मुझे इस बात का बुरा एहसास है कि मैंने दो वादियों को इस बात का ट्रीक दिया कि धारा 307 यानि हत्या का प्रयास की धारा कैसे नहीं हटे?फिर मैंने धारा 307 पर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजोँ का फैसला पढ़ा और पाया कि धारा 307 को विशेष परिस्थिति में ही मान्यता दी जाएगी।एक मामला सिर पर लाठी से वार करने व पाँव की हड्डी तोड़ने और एक मामला गर्भाशय के ऑपरेशन वाली जगह पर लात-मुक्का से वार करने का था।हालाँकि ये विवादास्पद है कि ऐसी स्थिति में धारा 307 लगना चाहिए या नहीँ।लेकिन मेरा मानना है कि नहीं लगना चाहिए।धारा 307 तब लगना चाहिए जब व्यक्ति मरने की स्थिति में आ जाए लेकिन मरने से बच जाए।डॉक्टरी जांच रिपोर्ट में बताए गए जख्म की स्थिति के आधार पर मुकदमा चलती है जबकि जख्मी की स्थिति के आधार पर मुकदमा चलना चाहिए और डाँक्टरी जांच रिपोर्ट में जख्म के साथ जख्मी की स्थिति का भी विस्तार से वर्णन होना चाहिए।हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने धारा 307 को धारा 325(CAUSING GREVIOUS HURT) में बदलने का कार्य किया है या यदि इसके लिए खतरनाक हथियार का इस्तेमाल किया गया हो तो धारा 326 मेँ।लेकिन दुर्भाग्य की बात ये है कि पुलिस धारा 325 या 326 लगाती ही नहीँ।धारा 325 का मतलब पुलिस तो क्या,वकील भी हड्डी टूटना समझते हैँ।लेकिन IPC का धारा 320 के तहत GREVIOUS HURT का परिभाषा काफी व्यापक है और ऐसा कोई भी जख्म जिससे जीवन को खतरा हो,वह भी Grevious hurt है।उक्त दोनोँ मामला GREVIOUS HURT की श्रेणी में आता है लेकिन पुलिस ने धारा 325 और हड्डी तोड़ने के लिए लाठी का इस्तेमाल करने के कारण धारा 326 नहीं लगाया। Show It ought to be noted that preliminary enquiry be conducted by the police within a week before lodging FIR under
section 307 of the IPC .Before lodging FIR under section 307,the recommendation of the Doctor should be taken whether the matter falls within the purview of the section 307 or not and then on the basis of the conclusion withdrawn by the statements submitted by the witnesses and recommendation of doctor,police should decide whether it appears reasonable ground to lodge FIR or not and then police should act accordingly. मैं
उमेश राय के साथ कल कल्याणपुर थाना गया था और ASI बता रहे थे कि SP का आदेश आ जाने के बाद उमेश राय को जमानत दे देँगे या CrPC का धारा 41(1) के तहत नोटिस तामिला करके छोड़ देँगे।जब धारा अजमानतीय और संज्ञेय हो,तभी नोटिस तामिला करके छोड़ा जाता है।जब धारा जमानतीय हो तो जमानत होना चाहिए।जमानत के बजाय नोटिस तामिला करके अभियुक्त को छोड़ने पर न्यायालय से जमानत लेने में परेशानी होती है।हालाँकि आग्रह करने पर जमानत देने के लिए ASI तैयार हो गए।गवाहोँ का विरोधाभासी बयान,FIR में गवाह के रुप में नाम नहीं होने के
बावजूद पुलिस द्वारा एक का गवाही लिया जाना,FIR में गवाह के रुप में नाम होने के बावजूद कुछ लोगों द्वारा गवाही नहीं देना आदि से स्पष्ट होता है कि किसी भी धारा के तहत आरोप सत्य नहीं है,इसलिए आरोप-पत्र को असत्य करार देकर न्यायालय में समर्पित करना चाहिए। सिर में चोट लगने पर कौन सी धारा लगाई जाती है?जैसे अगर किसी के सिर में चोट है तो मामला 307 हत्या के प्रयास का बनता है। चोट इतनी गंभीर है कि जान जाने का खतरा है तो धारा 308 गैरइरादतन हत्या के प्रयास का मामला भी लगाया जा सकता है।
सिर फूटने पर कौन सी धारा लगती है?चोट सर पर आने पर ज्यादातर दो धाराओं का इस्तेमाल होता है या तो धारा 307 का या तो धारा 308 का यदि सर पर चोट के साथ-साथ व्यक्ति बेहोश है ऐसे मामलों में अमूमन 308 प्रभावी हो जाता है । विस्तृत रूप से 307 और 308 की जानकारी निम्नवत है ।
हेड इंजरी का मतलब क्या होता है?सिर के किसी भी हिस्से खोपड़ी, मस्तिष्क या अन्य जगह पर चोट लगने की स्थिति को सिर की चोट कहा जाता है। सिर में लगी चोट अगर गंभीर नहीं है, तो इससे सिर में नील पड़ना या सूजन आने जैसी समस्याएं हो सकती हैं।
सिर के पीछे चोट लगने पर क्या करना चाहिए?घाव पर एक साफ कपड़े को मजबूती से दबाकर किसी भी रक्तस्राव को रोकें। यदि चोट गंभीर है, तो सावधान रहें कि व्यक्ति के सिर को स्थानांतरित न करें। अगर खून कपड़े से भिगोता है, तो उसे हटाएं नहीं।
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