भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में महात्मा गांधी की क्या भूमिका थी? - bhaarateey svatantrata aandolan mein mahaatma gaandhee kee kya bhoomika thee?

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1857 के विद्रोह का भारतीय स्वतंत्रता संग्राम मे विशेष महत्व रहा व इसके फलस्वरूप भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की नींव पड़ी। बाद के वर्षो मे ब्रिटिश सरकार की नीतियों मे भी परिवर्तन आया। तत्पश्चात 19वी शताब्दी मे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम ने एक नवीन रूप धारण किया व नवीन दिशा  मे प्रवाहित हुआ।भारतीय राजनीति व् स्वतंत्रता संग्राम मे गांधी जी का आगमन हुआ।  

 
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम मे गांधी जी का आगमन
सत्य, अहिंसा, सत्याग्रह के पुजारी महात्मा गांधी का भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में अमूल्य योगदान रहा है। जनवरी 1915 ई. में गांधीजी दक्षिण अफ्रीका से भारत लौट आये। इससे पूर्व उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में शोषण, अन्याय एवं रंगभेद की नीति के विरुद्ध सत्याग्रह आंदोलन किया था, जिसमें उन्हें अपार सफलता मिली थी। महात्मा गांधी ने सत्य, अहिंसा, सत्याग्रह, असहयोग एवं सविनय अवज्ञा के माध्यम से राष्ट्रीय आंदोलन का संचालन किया। गांधी के नेतृत्व में राष्ट्र एक विराट पुरुष की भांति अपनी चिर निद्रा त्याग कर संघर्ष के लिए उठ खड़ा हुआ। उनकी अभूतपूर्व सफलता का सबसे बड़ा कारण उनका जनता के साथ एकाकार हो जाना था। गांधीजी के नेतृत्व में कांग्रेस आंदोलन एक सार्वजनिक आंदोलन बन गया। भारत में राष्ट्रीय स्तर पर गांधीजी द्वारा चलाए गए आंदोलनों में असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन और भारत छोड़ो आंदोलन प्रमुख रहे। उन्होंने स्वतंत्रता  संग्राम को  नवीन दिशा प्रदान की 

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में महात्मा गांधी की क्या भूमिका थी? - bhaarateey svatantrata aandolan mein mahaatma gaandhee kee kya bhoomika thee?

असहयोग आन्दोलन
सितम्‍बर 1920 से फरवरी 1922 के बीच महात्‍मा गांधी तथा भारतीय राष्‍ट्रीय कॉन्‍ग्रेस के नेतृत्‍व में असहयोग आंदोलन चलाया गया, जिसने भारतीय स्‍वतंत्रता आंदोलन को एक नई जागृति प्रदान की।  1919 ई. तक गांधीजी स्वेच्छा से ब्रिटिश साम्राज्यवादी शासन व्यवस्था के पक्षधर बने रहे, बस उसमें वह सुधार चाहते थे। परन्तु  जलियांवाला बाग नर संहार सहित अनेक घटनाओं के बाद गांधी जी ने अनुभव किया कि ब्रिटिश हाथों में एक उचित न्‍याय मिलने की कोई संभावना नहीं है इसलिए उन्‍होंने ब्रिटिश सरकार से राष्‍ट्र के सहयोग को वापस लेने की योजना बनाई और इस प्रकार असहयोग आंदोलन की शुरूआत की गई और देश में प्रशासनिक व्‍यवस्‍था पर प्रभाव हुआ।। असहयोग आन्दोलन का संचालन स्वराज की माँग को लेकर किया गया। इसका उद्देश्य सरकार के साथ सहयोग न करके कार्यवाही में बाधा उपस्थित करना था। असहयोग आन्दोलन गांधी जी ने 1 अगस्त1920 को आरम्भ किया।  यह आंदोलन अत्‍यंत सफल रहा, क्‍योंकि इसे लाखों भारतीयों का प्रोत्‍साहन मिला। इस आंदोलन से ब्रिटिश प्राधिकारी हिल गए। 

आंदोलन का आरंभ एव विकास 
महात्मा गांधी 1915 ई. से 1919 ई. तक देश के सार्वजनिक तथा राजनीतिक जीवन में अंग्रेजी सरकार के एक सहयोगी के रूप में ही कार्य करते रहे, किंतु 1920 ई. में गांधीजी के राजनीतिक जीवन में एक परिवर्तनकारी मोड़ आया। कुछ घटनाओं और अन्य परिस्थितियों ने उन्हें सहयोगी से असहयोगी बना दिया।सितम्बर  1920 में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में उन्होंने सरकार के साथ असहयोग और मांटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधारों के अंतर्गत निर्मित व्यवस्थापिका सभाओं के बहिष्कार का प्रस्ताव रखा। गांधी जी के इस प्रस्ताव का विरोध करते हुए ऐनी बेसेन्ट ने कहा कि, "यह प्रस्ताव भारतीय स्वतंत्रता को सबसे बड़ा धक्का है।" गांधी जी के इस विरोध तथा समाज और सभ्य जीवन के विरुद्ध संघर्ष की घोषणा का सुरेन्द्रनाथ बनर्जीमदनमोहन मालवीयदेशबन्धु चित्तरंजन दासविपिनचन्द्र पालमुहम्मद अली जिन्ना, शंकर नायर, सर नारायण चन्द्रावरकर ने प्रारम्भ में विरोध किया। फिर भी अली बन्धुओं एवं मोतीलाल नेहरू के समर्थन से यह प्रस्ताव कांग्रेस ने स्वीकार कर लिया। यही वह क्षण था, जहाँ से गाँधी युग की शुरुआत हुई। 
आन्दोलन शुरू करने से पहले गांधी जी ने कैसर-ए-हिन्द पुरस्कार को लौटा दिया, अन्य सैकड़ों लोगों ने भी गांधी जी के पदचिह्नों पर चलते हुए अपनी पदवियों एवं उपाधियों को त्याग दिया। राय बहादुर की उपाधि से सम्मानित जमनालाल बजाज ने भी यह उपाधि वापस कर दी। असहयोग आन्दोलन गांधी जी ने 1 अगस्त, 1920 को आरम्भ किया। पश्चिमी भारत, बंगाल तथा उत्तरी भारत में असहयोग आन्दोलन को अभूतपूर्व सफलता मिली। विद्यार्थियों के अध्ययन के लिए अनेक शिक्षण संस्थाएँ जैसे काशी विद्यापीठ, बिहार विद्यापीठ, गुजरात विद्यापीठ, बनारस विद्यापीठ, तिलक महाराष्ट्र विद्यापीठ एवं अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय आदि स्थापित की गईं।

महात्मा  गाँधी


"खुद वो बदलाव  बनिए जो आप दुनिया में देखना चाहते": महात्मा  गाँधी

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में महात्मा गांधी की क्या भूमिका थी? - bhaarateey svatantrata aandolan mein mahaatma gaandhee kee kya bhoomika thee?

मोहनदास करमचंद  गाँधी को ब्रिटिश शासन के विरुद्ध भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का नेता और 'राष्ट्रपिता' माना जाता है। सत्याग्रह और अहिंसा के सिद्धान्तो पर चलकर उन्होंने भारत को स्वतंत्रता दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके इन सिद्धांतों ने पूरी दुनिया में लोगों को नागरिक अधिकारों एवं स्वतन्त्रता आन्दोलन के लिये प्रेरित किया। राजनीतिक और सामाजिक प्रगति की प्राप्ति हेतु अपने अहिंसक विरोध के सिद्धांत के लिए उन्हें अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त हुई। मोहनदास करमचंद गाँधी भारत एवं भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक प्रमुख राजनीतिक एवं आध्यात्मिक नेता थे। 'साबरमती आश्रम' से उनका अटूट रिश्ता था। इस आश्रम से महात्मा गाँधी आजीवन जुड़े रहे, इसीलिए उन्हें 'साबरमती का संत' की उपाधि भी मिली। महात्मा गाँधी समुच्च मानव जाति के लिए प्रेरणास्त्रोत हैं। उन्होंने हर परिस्थिति में अहिंसा और सत्य का पालन किया और लोगों से भी इनका पालन करने के लिये कहा। 

प्रारंभिक जीवन

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में महात्मा गांधी की क्या भूमिका थी? - bhaarateey svatantrata aandolan mein mahaatma gaandhee kee kya bhoomika thee?

मोहनदास करमचंद  गाँधी का जन्म 2 अक्तूबर 1869 ई. को गुजरात के पोरबंदर नामक स्थान पर हुआ था। इनके पिता का नाम करमचंद गाँधी था। मोहनदास की माता का नाम पुतलीबाई था जो करमचंद गाँधी जी की चौथी पत्नी थीं। मोहनदास अपने पिता की चौथी पत्नी की अन्तिम संतान थे। उनके पिता करमचंद (कबा गाँधी) पहले ब्रिटिश शासन के तहत पश्चिमी भारत के गुजरात राज्य में एक छोटी-सी रियासत की राजधानी पोरबंदर के दीवान थे और बाद में क्रमशः राजकोट (काठियावाड़) और वांकानेर में दीवान रहे।  मोहनदास की माता पुतलीबाई परनामी वैश्य समुदाय से ताल्लुक रखती थीं और अत्यधिक धार्मिक प्रवित्ति की थीं जिसका प्रभाव युवा मोहनदास पड़ा और इन्ही मूल्यों ने आगे चलकर उनके जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। इस प्रकार मोहनदास ने स्वाभाविक रूप से अहिंसा,  शाकाहार,  आत्मशुद्धि के लिए व्रत और विभिन्न धर्मों और पंथों को मानने वालों के बीच परस्पर सहिष्णुता को अपनाया।सन 1883 में साढे 13 साल की उम्र में ही उनका विवाह 14 साल की कस्तूरबा से करा दिया गया। जब मोहनदास 15 वर्ष के थे तब इनकी पहली सन्तान ने जन्म लिया लेकिन वह केवल कुछ दिन ही जीवित रही। उनके पिता करमचन्द गाँधी भी इसी साल (1885) में चल बसे। बाद में मोहनदास और कस्तूरबा के चार सन्तान हुईं – हरीलाल गान्धी (1888), मणिलाल गान्धी (1892), रामदास गान्धी (1897) और देवदास गांधी (1900)।

शिक्षा एव वक़ालत 

उनकी मिडिल स्कूल की शिक्षा पोरबंदर में और हाई स्कूल की शिक्षा राजकोट में हुई। शैक्षणिक स्तर पर मोहनदास एक औसत छात्र ही रहे। सन 1887 में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा अहमदाबाद से उत्तीर्ण की। मोहनदास अपने परिवार में सबसे ज्यादा पढ़े-लिखे थे इसलिए उनके परिवार वाले ऐसा मानते थे कि वह अपने पिता और चाचा का उत्तराधिकारी (दीवान) बन सकते थे। उनके एक परिवारक मित्र मावजी दवे ने ऐसी सलाह दी कि एक बार मोहनदास लन्दन से बैरिस्टर बन जाएँ तो उनको आसानी से दीवान की पदवी मिल सकती थी। उनकी माता पुतलीबाई और परिवार के अन्य सदस्यों ने उनके विदेश जाने के विचार का विरोध किया पर मोहनदास के आस्वासन पर राज़ी हो गए। वर्ष 1888 में मोहनदास यूनिवर्सिटी कॉलेज लन्दन में कानून की पढाई करने और बैरिस्टर बनने के लिये इंग्लैंड चले गये। अपने माँ को दिए गए वचन के अनुसार ही उन्होंने लन्दन में अपना वक़्त गुजारा। वहां उन्हें शाकाहारी खाने से सम्बंधित बहुत कठिनाई हुई और शुरूआती दिनो में कई बार भूखे ही रहना पड़ता था। धीरे-धीरे उन्होंने शाकाहारी भोजन वाले रेस्टोरेंट्स के बारे में पता लगा लिया। इसके बाद उन्होंने ‘वेजीटेरियन सोसाइटी’ की सदस्यता भी ग्रहण कर ली। इस सोसाइटी के कुछ सदस्य थियोसोफिकल सोसाइटी के सदस्य भी थे और उन्होंने मोहनदास को गीता पढने का सुझाव दिया जून 1891 में गाँधी भारत लौट गए और उन्होंने बॉम्बे में वकालत की शुरुआत की पर उन्हें कोई खास सफलता प्राप्त नहीं हुई । इसके बाद वो राजकोट चले गए जहाँ उन्होंने जरूरतमन्दों के लिये मुकदमे की अर्जियाँ लिखने का कार्य शुरू कर दिया परन्तु कुछ समय बाद उन्हें यह काम भी छोड़ना पड़ा। सन् 1893 में एक भारतीय फर्म से नेटल (दक्षिण अफ्रीका) में एक वर्ष के करार पर वकालत का कार्य  स्वीकार कर लिया।

अफ़्रीका में गाँधी(1893 -1914)

गाँधी 24 साल की उम्र में दक्षिण अफ्रीका पहुंचे। वह प्रिटोरिया स्थित कुछ भारतीय व्यापारियों के न्यायिक सलाहकार के तौर पर वहां गए थे।उन्होंने अपने जीवन के 21 वर्ष   दक्षिण अफ्रीका में व्यतीत किए। जहाँ उनके राजनैतिक विचार और नेतृत्व कौशल का विकास हुआ। दक्षिण अफ्रीका में उनको गंभीर नस्ली भेदभाव का सामना करना पड़ा। डरबन न्यायालय में यूरोपीय मजिस्ट्रेट ने उन्हें पगड़ी उतारने के लिए कहा, उन्होंने इन्कार कर दिया और न्यायालय से बाहर चले गए। कुछ दिनों के बाद प्रिटोरिया जाते समय उन्हें रेलवे के प्रथम श्रेणी के डिब्बे से बाहर फेंक दिया गया और उन्होंने स्टेशन पर ठिठुरते हुए रात बिताई। यात्रा के अगले चरण में उन्हें एक घोड़ागाड़ी के चालक से पिटना पड़ा, क्योंकि यूरोपीय यात्री को जगह देकर पायदान पर यात्रा करने से उन्होंने इन्कार कर दिया था। नटाल में भारतीय व्यापारियों और श्रमिकों के लिए ये अपमान दैनिक जीवन का हिस्सा था। जो नवीन  था, वह गाँधी का अनुभव न होकर उनकी प्रतिक्रिया थी। अब तक वह हठधर्मिता और उग्रता के पक्ष में नहीं थे, लेकिन जब उन्हें अनपेक्षित अपमानों से गुज़रना पड़ा, तो उनमें कुछ बदलाव आया।  ये सारी घटनाएँ उनके के जीवन में परिवर्तनकारी सिद्ध हुई और मौजूदा सामाजिक और राजनैतिक अन्याय के प्रति जागरुकता का कारण बनीं। दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों पर हो रहे अन्याय को देखते हुए उनके मन में ब्रिटिश साम्राज्य के अन्तर्गत भारतियों के सम्मान तथा स्वयं अपनी पहचान से सम्बंधित प्रश्न उठने लगे। 

अफ़्रीका में सत्याग्रह 

1906 में टांसवाल सरकार ने दक्षिण अफ़्रीका की भारतीय जनता के पंजीकरण के लिए विशेष रूप से अपमानजनक अध्यादेश जारी किया। भारतीयों ने सितंबर 1906 में जोहेन्सबर्ग में गाँधी के नेतृत्व में एक विरोध जनसभा का आयोजन किया और इस अध्यादेश के उल्लंघन तथा इसके परिणामस्वरूप दंड भुगतने की शपथ ली। इस प्रकार सत्याग्रह का जन्म हुआ, जो वेदना पहुँचाने के बजाय उन्हें झेलने, विद्वेषहीन प्रतिरोध करने और बिना हिंसा के उससे लड़ने की नवीन तकनीक थी।  दक्षिण अफ़्रीका में सात वर्ष से अधिक समय तक सत्याग्रह  चला। इसमें उतार-चढ़ाव आते रहे, लेकिन गांधी के नेतृत्व में भारतीय अल्पसंख्यकों के छोटे से समुदाय ने अपने शक्तिशाली प्रतिपक्षियों के ख़िलाफ़ संघर्ष जारी रखा। सैकड़ों भारतीयों ने अपने अंतःकरण और स्वाभिमान को चोट पहुँचाने वाले क़ानून के सामने झुकने के बजाय अपनी आजीविका तथा स्वतंत्रता की बलि चढ़ाना ज़्यादा पसंद किया। 1913 में आंदोलन के अन्तिम चरण में महिलाओं समेत सैकड़ों भारतीयों ने कारावास की सज़ा भुगती तथा खदानों में काम बन्द करके हड़ताल कर रहे हज़ारों भारतीय मज़दूरों ने कोड़ों की मार, जेल की सज़ा और यहाँ तक की गोली मारने के आदेश का भी साहसपूर्ण सामना किया। भारतीयों के लिए यह घोर यंत्रणा थी। लेकिन दक्षिण अफ़्रीकी सरकार के लिय यह सबसे ख़राब प्रचार सिद्ध हुआ और उसने भारत व ब्रिटिश सरकार के दबाव के तहत एक समझौते को स्वीकार किया। जिस पर एक ओर से गांधी तथा दूसरी ओर से दक्षिण अफ़्रीकी सरकार के प्रतिनिधि जनरल जॉन क्रिश्चियन स्मट्स ने बातचीत की थी।

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में गाँधीजी  का योगदान  (1916 -1945)

वर्ष 1914 में गांधी दक्षिण अफ्रीका से भारत वापस लौट आये। इस समय तक गांधी एक राष्ट्रवादी नेता और संयोजक के रूप में प्रतिष्ठित हो चुके थे।देशवासियों ने उनका भव्य स्वागत किया और उन्हें महात्मा पुकारना शुरू कर दिया। उन्होंने अगले चार वर्ष भारतीय स्थिति का अध्ययन करने तथा स्वयं को, उन लोगों को तैयार करने में बिताये जो सत्याग्रह के द्वारा भारत में प्रचलित सामाजिक व राजनीतिक बुराइयों को हटाने में उनका अनुगमन करना चाहते थे। इस दौरान गाँधी जी मूक पर्यवेक्षक नहीं रहे। 1915 से 1918 तक के काल में गाँधी जी भारतीय राजनीति की परिधि पर अनिश्चितता से मंडराते रहे। इस काल में उन्होंने किसी भी राजनीतिक आंदोलन में शामिल होने से इंकार कर दिया।

चम्पारण और खेड़ा सत्याग्रह 

गाँधी जी ने वर्ष 1917-1918 के दौरान बिहार के चम्‍पारण नामक स्‍थान के खेतों में पहली बार भारत में सत्याग्रह का प्रयोग किया। यहाँ अकाल के समय ग़रीब किसानों को अपने जीवित रहने के लिए जरूरी खाद्य फ़सलें उगाने के स्‍थान पर नील की खेती करने के लिए ब्रिटिशो के द्वारा  ज़ोर डाला जा रहा था। उन्‍हें अपनी पैदावार का कम मूल्‍य दिया जा रहा था और उन पर भारी करों का दबाव था। गाँधी जी ने उस क्षेत्र  का विस्‍तृत अध्‍ययन किया और जमींदारों के विरुद्ध विरोध का आयोजन किया, जिसके परिणामस्‍वरूप उन्‍हें गिरफ्तार कर लिया गया। उनके कारावास में डाले जाने के बाद और अधिक प्रदर्शन किए गए। जल्‍दी ही गाँधी जी को छोड़ दिया गया और जमींदारों ने किसानों के पक्ष में एक करारनामे पर हस्‍ताक्षर किए, जिससे उनकी स्थिति में सुधार आया।

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में महात्मा गांधी की क्या भूमिका थी? - bhaarateey svatantrata aandolan mein mahaatma gaandhee kee kya bhoomika thee?

सन 1918 में गुजरात स्थित खेड़ा बाढ़ और सूखे की चपेट में आ गया था जिसके कारण किसान और गरीबों की स्थिति बद्तर हो गयी और लोग कर माफ़ी की मांग करने लगे। खेड़ा में गाँधी जी के मार्गदर्शन में सरदार पटेल ने अंग्रेजों के साथ इस समस्या पर विचार विमर्श के लिए किसानों का नेतृत्व किया। इसके बाद अंग्रेजों ने राजस्व संग्रहण से मुक्ति देकर सभी कैदियों को रिहा कर दिया। इस प्रकार चंपारण और खेड़ा के बाद गांधी की ख्याति देश भर में फैल गई और वह स्वतंत्रता आन्दोलन के एक महत्वपूर्ण नेता बनकर उभरे।

इस सफलता से प्रेरणा लेकर महात्‍मा गाँधी ने भारतीय स्‍वतंत्रता के लिए किए जाने वाले अन्‍य आंदोलनों  में सत्‍याग्रह और अहिंसा  शस्त्र  का उपयोग किया जैसे कि 'असहयोग आंदोलन सविनय  अवज्ञा आंदोलन तथा 'भारत छोड़ो आंदोलन', गाँधी जी के प्रयासों से अंत में भारत को 15 अगस्त1947 को स्‍वतंत्रता मिली।

गाँधीजी की रचनाएँ 

सत्य के प्रयोग, सत्याग्रह आश्रम का इतिहास, हिंद स्वराज, सर्वोदय, खादी, मेरे स्वप्नों का भारत, मेरे जेल के अनुभव, आर्थिक और औद्योगिक जीवन, आरोग्य की कुंजी, खादी : क्यों और कैसे?, गाँवों की मदद में, गीताबोध, दिल्ली डायरी, नई तालीम की ओर, बापू की कलम से, बुनियादी शिक्षा, मंगल प्रभात, मेरा धर्म, मेरे सपनों का भारत, मोहन-माला, विद्यार्थियों से, सत्य ही ईश्वर, स्त्रियाँ और उनकी समस्याएँ, हमारे गाँवों का पुनर्निर्माण, त्यागमूर्ति

गाँधीजी के विचार 

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में महात्मा गांधी की क्या भूमिका थी? - bhaarateey svatantrata aandolan mein mahaatma gaandhee kee kya bhoomika thee?

महात्मा गाँधी सम्पूर्ण विश्व पटल पर सिर्फ़ एक नाम ही नहीं, अपितु शांति एव अहिंसा का एक प्रमुख प्रतीक हैं। महात्मा गाँधी के पूर्व भी शान्ति और अहिंसा की अवधारणा फलित थी, परन्तु उन्होंने जिस प्रकार सत्याग्रह, शान्ति व अहिंसा के रास्तों पर चलते हुए ब्रिटिशो को भारत 

छोड़ने पर मजबूर कर दिया, उसका कोई दूसरा उदाहरण विश्व इतिहास में देखने को नहीं मिलता। तभी तो प्रख्यात वैज्ञानिक आइंस्टीन ने कहा था कि- 'हज़ार साल बाद आने वाली नस्लें इस बात पर मुश्किल से विश्वास करेंगी, कि हाड़-मांस से बना ऐसा कोई इन्सान पृथ्वी पर कभी आया था।' गाँधी जी के विचारो ने न केवल भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को नवीन दिशा प्रदान की बल्कि उनके विचार  वर्तमान समय में भी प्रेरणादायी प्रतीत होते है। गाँधीजी के विचारो को निम्नलिखित बिन्दुओ में स्पष्ट किया जा सकता है-  

1. सत्य में अटूट विश्वास 

गांधी जी सत्य के बड़े आग्रही थे, वे सत्य को ईश्वर मानते थे।  एक बार वायसराय लार्ड कर्जेन ने कहा था कि सत्य की कल्पना भारत में यूरोप से आई है।  इस पर गांधी जी बड़े ही क्षुब्ध हुए और उन्होंने वायसराय को लिखा, “आपका विचार गलत है।  भारत में सत्य की प्रतिष्ठा बहुत प्राचीन काल से चली आ रही है। सत्य परमात्मा का रूप माना जाता है।”

गांधीजी का यह कथन “सत्य मेरे लिए सर्वोपरी सिद्धांत है।  मैं वचन और चिंतन में सत्य की स्थापना करने का प्रयत्न करता हूँ।  परम सत्य तो परमात्मा हैं।  परमात्मा कई रूपों में संसार में प्रकट हुए हैं।  मैं उसे देखकर आश्चर्यचकित और अवाक हो जाता हूँ।  मैं सत्य के रूप में परमात्मा की पूजा करता हूँ।  सत्य की खोज में अपने प्रिय वस्तु की बली चढ़ा सकता हूँ।” सत्य में गांधीजी के अटूट विश्वास को दर्शाता है। 

2. अहिंसा में विश्वास

गांधीजी सत्य  के साथ -साथ अहिंसा को भी जीवन में सर्वाधिक महत्त्व देते थे ।  सत्य  एव अहिंसा को गाँधीजी के विचारो का  मूल आधार कहा जा सकता है वास्तव में  गाँधी अहिंसा के बहुत बड़े समर्थक थे। अहिंसा के विचार का उन्होंने सदैव पालन किया व् जनता से भी सदैव अहिंसा के सिद्धांत  का पालन  अनुग्रह  करते रहे। गांधीजी सत्याग्रह  के माध्यम से अत्याचार के प्रतिकार के अग्रणी नेता थे, उनकी इस अवधारणा की नींव सम्पूर्ण अहिंसा के सिद्धान्त पर रखी गयी थी, जिसने भारत को आजादी दिलाकर पूरी दुनिया में जनता के नागरिक अधिकारों एवं स्वतन्त्रता के प्रति आन्दोलन के लिये प्रेरित किया। 

3.गांधीजी का  स्वराज का विचार 

आधुनिक युग में स्वराज शब्द का प्रयोग  दादाभाई नौरोजी एव तिलक ने राष्ट्रीय  स्वतंत्रता के  सन्दर्भ में किया। यहां इसका अर्थ राष्ट्र  से था किसी व्यक्ति विशेष से नहीं।  इसी तरह उग्रवादियों ने ब्रिटिश वस्तुओ के बहिस्कार को न्यायोचित ठहराने के लिए एक अन्य शब्द स्वदेशी का उपयोग किया। तथापि स्वराज शब्द को मूल अर्थ में प्रयोग करने का श्रेय गांधीजी को जाता है। जहाँ इसे व्यक्तिगत आत्मशासन के रूप में प्रयोग करके राष्ट्रीय स्वसजासन तथा आत्मनिर्भरता के साथ जोड़ा गया। गाँधीजी ने  स्वदेशी को स्वराज प्राप्त करने का माध्यम माना । उन्होंने व्यक्तिगत स्वशासन  तथा व्यक्तिगत स्वतंत्रता तथा सामुदायिक स्वशासन अर्थात राष्ट्रीय स्वतंत्रता  सामंजस्य लाने की कोशिश की।

स्वराज की धारणा का विश्लेषण करते हुए गांधीजी ने व्यापक स्तर पर सम्पूर्ण नैतिक स्वतंत्रता तथा संकुचित अर्थ में व्यक्ति एव राष्ट्र की नकारात्मक स्वतंत्रता में अंतर  किया।  गांधीजी के अनुसार स्वराज का मूल अर्थ है आत्म- शासन। इसे अंतःकरण का  अनुशासित शासन भी  जा सकता है। स्वतंत्रता की  धारणा नकारात्मक है जबकि  स्वराज की धारणा सकारात्मक है। स्वराज एक पवित्र शब्द है , एक देविक शब्द है, जिसका अर्थ है  आत्मशासन और आत्म नियंत्रण , न की सभी के बंधनो से मुक्ति। स्वराज से  अभिप्राय है लोक सम्मति के अनुसार  होने  वाला शासन है। गांधीजी के मतानुसार स्वराज सत्य व् अहिंसा के साधनों द्वारा ही प्राप्त किया जा  सकता है और उन्ही के द्वारा क़ायम रखा जा सकता है। अंतत गाँधीजी की स्वराज की धारणा अत्यंत व्यापक है। 

4. ग्राम स्वराज का विचार 

गांधीजी ने गांव को भारत की आत्मा कहा और ग्रामीणों के उत्कृष्टपूर्ण जीवन के लिए उत्कृष्ट, आत्मनिर्भर, आदर्शवादी पंचायतीराज और ग्राम स्वराज की धारणा का प्रशस्तीकरण किया जिसके व्यावहारिक क्रियान्वन से ग्राम सम्पूर्ण विकास की दिशा में प्रवाहित हो सकते है । वर्तमान  पंचायती ग्राम स्वराज व्यवस्था इसी गांधीवादी स्वरुप आधार बनाकर फलीभूत हुई है।  

5. रचनात्मक कार्यों में विश्वास  

गाँधी जी ने रचनात्मक कार्यों को खूब महत्व दिया। वह केवल राजनीतिक स्वतंत्रता ही नहीं चाहते थे, अपितु जनता की आर्थिक, सामाजिक और आत्मिक उन्नति भी चाहते थे। इसी भावना से उन्होंने 'ग्राम उद्योग संघ', 'तालीमी सघ' एवं 'गो रक्षा संघ' की स्थापना की थी। । महात्मा गाँधी ने लघु एवं कुटीर उद्योगों  को भारी उद्योगों से अधिक महत्व दिया। खादी को गाँधी जी ने अपना मुख्य कार्यक्रम बनाया। गाँधी जी समाज में फैली हुई कुरीतियों एवं असमानताओं के प्रति जीवन भर संघर्षरत रहे। उन्होंने अछूतों को 'हरिजन' की संज्ञा दी। हरिजनों के लिए अन्य हिन्दुओं के साथ समानता प्राप्त करने के लिए गाँधी जी ने 'मंदिर प्रवेश' कार्यक्रम को सर्वाधिक प्राथमिकता दी।

राष्ट्र का विभाजन एव स्वतंत्रता 

 भारत की स्वतंत्रता के आन्दोलन के साथ-साथ, जिन्ना के नेतृत्व में एक ‘अलग मुसलमान बाहुल्य देश’ (पाकिस्तान) की भी मांग तीव्र हो गयी थी और 40 के दशक में इन ताकतों ने एक अलग राष्ट्र  ‘पाकिस्तान’ की मांग को वास्तविकता में बदल दिया था। गाँधी जी देश का विभाजन नहीं चाहते थे क्योंकि यह उनके धार्मिक एकता के सिद्धांत के विपरीत था परन्तु  ऐसा हो न पाया और ब्रिटिशो ने  देश को दो भागो  – भारत और पाकिस्तान – में विभाजित कर दिया।

गाँधीजी की मृत्यु 

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में महात्मा गांधी की क्या भूमिका थी? - bhaarateey svatantrata aandolan mein mahaatma gaandhee kee kya bhoomika thee?

30 जनवरी 1948 को राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की दिल्ली के ‘बिरला हाउस’ में शाम 5:17 पर हत्या कर दी गयी। गाँधी जी एक प्रार्थना सभा को संबोधित करने जा रहे थे जब उनके हत्यारे नाथूराम गोडसे ने उनके  सीने में 3 गोलियां दाग दी। ऐसे माना जाता है की ‘हे राम’ उनके मुख से निकले अंतिम शब्द थे। नाथूराम गोडसे और उसके सहयोगी पर मुकदमा चलाया गया और 1949 में उन्हें मौत की सजा सुनाई गयी। 

राजनीति में गांधीजी की देन

गाँधी जी की राजनीति को सबसे बड़ी देन यह है कि उन्होंने राजनीति को नैतिकता पर आधारित किया। अहिंसात्मक असहयोग आंदोलन तथा सविनय अवज्ञा आंदोलन की उनकी नीति भारतीय परिस्थितियों के अधिक अनकूल थी। भारत सचिव मांटेग्यू ने गाँधी जी को 'हवा में रहना वाला शुद्ध दार्शनिक' कहा था, लेकिन उसी दार्शनिक ने अंग्रेज़ साम्राज्य की जड़ें हिला दीं तथा समाज में मौलिक परिवर्तन कर दिया। 

सम्मान  

हात्मा गाँधी दुनिया के सर्वाधिक लोकप्रिय राजनेताओं और व्यक्तित्व में से हैं। यही कारण है कि प्राय: अधिकतर देशों ने उनके सम्मान में डाक-टिकट जारी किये हैं। भारत में सर्वाधिक बार डाक-टिकटों पर स्थान पाने वालों में गाँधी जी प्रथम हैं। यहाँ तक कि आज़ाद भारत में वे प्रथम व्यक्ति थे, जिन पर डाक टिकट जारी हुआ। भारतवर्ष से बाहर के देशों में लगभग 100 से भी अधिक ने गांधी जी के जीवन से जुडे विभिन्न पहलुओं को केंद्र में रखते हुए उनके जीवन पर आधारित विभिन्न डाक सामग्रियाँ व डाक–टिकट जारी किए हैं। इन देशों में विश्व के सभी महाद्वीपों के देश शामिल हैं। भारतवर्ष से बाहर के देशों में लगभग 100 से भी अधिक ने गांधी जी के जीवन से जुडे विभिन्न पहलुओं को केंद्र में रखते हुए उनके जीवन पर आधारित विभिन्न डाक सामग्रियाँ व डाक–टिकट जारी किए हैं। इन देशों में विश्व के सभी महाद्वीपों के देश शामिल हैं।

  • एशिया महाद्वीप में रूस (रशिया), कज़ाकिस्तान, अफ़गानिस्तान, वियतनाम, बर्मा (वर्तमान म्यांमार), ईरान, भूटान, श्रीलंका, कज़ाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, किरगीजिस्तान, यमन, सीरिया और साइप्रस जैसे देश इनमें प्रमुख हैं।
  • यूरोपीय देशों में बेल्जियम, हंगरी, चेकोस्लोवाकिया, जर्मनी, जिब्राल्टर, ब्रिटेन (इंग्लैण्ड), यूनान, रोम, माल्टा, पौलेंड, रोमानिया, आयरलैंड, लक्ज़मबर्ग, ईज़डेल द्वीप समूह, मैकोडोनिया (मेसेडोनिया), सैन मरीनो और स्टाफ़ा स्कॉटलैंड के नाम प्रमुख हैं। 
  • अमरीकी देशों में संयुक्त राज्य अमरीका (यूनाइटेड स्टेट), ब्राजील, चिली, कोस्टारिका, क्यूबा, ग्रेनेडा, गुयाना, मैक्सिको, मोंटेसेरेट, पनामा, सूरीनाम, उरुग्वे, वेनेजुएला, ट्रिनिनाड (त्रिनिदाद) और टोबैगो, गैबॉन निकारागुआ, नेविस, डोमिनिका, एंटीगुआ और बारबुडा के नाम उल्लेखनीय हैं।
  • अफ्रीकी देशों में बुर्कीना फासो कैमरून, चाड क़ामरूज, कांगो, मिश्र, गैबन, गांबिया, घाना, लाइबेरिया, मैडागास्कर, माली, मारिटैनिया, मॉरिशस, मोरक्को, मोजांबिक, नाइजर, सेनेगल, सिएरा लियोन, सोमालिया, दक्षिण अफ्रीका, तंजानिया, टोगो, यूगांडा और जांबिया के नाम प्रमुख हैं।
  • आस्ट्रेलियाई देशों में ऑस्ट्रेलिया, पलाऊ, माइक्रोनेशिया और मार्शल द्वीप प्रमुख हैं।
  • अतिरिक्त देशो में साईबेरिया, ग्रेनेडा, यूजेरिया, संयुक्त अरब गणराज्य, नाइजीरिया हैं।

इसके अतिरिक्त, संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी वर्ष 2007 से गाँधी जयन्ती को ‘विश्व अहिंसा दिवस’ के रूप में मनाये जाने की घोषणा  की।  

गाँधीजी की आलोचनाएँ

 महात्मा गांधीजी के सिद्धांतो और करनी  को लेकर प्राय: उनकी आलोचनाएँ भी की जाती है। उनकी आलोचना के मुख्य बिंदु इस प्रकार  है- 

1. दोनों विश्वयुद्धो में ब्रिटिशो का साथ देना

2. सशस्त्र क्रांतिकारियों के ब्रिटिशो के विरुद्ध हिंसात्मक कार्यो  की आलोचना करना,

3. गाँधी-इरविन समझौता जिससे क्रांतिकारी आंदोलन की बड़ा धक्का लगा 

4. चौरीचौरा काण्ड के बाद असहयोग आंदोलन को स्थगित कर देना 

अंतत: यदपि गांधीजी की कई आधारों पर आलोचना की जाती है फिर भी वह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में अहम् स्थान रखते है। उनके विचारो ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को नवीन स्वरुप प्रदान किया। । सत्याग्रह और असहयोग द्वारा उन्होंने अंग्रेजों का मुकाबला किया व् भारत को स्वतंत्रता के द्धार पर पहुंचाया। उनके विचार वर्तमान समय में भी प्रासंगिकता रखते है। उनके विचारो को भारतीय सविधान के भाग- 4 के अंतर्गत राज्य  नीति निर्देशक  सिद्धांतो में  स्थान भी दिया गया है।

स्वतंत्रता आंदोलन में महात्मा गांधी की भूमिका क्या थी?

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महात्मा गांधी की भूमिका को महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता के लिए आंदोलन की अगुवाई की थी। महात्मा गांधी की शांतिपूर्ण और अहिंसक नीतियों ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ स्वतंत्रता संघर्ष का आधार बनाया। मोहनदास करमचंद गांधी का जन्म 2 अक्टूबर, 1869 को हुआ था।

भारत की आजादी में महात्मा गांधी का क्या योगदान है?

अंग्रेजों से आजादी दिलाने में महात्मा गांधी का विशेष योगदान रहा है। चंपारण सत्याग्रह, असहयोग आंदोलन, दांडी सत्याग्रह, दलित आंदोलन, भारत छोड़ो आंदोलन उनके कुछ प्रमुख आंदोलन ने जिन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य की नींव कमजोर करने में बड़ा रोल अदा किया।

महात्मा गांधी का भूमिका क्या है?

गांधी जी उस समय के करिश्माई नेता थे जिन्होंने दक्षिण अफ्रीका में सबको साथ लेकर सबके अधिकारों की लड़ाई नस्लभेदी सरकार के विरुद्ध सत्याग्रह के माध्यम से लोहा लिया था और कामयाब बी हुए थे। गांधी जी ने पहली बार देश में सन 1917 में बिहार के चंपारन में सत्याग्रह आनंदेलन किया था । उनका आन्दोलन जन आन्दोलन होता था ।

महात्मा गांधी ने भारत के लिए स्वतंत्रता कैसे प्राप्त की?

इस आंदोलन की सफलता से प्रेरणा लेकर महात्मा गांधी ने भारत की आजादी का आंदोलन शुरू किया। उनके असहयोग आंदोलन, नागरिक अवज्ञा आंदोलन, दांडी यात्रा और भारत छोड़ो आंदोलन के प्रयासों से अंत में भारत को 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता मिली। भारत की आजादी के लिए तैयार राजनीतिक मंच पर गांधी जी 1920 तक छा गए।