भारत पाकिस्तान युद्ध के समय राजस्थान का मुख्यमंत्री कौन था? - bhaarat paakistaan yuddh ke samay raajasthaan ka mukhyamantree kaun tha?

जोधपुर. 1971 में हुए भारत-पाकिस्तान युद्ध (Indo-Pak war) को आज 50 साल पूरे हो चुके हैं. इस युद्ध में भारतीय सेना (Indian Army) के 120 जवानों ने पश्चिमी राजस्थान में थार के धोरों में स्थित जैसलमेर के लोंगेवाला (Longewala) में पाकिस्तान को करारी शिकस्त दी थी. वैसे तो आर्मी ने उस दौरान युद्ध लड़ा था, लेकिन बीएसएफ (BSF) के एक जवान ने इस युद्ध को जिताने में अहम भूमिका निभाई थी. वह नाम है भैरों सिंह राठौड़ (Bhairon Singh Rathore). इनको आपने 'बॉर्डर' फिल्म में देश के लिए शहीद होता देखा होगा. लेकिन असल जिंदगी में वो वीर आज भी जिंदा है. जोधपुर के शेरगढ़ स्थित एक गांव में वो योद्धा आज शान भी अपना जीवन यापन कर रहा है. भैरों सिंह की जुबानी सुनिये इस युद्ध की दास्तां.

भैरों सिंह बताते हैं कि 1971 जब भारत-पाक के बीच युद्ध छिड़ चुका था. उस समय बीएसएफ की 14 बटालियन की डी कंपनी को तीसरे नंबर की प्लाटून लोंगेवाला पर तैनात थी. आर्मी की 23 पंजाब की एक कंपनी ने मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी के नेतृत्व में लोंगेवाला का जिम्मा संभाल लिया था. बॉर्डर पोस्ट से करीब 16 किमी दूरी पर था. बीएसएफ की हमारी कम्पनी को दूसरी पोस्ट पर भेज दिया गया. मुझे पंजाब बटालियन के गाइड के तौर पर लोंगेवाला पोस्ट पर तैनाती के आदेश मिले. सेना को पैट्रोलिंग के दौरान इलाका दिखाया. आधी रात को संदेश मिला कि पाकिस्तानी सैनिक पोस्ट की ओर बढ़ रहे हैं. उनके पास बड़ी संख्या में टैंक भी थे. भारतीय सेना ने हवाई हमले के लिए एयरफोर्स से मदद मांगी, लेकिन रात होने के कारण मदद नहीं मिल सकी.

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7 घंटे तक फायरिंग करते रहे
बकौल सिंह रात के करीब 2 बजे पाक सेना ने टैंक से गोले बरसाने शुरू कर दिए. दोनों देशों की सेनाओं के बीच घमासान लड़ाई छिड़ चुकी थी. इस बीच एलएमजी से गोलियां दाग रहा एक सैनिक घायल हो गया. मैंने समय गवाएं बिना एलएमजी संभाल ली और लगातार 7 घंटे तक फायरिंग करता रहा. सूरज निकलने के साथ ही वायुसेना के विमान आ चुके थे. विमानों से भयंकर बमबारी की जिसमें पाक को भारी नुकसान हुआ. अंततः पाकिस्तानी सेना को पीछे हटना पड़ा. लोंगेवाला जीत के हीरो बीएसएफ के नायक भैरोंसिंह राठौड़ का दावा है की उन्होंने एलएमजी से दो दर्जन से अधिक पाक सैनिकों को मार गिराया था.

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1972 में सेना मेडल से नवाजा गया था
अदम्य साहस और शौर्य के लिए भैरों सिंह राठौड़ को 1972 में सेना मेडल से नवाजा गया था. पूर्व मुख्यमंत्री बरकतुल्लाह खान ने भी भैरों सिंह राठौड़ को सम्मानित किया था. सन् 1963 में बीएसएफ में भर्ती होकर राठौड़ 1987 में सेवानिवृत्त हुए थे. भैरोंसिंह का दर्द है कि उन्हें सरकार से जमीन नहीं मिली. वहीं पेंशन राशि भी 12500 रुपये ही मिल रही है. छठे और सातवें वेतनमान का लाभ भी उन्हें नहीं मिल पाया है. गांव में 25 बीघा जमीन है. वो भी बरसात पर निर्भर. परिवार का लालन पोषण पेंशन और खेती से ही हो रहा है.

सिंह को बॉर्डर फिल्म में शहीद बताया गया है
वर्ष 1997 में रिलीज हुई जेपी दत्ता की बॉर्डर फिल्म में अभिनेता सुनील शेट्टी (भैरोंसिंह राठौड़) ने पाकिस्तानी टैंक उड़ाने के लिए लेंड माइन उसके नीचे रख दी थी. फिल्म में उन्हें शहीद बताया गया था. सुनील शेट्टी ने फिल्म में भैरोसिंह सोलंकियातला का किरदार अदा किया था. बातचीत में सिंह ने बताया कि वे अभिनेता सुनील शेट्टी से मिलना चाहते हैं. उन्हें बताएंगे कि वे जिंदा हैं. उन्हें शहीद क्यों फिल्माया गया. भैरोंसिंह बताते हैं कि बॉर्डर फिल्म के डायरेक्टर व अभिनेता ने उनसे मुलाकात ही नहीं की. सेना के अधिकारियों ने जितनी स्क्रिप्ट लिखवाई उसी पर बॉर्डर मूवी फिल्माई गई.

लोंगेवाला एक ऐतिहासिक 'विजय'
भैरों सिंह बताते हैं कि लोंगेवाला की लड़ाई जीते हुए आज 50 साल बीत गए हैं. वहां एक ऐतिहासिक जीत मिली थी. लेकिन आज की जेनरेशन इस बात से वाकिफ ही नहीं है कि लोंगेवाला है कहां ? वे चाहते हैं कि जिस तरह गुलाम भारत के वीरों की कहानी बच्चों को पता है उसी तरह आजाद भारत के सैनिकों की दास्तां भी हर किसी को मालूम होनी चाहिए. हर साल दिसंबर के महीने में जंग के दिनों की यादें ताजा हो जाती हैं. यह दुनिया की पहली ऐसी जंग थी जो सिर्फ 13 दिन तक ही लड़ी गई. 16 दिसंबर 1971 के दिन पाकिस्तान ने अपने 92000 सैनिकों के साथ हिंदुस्तान के आगे सरेंडर किया था. इस दिन को विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है.

युद्ध के बाद हुआ था विवाह
भैरों सिंह ने बताया कि बॉर्डर फिल्में में सुनील शेट्टी ने उनके किरदार को निभाया था. इसमें भैरों सिंह को असिस्टेंट कमांडेंट स्तर का अधिकारी दिखाया गया है. जबकि वो तो अंगूठा छाप हैं और बीएसएफ में नायक थे. फिल्म में भैरोंसिंह की पत्नी फूल कंवर थी. जबकि वास्तव में उनकी पत्नी का नाम प्रेम कंवर है. भैरोंसिंह की शादी भारत- पाक युद्ध के बाद सन 1973 में हुई थी.

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FIRST PUBLISHED : December 16, 2020, 13:09 IST

भारत पाकिस्तान युद्ध के समय राजस्थान का मुख्यमंत्री कौन था? - bhaarat paakistaan yuddh ke samay raajasthaan ka mukhyamantree kaun tha?

1965 के भारत-पाक युद्ध की अति रोचक, रहस्यमयी और हैरतअंगेज जानकारी मुझे तब मिली जब 2005 में पाकिस्तान से एक शिष्टमंडल गौहर अयूब खां के नेतृत्व में पंजाब विधानसभा की कमेटियों के अधिकारों और कार्यप्रणाली की जानकारी हासिल करने के लिए चंडीगढ़ आया।

1965 के भारत-पाक युद्ध की अति रोचक, रहस्यमयी और हैरतअंगेज जानकारी मुझे तब मिली जब 2005 में पाकिस्तान से एक शिष्टमंडल गौहर अयूब खां के नेतृत्व में पंजाब विधानसभा की कमेटियों के अधिकारों और कार्यप्रणाली की जानकारी हासिल करने के लिए चंडीगढ़ आया। पंजाब सरकार की आेर से शिष्टमंडल का नेतृत्व करने का मुझे मौका नसीब हुआ।

मीटिंग के बाद मैं गौहर को बड़े सम्मान के साथ बाजू वाले अपने दफ्तर में ले गया। जहां बैठकर हम दोनों ने भारत-पाक के संबंधों पर बड़े विस्तारपूर्वक चर्चा की कि अगर अमरीका और कनाडा शांति से रह सकते हैं, फ्रांस और इंगलैंड 100 साल की लड़ाई के बाद मित्र बन सकते हैं, सीमा विवाद के बावजूद रूस और चीन मिलकर चल सकते हैं, तो भारत और पाकिस्तान क्यों नहीं? आखिर पाकिस्तान भारत की ही जमीन को काटकर अलग देश बनाया गया है।

इसके साथ ही मैंने 1965 में पाकिस्तान द्वारा कश्मीर पर आक्रमण करने के बारे में और पूरी लड़ाई की जानकारी लेने के लिए गौहर से कुछ प्रश्न पूछे? जिनका उत्तर उन्होंने बड़ी हिचकिचाहट और गुंझलदार कूटनीतिक शब्दों में दिया। वार्तालाप का लबोलबाब यंू है कि उस समय विदेश मंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो एक अति महत्वाकांक्षी व्यक्ति था। उसने राष्ट्रपति अयूब खां को यह विश्वास दिलवाया कि कश्मीर पर लड़ाई अति सीमित होगी। भारत खराब स्थिति के कारण कोई दूसरा मोर्चा नहीं खोलेगा और पाकिस्तान आसानी से कश्मीर भारत से छीन लेगा। परंतु जब भारत की सेना बड़ी तूफानी गति से आक्रमण करते हुए इच्छोगिल नहर को पार करके बाटापुर पहुंच गई, जहां से लाहौर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा कुछ मीलों पर था, तो समूचा पाकिस्तान थर्रा गया।

पाकिस्तान ने यू.एन.आे. से गुहार लगाई कि उन्हें लाहौर खाली करने के लिए मौका दिया जाए। लेकिन जल्दी ही हालात बदल गए पर अयूब खां इस पर बहुत पछताया। उन्होंने कहा कि कश्मीर लेते-लेते लाहौर भी हमारे हाथों से जाता नजर आ रहा है। भुट्टो का मशविरा बड़ा महंगा पड़ रहा है। पाकिस्तान की अप्रैल 1965 में रण ऑफ कच्छ में भारतीय सैनिकों के साथ मुठभेड़ हुई। इसमें ब्रिटेन के प्रधानमंत्री हैरोल्ड विल्सन ने मध्यस्थता कर लड़ाई तो खत्म करा दी, लेकिन ट्रिब्यूनल ने पाकिस्तान को 910 किलोमीटर इलाका दे दिया। इससे पाकिस्तान के हौसले में इजाफा हुआ। उस समय भारत के कई प्रदेशों में राजनीतिक आंदोलन चल रहे थे। पाकिस्तान ने कश्मीर को हड़पने के लिए ऑप्रेशन जिब्रॉल्टर शुरू किया। 5 अगस्त 1965 को 33 हजार पाकिस्तानी फौजियों को कश्मीरी लिबास में घाटी में प्रवेश करवा दिया और 15 अगस्त को भारत ने लाइन ऑफ कंट्रोल को पार करके हमला कर दिया।

भारत के वीर सैनिकों ने पाकिस्तान के 8 किलोमीटर अंदर हाजीपीर दर्रा पर कब्जा कर लिया। यहीं से पाकिस्तान घुसपैठियों को प्रवेश करवाता था। भारत ने कारगिल पर कब्जा कर लिया।  15 दिन के अंदर पाकिस्तान का ऑपरेशन जिब्रॉल्टर बुरी तरह असफल हो गया और उनके कश्मीर जीतने की आशाआें पर पानी फिर गया। एक सितंबर 1965 को पाकिस्तान ने आप्रेशन ग्रैंड स्लैम शुरू किया। अयूब खां का यह कहना था कि भारतीय आधुनिक हथियारों, टैंकों और गोला बारूद का मुकाबला नहीं कर सकेंगे और पाकिस्तान अखनूर पर कब्जा करने में सफल हो जाएगा। पाकिस्तान द्वारा अखनूर पर जोरदार हमले ने भारत सरकार को भी आश्चर्य में डाल दिया। भारत के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने एयर मार्शल अर्जुन सिंह को अपने घर बुलाया और पूछा कि हम कितने समय में पाकिस्तान पर हवाई हमला कर सकते हैं। अर्जुन सिंह ने तुरंत उत्तर दिया कि 15 मिनट के अंदर अंदर। उसी समय छम्ब में जोरदार हवाई हमले शुरू कर दिए गए जिससे आगे बढ़ते हुए पाकिस्तानी सैनिकों को रोक लिया गया।

परंतु दूसरी तरफ 6 सितंबर 1965 को भारत ने पंजाब और राजस्थान की अंतर्राष्ट्रीय सीमा को पार करके जोरदार हमला किया। भारत की फौज मेजर जनरल निरंजन प्रसाद के नेतृत्व में इच्छोगिल नहर तक जा पहुंची। पाकिस्तान यह सोच भी नहीं सकता था कि भारत अंतर्राष्ट्रीय सीमा से आक्रमण कर देगा। लाहौर को खतरे में देखते हुए पाकिस्तान ने अपनी फौज का बहुत सारा हिस्सा पंजाब की तरफ लगा दिया। इससे उनका कश्मीर में दबाव कम होने लगा। भारत के उच्च पदों पर आसीन अफसरों को भारतीय सेना द्वारा बाटापुर, बर्की के कब्जे की पूरी जानकारी नहीं थी और उन्हें आगे बढऩे की बजाय वापस बुला लिया गया। यह सबके लिए हैरानीजनक भी था और अफसोसनाक भी। क्योंकि 9 सितंबर को फौज को यह हुक्म दे दिया गया कि बाटापुर और डोगराई से पीछे हटकर गौशल दयाल आ जाए। इसके साथ ही सियालकोट पर भी भारत ने जोरदार आक्रमण किया और पाकिस्तान के काफी अंदर तक जाकर कब्जा कर लिया।

दूसरी तरफ स्थिति अचानक बदल गई। पाकिस्तान की फौज ने आगे बढ़कर खेमकरण पर कब्जा कर लिया। उनकी योजना ब्यास और हरि के पत्तन के पुल पर कब्जा करके अमृतसर के पूरे क्षेत्र पर नियंत्रण करने थी। भारत के लिए यह बड़ी ही नाजुक, खतरनाक और चिंताजनक स्थिति पैदा हो गई। जनरल जे.एन. चौधरी ने पंजाब के पश्चिमी कमांड के हैड सरदार हरबख्श सिंह को अमृतसर खाली करने के लिए कह दिया। जनरल हरबख्श सिंह के साथ उस समय कैप्टन अमरेन्द्र सिंह (मुख्यमंत्री पंजाब) को राष्ट्र की सुरक्षा के लिए अपनी सैनिक जिम्मेदारी निभाने का मौका मिला।

जनरल हरबख्श सिंह अमृतसर को खाली करने के लिए किसी कीमत पर तैयार नहीं थे। उसी रात को भारत की आसल उत्ताड़ पर  पाकिस्तान के साथ घमासान जंग हुई और उनके 100 टैंक तबाह कर दिए गए और टैंकों को तबाह करने वाले अब्दुल हमीद ने यहीं पर शहादत पाई थी। अमृतसर को बचाने का श्रेय जनरल हरबख्श सिंह को जाता है जिन्होंने अपनी कार्यकुशलता से अपनी जिम्मेदारी को सरअंजाम दिया। इस तरह भारत ने पाकिस्तान के 1920 किलोमीटर (जिसमें सियालकोट, लाहौर और कश्मीर क्षेत्र) के हिस्से पर कब्जा कर लिया। जबकि पाकिस्तान भारत के छम्ब और सिंध से लगते रेगिस्तान पर 550 किलोमीटर पर कब्जा करने में कामयाब हो गया।

भारत पाकिस्तान में युद्ध बंद हो गया और रूस के प्रधानमंत्री ने मध्यस्थ बनकर दोनों को ताशकंद बुलाया। 10 जनवरी 1966 को भारत-पाकिस्तान में समझौता करवाया गया। भारत ने सारे जीते हुए इलाके वापस कर दिए। इस पर भारतीयों को बड़ा आक्रोश था। 11 जनवरी 1966 को लाल बहादुर शास्त्री की दिल का दौरा पडऩे से अचानक मृत्यु हो गई और क्रोध सहानुभूति की लहर बन गई। भारत ने अपना एेसा लाल खो दिया जिसके एक इशारे पर बच्चे से लेकर बूढ़े तक ने सोमवार की रात को अनाज की समस्या से निजात पाने के लिए उपवास रखना शुरू कर दिया था।-प्रो. दरबारी लाल पूर्व डिप्टी स्पीकर, पंजाब विधानसभा

सबसे पहले भारत में कौन सा युद्ध हुआ था?

भारत और पाकिस्तान के बीच प्रथम युद्ध सन् १९४७ में हुआ था। यह कश्मीर को लेकर हुआ था जो १९४७-४८ के दौरान चला।

भारत में कुल कितने युद्ध हुए थे?

भारत और पाकिस्तान के बीच चार युद्ध हुए हैं। १९४८,१९६५,१९७१ और १९९९।

1971 में पाकिस्तान का शासक कौन था?

1971 के समय पाकिस्तान में जनरल याह्या खान राष्ट्रपति थे और उन्होंने पूर्वी हिस्से में फैली नाराजगी को दूर करने के लिए जनरल टिक्का खान को जिम्मेदारी दी।

1965 में भारत का प्रधानमंत्री कौन था?

लालबहादुर शास्त्री (जन्म: 2 अक्टूबर 1904 मुगलसराय (वाराणसी) : मृत्यु: 11 जनवरी 1966 ताशकन्द, सोवियत संघ रूस), भारत के दूसरे प्रधानमन्त्री थे। वह 9 जून 1964 से 11 जनवरी 1966 को अपनी मृत्यु तक लगभग अठारह महीने भारत के प्रधानमन्त्री रहे।