सरकार ने बाल मजदूरी को रोकने के लिए क्या कानून बनाए हैं? - sarakaar ne baal majadooree ko rokane ke lie kya kaanoon banae hain?

तमाम विरोधों के बाद अंततः बाल श्रम ( निषेध एवं विनियमन) संशोधन बिल 2016 सदन में पारित हो ही गया. बाल श्रम से तात्पर्य ऐसे कार्यों से है जिसको करने वाला व्यक्ति कानूनन निर्धारित उम्र से कम होता है. बाल श्रम को वैश्विक स्तर पर नकारात्मक दृष्टि से देखा जाता है. भारत में बालश्रम की समस्या दशकों से है. सरकारें लगातार इसके उन्मूलन हेतु कार्य करती हैं. देश का संविधान भी बाल श्रम उन्मूलन की बात करता है. इसके अनुच्छेद 23 में खतरनाक उद्योगों में बच्चों के रोजगार को प्रतिबंधित किया गया है. भारत सरकार ने बाल श्रम को समाप्त करने हेतु 1986 में बालश्रम निषेध और नियमन अधिनियम पारित किया. इसके अनुसार, खतरनाक उद्योगों में बच्चों की नियुक्ति निषिद्ध है. इसके बाद भी एक अनुमान के अनुसार वैश्विक स्तर पर बाल श्रमिकों की संख्या भारत में सर्वाधिक है. सरकारी आंकड़ों के अनुसार देश में बाल श्रमिकों की संख्या लगभग दो करोड़ और अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार लगभग पाँच करोड़ है. इसमें भी लगभग साढ़े चार लाख बाल श्रमिक पांच वर्ष से कम आयुवर्ग के हैं. इन बाल श्रमिकों में लगभग 19 प्रतिशत घरेलू नौकर हैं. वर्ष 1986 में बने बालश्रम निषेध और नियमन अधिनियम में 83 प्रकार के सूचीबद्ध खतरनाक एवं जोखिमयुक्त उद्योगों, व्यवसायों और व्यावसायिक प्रक्रियाओं में चौदह वर्ष से कम आयु के बच्चों का कार्य करना निषिद्ध था. होटलों, ढाबों, ऑटो रिपेयरिंग दुकानों के साथ-साथ घरेलू नौकरों के रूप में बच्चे कार्यरत दिखते हैं. इन कार्यों के अलावा खतरनाक और जोखिमयुक्त माने जाने वाले उद्योगों जैसे बीड़ी बनाना, गलीचा बुनाई, चूड़ी निर्माण, काँच उद्योग, चमड़ा, प्लास्टिक का सामान निर्माण, विस्फोटक आदि में भी कम उम्र के बच्चे लगे हुए हैं.

बाल श्रम ( निषेध एवं विनियमन) संशोधन बिल लाने के पीछे सरकारी तंत्र का तर्क रहा है कि वर्ष 2009 में अनिवार्य शिक्षा का अधिकार क़ानून आने के बाद चौदह वर्ष तक की आयु के बच्चों को शिक्षा उपलब्ध करवाना अनिवार्य है. ऐसा तभी संभव है जबकि इस आयुवर्ग के बच्चों को कार्य करने से प्रतिबंधित किया जाये. संशोधन के अनुसार यदि कोई बच्चा अपने परिवार को अथवा पारिवारिक रोजगार में मदद कर रहा हो तो उस पर यह कानून लागू नहीं होगा. इसके साथ ही स्कूल के बाद खाली समय में कार्य करने को; छुट्टियों में किसी रोजगार में संलग्न होने को भी कानूनी परिधि से मुक्त रखा गया है. इसमें एक शर्त को जोड़ा गया है कि बच्चा जिस रोजगार में संलिप्त हो वह जोखिम भरा अथवा खतरनाक न हो. इसके साथ-साथ टीवी कार्यक्रमों, फिल्मों, विज्ञापनों आदि में कलाकार के रूप में कार्यरत बच्चों पर भी यह क़ानून लागू नहीं होगा बशर्ते उसके इन कार्यों से उसकी पढ़ाई बाधित न हो. बाल श्रम उन्मूलन के लिए आवाज़ उठाने वालों की माँग रही है कि चौदह वर्ष तक के बच्चों को किसी भी व्यवसाय में कार्य करने से रोका जाये ताकि वे अनिवार्य शिक्षा क़ानून का लाभ उठा सकें. इनका तर्क है कि कमाई के लालच में परिवार वाले बच्चों को विद्यालय न भेजें, भले ही औपचारिकतावश वे बच्चों का पंजीकरण विद्यालयों में करवा दें. संशोधन का एक विरोध इस बात पर भी है कि पूर्व में उपलब्ध कानून में जोखिमयुक्त, खतरनाक व्यवसायों, उद्योगों के रूप में 83 उद्योगों की व्यापक सूची थी जबकि वर्तमान सरकार ने इन्हें कम करके मात्र तीन उद्योगों यथा खदान, ज्वलनशील पदार्थ और विस्फोटक उद्योग तक सीमित कर दिया है.

सरकार द्वारा भले ही ये तर्क दिया जाये कि वर्तमान संशोधनों को गरीब परिवारों को राहत देने के औजार के रूप में लाया गया है किन्तु यह किसी भी रूप में बच्चों के हितार्थ नहीं है. सरकार को समझना चाहिए कि होटलों, ढाबों, गुमटियों आदि में बड़ी संख्या में बच्चे काम करते दिखते हैं. अब कानून की मदद लेकर इन बच्चों को छद्म रिश्ते में बाँध दिया जायेगा. इसके साथ-साथ पारिवारिक व्यवसाय नितांत अनौपचारिक तरीके से संचालित किये जाते हैं, जहाँ काम के घंटे निर्धारित नहीं होते हैं. ऐसे में यहाँ बच्चों के अधिकारों और हितों की रक्षा कैसे सुनिश्चित होगी?

कस्बे के करौली बस स्टैंड पर भारत का भविष्य कहलाने वाले नन्हें-मुन्हें बच्चे हाथों में पाटी-पौथी की बजाय सफ़ाई करने वाला झाडू और हाथों से खींचकर सफाई करने वाली गाड़ी हाथों में नजर आ रही हैं। कस्बे के करौली बस स्टैंड पर सरकारी एवं प्राइवेट बसों के आते ही सड़कों पर ऐसे दौड़ते हुए पानी की बोतलें, नाश्ता इत्यादि बेचते अक्सर नजर आते है, जहां ये कभी-भी दुर्घटना का शिकार हो सकते हैं। ऐसे में ’बाल श्रमिकों का है अधिकार, रोटी-खेल-पढ़ाई प्यार, शिक्षा का प्रबंध करो, बाल मजदूरी बंद करो’ ये नारे दम तोड़ते नजर आ रहे हैं। भले ही सरकारों की ओर से गरीब लोगों का जीवन स्तर ऊपर उठाने के लिए बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं, लेकिन इन दावों की हवा निकलती हुई आमतौर पर देखी जा सकती है। अपने दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करने के लिए, कोई अपने घर का चूल्हा जलाने के लिए, तो कोई अपने बूढ़े मां-बाप की दवाई के लिए मजबूरन मजदूरी कर रहा है। कुछ बच्चे गंदगी के ढेरों में तलाशते, कारखानों, होटलों, ढाबों, रेलवे स्टेशनों, बस स्टैंडों पर बाल मजदूरी करने के लिए मजबूर हैं, इनका छिनता बचपन 21वीं सदी के भारत की आर्थिक तरक्की के काले चेहरे को पेश करता हैं। इन बच्चों के तबाह हो रहे बचपन को देखकर आजादी के 7 दशकों बाद भी सभ्याचार समाज की उस तस्वीर पर कई सवाल खड़े होते हैं, जहां बच्चों को ईश्वर का रूप माना जाता है। भले ही बाल मजबूरी को रोकने के लिए सरकारों की ओर से कानून तो बनाए गए हैं परंतु कानून की फाइलें दफ्तरों में ही दम घुटती रह जाती हैं। इधर, अधिशासी अधिकारी दीपक गोयल ने बताया कि मामले की जांच कर जल्द कार्यवाही की जाएगी। यह है नियम - वर्ष 1986 के दौरान सरकार की ओर से चाइल्ड लेबर एक्ट बनाकर बाल मजदूरी को अपराध माना गया है। बालश्रम विभाग द्वारा कारखाना, होटल, रेस्टोरेंट, ईट भट्ठों, क्रेसर, घरेलू नौकर एवं अन्य उद्योगों में 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों से काम लेना दंडनीय अपराध है। बाल श्रमिकों से काम करवाते हुए पाए जाने पर 20 हजार रुपए का जुर्माना तथा एक वर्ष की सजा का प्रावधान है। वहीं श्रम के दौरान किसी के द्वारा बाल श्रमिक के शोषण की जानकारी मिलने पर उसके खिलाफ कठोर कानूनी कार्रवाई की जाती है, लेकिन धरातल पर इन नियमों की पालना नहीं हो पा रही है।

बाल मजदूरी कैसे दूर करें और सरकार के प्रयास?

जिसके तहत देश के 6 से लेकर 14 वर्ष की आयु के हर बच्‍चे को शिक्षा देना अनिवार्य है। जो कि संबधित राज्य सरकार की तरफ से नि:शुल्‍क दी जानी चाहिए। ताकि इस उम्र में हर बच्‍चा पढ़ सके और अपने सपनों को पूरा कर सके। यदि इस उम्र के बीच में कोई भी बच्‍चा काम करता है तो उसे हम बाल मजदूरी के रूप में देखते हैं।

बाल मजदूरी को रोकने हमारे संविधान में क्या क्या प्रावधान किए हैं?

भारतीय संविधान में क्या है बच्चों से जुड़े प्रावधानसंविधान के अनुच्छेद 24 के तहत खतरनाक गतिविधियों में रोजगार के खिलाफ 14 से कम उम्र के बच्चों की सुरक्षा का प्रावधान किया गया है। वहीं, अनुच्छेद 23 में बाल तस्करी और मजबूर श्रम पर रोक लगाई गई है।

भारत सरकार ने चाइल्ड लेबर एक्ट कब बनाया?

बाल श्रम (निषेध व नियमन) कानून 1986- यह कानून 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को 13 पेशा और 57 प्रक्रियाओं में, जिन्हें बच्चों के जीवन और स्वास्थ्य के लिए अहितकर माना गया है, नियोजन को निषिद्ध बनाता है।

बाल मजदूरी निषेध अधिनियम कब संशोधित किया गया?

ज़रूरत के हिसाब से 1986 के बाल मज़दूरी क़ानून में संशोधन किया गया है।