चिपको आंदोलन के प्रणेता और विश्वविख्यात पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा का 21 मई 2021 को निधन हो गया। वे कोरोना वायरस से संक्रमित होने के बाद ऋषिकेश एम्स में भर्ती थे जहाँ उन्होंने चिकित्सा के दौरान अंतिम साँस ली। Show
भारत के विश्वविख्यात पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा का 21 मई 2021 को 93 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उन्हें कोरोना वायरस से संक्रमित होने के बाद उन्हें 8 मई को एम्स ऋषिकेश में भर्ती कराया गया था। शरीर में ऑक्सीजन के स्तर की कमी होने के कारण उनकी स्थिति गंभीर बनी हुई थी। उन्हें एम्स ऋषिकेश में आईसीयू में लाइफ सपोर्ट में रखा गया था, जहाँ चिकित्सक विशेषज्ञों की पूरी कोशिश के बाद भी उन्हें बचाया नहीं जा सका।
पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा का अंतिम संस्कार ऋषिकेश के गंगा तट के पूर्पणानंद घाट पर पूरे राजकीय सम्मान के साथ किया गया। एम्स के निदेशक प्रोफेसर रविकांत ने उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए उनके निधन को उत्तराखंड ही नहीं, बल्कि पूरे देश की अपूरणीय क्षति बताया है। मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने भी पर्यावरणविद् बहुगुणा के निधन पर गहरा शोक व्यक्त करते हुए इसे देश की अपूरणीय क्षति बताया है। प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति ने शोक व्यक्त किया-सुंदरलाल बहुगुणा की मृत्यु पर प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी और राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविंद ने भी गहरा शोक व्यक्त करते हुए कहा कि उनकी मृत्यु देश के लिए ऐतिहासिक और अपूरणीय क्षति है।
9 जनवरी, 1927 को उत्तराखंड के टिहरी जिले में जन्मे सुंदरलाल बहुगुणा न सिर्फ देश बल्कि दुनिया भर में प्रकृति और पर्यावरण संरक्षण के बड़े प्रतीक के रूप में शुमार हैं, सुंदरलाल बहुगुणा को सत्तर के दशक के चिपको आंदोलन का प्रणेता माना जाता है। गांधी के पक्के अनुयायी बहुगुणा ने अपने जीवन का एकमात्र लक्ष्य पर्यावरण की सुरक्षा को तय कर लिया था तथा उन्होंने पर्यावरण सुरक्षा को अपना जीवन समर्पित कर दिया। उन्होंने सत्तर के दशक में गौरा देवी तथा कई अन्य लोगों के साथ मिलकर जंगल बचाने के लिए चिपको आंदोलन की शुरूआत की थी जो विश्व भर में प्रसिद्द हुआ इसके साथ ही इस आन्दोलन ने देश और दुनिया को वनों के संरक्षण के लिए प्रेरित भी किया। चिपको आंदोलनबहुआयामी व्यक्तित्व के धनी बहुगुणा का नदियों, वनों व प्रकृति से बेहद गहरा जुड़ाव था। सुंदरलाल की सबसे बड़ी उपलब्धि चिपको आंदोलन को माना जाता है। 1960 के दशक में उन्होंने अपना ध्यान वन और पेड़ की सुरक्षा पर केंद्रित किया। पर्यावरण सुरक्षा के लिए 1970 में कई आन्दोलन शुरू हुए। पर्यावरण सुरक्षा के प्रति हुए आंदोलन पूरे भारत में फैलने लगे जिसमे चिपको आंदोलन भी उसी का एक हिस्सा था। सत्तर के दसक में सुन्दरलाल बहुगुणा ने गौरा देवी तथा कई अन्य लोगों के साथ मिलकर जंगल बचाने के लिए चिपको आंदोलन की शुरूआत की। इस आन्दोलन की शुरुआत तत्कालीन उत्तरप्रदेश से हुई थी। उस समय गढ़वाल हिमालय के क्षेत्रों में पेड़ों के काटने को लेकर शांतिपूर्ण आंदोलन बढ़ते जा रहे थे। चिपको आन्दोलन की मत्वपूर्ण घटना 26 मार्च, 1974 को घटित हुई जब चमोली जिला की कुछ ग्रामीण महिलाएं उस समय पेड़ से चिपककर खड़ी हो गईं जब कुछ आदमी पेड़ काटने के लिए आए। यह विरोध प्रदर्शन तुरंत पूरे देश में फैल गए तथा लोग ऐसे हीं कई तरह के शांतिपूर्ण तरीके से आन्दोलन में हिस्सा लेने लगे।
1980 की शुरुआत में सुन्दरलाल बहुगुणा ने हिमालय की 5,000 किलोमीटर की यात्रा की। इस दौरान उन्होंने कई गांवों का सफ़र किया, 1981 to 1983 तक चले इस यात्रा के दौरान उन्होंने लोगों को इक्कठा किया, लोगों के बीच पर्यावरण सुरक्षा का संदेश फैलाया, पर्यावरण संरक्षण की प्रेरणा दी तथा लोगों को इस आन्दोलन से जुड़ने के लिए आग्रह किया। चिपको आन्दोलन के कारण वे वृक्षमित्र के नाम से पुरी दुनिया में प्रसिद्ध हो गये तथा उनके कार्यो से प्रभावित होकर अमेरिका के फ्रेड ऑफ़ नेचर (Friend of nature) नामक संस्था ने उन्हें 1980 में सम्मानित किया था। 1980 में उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से भेंट की और इंदिरा गांधी से 15 सालों तक के लिए पेड़ों के काटने पर रोक लगाने का आग्रह किया। परिणामस्वरुप इसके बाद पेड़ों के काटने पर 15 साल के लिए रोक लगा दिया गया। टिहरी बांध निर्माणसुन्दरलाल बहुगुणा टिहरी बांध जैसी बड़ी परियोजनाओं के पक्षधर नहीं थे। इसे लेकर उन्होंने वृहद आंदोलन शुरू कर अलख जगाई थी। वह उत्तराखंड में बिजली की जरूरत पूरी करने के लिए छोटी-छोटी परियोजनाओं के पक्षधर थे। उनका नारा था-'धार ऐंच डाला, बिजली बणावा खाला-खाला।' यानी ऊंचाई वाले क्षेत्रों में पेड़ लगाइये और निचले स्थानों पर छोटी-छोटी परियोजनाओं से बिजली बनाइये। 1995 में टिहरी बांध के निर्माण के विरोध में 45 दिनों का भूख हड़ताल किया तब केंद्र में पी.वी.नरसिम्हा राव की सरकार थी. प्रधानमंत्री पी.वी,नरिसंह राव ने उन्हें बाँध निर्माण के लिए रीव्यू कमेटी बिठाने का आश्वासन देकर उनकी भूख हड़ताल रोकी | टिहरी बांध के प्रति सरकार के दावों से नाखुश सुन्दरलाल बहुगुणा ने एक बार फिर गाँधीजी की समाधी राजघाट पर 74 दिन लंबी अनसन की इस दौरान केंद्र में एच. डी. देवेगौडा की सरकार थी। एक बार उन्होंने विरोध स्वरूप अपना सिर भी मुंडवा लिया था। कई वर्षों बाद फिर से तिहरी बांध के निर्माण का कार्य चालू हुआ तब सुन्दरलाल बहुगुणा को गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया गया। सुन्दरलाल बहुगुणा का पारिवारिक तथा सामाजिक जीवन:9 जनवरी, 1927 को देवों की भूमि उत्तराखंड के सिलयारा नामक स्थान पर जन्मे सुन्दरलाल बहुगुणा के पिता का नाम अम्बादत्त बहुगुणा और उनकी माता का नाम पूर्णा देवी था। उनकी पत्नी का नाम विमला नौटियाल और उनकी बच्चो के नाम राजीवनयन बहुगुणा, माधुरी पाठक, प्रदीप बहुगुणा है। 13 साल की उम्र में उन्होंने राजनैतिक जीवन की शुरुआत की। राजनीति में आने की प्रेरणा उनके दोस्त श्रीदेव सुमन से मिली जो गांधीजी के अहिंसा के सिद्धांतों के पक्के अनुयायी थे। तब उन्होंने सिखा कि कैसे अहिंसा और सत्याग्रह के मार्ग पर चल कर समस्याओं का संधान किया जा सकता है। टिहरी में प्राथमिक शिक्षा पाने के बाद 18 साल की उम्र में वह पढ़ने के लिए लाहौर गए। 1949 में मीराबेन व ठक्कर बाप्पा के सम्पर्क में आने के बाद सुन्दरलाल बहुगुणा ने दलित वर्ग के विद्यार्थियों के उत्थान के लिए प्रयासरत हो गए और उनके लिए टिहरी में ठक्कर बाप्पा होस्टल की स्थापना भी की। दलितों को मंदिर प्रवेश का अधिकार दिलाने के लिए उन्होंने आन्दोलन भी किया। 1956 में शादी विमला देवी से हुई तब उनकी उम्र 23 साल की थी। शादी के बाद उन्होंने गाँव में ही रहने का फैसला किया, अपनी पत्नी विमला देवी के सहयोग से उन्होंने ‘पर्वतीय नवजीवन मण्डल’ की स्थापना की थी। शराब के बढ़ते प्रयोग के बाद उन्होंने 1965 से 1970 तक पहाडी क्षेत्रो में शराब पर रोक लगाने के लिए महिलाओं को एकत्रित किया तथा इसके खिलाफ आन्दोलन का हिस्सा रहे। सुन्दरलाल बहुगुणा की पुस्तकें-बहुआयामी प्रतिभा के धनी सुंदरलाल बहुगुणा ने निम्नलिखित किताबें भी लिखी हैं:
सुन्दरलाल बहुगुणा को मिले पुरस्कार तथा सम्मान-सुन्दरलाल बहुगुणा को उनके पर्यावरण सुरक्षा जैसे कई और सामाजिक कार्यों में नेतृत्व तथा योगदान के लिए कई रास्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से नवाजा गया, जिनमे प्रमुख हैं: 1980 में अमेरिका की फ्रेंड ऑफ नेचर नामक संस्था ने बहुगुणा के कार्यों से प्रभावित होकर इन्हें पुरस्कृत किया। 1981 में स्टाकहोम का वैकल्पिक नोबेल पुरस्कार मिला तथा पर्यावरण को ‘स्थाई सम्पति’ मानने वाले सुन्दरलाल बहुगुणा को 'पर्यावरण गाँधी' कह कर संबोधित किया गया । 1981 में सुन्दरलाल बहुगुणा को पद्मश्री पुरस्कार दिया गया जिसे उन्होंने यह कह कर स्वीकार नहीं किया कि जब तक पेड़ों की कटाई जारी है, मैं अपने को इस सम्मान के योग्य नहीं समझता हूँ। 1984 के राष्ट्रीय एकता पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। 1986 में रचनात्मक कार्य के लिए इन्हें जमनालाल बजाज पुरस्कार। 1987 में राइट लाइवलीहुड पुरस्कार चिपको आंदोलन में नेतृत्व करने तथा लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक करने के लिए दिया गया। 1987 में शेर-ए-कश्मीर पुरस्कार। 1987 में सरस्वती सम्मान। 1989 सामाजिक विज्ञान के डॉक्टर की मानद उपाधि आईआईटी रुड़की द्वारा दिया गया। 1998 में पहल सम्मान। 1999 में गाँधी सेवा सम्मान। 2000 में सांसदों के फोरम द्वारा सत्यपाल मित्तल एवार्ड। 2009 में सुन्दरलाल बहुगुणा को पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया।
चिपको आंदोलन के नेता कौन थे?आज से करीब 45 साल पहले उत्तराखंड में एक आंदोलन की शुरुआत हुई थी, जिसे नाम दिया गया था चिपको आंदोलन. इस आंदोलन की चंडीप्रसाद भट्ट और गौरा देवी की ओर से की गई थी और भारत के प्रसिद्ध सुंदरलाल बहुगुणा ने आगे इसका नेतृत्व किया.
चिपको आंदोलन से जुड़े व्यक्ति का नाम क्या है?आंदोलन का नेतृत्व प्रसिद्ध पर्यावरणविद् सुंदरलाल बहुगुणा, गौरा देवी और चंडीप्रसाद भट्ट किया था। चिपको आंदोलन ने देश में पर्यावरण संरक्षण को बड़ा मुद्दा बना दिया।
चिपको आंदोलन कब और किसने शुरू किया?इस बीच टिहरी गढ़वाल में सुंदरलाल बहुगुणा के नेतृत्व में चिपको कार्यकर्ताओं ने मई 1977 से हेनवाल घाटी में पेड़ों की कटाई का विरोध करने के लिए ग्रामीणों को संगठित करना शुरू किया।
चिपको आंदोलन में कितने लोग मारे गए?चिपको आंदोलन में मारे गए 363 लोगों को शहीद का दर्जा दिलाने के लिए जोधपुर राजस्थान निवासी विशेक बिश्नोई 2 वर्षों से सरकारी अधिकारियों से लेकर नेताओं के दफ्तरों के चक्कर काट रहे हैं। लेकिन उसे अब तक आश्वासन के अलावा कुछ नहीं मिला है।
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