए सिद्धपीठ काली का मंदिर है।

बुद्ध ने क्यों कहा कि ईश्वर नहीं है?

बुद्ध का ईश्वर को नकारने का दूसरा कारण यह हैं कि ईश्वर का कोई प्रमाण नही हैं. कई धर्म यह दावा करते हैं कि उन्ही के शास्त्रों में ईश्वर के वचन हैं, सिर्फ वे ही एक मात्र ईश्वर को समझते हैं, उन्ही के ईश्वर का अस्तित्व हैं तथा औरों के ईश्वर का नही.