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question answer for sixth class, चित्रकूट में भरत free worksheet PDF for 6th grade, / chitrakoot mein bharat – प्रश्न और उत्तर चित्रकूट में भरत (Page 27) Image from NCERT book प्रश्न / उत्तर प्रश्न-1 भरत क्या सुनते ही शोक में डूब गए? उत्तर- यह सुनते ही भरत शोक में डूब गए कि उनके पिता राजा दशरथ का निधन हो गया है । प्रश्न-2 राजा दशरथ के मुँह कौन से अंतिम तीन शब्द निकले? उत्तर- राजा दशरथ के मुँह से अंतिम तीन शब्द निकले – हे राम! हे सीते! हे लक्ष्मण! प्रश्न-3 राम ने कोई अपराध नहीं किया था फिर भी उन्हें वनवास क्यों जाना पड़ा? उत्तर - राम ने कोई अपराध नहीं किया था फिर भी उन्हें वनवास जाना पड़ा क्योंकि कैकयी ने महाराजा दशरथ से प्रार्थना की थी कि राम को चौदह वर्ष का वनवास हो और भरत को राजगद्दी दी जाए । प्रश्न- 4 किसने किससे कहा? i. “उठो पुत्र! यशस्वी कुमार शोक नहीं करते । तुम्हारा इस प्रकार दुःखी होना उचित नहीं है ।” कैकेयी ने भरत से कहा । ii. “उन्होंने मेरे लिए कोई सन्देश दिया?” भरत ने कैकेयी से कहा । iii. “नहीं अंतिम समय में उनके मुँह से केवल तीन शब्द निकले ।” कैकेयी ने भरत से कहा । iv. “महाराज ने उन्हें वनवास दे दिया है । चौदह वर्ष के लिए । सीता और लक्ष्मण भी राम के साथ गए हैं ।” कैकेयी ने भरत से कहा । v. “परन्तु वनवास क्यों? भ्राता राम से कोई अपराध हुआ है?” भरत ने कैकेयी से कहा । vi. “उठो पुत्र राजगद्दी सम्भालो ।” कैकेयी ने भरत से कहा । vii. “यह तुमने क्या किया, माते! ऐसा अनर्थ!” भरत ने कैकेयी से कहा । viii. “तुमने पाप किया है, माते! इतना साहस कहाँ से आया तुममें?” भरत ने कैकेयी से कहा । ix. “मैं राजपद नहीं ग्रहण करूँगा । तुमने ऐसा सोचा कैसे?” भरत ने कैकेयी से कहा । x. “आप भी सुन लें । मेरी माँ ने जो किया है, उसमें मेरा कोई हाथ नहीं है ।” भरत ने सभासदों से कहा । These NCERT Solutions for Class 6 Hindi Vasant & Bal Ram Katha Class 6 Questions and Answers Summary Chapter 5 चित्रकूट में भरत are prepared by our highly skilled subject experts. Bal
Ram Katha Class 6 Question Answers Chapter 5 पाठाधारित प्रश्न अतिलघु उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. लघु उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न
3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. मूल्यपरक प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. अभ्यास प्रश्न लघु उत्तरीय प्रश्न 1. भरत ने अपनी ननिहाल में क्या सपना
देखा? दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 1. अयोध्या लौटकर भरत का माता कैकेयी के साथ क्या वार्तालाप हुआ? Bal Ram Katha Class 6 Chapter 5 Summary भरत अपने ननिहाल कैकेय राज्य में थे। वे अयोध्या की घटनाओं से बिलकुल अनिभिज्ञ थे, पर चिंतित थे। एक दिन उन्होंने विचित्र सपना देखा। समुद्र सूख गया है, चंद्रमा धरती पर गिर पड़ा, वृक्ष सूख गए। एक राक्षसी पिता को खींचकर ले जा रही है। वे रथ पर बैठे हैं। रथ गधे खींच रहे हैं। जिस समय भरत अपना सपना मित्रों, सगे संबंधियों को सुना रहे थे, ठीक उसी समय अयोध्या के घुड़सवार दूत वहाँ आ पहुँचे। भरत अपने नाना कैकयराज से विदा लेकर सौ रथों के साथ आयोध्या के लिए निकल पड़े। लंबा रास्ता होने के कारण वे आठ दिन बाद अयोध्या पहुँचे। अयोध्या नगर काफ़ी शांत और उदास था। अयोध्या के बदले रूप को देखकर उन्हें मन में अनिष्ट की आशंका होने लगी। वे सीधे राजभवन गए। वे पिता के महल की ओर गए, किंतु वहाँ उन्हें महाराज नहीं मिले। वे कैकेयी के महल की ओर गए। माता कैकेयी ने अपने पत्र भरत को गले लगा लिया। भरत ने माँ से पिता के बारे में पूछा तो कैकेयी ने उन्हें बताया कि उनके पिता स्वर्ग सिधार गए। यह सुनते ही भरत शोक में डूब गए और पछाड़ खाकर गिर पड़े। माता कैकेयी ने उन्हें उठाया। माँ ने भरत को ढाढस बंधाया। भरत तुरंत राम के पास जाना चाहते थे। कैकेयी ने बताया कि राम को पिता ने चौदह वर्षों के लिए वनवास दे दिया है। सीता और लक्ष्मण भी राम के साथ वन गए हैं। कैकेयी ने भरत को बताया कि अंतिम समय में महाराज के मुँह से केवल तीन शब्द निकले-हे राम! हे सीते! हे लक्ष्मण! तुम्हारे लिए कुछ नहीं कहा। भरत ने यह सुनकर आश्चर्यचकित होकर पूछा कि वनवास क्यों? क्या उनसे कोई अपराध हो गया था। तब कैकेयी ने उन्हें वरदान की पूरी कहानी सुनाते हुए राजगद्दी संभालने के लिए कहा। भरत अपना क्रोध नहीं रोक पाए। वे चीख पड़े-‘यह आपने क्या किया माते। आप अपराधिनी हो। नहीं चाहिए मुझे ऐसा राज्य।’ मेरे लिए यह राज बेकार है। पिता को खोकर, भाई से बिछड़कर मुझे ऐसा राज्य नहीं चाहिए। वे बार-बार अपनी माता को कोसते रहे।’ किसने तुम्हारी बुद्धि भ्रष्ट की। किसने तुम्हें उलटा पाठ पढ़ाया। मैं राजपद ग्रहण नहीं करूँगा। इस बीच मंत्रिगण और सभासद भी वहाँ आ गए। भरत ने साफ़ शब्दों में सभासदों से कह दिया-‘आप सुन लें। मेरी माँ ने जो किया है उसमें मेरा कोई हाथ नहीं है। मैं राम की सौगंध खाकर कहता हूँ। मैं राम के पास जाऊँगा। उन्हें मनाकर लाऊँगा। प्रार्थना करूँगा कि वे गद्दी सँभालें। मैं दास बनकर रहूँगा।’ वे सुध-बुध खो बैठे थे। होश में आने पर वे कौशल्या के महल की ओर चल दिए। कौशल्या भी आहत थी। वे कौशल्या के चरणों से लिपटकर खूब रोए। कौशल्या ने भरत को क्षमा किया और गले लगा लिया। भरत सारी रात रोते रहे। सुबह होते ही शत्रुघ्न को पता चल गया कि कैकेयी के कान किसने भरे हैं। मंथरा अयोध्या के घटनाक्रम से घबरा गई थी। शत्रुघ्न ने लपककर मंथरा के बाल पकड़ लिए। वे मंथरा को घसीटते हुए भरत के सामने लाए। भरत ने बीचबचावकर उसे छोड़ दिया। मुनि वशिष्ठ अयोध्या का राजसिंहासन खाली नहीं देखना चाहते थे। उन्होंने भरत से कहा-‘वत्स। तुम राजकाज संभाल लो। पिता के निधन और बड़े भाई के वन-गमन के बाद यही उचित है।’ भरत ने इस सलाह को नहीं माना और वन वापस जाकर राम को वापस लाने की इच्छा जताई। सभी वन जाने के लिए तैयार थे। अगली सुबह सभी मंत्रियों और सभासदों, गुरु वशिष्ठ तथा नगरवासियों के साथ वन की ओर चल दिए। तब तक राम गंगा पार कर चित्रकूट पहुँच गए थे। महर्षि भारद्वाज के आश्रम के निकट एक पहाड़ी पर एक पर्णकुटी बनाई गई। भरत को सूचना मिल गई थी। वे चित्रकूट ही आ रहे थे। वे पूरे दल बल के साथ थे। निषाद गुह को उन्हें देखकर कुछ संदेह हुआ। सही स्थिति का पता चलने पर उन्होंने भरत की अगवानी की। गंगा पार करने के लिए उन्होंने पाँच सौ नाव लाकर खड़ी कर दी। रास्ते में मुनि भारद्वाज का आश्रम पड़ता था। उन्होंने भरत को राम का समाचार दिया और मार्ग भी दिखा दिया जो राम की पर्णकुटी तक जाता था। अयोध्यावासियों ने रात आश्रम में बिताई। आगे जंगल घना था। सेना चली तो वन में खलबली मच गई। सभी जानवर पक्षी इधर-उधर भागने लगे। राम-सीता पर्णकुटी में थे। लक्ष्मण पहरा दे रहे थे। लक्ष्मण ने देखा कि एक विशाल सेना चली आ रही है। लक्ष्मण जोर से राम से बोले-‘भैया, भरत सेना के साथ इधर आ रहे हैं। लगता है वे हमें मार डालना चाह रहे हैं। राम कुटी से बाहर आ गए। वे बोले-भरत हम पर हमला कभी नहीं करेगा। वह हम लोगों से मिलने आ रहा होगा।’ लक्ष्मण आक्रमण करने के लिए व्यग्र थे किंतु राम ने उन्हें समझाया कि वीर पुरुष अपना धैर्य का साथ कभी नहीं छोड़ते। भरत सेना को पहाड़ी के नीचे छोड़कर शत्रुघ्न के साथ पहाड़ी के ऊपर गए। वे राम के चरणों पर गिर पड़े। राम ने भरत और शत्रुघ्न को उठाकर अपने गले से लगा लिया। उस समय सबकी आँखों में आँसू थे। भरत ने राम को पिता के निधन की बात बताई। वे सुनकर शोक में डूब गए। कुछ देर बाद राम पहाड़ी के नीचे उतरकर नगर वासियों तथा माता कौशल्या, कैकेयी और गुरु से मिलने गए। राम ने बड़े ही सहज भाव से माता कैकेयी को प्रणाम किया। कैकेयी मन ही मन पछता रही थी। अगले दिन भरत ने राम से राजग्रहण का आग्रह किया। राम इसके लिए तैयार नहीं हुए। उन्होंने भरत को समझाया कि अब तुम ही गद्दी सँभालो। यह पिता की आज्ञा है। मुनि वशिष्ठ ने भी राम को रघुकुल की परंपरा का वास्ता देकर राज-काज सँभालने का आग्रह किया। राम संयमित होकर बोले मैं पिता की आज्ञा से वन में आया हूँ। उन्हीं की आज्ञा से भरत को राजगद्दी संभालनी चाहिए। वे किसी भी हालत में तैयार नहीं हुए। उन्होंने कहा-चाहे चंद्रमा अपनी चमक छोड़ दे, सूर्य ठंडा पड़ जाए किंतु मैं पिता की आज्ञा को नहीं ठुकरा सकता। मैं उन्हीं की आज्ञा से वन आया हूँ और भरत को भी उन्हीं के आज्ञा से राजगद्दी संभालनी चाहिए। वे किसी भी हालत में लौटने को तैयार नहीं हुए। भरत ने राम से आग्रह किया वे अपनी खड़ाऊँ उन्हें दें। वह चौदह वर्ष उसी की आज्ञा से राजकाज चलाएँगे। भरत का यह आग्रह राम ने स्वीकार कर लिया और अपनी खड़ाऊँ दे दी। भरत ने खड़ाऊँ को माथे से लगाकर कहा, चौदह वर्ष तक अयोध्या पर इन चरण पादुकाओं का शासन होगा। ‘राम की इन चरण पादुकाओं को एक सुसज्जित हाथी पर रखकर अयोध्या लाया गया। भरत ने वहाँ उनका पूजन किया। भरत अयोध्या में कभी नहीं रुके। वे तपस्वी पोशाक पहनकर नंदी ग्राम चले गए और राम के लौटने की प्रतीक्षा करने लगे। शब्दार्थ: पृष्ठ संख्या 26 पृष्ठ संख्या 27 पृष्ठ संख्या 28 पृष्ठ संख्या 29 पृष्ठ संख्या 31 पृष्ठ संख्या 32 राम ने भरत को क्या क्या करने की सलाह दी?राम ने भरत को क्या-क्या करने की सलाह दी? उत्तर-राम ने भरत को सलाह दी कि जब तक हमारे गुरु, मुनि और राजा जनक हमारे साथ है तब तक चिंता करने की अवश्यकता नहीं है। वे ही रक्षा करेंगे। बड़ों की आज्ञा का पालन करते रहने से पतन नहीं होता।
चित्रकूट में भरत ने राम से क्या माँगा था?आप मुझे अपनी खड़ाऊँ दे दें। मैं चौदह वर्ष उसी की आज्ञा से राजकाज चलाऊँगा।" 2020-21 - कहा, "चौदह वर्ष तक अयोध्या पर इन चरण पादुकाओं का शासन रहेगा । " सबको प्रणाम कर राम ने उन्हें चित्रकूट से विदा किया।
राम को देखकर भरत ने क्या किया?राम को देखकर भरत ने उनके चरण स्पर्श किए व उन्हें पिता की मृत्यु का समाचार दिया। - राजा दशरथ की मृत्यु के बाद भरत को अपने ननिहाल से बुलाया गया, अयोध्या आने पर भरत को राम के वनवास व माता कैकेई द्वारा दशरथ से लिए गए वरदान की सूचना मिली।
राम से विदा होते समय भरत ने राम से क्या देने की प्रार्थना की?भरत ने सभासदों के सामने अपनी मंशा जताते हुए कहा-मेरी माँ ने जो किया है, उसमें मेरा कोई हाथ नहीं है। मैं राम की सौगंध खाकर कहता हूँ मैं वन में राम के पास जाऊँगा। प्रार्थना करूँगा कि वे गद्दी संभालें। मैं दास बनकर रहूँगा।
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