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प्रश्न 1. सूरदास का जीवन-परिचय देते हुए उनकी रचनाओं पर प्रकाश डालिए।भक्तिकाल की सगुणधारा के कृष्णभक्त कवियों में सूरदास अग्रगण्य हैं। वे हिन्दी साहित्याकारों के सूर्य कहे जाते है। कृष्णभक्ति की जो धारा सूरदास ने प्रवाहित की उसने जन-जन के हृदय में माधुर्य का संचार किया। वे वात्सल्य एवं शृंगार के सम्राट कहे जाते हैं। भले ही वे नेत्रहीन रहे हों, किन्तु उनकी काव्य प्रतिभा विलक्षण थी। पुष्टिमार्ग में दीक्षित सूरदास अष्टछाप के कवि थे और वल्लभाचार्य जी के शिष्य थे। कृष्ण को जन-जन के हदय में प्रतिष्ठित करने का श्रेय सूरदास को ही दिया जाता है। वे ब्रजभाषा के सर्वश्रेष्ठ कवि माने जाते हैं। उनके सम्बन्ध में कही गई यह उक्ति उनकी महानता को प्रतिपादित करती है: सूर-सूर तुलसी ससी उड़गन केसवदास। अर्थात् सूरदास हिन्दी साहित्य गगन के चमकते हुए सूर्य हैं तो तुलसी चन्द्रमा है तथा केशवदास तारे की तरह है। इनकी तुलना में आज के कवि तो जगन की तरह इधर उधर जब-तब चमकते दिखाई पड़ते हैं। जीवन-परिचयकवि सूरदास का जन्म सम्बत् 1534 (अर्थात् सन् 1478 ई.) में आगरा के समीप रुनकता ग्राम में
हुआ था। महाप्रभु वल्लभाचार्य जी ने इन्हें दीक्षा प्रदान की थी और गोबर्धन स्थित श्रीनाथ जी वल्लभाचार्य के पुत्र विट्ठलनाथ ने ‘अष्टछाप’ की स्थापना की, जिसमें सूरदास को स्थापित किया गया। सूर के अन्धत्व को लेकर विवाद है। कुछ विद्वान इन्हें जन्मान्ध मानते हैं, और कुछ कहते हैं कि सूरदास ने श्रीकृष्ण की लीलाओं का जो सूक्ष्म अंकन किया है और रूप-रंग की जो कल्पनाएँ की हैं, उसके आधार पर उनका जन्मान्ध होना असम्भव सा प्रतीत होता है। सूरदास की मृत्यु मथुरा के निकट पारसोली नामक ग्राम में सम्बत् 1640 (अर्थात् सन् 1583 ई.) के लगभग हुई। रचनाएँसूरदास द्वारा रचित ग्रन्थ हैं-‘सूरसागर’, ‘सूरसारावली’ और ‘साहित्य लहरी’। सूरसागरसूरसागर के वर्ण्य विषय का आधार ‘श्रीमद्भागवत’ है। भक्ति को भव्य एवं उदात्त रूप में
चित्रित करते समय शृंगार और माधुर्य का जैसा वर्णन सूर ने अपने सूरसागर में ब्रजभाषा में किया है सूर सारावलीविद्वानों ने इस ग्रन्थ को विवादास्पद माना है तथापि रचना शैली, विषयवस्तु, भाषा, भाव-सभी दृष्टियों से यह सूरदास की प्रामाणिक रचना है। इसमें 1107 छन्द हैं। साहित्य लहरीइस ग्रन्थ में सूरदास के ‘दृष्टकूट’ पद संकलित हैं जिनकी संख्या 118 है। रीतिशास्त्र का विवेचन भी इन पदों में मिलता है। विशेष रूप से नायिका भेद और अलंकार निरूपण इस ग्रन्थ की निष्कर्षसूर की विषयवस्त में मौलिकता है। शैली में कलात्मकता
एवं प्रौढ़ता है। उनकी जैसी साफ ब्रजभाषा का प्रयोग बाद में भी हिन्दी का कोई कवि नहीं कर सका, अतः वे ब्रजभाषा के सर्वश्रेष्ठ कवि सूर का सम्पूर्ण काव्य गेय है। जिसे विभिन्न राग-रागनियों में गाया जा सकता है। वे भक्त शिरोमणि कहे जाते हैं तथा उसी परम्परा के कवि हैं जिसमें चण्डीदास, विद्यापति और नामदेव आदि कृष्णभक्त हैं।
शृंगार और वात्सल्य के तो वे सम्राट ही हैं। अन्य कवियों ने इन विषयों पर जो कुछ लिखा वह सूर की जूठन ही प्रतीत होता है। इसलिए किसी कवि ने सूर के विषय में यह उक्ति कही है: ‘तत्व तत्व सूरा कही और सब जूठी’ प्रश्न २. सूरदास के वात्सल्य वर्णन की विशेषताओं पर सोदाहरण प्रकाश डालिए।अथवा ‘सूरदास वात्सल्य रस के सम्राट है’ इस कथन की पुष्टि उदाहरण सहित कीजिए।अथवा ‘सुर ने कृष्ण की बाल लीलाओं के सुन्दर चित्र अंकित किए हैं।’ इस कथन की सार्थकता उदाहरणो के आधार पर सिद्ध कीजिए।अथवा ‘बाल सौन्दर्य एवं बाल स्वभाव के चित्रण में जो सफलता सूरदास को मिली है, उतनी अन्य किसी का नहीं’ सोदाहरण सिद्ध कीजिए।महाकवि सूरदास के काव्य में वात्सल्य एवं श्रृंगार रस की प्रधानता है। श्रीकृष्ण के बाल सौन्दर्य की झाँकी तो उनके काव्य में मिलती ही है, साथ ही बाल मनोविज्ञान का सन्दर चित्रण भी सूर साहित्य में उपलब्ध होता है। बालक की चेष्टाएं, माता का आशंकित हृदय, पत्र के प्रति वात्सल्य भाव के
अनूठे एवं मर्मस्पर्शी वर्णन सूर काव्य में उपलब्ध होते हैं। उनकी इस विशेषता को लक्ष्य कर आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने लिखा है- “बाल सौन्दर्य एवं स्वभाव के चित्रण में जितनी सफलता सूर को मिली है, उतनी अन्य किसी को नहीं। कृष्ण के बाल रूप की झांकीबालक कृष्ण अत्यन्त सुन्दर हैं। धूल से सने हुए बाल कृष्ण घुटनों के बल चलते हैं और मीठी-मीठी बोली बोलते हैं। माता
यशोदा उनकी इस छवि पर न्योछावर हो रही हैं- हौं बलि जाउँ छबीले लाल की। बाल वृत्तियों का वर्णनकृष्ण बड़े हो गए हैं। अब वे होड़ करने लगे हैं कि मेरी चोटी बलदाऊ से बड़ी हो जाए। माता यशोदा उन्हें दूध पीने के लिए कहती हैं कि इससे तुम्हारी चोटी बड़ी हो जाएगी। कृष्ण उनकी बात मान लेते हैं। और चोटी पकड़ कर दूध पीने लगते हैं, पर चोटी तो ज्यों की त्यों है। वे कहते हैं- मैया कबहि बढ़ेगी चोटी। बाल आक्रोश का चित्रणकृष्ण को बच्चे चिढ़ाते हैं, विशेषकर बलदाऊ जी कहते हैं कि तू नन्द यशोदा का पुत्र नहीं है, तझे मोल लिया गया है। कृष्ण खीझ जाते है और अपने आक्रोश की अभिव्यक्ति माता यशोदा से इन शब्दों में करते हैं : मैया मोहि दाऊ बहुत खिझायो। मैया उन्हें विश्वास दिलाती हैं कि नहीं तू मेरा ही पुत्र है, तब कहीं जाकर उनका गुस्सा शान्त होता है। मातृ हृदय की झाँकीमाता यशोदा को अपने
पुत्र का बड़ा ध्यान रहता है। कहीं उसकी नींद न खुल जाए, अभी-अभी तो सोया है। वह उसे पालने में झुलाते हुए सुला रही हैं- यशोदा हरि पालने झुलावै। बाल लीलाओं का चित्रणबालक खेल-खेल में जीतकर दूसरे को चिढ़ाते हैं। छोटे-बड़े का भेद खेल में नहीं होता है। देखिए : खेलन में को काको गुसैयाँ। इसी प्रसंग में कृष्ण द्वारा
माखन चुराने का वर्णन भी सूरदास ने किया है। गोपी उनकी शिकायत करने आती है तो कृष्ण अपनी सफाई तर्क सहित देते हैं- मैया में नहिं माखन खायो। बाल हठ का वर्णनबच्चों की जिद बेतुकी होती है। कृष्ण ने हठ पकड़ लिया है कि मैं तो चन्द्र खिलौना लूँगा। अब मैया यशोदा क्या करे। जैसे-तैसे उन्हें बहलाती है, पर बात नहीं बन पाती। सूरदास जी ने कृष्ण की हठ का वर्णन निम्न पंक्तियों में किया है
: मैया में तो चन्द खिलौना लैहों। यशोदा की विकलताकृष्ण के मथुरा चले जाने पर माता का हृदय वात्सल्य से ओत-प्रोत होकर विकल होने लगता है। वे देवकी के पास सन्देश भेजती हैं : सन्देसो देवकी सों कहियो। इस विवेचन से स्पष्ट है कि सूर वात्सल्य रस के सम्राट हैं। उन्होंने केवल बाल लीला का ही चित्रण नहीं किया, अपितु बालकों की मानसिक प्रवृत्ति का भी हृदयग्राही आकर्षक वर्णन किया है। उनकी चेष्टाओं एवं प्रवृत्तियों की अभिव्यक्ति बाल मनोविज्ञान के परिप्रेक्ष्य में सूर ने की है और इसमें उन्हें पूरी सफलता भी मिली है। निश्चय ही सूरदास का वात्सल्य वर्णन हिन्दी साहित्य की अपूर्व निधि है जिस पर हम गर्व कर सकते हैं। प्रश्न ३. सूर की भक्ति भावना पर प्रकाश डालिए।सूरदास भक्तिकाल के श्रेष्ठ कवियों में गिने जाते हैं। वे सगुण भक्तिधारा के कृष्णभक्ति धारा के कवि हैं। उनकी भक्ति पुष्टिमार्गीय भक्ति है जिसमें भगवान के पोषण या अनुग्रह पर विशेष बल दिया जाता है- ‘पोषणं तदनुग्रह‘ अर्थात् ईश्वर की कृपा ही पुष्टि है। सूरदास पुष्टिमार्ग में दीक्षित थे और वल्लभाचार्य के शिष्य थे। उनकी गणना अष्टछाप के कवियों में की जाती है। सगुण कृष्ण के उपासकसूरदास निर्गुण की अपेक्षा सगुण को महत्व देते हैं। उनकी मान्यता है कि निर्गुण और निराकार ब्रह्म इन्द्रियातीत है जिसकी अनुभूति तो होती है, पर अभिव्यक्ति नहीं हो सकती अतः वे उसे मन वाणी के लिए अगम अगोचर मानकर सगुण ईश्वर के लीला पदों का गान करते हैं : अविगत गति कछु कहत न आवै। विनय भावनासूरदास के पदों में ‘विनय के पद’ अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं जिनमें कवि ने प्रभू की शरण में जाकर अपने उद्धार की प्रार्थना की है : अब मैं राखि लेहु भगवान। संसार रूपी वृक्ष की शाखा पर जीवात्मा रूपी पक्षी बैठा हुआ है। नीचे शिकारी वाण का संधान कर रहा है और ऊपर बाज मँडरा रहा है। माया और काल के चक्र में बंधा जीवात्मा पक्षी की भाँति फडफडा रहा है। प्रभु की कृपा से ही इन दोनों के डर से वह मुक्त हो सकता है। सखा भाव की भक्तिसूरदास की भक्तिभावना दास्य भाव की न होकर सखा भाव की है। वे कृष्ण के सखा बनकर उन्हें उपालम्भ भी देते हैं, उनसे तर्क-वितर्क भी करते हैं और लड़ने-झगड़ने को भी तत्पर रहते हैं: आजु ही एक-एक करि टरिहौं। आत्म निवेदन की प्रवृत्तिसूरदास की भक्ति भावना में आत्मनिवेदन की प्रवृत्ति भी है। वे
स्वयं को पापियों का सम्राट तक कहने में संकोच नहीं करते। स्वयं को महापतित निरूपित करते हुए कहते हैं : प्रभु हौं सब पतितन कौ टीकौ।। कृष्ण के प्रति अनन्यतासूर की भक्ति भावना अनन्य है। वे कृष्ण के प्रति पूर्णतः समर्पित भक्त हैं। उन्हें कृष्ण के अतिरिक्त और कोई आश्रय दिखाई नहीं पड़ता। इसीलिए वे कहते है- मेरो मन अनत कहां सुख पावै।। जहाज के पक्षी को कहीं कोई अवलम्ब नहीं होता। उडकर जाए भी तो कहां जाए? अन्ततः उसी जहाज पर लौट आता है। भटकते हुए मन को कृष्ण भक्ति का यह जहाज ही संसार से पार ले जा सकता है। निष्कर्षनिष्कर्ष रूप में कह सकते हैं कि सूरदास उच्चकोटि के भक्त थे। वे कृष्ण के प्रति पूर्णतः समर्पित थे उन्हीं को अपना आराध्य मानते थे। उनकी भक्ति भावना पुष्टिमार्ग, सखा भाव की थी। वे हिन्दू भक्त कवियों में उच्च स्थान के अधिकारी हैं। हिन्दी साहित्य के अन्य जीवन परिचयहिन्दी अन्य जीवन परिचय देखने के लिए मुख्य प्रष्ठ ‘Jivan Parichay‘ पर जाएँ। जहां पर सभी जीवन परिचय एवं कवि परिचय तथा साहित्यिक परिचय आदि सभी दिये हुए हैं।
सूरदास की प्रमुख रचना कौन कौन सी है?सूरदास जी द्वारा लिखित पाँच ग्रन्थ बताए जाते हैं:. (1) सूरसागर - जो सूरदास की प्रसिद्ध रचना है। जिसमें सवा लाख पद संग्रहित थे। किंतु अब सात-आठ हजार पद ही मिलते हैं।. (2) सूरसारावली. (3) साहित्य-लहरी - जिसमें उनके कूट पद संकलित हैं।. (4) नल-दमयन्ती. (5) ब्याहलो. सूरदास की सर्वश्रेष्ठ रचना का क्या नाम है?सूरसारावली – Sursaravali
हिन्दी साहित्य के सर्वश्रेष्ठ कवि सूरदास जी द्धारा रचित सूरसारावली उनके प्रसिद्ध ग्रंथों में से एक है, जिसमें उन्होंने 1107 छंदों का वर्णन शानदार तरीके से किया है।
सूरदास का सबसे प्रमुख ग्रंथ कौन सा है?महाकवि सूरदास द्वारा लिखित 5 ग्रंथों में सूर सागर, सूर सारावली और साहित्य लहरी, नल-दमयन्ती और ब्याहलो शामिल हैं. सूरसागर उनका सबसे मशहूर ग्रंथ है.
सूरदास ने कुल कितने पद लिखे?कृष्ण भक्ति साहित्य का हृदय सूरसागर को कहा जाता है और सूरसागर का हृदय भ्रमरगीत को कहा जाता है। भ्रमरगीत में सूरदास ने लगभग 752 पद लिखे हैं।
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