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हिन्दी साहित्य के इतिहास में आधुनिक काल के प्रथम चरण को ‘भारतेंदु युग’ के नाम से जाना जाता है। भारतेंदु हरिश्चंद्र को हिन्दी साहित्य के आधुनिक युग के प्रतिनिधि कवि/लेखक के रूप में हमारे सामने आते हैं। भारतेंदु का व्यक्तित्व प्रभावशाली था, वे संपादक और संगठनकर्ता थे, वे साहित्यकारों के नेता और समाज को दिशा देने वाले सुधारवादी विचारक थे, उनके आसपास तरुण और उत्साही साहित्यकारों की पूरी जमात तैयार हुई, अतः इस युग को भारतेंदु-युग की संज्ञा देना उचित है। डॉ. लक्ष्मीसागर वार्ष्णेय के अनुसार ‘प्राचीन से नवीन के संक्रमण काल में भारतेंदु हरिश्चंद्र भारतवासियों की नवोदित आकांक्षाओं और राष्ट्रीयता के प्रतीक थे; वे भारतीय नवोत्थान के अग्रदूत थे। जय भारत जय भारती जिस समय खड़ी बोली गद्य अपने प्रारम्भिक रूप में थी, उस समय हिन्दी के सौभाग्य से भारतेंदु हरिश्चंद्र ने साहित्य के क्षेत्र में प्रवेश किया। उन्होंने राजा शिवप्रसाद तथा राजा लक्ष्मण सिंह की आपस में विरोधी शैलियों में समन्वय स्थापित किया और मध्यम मार्ग अपनाया।’ भारतेंदु युग (सन् 1868 से 1902 ई.) आधुनिकता का प्रवेश द्वार माना जाता है। कहना न होगा कि भारतेंदु को ही हिंदी में आधुनिकता और पुनर्जागरण के प्रवर्तक और पितामह माने जाते हैं। डॉ. नगेन्द्र ने भारतेंदु युग को पुनर्जागरणकाल की संज्ञा दी है। भारतेंदु हरिश्चंद्र ने कविता को रीति कालीन दरबारी तथा श्रृंगार-प्रधान वातावरण से निकाल कर उसका जनता से नाता जोड़ा। भारतेंदु युग की कविता में प्राचीन और आधुनिक काव्य-प्रवृत्तियों का समन्वय दिखाई देता है। इस युग की कविता में देश और जनता की भावनाओं और समस्याओं को पहली बार अभिव्यक्ति मिली। कवियों ने सांस्कृतिक गौरव का चित्र प्रस्तुत कर लोगों में आत्म-सम्मान की भावना भरने का प्रयत्न किया। भारतेंद युगीन राष्ट्रीयता के दो पक्ष थे- देशप्रेम और राजभक्ति। बहुत से संस्कृत महाकाव्यों का अनुवाद हुआ। अंग्रेजी काव्य कृतियों के भाषांतरण का समारंभ भी भारतेंदु युग में हुआ। इस युग में काव्य की भाषा ब्रजभाषा ही रही। यद्यपि खड़ी बोली में भी छुट-पुट प्रयत्न हुए, पर वे नगण्य ही थे। भारतेंदु युग में अधिकांश लेखक/कवि होने के साथ-साथ पत्रकार भी थे- बदरीनारायण चौधरी ‘प्रेमघन’- आनंद कादम्बिनी (मिर्जापुर), प्रतापनारायण मिश्र- ब्राह्मण (कानपूर), बालकृष्ण भट्ट- हिंदी प्रदीप (प्रयाग), तोता राम- भारत बंधु (अलीगढ) आदि प्रमुख हैं। भारतेंदु ने ‘कवि वचन सुधा’ (1868 ई.), ‘हरिश्चंद्र मैगज़ीन’ (1873 ई.) तथा 1874 ई. में नारी शिक्षा के लिए ‘बाल बोधनी’ जैसे मासिक पत्रिकाओं का संपादन भी किया। उन्होंने ‘हरिश्चंद्र मैगज़ीन’ का नाम 8 अंकों के बाद ‘हरिश्चंद चंद्रिका’ कर दिया। भारतेंदु मंडल के साहित्यकार:भारतेंदु ने अपने अल्प जीवन काल में एक अच्छा-खासा साहित्यिक मंडल तैयार कर लिया था जिसमें मंडल बदरीनारायण चौधरी ‘प्रेमघन’, प्रतापनारायण मिश्र, ठाकुर जगमोहन सिंह, बालकृष्ण भट्ट आदि थे। भारतेंदु युग की प्रमुख प्रवृत्तियाँ:1. राष्ट्रीयता, 2. सामाजिक चेतना, 3. देशानुराग- व्यंजक भक्ति भावना, 4. भक्ति एवं श्रृंगार रस की प्रधानता, 5. प्रकृति-चित्रण, 6. हास्य-व्यंग्य रचनाएँ, 7. रीति निरूपण, 8. समस्यापूर्ति, 9. काव्य भाषा के रूप में ब्रजभाषा, 10. काव्यानुवाद 11. मुक्तक काव्य रूप की प्रधानता भारतेंदु युग के प्रमुख कविभारतेंदु हरिश्चंद्र, बदरीनारायण चौधरी ‘प्रेमघन’, प्रतापनारायण मिश्र, ठाकुर जगमोहन सिंह, अंबिकादत्त व्यास आदि इस युग के प्रमुख कवि थे। अन्य कवियों में बाबू राधाकृष्ण दास, लाला सीताराम बी.ए., बालमुकुंद गुप्त, मिश्रबंधु, जगन्नाथदास ‘रत्नाकर’, राय देवीप्रसाद पूर्ण, वियोगी हरि, सत्यनारायण ‘कविरत्न’, श्रीनिवास दास, राधाचरण गोस्वामी, नवनीत लाल चतुर्वेदी, बालकृष्ण भट्ट आदि। भारतेंदु युग के प्रमुख साहित्यिक मंच:साहित्यिक मंच ‘रसिक समाज’ से प्रताप नारायण मिश्र जुड़े हुए थे।
भारतेंदु युग के प्रमुख सतसईकार
भारतेंदु युग में रचित प्रबंध काव्य:
भारतेंदु युगीन समस्यापूर्ति संग्रह और कवि:भारतेंदु युग में समस्यापूर्ति बहुत लोकप्रिय हुई। कुछ चर्चित समस्यापूर्ति संग्रह और कवि इस प्रकार हैं- प्रमुख समस्यापूर्ति संग्रह और कवि:
कुछ चर्चित समस्यापूर्ति:कुछ चर्चित समस्यापूर्तियों की पंक्तियाँ इस प्रकार हैं-
भारतेंदु युग में रीतिनिरूपक ग्रंथभारतेंदयुग में प्रमुख रीतिनिरूपक कवि- लछिराम (ब्रह्म भट्ट), कवि राजा, मुरारिदान, बालगोविंद मिश्र, अयोध्या नरेश प्रतापनारायण सिंह, कन्हैयालाल पोद्दार आदि हैं।
भारतेंदु युग में रामभक्ति काव्य और कवि‘कृष्ण रामायण’ (प्रकाशन- 1894 ई.) के रचनाकार घनारंग दूबे हैं।गुणमंजरीदास ने ‘श्रीयुगलछद्म’ और ‘रहस्यपद’ नामक भक्तिपरक रचनाएँ लिखा है। गुणमंजरीदास जी ‘राधाचरण गोस्वामी’ के पिता थे।
भारतेंदु युग के प्रमुख कवि और उनकी रचनाएँ1. भारतेंदु हरिश्चंद्र:भारतेंदु के काव्य ग्रंथों की संख्या 70 है। काशी नागरी प्रचारिणी सभा ने इनका संकलन भारतेंदु ग्रंथावली (दो खंड) में किया है। ये रचनाएँ निम्नलिखित हैं-
भारतेंदु की प्रसिद्ध कविताओं की शैलियाँ: भारतेंदु हरिश्चंद्र ने ‘पैरोडी’, ‘स्यापा’, ‘गाली’, ‘लावनी’ आदि शैलीगत रूपों में कविताएँ लिखी हैं, जो निम्नांकित हैं-
भारतेंदु की अन्य प्रसिद्ध कविताएं: 2. बद्री नारायण चौधरी ‘प्रेमघन’: (1855–1923 ई.)1. जीर्ण-जनपद (दुर्दशा-दत्तापुर), 2. आनन्द अरुणोदय, 3. हार्दिक हर्षोदर्श, 4. मयंक महिमा, 5. अलौकिक लीला (आख्यानक कविता), 6. वर्षा बिन्दु, 7. लालित्य लहरी, 8. बृजचंद पंचक, 9. सूर्य: स्तोत्र (भक्तिपरक), 10. दुर्दशा दात्तापुर 3. प्रताप नारायण मिश्र: (1856–1894 ई.)1. प्रेम पुष्पावली, 2. मन की लहर, 3. लोकोक्ति शतक, 4. तृप्यन्ताम्, 5. श्रृंगार विलास, 6. हर गंगा, 7. रसखान सतक, 8. प्रताप लहरी (प्रतिनिधि कविताओं का संकलन), 9. दीवाने बरहम (उर्दू कविताओं का संग्रह) 4. ठाकुर जगमोहन सिंह: (1857-1899 ई.)1. प्रेम सम्पत्ति लता (1885), 2. श्यामा लता (1885), 3. श्यामा सरोजिनी (1886), 4. देवयानी (1886) 5. अम्बिका दत्त व्यास: (1858-1900 ई.)1. पावस पचासा (1880), 2. सुकवि सतसई (1887), 3. हो हो होरी (1891), 4. बिहारी बिहार (बिहारी के दोहों को कुंडलियाँ छंद में भाव विस्तार), 5.
कंसवध 6. राधाकृष्णदास: (1865–1907 ई.)1. भारत बारहमासा, 2. देश दशा, 3. रहीम के दोहों पर कुंडलियों की रचना भारतेंदु युग के अन्य कवि और उनकी रचनाएँ
भारतेंदु युग के प्रमुख कवि और उनकी रचनाओं के बारे में महत्वपूर्ण तथ्य:1. भारतेंदु हरिश्चंद्र:भारतेंदु हरिश्चंद्र का जन्म 1850 ई. (काशी) में और मृत्यु 1885 ई. में हुआ था इनके पिता का नाम गोपालचन्द था। इनके गुरु शिव प्रसाद सिंह ‘सितारे हिन्द’ थे। साहित्यकारों ने हरिश्चंद्र को ‘भारतेंदु’ उपाधि 1880 ई. में प्रदान किया था। भारतेंदु ‘बल्लभ सम्प्रदाय’ में दीक्षित थे और ‘रसा’ उपनाम से उर्दू में कविताएँ लिखते थे। भारतेंदु हरिश्चंद्र की समस्त रचनाओं की संख्या 175 और काव्य-ग्रन्थों की संख्या 70 है। भारतेंदु हरिश्चंद्र मूलतः ब्रजभाषा के कवि हैं। इनकी कविताओं में भक्ति एवं श्रृंगार रस की प्रधानता, नवीन विषयों का समावेश, प्रकृति चित्रण और राजभक्ति के साथ-साथ देशभक्ति एवं राष्ट्रीयता का स्वर प्रमुख रूप से मिलता है। भारतेंदु जी ने ‘प्रबोधनी’ कविता में विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार की प्रेरणा दी है। भारतेंदु ने ‘फूलों का गुच्छा’ और ‘दशरथ विलाप’ कविता खड़ी बोली में लिखी है। भारतेंदु की ‘बंदर-सभा’ और ‘बकरी का विलाप’ हास्य-प्रधान काव्य कृतियाँ हैं, वहीं ‘दान-लीला’ भक्ति-प्रधान और ‘सतसई श्रृंगार’ श्रृंगार-प्रधान काव्य कृति है। भारतेंदु ने ‘विजयिनी विजय वैजयंती’ शीर्षक कविता मिस्र में भारतीय सेना की विजय प्राप्ति के अवसर पर लिखी थी और ‘नये जमाने की मुकरी’ के माध्यम से समकालीन राजनितिक-सामाजिक विसंगतियों पर व्यंग किया है। ‘प्रात समीरन’ प्रकृति चित्रण की दृष्टि से उत्कृष्ट कविता है जिसमें बंगला के ‘पयार’ छंद का प्रयोग हुआ है। भारतेंदु ने खुसरों जैसी पहेलियाँ और मुकरियाँ भी लिखा है। 2. बदरीनारायण चौधरी ‘प्रेमघन’:बदरीनारायण चौधरी ‘प्रेमघन’ का जन्म मिर्जापुर (1855 ई.) में और मृत्यु 1923 ई. में हुआ था। प्रेमघन जी उर्दू में ‘अब्र’ नाम से कविताएँ लिखते थे। इनकी समस्त काव्य कृतियों का संकलन ‘प्रेमघन-सर्वस्व’ है। ‘प्रेमघन’ ने विलायत में ‘दादा भाई नौरोजी’ को ‘काला’ कहे जाने पर क्षोभपूर्ण कविताएँ लिखा था। प्रेमघन की कविताओं में प्रायः यति भंग मिलता है। इन्होंने ‘मयंक महिमा’ की रचना खड़ी बोली में की। प्रेमघन जी ने ‘आनन्द कादम्बिनी’ (मासिक) एवं ‘नागरी नीरद’ (साप्ताहिक) पत्रिका का संपादन भी किया। इनकी कविताओं में राजभक्ति एवं राष्ट्रीयता का समन्वय और देश की दुरवस्था का चित्रण हुआ है। बदरीनारायण चौधरी ने भी ब्रजभाषा में काव्य सृजन किया। 3. प्रतापनारायण मिश्र:मिश्र जी का जन्म बेलगाँव, जिला उन्नाव (1856 ई.) में और मृत्यु 1894 ई. में हुआ था। प्रतापनारायण मिश्र ने ‘हिंदी हिंदू हिंदुस्तान’ का नारा दिया था। इनकी प्रतिनिधि कविताओं का संकलन ‘प्रताप-लहरी’ है। मिश्र जी ने ‘हरगंगा’, ‘तृप्यंताम्’, ‘बुढ़ापा’, ‘हिन्दी की हिमायत’ शीर्षक से महत्वपूर्ण कविताएँ लिखीं हैं। मिश्र जी ने उर्दू में कसीदा, शेर, मरसिया आदि की भी रचना की।
4. ठाकुर जगमोहन सिंह:जगमोहन सिंह का जन्म विजय राघवगढ़ रियासत, मध्य प्रदेश (1857 ई.) में और मृत्यु 1899 ई. में हुआ था। ठाकुर जगमोहन सिंह की प्रमुख काव्य प्रवृत्ति श्रृंगार और प्रकृति चित्रण की है। इन्होंने अपनी कविताओं में विंध्य प्रदेश की प्रकृति का वैविध्यपूर्ण चित्रण किया है। स्वतंत्र रूप से प्रकृति चित्रण की दृष्टि से ठाकुर जगन्मोहन सिंह भारतेंदु युग के प्रमुख कवि हैं। इनके यहाँ श्रृंगार वर्णन एवं प्रकृति प्रेम की कविताएं अधिक मिलती हैं। जगमोहन सिंह ने अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग किया है। इन्होंने ब्रजभाषा में काव्य रचना की। जगमोहन जी भावुक मनोवृत्ति के कवि थे। 5. अंबिकादत्त व्यास:अंबिकादत्त व्यास का जन्म काशी (1858 ई.) में और मृत्यु 1900 ई. में हुआ था। इन्होंने अपने कवि जीवन की शुरुआत ‘कवितावर्धिनी सभा’ में ‘पूरी अमी की कटोरिया सी, चिरंजीवी रहौ विक्टोरिया रानी’ समस्या की पूर्ति करके किया था। इस समस्यापूर्ति पर उन्हें ‘कवितावद्धिनी’ सभा द्वारा ‘सुकवि’ की उपाधि प्राप्त हुई थी। इन्होंने भारतेंदु युग में ‘अतुकांत काव्य रचना पद्धति’ अपना कर नवीन प्रयोग किया था। अंबिकादत्त जी ने अपनी कविताओं में बंगला के ‘दीर्घललित’ छंद का प्रयोग किया है। इन्होंने ‘पीयूष प्रवाह’ पत्रिका का संपादन भी किया था।
6. राधाकृष्ण दासराधाकृष्ण दास का जन्म काशी (1865 ई.) में और मृत्यु 1907 ई. में हुआ था। भारतेंदु हरिश्चंद्र के फुफेरे भाई थे। इन्होंने रहीम के दोहों को कुण्डलिया छंद में भाव विस्तार किया। ये काशी नागरी प्रचारिणी सभा के अध्यक्ष भी रहे। भक्ति एवं श्रृंगार के साथ-साथ समकालीन राजनीतिक चेतना भी इनके कविताओं में देखा जा सकता है। राधाकृष्ण दास ब्रजभाषा एवं खड़ी बोली के कवि हैं। 7. नवनीत चतुर्वेदीनवनीत चतुर्वेदी का जन्म 1868 ई. में और मृत्यु 1919 ई. में हुआ था। नवनीत जी जगन्नाथदास ‘रत्नाकर’ के गुरु थे। भारतेंदु युग से अन्य उल्लेखनीय तथ्य:
भारतेंदु युग के प्रमुख कवि कौन कौन से हैं?भारतेन्दु युग के महत्वपूर्ण कवि एवं उनकी रचनाएँ. भारतेन्दु हरिश्चन्द्र– प्रेम फुलवारी, प्रेम सरोवर, वेणु गीति, प्रेम मल्लिका।. प्रताप नारायण मिश्र– श्रृंगार विलास, प्रेम पुष्पावली, मन की लहर।. बद्रीनारायण चौधरी प्रेमघन– आनन्द अरुणोदय, जीर्ण जनपद, लालित्य लहरी।. जगमोहन सिंह– देवयानी, प्रेम सम्पत्ति लता, श्यामा सरोजिनी।. भारतेंदु युग का दूसरा नाम क्या है?भारतेन्दु हरिश्चन्द्र हिन्दी में आधुनिकता के पहले रचनाकार थे. भारतेन्दु के वृहत साहित्यिक योगदान के कारण ही 1857 से 1900 तक के काल को भारतेन्दु युग (Bhartendu Yug) के नाम से जाना जाता है. महज पंद्रह वर्ष की आयु से ही भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (Bhartendu Harishchandra) ने हिंदी साहित्य (Hindi Sahitya) सेवा शुरू कर दी थी.
भारतेंदु मंडल के कवि कौन है?ये लोग भारतेन्दु की मृत्यु के बाद भी लम्बे समय तक साहित्य साधना करते रहे।;भारतेन्दु मंडल के प्रमुख साहित्यकार. 9 संबंधों: प्रतापनारायण मिश्र, बदरीनारायण चौधरी उपाध्याय 'प्रेमघन', बालकृष्ण भट्ट, भारतेन्दु हरिश्चंद्र, राधाचरण गोस्वामी, हिन्दी साहित्य का इतिहास, जगन्मोहन मण्डल, जगमोहन सिंह, अंबिकादत्त व्यास।
भारतेंदु युग के निबंधकार कौन है?हिन्दी साहित्य में यह समय भारतेन्दु युग के नाम से अभिहित किया जाता है। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (1850-1885), बाबा सुमेर सिंह , बदरी नारायण प्रेमघन (1855-1923), प्रताप नारायण मिश्र (1856-1894), राधाकृष्ण दास (1865-1907), अम्बिका दत्त व्यास (1858-1900) और ठाकुर जगमोहन सिंह (1857-1899) इस युग के प्रमुख कवि हैं।
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