फिनोल अल्कोहल से ज्यादा अम्लीय है।

फ़िनोल (IUPAC: Benzenol) एक एरोमैटिक कार्बनिक यौगिक है जिसका अणुसूत्र C6H5OH है। यह सफेद रंग का क्रिस्टलीय ठोस पदार्थ है। इसका अणु फिनाइल समूह (−C6H5) और हाइड्रॉक्सिल समूह (−OH) के आबन्धन से बना होता है। यह अल्प मात्रा में अम्लीय होता है तथा इसे सावधानीपूर्वक काम में लेना पड़ता है क्योंकि इससे रासायनिक जलन पैदा हो सकती है। फिनॉल एक महत्वपूर्न रासायनिक यौगिक है जिसके द्वारा अन्य अनेकों पदार्थ या यौगिक बनाए जाते हैं। यह प्रधानतः प्लास्टिक एवं उसी से सम्बन्धित पदार्थों के संश्लेषण में प्रयुक्त होता है। फिनॉल और इससे व्युत्पन्न यौगिक पॉलीकार्बोनेट, इपॉक्सी, बैकेलाइट, नाइलोन, डिटर्जेन्ट, शाकनाशी और अनेकों औषधियों के उत्पादन के लिए अत्यावश्यक है।

बेंजीन केंद्रक का एक या एक से अधिक हाइड्रोजन जब हाइड्रॉक्सिल समूह से विस्थापित होता है, तब उससे जो उत्पाद प्राप्त होते हैं उसे फिनोल कहते हैं। यदि केंद्रक में एक ही हाइड्रॉक्सिल रहे, तो उसे मोनोहाइ-ड्रिक फिनोल, दो हाइड्रॉक्सिल रहें तो उसे डाइहॉइड्रिक फिनोल और तीन हाइड्रॉक्सिल रहें, तो उसे ट्राइहाइड्रिक फिनोल कहते हैं।

अन्य नामHydroxybenzene, Carbolic Acid, Benzenol, Phenylic AcidHydroxybenzene, Phenic acid, Phenyl alcohol

फिनॉल अम्लीय क्यों?

जब फिनोल H+ आयन प्रदान करता है तो फिनॉक्साइड आयन प्राप्त होता है यह आयन अनुनाद के कारण और अधिक स्थाई हो जाता है जिससे फिनॉक्साइड आयन तथा H+ के बीच पूर्ण मिलन नहीं होता है परिणाम स्वरुप फिनॉल अम्लीय गुण दर्शाता है

मोनोहाइड्रिक फिनोल कोयले और काठ के शुष्क आसवन से बनते हैं। इसी विधि से व्यापार का कार्बोलिक अम्ल प्राप्त होता है। कार्बोलक अम्ल का आविष्कार पहले-पहले रूंगे (Runge) द्वारा 1834 ई. में हुआ था। 1840 ई. में लॉरें (Laurent) को अलकतरे में इसकी उपस्थिति का पता लगा। इसका फिनोल नाम ज़ेरार (Gerhardt) द्वारा 1843 ई. में दिया गया था। 1867 ई. में वुर्टस (Wurts) और केक्यूले (Kekule) द्वारा फिनोल बेंजीन से पहले पहल तैयार हुआ था।

फिनोल तैयार करने की अनेक विधियाँ मालूम हैं, पर आज फिनोल का व्यापारिक निर्माण अलकतरे या बेंजीन से होता है। अलकतरे के प्रभाजी आसवन से जो अंश 170 डिग्री सें 230 डिग्री सें. पर आसुत होता है उसे मध्य तेल या कार्बोलिक तेल कहते हैं। सामान्य फिनोल इसी में नैपथलीन के साथ मिला हुआ रहता है। दाहक क्षार के तनु विलयन से उपचारित करने से फिनोल विलयन में घुलकर निकल जाता है और नैफ़्थलीन अवलेय रह जाता है। विलयन के गन्धकाम्ल या कार्बन डाईऑक्साइड द्वारा विघटित करने से फिनोल अवक्षिप्त होकर जल से पृथक् हो जाता है।

शुद्ध कार्बोलिक अम्ल सफेद, क्रिस्टलीय, सूच्याकार, ठोस होता है, पर, यह वायु में रखे रहने से पानी का अवशोषण कर द्रव बन जाता है, जिसका रंग पहले गुलाबी पीछे प्राय: काला हो जाता है। इसके क्रिस्टल 430 डिग्री सें. पर पिघलते हैं। यह जल में कुछ विलेय होता है। इसका जलीय विलयन निस्संक्रामक होता है और घावों तथा सर्जरी के उपकरणों आदि के धोने में प्रयुक्त होता है। फिनोल की गंध विशिष्ट होती है। यह विषैला होता है। अम्लों के साथ यह एस्टर बनाता है। इसके वाष्प को तप्त (390 डिग्री से 450 डिग्री सें.) थोरियम पर ले जाने से फिनोल ईथर बनता है। फिनोल के ईथर सरल या मिश्रित दोनों प्रकार के हो सकते हैं। फॉस्फोरस पेन्टाक्लोराइड के उपचार से यह क्लोरो बेंजीन बनता है। ब्रोमीन की क्रिया से यह ट्राइब्रोमो फिनोल बनता है। यह क्रिया मात्रात्मक होती है और फिनोल को अन्य पदार्थों से पृथक करने या फिनोल की मात्रा निर्धारित करने में प्रयुक्त होती है। फिनोल सक्रिय यौगिक है। अनेक अभिकर्मकों के साथ वह यौगिक बनता है। अनेक पदार्थों के संपर्क में आने से वह विशिष्ट रंग देता है, जिससे यह पहचाना जाता है।

फिनोल से सैलिसिलिक अम्ल और उसके एस्टर सैलोल आदि बड़े महत्व के व्यापारिक पदार्थ बनते हैं। इससे पिक्रिक अम्ल भी बनता है, जो एक समय बड़े महत्व का विस्फोटक और रंजक था। कृत्रिक रंजकों के निर्माण में भी कार्बोनिक अम्ल प्रयुक्त होता है। यह बड़े महत्व का निस्संक्रामक है। इससे अनेक जीवाणुनाशक, कवकनाशक, घासपात नाशक तथा अन्य बहुमूल्य ओषधियाँ आज तैयार होती हैं।

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फिनोल अल्कोहल से अधिक अम्लीय होता है कि जब फिनोल यानी सी सिक्स hi5 एक्वा सलूशन जलीय विलयन में एच प्लस आयन यानी प्रोटॉन निकाल देता है तो c65 ओमाइनस कन्ज्यूगेट बेस बनता है और वह कन्ज्यूगेट बेस अनुनाद यानी रेजोनेंस प्रदर्शित करने की वजह से अपने आप को इस टेबल यानी स्थायित्व कर लेता है जबकि अल्कोहल एच ए सॉल्यूशन में जलीय विलियन में एच प्लस निकालने के बाद अल्कॉक्साइड एंड बनाता है जोकि रेजोनेंस जाने अनुनाद प्रदर्शित नहीं करता है और अपने आप को स्टेबल यानी स्थाई नहीं कर पाता है क्योंकि फिनोल का कन्ज्यूगेट बेस स्टेबल होता है जबकि एलकॉक अल्कोहल का कैंडिडेट बेस्ट यानी अल्कॉक्साइड कांस्टेबल होता है इसलिए ज्यादा से ज्यादा होता है अल्कोहल से

phenol alcohol se adhik amliya hota hai ki jab phenol yani si six hi5 aqua salution jallian vilayan me h plus ion yani proton nikaal deta hai toh c65 omainas kanjyuget base banta hai aur vaah kanjyuget base anunaad yani resonance pradarshit karne ki wajah se apne aap ko is table yani sthaayitv kar leta hai jabki alcohol h a solution me jallian viliyan me h plus nikalne ke baad alkaksaid and banata hai joki resonance jaane anunaad pradarshit nahi karta hai aur apne aap ko stable yani sthai nahi kar pata hai kyonki phenol ka kanjyuget base stable hota hai jabki elakak alcohol ka candidate best yani alkaksaid constable hota hai isliye zyada se zyada hota hai alcohol se

फिनोल अल्कोहल से ज्यादा अमली है क्या?

फिनॉल अल्कोहल से ज्यादा अम्लीय है।

फिनोल अल्कोहल की तुलना में अधिक अम्लीय क्यों होता है विस्तार से समझाइए?

यह पुनः H + आयन के साथ जुड़कर एल्कोहल का निर्माण कर देता है , इस कारण यह कम अम्लीय होता है। जबकि फिनोल में एक H + आयन के त्याग से फिनोक्साइड आयन बनता है , यह फिनोक्साइड आयन अनुनाद के द्वारा स्थायित्व दर्शाता है। इस कारण फिनॉल अधिक अम्लीय होता है।

अल्कोहल और फिनोल में क्या अंतर है?

एल्कोहल यह परीक्षण नहीं देते हैं। फिनोल इसके साथ कोई क्रिया नहीं करता है। प्राथमिक एवं द्वितीयक एल्कोहाल I2 एवं NaOH के साथ क्रिया करके आयोडोफॉर्म का पीला अवक्षेप देते हैं। फिनोल NaOH से क्रिया करके सोडियम फिनाक्साइड लवण बनाता है।

फिनोल की प्रकृति अम्लीय है क्यों?

Solution : फीनॉल में –OH समूह बेन्जीन नाभिक से जुड़ा होता है अतः प्रोटोन त्यागने पर यह फीनॉक्साइड आयन बनाता है जो अनुनाद के कारण स्थायित्व व्यक्त करता है अत: फीनॉल का अम्लीय गुण उसके फीनॉक्साइड के अनुनादी स्थायित्व के कारण होता है।