भारत में अतिथि को क्या माना जाता है? - bhaarat mein atithi ko kya maana jaata hai?

वन्दे मातरम् महामन्त्र का विरोध क्यों? क्या जननी जन्मभूमि के प्रति प्रेम और श्रद्धा प्रदर्शित करना

सनातन धर्म शास्त्रों में नित्य देवता ओर नैमित्तिक देवता दो प्रकार के देवता कहे गये हैं।   नित्य देवता वे

माँ सरस्वती कवच (महर्षि भृगु – ब्रह्मा जी संवाद, ब्रह्मवैवर्त पुराण, प्रकृतिखण्ड: अध्याय 4) श्रणु वत्स

यह एक नई भ्रान्ति समाज में व्याप्त है। कुछ बुद्धिमान व्यक्तियों का मत है की यह सब वन+नर अर्थात वन में वास

यह सवाल हमारे बंधु श्री Sayanha Kshtri द्वारा पूछा गया था। सायनहा जी सवाल पूछने के लिए धन्यवाद और विलम्ब

सर्वशक्तिमान भगवान ने जब देखा की आपस में संगठित ना होने कारण मेरी महत्व आदि शक्तियाँ विश्व रचना में

ब्रह्मांड के गर्भरूपी जल में निवास करने वाले श्री भगवान ने ब्रह्माजी के अंत:करण में प्रवेश किया और

रावण ऋषि विश्रवा और कैकसी का पुत्र था। जन्म के समय उसकी शर्रीरिक बनावट अत्यंत विकराल थी, उसके दस मस्तक,

जय श्री राम

28th February 2019 / 0 Comments

श्री राम शरणम् समस्तजगतां, राम विना का गति। रामेण प्रतिहन्ते कलिमलं, रामाय कार्यं नम:। रामात त्रस्यति

श्रीमदवाल्मीकि रामायण के उत्तर कांड में वर्णित शम्बूक वध प्रसंग का सर्वाधिक राजनीतिकरण किया गया है।

यह विवादित प्रश्न सदैव अधर्मियों, विधर्मियों तथा कुधर्मियों द्वारा श्री राम की निंदा करने तथा हिन्दू धर्म

सर्वप्रथम हमारे बंधु श्री अमरीश तिवारी जी का धन्यवाद जिन्होंने अति उत्तम, रोचक और ज्ञानवर्धक सवाल पूछा।

भगवान् शिव के मंदिर भारतवर्ष के प्राय: प्रत्येक गाँव, शहर या ये कहें की प्रत्येक मार्ग पर पाए जातें हैं

शेते तिष्ठति सर्वं जगत यास्मिन स: शिव:शम्भु: विकाररहित:। जिसमे सारा संसार शयन करता है, जो विकार रहित हैं

ll ॐ नमः शम्भवाय च l मयोभवाय च l नमः शङ्कराय च l मयस्कराय च l नमः शिवाय च l शिवतराय च ll   ll

नमामीशमीशान निर्वाणरूपं विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम् । निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं

ॐ नम: शिवाय नागेन्द्राहाय त्रिलोचनाय भस्माङ्गरागाय महेश्वराय। a नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय तस्मै

भगवान् शिव को नमस्कार १ ॐ नमः शम्भवाय च मयोभवाय च नम: शङ्कराय च मयस्कराय च नमः शिव च शिवतराय च। कल्याण

कश्यप ऋषि के कहने पर गिरिराज हिमालय ने ब्रह्मा जी की करोर तपस्या की। तपस्या से प्रसन्न हो कर ब्रह्मा जी

जब शिवनंदन श्री कार्तिकेय स्वामी जिन्हें स्कन्द भी कहा जाता है ने तारकासुर का वध कर दिया तो उसके तीनों

लिंग शब्द का अर्थ है चिन्ह, प्रतीक। भगवान शिव क्योंकि परमपिता परमात्मा के अंश है और स्वयं ब्रह्मस्वरूप

१. सुलभा पुरुषा राजन सततं प्रियवादिन:। अप्रियस्य च पथ्यसय वक्ता श्रोता च दुर्लभ: ।। सदा प्रिय वचन बोलने

१ न तद्दानं प्रशसन्ति येन वृतिविृपद्यते। दानं यज्ञस्तप: कर्म कोले वृत्तिमतो यत:।। (८। १९। ३६ ) विद्वान

पूर्व काल में भारत वर्ष को अभाजन खंड कहा जाता था । श्री भगवान के आठवें अवतार श्री ऋषभ देव के पुत्रों में

जो मनुष्य अपने पापों का क्षय करके इस संसार सागर से पार जाना चाहते हैं उन्हें तमोगुणीऔर रजोगुणी भूपतियों

श्री परम पिता परमात्मा का दिव्या पुरुष रूप जिसे श्री नारायण कहते हैं अनेक अवतारों का अक्षय कोष हैं ।

सृष्टि के आरम्भ में श्री भगवान ने देखा की सम्पूर्ण विश्व जल, वायु, तेज़ आदि तत्वों से विहीन है। जगत को इस

श्री भगवान सारे जगत की उत्पत्ति का आधार हैं। वह ही जगत के ईश्वर अर्थात जगदीश्वर हैं। उनको विभिन्न नामों

साधकों के भाव के अनुसार भक्तियोग का अनेक प्रकार से प्रकाश होता है, क्योंकि भक्त के स्वाभाव और गुणों के

श्री भगवान द्वारा सृष्टि के कार्य में नियुक्त ब्रह्माजी कमलकोष में प्रवेश किया और उसके ही भू:, भव:, और

ब्रह्मा जी के सृष्टि की रचना के कृत्य में सबसे पहले, ब्रह्मा जी के मन से चार कुमार प्रकट हुए, जो पाँच

हिन्दू धर्म में यज्ञ एवं नित्य कर्म में पशुओं “को” बलिभाग देने का विधान है, पशुओं

हम इस विषय में हम अनेकों बार अपने विचार रख चुके हैं परन्तु हिंदु धर्म में साकार और निराकार उपासकों के

परमात्मा का वास्तविक स्वरूप एकरस, शांत, अभय एवं केवल ज्ञानस्वरूप है। वह सत् और असत् दोनो से परे है। समस्त

 गीता पूर्ण ज्ञानकी गङ्गा है, गीता अमृतरस की ओजस धारा है। गीता इस दुष्कर संसार सागर से पार उतरनेके लिये

ब्रह्माजी जी भगवान नारायण की स्तुति के पश्च्यात उनसे उनके सगुण एवं निर्गुण रूपों तथा उनके मर्म को जानने

महाभारत को महाकाव्य या इतिहास ग्रन्थ भी कहा जाता है परन्तु वस्तुतः यह एक धर्मकोश है; जिनमे तत्कालीन

वास्तव में चारों वेद मिलकर एक ही वेद राशि है। जिस प्रकार सिर, हाथ, पेट और पांव मिलकर शरीर बनता है; किन्तु

दर्शन शास्त्र, स्मृति शास्त्र आदि की तरह पुराण शास्त्र भी उपयोगी शास्त्र हैं क्योंकि वेदों में जिन तत्वों

वैदिक तत्वों को स्मरण करके पूज्य महर्षियों ने मानव कल्याण के लिए जिन ग्रन्थों की रचना की उन्हें

आध्यात्म उन्नति के सात क्रम हैं उन्ही सात कर्मो के अनुसार वैदिक धर्म शास्त्रों को भी पूज्य महर्षियों ने

उपवेद

27th February 2019 / 0 Comments

जिस प्रकार लौकिक पुरुषार्थयुक्त योग, साधनयुक्त उपासना और वैदिक कर्म परम्परा रूप से मुक्तिपद की प्राप्ति

वेदांग

27th February 2019 / 0 Comments

वेदों में वर्णित अर्थ को बिना किसी सहायता के समझना अत्यंत कठिन कार्य है। जिस प्रकार साधारण व्याकरण एवं

वेद – भाग २

27th February 2019 / 0 Comments

वेदों की भाषा वेदों के भाग वेदों का विभाजन और वेदों की शाखाएँ वेदों का संक्षिप्त वर्णन   वेदों की भाषा  

वेद – भाग १

27th February 2019 / 0 Comments

वेद क्या हैं? वेदों के कर्ता कौन हैं ? वेदों के प्रकार वेद कब लिखे गए थे? वेदों को पूर्ण क्यों माना जाता

अत्यंत दुःख का विषय है की आजकल शास्त्र विहीन देश के नेता कहलाने वाले कुछ लोग केवल अपनी संकीर्ण मानसिकता

समस्त सनातन धर्मियों के गृह में प्रातः और सांय काल में दीप प्रज्वल्लित करने की प्रथा है। किसी भी मांगलिक

हिन्दू सनातन धर्म में विवाह संस्कार सर्वोपरि महत्व का है। विवाह के उपरान्त ही ब्रह्मचर्य आश्रम की पूर्णता

मनुस्मृति में कहा गया है : संपराप्ताय त्वतीथये प्र्द्द्यादासनोदके। अन्न चैव यथाशक्ति सत्कृत्य

संतान के जन्म के छठे, इक्कीसवें दिन तथा अन्नप्राशन के समय षष्ठी देवी की पूजा करने का विधान है। देवी षष्ठी

दक्षिणा यज्ञ की भार्या हैं। जैसे अग्नि की भार्या स्वाहा हैं (इसीलिए मंत्रौच्चार के बाद अग्नि को आहुति

हिन्दू धर्म में सभी प्राणियों में ईश्वर का सूक्ष्म अंश आत्मा के रूप में माना गया है जिनके जनक स्वयं श्री

श्राद्ध कर्म – भाग २ श्राद्ध में काल का विचार क्यों किया जाता है तथा श्राद्ध केवल कृष्ण पक्ष

श्राद्ध तर्पण के विषय में भी अनेकों भ्रांतियां विद्यमान है। इस विषय में निम्न प्रश्नो के द्वारा यह

विभिन्न पुराणों में अलग अलग देवता को सर्वोपरि बताने का क्या कारण है? क्या इसका कारण एक इष्ट देव को दूसरे

यह प्रश्न हमें श्री Ainsley Strom (ऑस्ट्रेलिया) द्वारा हमारे english page पर प्राप्त हुआ जिसका उत्तर हमने

महाभारत में अनेकों जगह अहिंसा परमो धर्म: या हिंसा ना करने का उपदेश दिया गया है। परन्तु यह अनुमोदन कदापि

 इस विषय के प्रश्न के उत्तर देते समय हमें महाभारत के अनुसाशन पर्व के दानधर्म पर्व का स्मरण आता है जिसमे

हमारे एक बंधु ने हमसे एक सवाल पूछा की क्या सुलेमान रिज़वी के द्वारा लिखे गए लेखों में जोकि

शास्त्रों में धर्म के तीस लक्षण कहे गए हैं। इन लक्षणो का विचार तथा आचरण सभी मनुष्यों का परम धर्म है ।

सनातन धर्म शास्त्रों में नित्य देवता ओर नैमित्तिक देवता दो प्रकार के देवता कहे गये हैं।   नित्य देवता वे

यह एक विवादित प्रश्न है जिसके बारे में ज्ञान का सर्वथा अभाव पिछले कुछ वर्षो तक था। वर्तमान काल में समाज

हमारे बंधु श्री राजन जौहर जी को साधुवाद जिन्होने अति महत्वपूर्ण सवाल पूछा: भक्ति और भक्तों के प्रसंग में

श्री दुर्गा सप्तशती के पाठ में अर्गला स्तोत्र के उपरान्त ‘कीलक”स्तोत्र का पाठ किया जाता है।

इस मन्त्र को नवार्ण मंत्र भी कहा जाता है जो देवी भक्तों में सबसे प्रशस्त मंत्र माना गया है। इस मन्त्र के

जय माता दी

27th February 2019 / 0 Comments

जगन्मार्तातस्तव चरण सेवा न रचिता न वा दत्तं देवि द्रविणमपि भूयस्तव मया। तथापि त्वं स्नेहं मयि निरुपमं

श्री कृष्ण कृत त्वमेव सर्वजननी मूलप्रकृतिरीश्वरी । त्वमेवाद्या सृष्टिविधौ स्वेच्छया त्रिगुणात्मिका ।। हे

1. ज्ञानिनामपि चेतांसि देवि भगवती हि सा । बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति ॥1॥ वे भगवती महामाया देवी

सनातन धर्म में वर्ष में दो बार – शरत काल तथा वसंत काल के नवरात्रों में माता जगदम्बा की पूजा का

महिषासुर तथा उसकी सेना के वध के पश्चात इंद्र आदि देवताओं ने भगवती दुर्गा का उत्तम वचनों द्वारा सत्वन किया

पूर्वकाल में देवताओं तथा असुरों में पूरे सौ वर्षों तक बड़ा भयंकर युद्ध हुआ। उसमें असुरों का स्वामी

वेद के कौथिमि शाखा में जो दुर्गा, नारायणी, ईशाना, विष्णुमाया, शिवा, सती, नित्या, सत्या, भगवती, सर्वाणी,

भक्ति, प्रेम, रंग, हास्य, व्यंग, मनोविनोद तथा हर्षोउल्लास के पर्व होली की आपको व् आपके परिवार, मित्रों,

आपको व आपके परिवार, सहृदयों व् मित्रों को मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनायें । सूर्यदेव उत्तरायण में

आपको और आपके परिवार, मित्रों और सहृदयों को दीपावली की मंगलमय शुभ कामनाएं। परब्रह्म स्वरूपिणी महादेवी

अतिथि को क्या माना गया है?

समय आदि की सूचना दिए हुए घर में ठहरने के लिए अचानक आ पहुंचने वाला कोई प्रिय अथवा सत्कार योग्य व्यक्ति। वर्तमान में इसका अर्थ बदल गया जो कि उचित नहीं है। मुनि, भिक्षु, संन्यासी या ऋषि होता है अतिथि : अतिथि देवो भव: अर्थात अतिथि देवता के समान होता है। घर के द्वार पर आए किसी भी व्यक्ति को भूखा लौटा देना पाप माना गया है।

अतिथि का महत्व क्या है?

अतिथि अपनी चरण रज के साथ जब प्रवेश करते हैं और घर का आतिथ्य ग्रहण करते हैं तो अपना समस्त पुण्य घर में छोड़ जाते हैं। अत: अतिथि का सदैव यशाशक्ति सम्मान करना चाहिए। मात्र एक ग्लास शीतल जल भी अगर आप मुस्कुरा कर देते हैं तो राहुजनित समस्त दोष दूर हो जाते हैं।

भारतीय संस्कृति में अतिथि को क्या माना जाता है?

प्राचीन काल से ही भारतीय संस्कृति में अतिथि को भगवान का रूप माना जाता है और उनका पूर्ण सम्मान किया जाता है। माना जाता है कि किसी मेहमान के रूप में भगवान ही हमारे घर आते हैं। घर आने वाले अतिथि हमारे रिश्तेदार, सगे संबंधी, पड़ोसी और दोस्त भी हो सकते हैं। उनके आने पर हम उनकी सेवा देवता की तरह करते हैं।

अतिथि से आप क्या समझते हैं?

अतिथि का अर्थ होता है पाहुन। अर्थात जिसके आने की तिथि निश्चित न हो।