गहन निर्वाह कृषि के प्रकारों का वर्णन - gahan nirvaah krshi ke prakaaron ka varnan

गहन निर्वाह कृषि—यह कृषि की वह पद्धति है जिसमें अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए प्रति इकाई भूमि पर पूँजी और श्रम का अधिक मात्रा में निवेश किया जाता है।

गहन निर्वाह कृषि के प्रकार

गहन निर्वाह कृषि के दो प्रकार हैं

1. चावल प्रधान गहन निर्वाह कृषि — इसमें चावल मुख्य फसल होती है। जनसंख्या घनत्व की अधिकता के कारण खेत छोटे होते हैं। कृषि में कृषक का पूरा परिवार लगा रहता है। भूमि का गहन उपयोग होता है तथा मानव श्रम का अपेक्षाकृत अधिक महत्त्व है। भूमि की उर्वरता बनाए रखने के लिए गोबर खाद व हरी खाद का उपयोग किया जाता है। इसमें प्रति इकाई उत्पादन अधिक एवं प्रति कृषक उत्पादन कम होता है।

2. चावल रहित गहन निर्वाह कृषि — मानसून एशिया के अनेक भागों में उच्चावच, जलवा (, मृदा तथा अन्य भौगोलिक दशाएँ चावल की खेती के लिए अनुकूल नहीं हैं। ऐसे ठण्डे और कम वर्षा वाले क्षेत्र उत्तरी चीन, मंचूरिया, उत्तरी कोरिया एवं उत्तरी जापान में स्थित हैं। यहाँ चावल की अपेक्षा गेहूँ, सोयाबीन, जौ एवं सोरघम बोया जाता है। भारत के गंगा-सिन्धु मैदान के पश्चिमी भाग में गेहूँ और दक्षिणी एवं पश्चिमी शुष्क प्रदेश में ज्वार-बाजरा मुख्य रूप से उगाया जाता है। इस कृषि में सिंचाई की जरूरत पड़ती है।

गहन निर्वाह कृषि की विशेषताएँ

गहन निर्वाह कृषि की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

⦁    जनसंख्या घनत्व की अधिकता के कारण खेतों का आकार छोटा होता है।
⦁    कृषि कार्य में कृषक का पूरा परिवार लगा रहता है।
⦁    इस कृषि में यन्त्रों का महत्त्व अपेक्षाकृत कम होता है और मानव श्रम का बड़े पैमाने पर उपयोग होता है।
⦁    कृषि भूमि पर जनसंख्या के अधिक दबाव के कारण भूमि का अनुकूलतम प्रयोग करने की चेष्टा की जाती है।
⦁    कृषि की गहनता इतनी अधिक है कि एक वर्ष में तीन या चार फसलें उगाई जाती हैं।
⦁    भूमि की उर्वरता बनाए रखने के लिए पशुओं की गोबर की खाद एवं हरी खाद का उपयोग किया जाता है।
⦁    इस कृषि में प्रति इकाई उत्पादन अधिक होता है, लेकिन प्रति कृषक उत्पादन कम होता है।
⦁    इस कृषि में खाद्यान्न फसलों पर अधिक जोर दिया जाता है।
⦁    यह कृषि अत्यधिक उपजाऊ भूमि और उपयुक्त जलवायु वाले क्षेत्रों में की जाती है।

Solution : गहन निर्वाह कृषि, निर्वाह कृषि का ही एक स्वरूप है। गहन निर्वाह कृषि में कृषक अपने छोटे भूखण्ड पर साधारण औजारों से अधिक श्रम करके खेती करता है। इस खेती में अधिक धूप वाले दिनों से युक्त जलवायु और उवर मृदा वाले खेत में, एक वर्ष में एक से अधिक फसलें उगाई जा सकती हैं। इसमें चावल मुख्य फसल होती है तथा अन्य फसलों में गेहूँ, मक्का, दलहन और तिलहन शामिल हैं। गहन निर्वाह कृषि दक्षिणी, दक्षिण-पूर्वी और पूर्वी एशिया के सघन जनसंख्या वाले मानसूनी प्रदेशों में प्रचलित है।

गहन कृषि या सघन कृषि जीविका कृषि का एक प्रकार है जिसे भूमि पर अत्यधिक जनसंख्या वाले क्षेत्रों में किया जाता है। यह श्रमसाध्य कृषि है जहाँ उत्पादन को बढ़ाने के लिए अधिक मात्रा में जैव-रसायनिक निवेशों और सिंचाई का प्रयोग किया जाता है। अधिक धूप वाले दिनों से युक्त जलवायु और उर्वर मृदा वाले खेतों में एक ही वर्ष में एकाधिक फसल उगाया जा सकता है। यह कृषि दक्षिणी, दक्षिण पूर्वी और पूर्वी एशिया के सघन जनसंख्या वाले प्रदेशों में प्रचलित है।

हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम, १९५६ के कारण पीढ़ी दर जोतों का आकार छोटा और अलाभप्रद होता जा रहा है। कृषक वैकल्पिक रोजगार न होने के कारण सीमित भूमि से अधिकतम उपज लेने की चेष्टा करते हैं।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • विस्तीर्ण खेती (extensive farming)

गहन निर्वाह कृषि और विस्तृत वाणिज्य अनाज कृषि में अन्तर स्पष्ट कीजिए।


गहन निर्वाह कृषि

  1. उच्च जनसंख्या घनत्व के कारण खेतों का आकार छोटा होता है
  2. मशीनों का उपयोग बहुत कम होता है।
  3. भूमि का गहन उपयोग किया जाता है।
  4. प्रति इकाई उत्पादन अधिक परन्तु प्रति कृषक उत्पादन कम होता है।
  5. कृषि का समस्त कार्य कृषक तथा उसके परिवार के सदस्य करते है।

विस्तुत वाणिज्य अनाज कृषि

  1. मध्य अक्षांशों के अतिरिक अर्ध शुष्क प्रदेशों में की जाती है।
  2. खेतों का आकार बहुत बड़ा होता है।
  3. मशीनों का उपयोग अधिक किया जाता है।
  4. प्रति एकड़ उत्पादन कम होता है परन्तु प्रति व्यक्ति उत्पादन अधिक होता है।
  5. वाणिज्यिक दृष्टि से कृषि की जाती है।


निम्नलिखित में से कौन-सी रोपण फसल नहीं है?

  • कॉफी

  • गन्ना

  • गेहूँ

  • रबड़


चलवासी पशुचारण और वाणिज्य पशुधन पालन में अंतर कीजिए ।


चलवासी तथा व्यापारिक पशुपालन में निम्नलिखित अंतर हैं-

चलवासी पशुचारण व्यापारिक पशुपालन
  1. चलवासी पशुचारण में चरवाहे चारे तथा जल की तलाश में इधर-उधर घूमते हैं।
  2. चलवासी चरवाहे अविकसित तथा प्राचीन पद्धति से पशुपालन करते हैं।
  3. चलवासी पशुपालन एक जीवन-निर्वाह पद्धति है।
  4. चलवासी पशुचारण में विभिन्न प्रकार के पशुओं को रखा जाता है।
  5. चलवासी पशुपालन में चारा प्राकृतिक रूप से विकसित होता है।
  6. इसमें पशुओं के प्रजनन तथा नस्त सुधार के प्रयास नहीं किए जाते।
  7. चलवासी पशुचारण में पशुओं के स्वास्थ्य की जांच तथा उपचार की व्यवस्था नहीं होती है।
  8. चलवासी पशुचारण अर्धशुष्क प्रदेशों की कठोर जलवायु में होता है।
  9. चलवासी पशुचारण के मुख्य क्षेत्र सहारा, दक्षिणी-पश्चिमी व मध्य एशिया, यूरेशिया में टुंड्रा का दक्षिणी सीमांत व दक्षिणी पश्चिमी अफ्रीका हैं।
  1. व्यापारिक पशुपालन में चारे तथा जल की समुचित व्यवस्था की जाती है तथा चरवाहे स्थायी तौर पर एक ही स्थान पर पशुओं के साथ रहते हैं।
  2. व्यापारिक पशुपालन में आधुनिक पद्धति से पशुपालन किया जाता है।
  3. व्यापारिक पशुपालन में दूध, मांस, खाल, ऊन आदि का उत्पादन होता है जिसका अन्य देशों के साथ व्यापार किया जाता है। अधिक लाभ कमाने के उद्देश्य से उत्पादन किया जाता है।
  4. व्यापारिक पशुपालन में पशुओं को अनुकूल दशाओं के अनुसार रखा जाता है अर्थात् जिस पशु के लिए भौगोलिक दशा अनुकूल हो उनको वहीं रखा जाता है।
  5. व्यापारिक पशुपालन में पशुओं के लिए चारा फार्म में उगाया जाता है।
  6. इस पद्धति में पशुओं के प्रजनन तथा नस्ल सुधार के प्रयास किए जाते हैं।
  7. व्यापारिक पशुपालन में पशुओं के स्वास्थ्य तथा बीमारियों की रोकथाम तथा उपचार की व्यवस्था होती है।
  8. व्यापारिक पशुपालन शीतोष्ण घास के मैदानों में सम जलवायु में होता है।
  9. व्यापारिक पशुपालन के मुख्य क्षेत्र उत्तरी अमेरिका के प्रेयरी, दक्षिणी अमेरिका के लानोस व पम्पास, दक्षिणी अफ्रीका के वेल्ड, ऑस्ट्रेलिया के डाऊन्स व न्यूजीलैंड के घास स्थल हैं।


निम्नलिखित देशों में से किस देश में सहकारी कृषि का सफल परीक्षण किया गया है?

  • रूस

  • डेनमार्क

  • भारत

  • नीदरलैंड


फूलों की कृषि कहलाती है-

  • ट्रक फार्मिंग

  • कारखाना कृषि

  • मिश्रित कृषि

  • पुष्पोत्पादन


रोपण कृषि की मुख्य विशेषताएँ बतलाइए एवं भिन्न-भिन्न देशों में उगाई जाने वाली कुछ प्रमुख रोपण फसलों के नाम बतलाइए।


रोपण कृषि की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. इसमें कृषि क्षेत्र का आकार बहुत विस्तृत होता है।
  2. इसमें अधिक पूँजी, निवेश, उच्च प्रबंधन, तकनीकी आधार एवं वैज्ञानिक विधियों का प्रयोग किया गया है।
  3. यह एक फसली कृषि है जिसमें किसी एक फसल के उत्पादन पर ही संकेंद्रण किया जाता है।
  4. सस्ते श्रमिकों की उपलब्धता रहती है।
  5. यातायात के साधन विकसित होते हैं जिसके द्वारा बागान एवं बाजार सुचारू रूप से जुड़े रहते हैं।

मुख्य फसलें - यूरोपीय लोगों ने विश्व के अनेक भागों का औपनिवेशीकरण किया तथा कृषि के कुछ अन्य रूप जैसे रोपण कृषि की शुरुआत की। रोपण कृषि की मुख्य फसलें हैं - चाय, कॉफी, कोको, रबड़, गन्ना, कपास, केला एवं अनानास ।