भारत का सबसे विनाशकारी अकाल किस वर्ष बंगाल में हुआ था? - bhaarat ka sabase vinaashakaaree akaal kis varsh bangaal mein hua tha?

भारत का सबसे विनाशकारी अकाल किस वर्ष बंगाल में हुआ था? - bhaarat ka sabase vinaashakaaree akaal kis varsh bangaal mein hua tha?
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भारत का सबसे विनाशकारी अकाल किस वर्ष बंगाल में हुआ था? - bhaarat ka sabase vinaashakaaree akaal kis varsh bangaal mein hua tha?

भूख से मरा एक बच्चा

1943-44 में बंगाल (वर्तमान बांग्लादेश, भारत का पश्चिम बंगाल, बिहार और उड़ीसा) एक भयानक अकाल पड़ा था जिसमें लगभग 30 लाख लोगों ने भूख से तड़पकर अपनी जान जान गंवाई थी। ये द्वितीय विश्वयुद्ध का समय था। माना जाता है कि अकाल का कारण अनाज के उत्पादन का घटना था, जबकि बंगाल से लगातार अनाज का निर्यात हो रहा था। हालांकि, विशेषज्ञों के तर्क इससे अलग हैं।

एक नई पुस्तक का कहना है कि द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटेन के प्रधानमंत्री रहे विंस्टन चर्चिल ने जानबूझकर लाखों भारतीयों को भूखे मरने दिया। बर्मा पर जापान के कब्जे के बाद वहां से चावल का आयात रुक गया था और ब्रिटिश शासन ने अपने सैनिकों और युद्ध में लगे अन्य लोगों के लिए चावल की जमाखोरी कर ली थी, जिसकी वजह से 1943 में बंगाल में आए सूखे में तीस लाख से अधिक लोग मारे गए थे।

चावल की कमी होने के कारण कीमतें आसमान छू रही थी और जापान के आक्रमण के डर से बंगाल में नावों और बैलगाड़ियों को जब्त या नष्ट किए जाने के कारण आपूर्ति व्यवस्था ध्वस्त हो गई। बाजार में चावल मिल नहीं रहा था, गावों में भूखमरी फैल रही थी और चर्चिल ने खाद्यान्न की आपात खेप भेजने की मांग बार बार ठुकरा दी।

1943 के बंगाल में कोलकाता की सड़कों पर भूख से हड्डी हड्डी हुई मांएं सड़कों पर दम तोड़ रही थीं। लोग सड़े खाने के लिए लड़ते दिखते थे तो ब्रिटिश अधिकारी और मध्यवर्ग भारतीय अपने क्लबों और घरों पर गुलछर्रे उड़ा रहे थे। बंगाल की मानव-रचित भुखमरी ब्रिटिश राज के इतिहास के काले अध्यायों में से एक रही है, लेकिन लेखक मधुश्री मुखर्जी का कहना है कि उन्हें ऐसे सबूत मिले हैं जो दिखाते हैं कि लोगों की दुःस्थिति के लिए चर्चिल सीधे तौर पर जिम्मेदार थे।[1]

अनुक्रम

  • 1 खाद्यान की बनावटी कमी?
  • 2 इन्हें भी देखें
  • 3 सन्दर्भ
  • 4 बाहरी कड़ियाँ

खाद्यान की बनावटी कमी?[संपादित करें]

वर्ष चावल का उत्पादन
(मिलियन टन)
1938 8.474
1939 7.922
1940 8.223
1941 6.768
1942 9.296
1943 7.628

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • बंगाल का भीषण अकाल (१७७०)
  • सूखा
  • भारत में अकाल
  • प्राकृतिक आपदा
  • ब्रिटिश राज के दौरान भारत में पड़ने वाले प्रमुख अकालों की समयसरेखा

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. बंगाल के अकाल के लिए चर्चिल दोषी

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

  • जानिये अंग्रेजों द्वारा बंगाल में किये गये सबसे बड़े नरसंहार के बारे में
  • बंगाल में जब पड़ा था अकाल, भूख से बिलखते बच्चों को नदी में फेंक रहे थे लोग (भास्कर)
  • भुला दिया गया ‘होलोकास्ट’ (तहलका)

१७७० का बांगाल का भीषण अकाल (बांग्ला : ৭৬-এর মন্বন্তর, छिअत्तरेर मन्वन्तर = छिहत्तर का अकाल) एक भीषण अकाल था जिससे गंगा के मैदान का निचला भाग (वर्तमान समय का बिहार और बंगाल) बुरी तरह प्रभावित हुआ था। यह अकाल १७६९ से १७७३ (बांग्ला पंचांग के अनुसार ११७८ से ११८०) तक रहा। ऐसा अनुमान है कि इस अकाल में १ करोड़ लोग मारे गये। १७७२ में वारेन हेस्टिंग्स की रिपोर्ट में कहा गया था कि प्रभावित क्षेत्रों के एक-तिहाई लोग इस अकाल में मारे गए थे। इस अकाल का विनाशकारी प्रभाव english east india company की शोषणपरख नीतियों के कारण बढ़ गया था।

सन्दर्भ[संपादित करें]

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • १९४३ का बंगाल का अकाल

'मैंने देखा...लोग घास और सांप खा रहे थे'

2 अप्रैल 2015

भारत का सबसे विनाशकारी अकाल किस वर्ष बंगाल में हुआ था? - bhaarat ka sabase vinaashakaaree akaal kis varsh bangaal mein hua tha?

इमेज स्रोत, BBC World Service

वर्ष 1943 में जब द्वितीय विश्वयुद्ध अपने चरम पर था, तब बंगाल में भारी अकाल पड़ा था जिसमें लाखों लोग मारे गए थे.

प्रोफ़ेसर रफ़ीकुल इस्लाम तब 10 साल के थे और ढाका में रहते थे. वह कहते हैं, "जब भी मैं उन दिनों के बारे में सोचता हूं, मैं खो जाता हूं. वर्ष 1943 में बंगालियों को जिस आपदा का सामना करना पड़ा, वह विश्व के इतिहास की सबसे बड़ी आपदाओं में से एक है."

बीबीसी के कार्यक्रम विटनेस के लिए फ़रहाना हैदर ने मानवीय इतिहास की सबसे बड़ी त्रासदियों में से एक बंगाल में पड़े भीषण अकाल के बारे में प्रोफ़ेसर रफ़ीकुल इस्लाम से बात की.

पढ़ें विस्तार से

प्रोफ़ेसर इस्लाम को अब भी याद है कि परेशान लोग खाने की तलाश में मारे-मारे फिरते थे.

वे बताते हैं, "लोग भूखे मर रहे थे क्योंकि ग्रामीण भारत में खाने-पीने की चीज़ें उपलब्ध नहीं थीं. इसलिए लोग कोलकाता, ढाका जैसे बड़े शहरों में खाने और आश्रय की तलाश में पहुंचने लगे. लेकिन वहां न खाना था, न रहने की जगह. उन्हें रहने की जगह सिर्फ़ कूड़ेदानों के पास ही मिल रही थी, जहां उन्हें कुत्ते-बिल्लियों से संघर्ष करना पड़ता था ताकि कुछ खाने को मिल जाए."

वो कहते हैं, "कोलकाता, ढाका की सड़कें कंकालों से भर गई थीं. इंसानी ढांचे जो कई दिन से भूखे थे और सिर्फ़ मरने के लिए ही बंगाल के कस्बों और शहरों में पहुंचे थे."

बंगाल का अकाल जापान के बर्मा पर कब्ज़ा कर लेने के बाद ही आया था. भारत पर काबिज़ अंग्रेज़ सरकार ने देश के अन्य क्षेत्रों से सूखा प्रभावित हिस्से तक अनाज पहुंचने पर रोक लगा दी थी.

इसका उद्देश्य एक तो इसे विरोधियों के हाथों में पड़ने से रोकना था और दूसरा यह कि स्थानीय लोगों को ठीक से खाना मिले.

प्रोफ़ेसर इस्लाम कहते हैं, "यह प्राकृतिक आपदा नहीं थी, यह मानवनिर्मित आपदा थी. ग्रामीण इलाकों में खाद्य पदार्थ सिर्फ़ इसलिए नहीं थे क्योंकि फ़सल बर्बाद हो गई थी बल्कि इसलिए भी क्योंकि अनाज को एक जगह से दूसरी जगह नहीं जाने दिया जा रहा था. उन्हें डर था कि यह जापानियों के हाथों में न पड़ जाएं."

वो कहते हैं, "मुझे लगता है कि यह फ़ैसला मित्र राष्ट्रों के नेतृत्व का था. कोलकाता में सेना के लिए खाद्य पदार्थों का अतिरिक्त स्टॉक था. लेकिन ग्रामीण इलाकों में खाने को कुछ भी नहीं था. और किसी को इसकी परवाह भी नहीं थी."

हड्डियों के ढांचे

प्रोफ़ेसर इस्लाम कहते हैं, "मैं राहत कर्मियों के एक छोटे से दल के साथियों के साथ हल्दी नदी पर स्थित टेरेपेकिया बाज़ार पहुंचा. वहां मैंने निर्वस्त्र, करीब-करीब कंकाल बन चुके करीब 500 महिला-पुरुषों को देखा."

वो कहते हैं, "उनमें से कुछ आने-जाने वालों से भीख मांग रहे थे तो कुछ कोने में पड़े थे, अपनी मौत का इंतज़ार करते. उनमें सांस लेने की शक्ति भी नहीं बची थी और दुर्भाग्य से मैंने आठ लोगों को अंतिम सांसे लेते देखा. इससे मैं अंदर तक हिल गया."

जंग की वजह से कीमतें आसमान छू रही थीं और जापानी आक्रमण को लेकर अनिश्चितता की वजह से शहरी इलाकों में जमाखोरी हो रही थी.

इसके फलस्वरूप देहात में चीज़ें बेहद महंगी हो गईं और जब लोग मरने लगे तो भारी संख्या में शहरों की ओर इस उम्मीद में पलायन होने लगा कि वहां राहत दी जा रही होगी.

प्रोफ़ेसर इस्लाम कहते हैं, "त्रासदी यह है कि कस्बों, शहरों में रहने वाले लोगों की उन बदकिस्मत लोगों से ज़रा भी सहानुभूति नहीं थी. इनमें से ज़्यादातर लोग उन्हीं सड़कों, शहरों में रह गए, वह कभी वापस गांव नहीं लौटे. गांव का ढांचा ही बर्बाद हो गया और बंगाल कभी भी उससे उबर नहीं पाया."

प्रोफ़ेसर इस्लाम के अनुसार उन्हें एक अकाल पीड़ित ने बताया, "मैं अपने भाई-बहनों में सबसे बड़ा था और जिंदा रहने के लिए दिहाड़ी मज़दूरी किया करता था. मैंने अपने पिता को गांव में छोड़ा और भाई-बहनों को कोलकाता ले आया. उनके पास बस आटा था. हम हर उस जगह जाते जहां खाना बंट रहा होता."

अकाल पीडि़त ने बताया, "उस दौरान मैंने बहुत-कुछ देखा. लोग घास और सांप तक खा रहे थे. मेरी दो बहनों उस दौरान मारी गईं."

'सबसे ख़ुश इंसान'

बर्मा पर जापानी कब्ज़े से भारत में भारी दहशत फैल गई. बड़ी संख्या में नागरिक और सैनिक सीमापार कर भारत आ गए.

प्रोफ़ेसर इस्लाम बताते हैं, "मेरे पिता रेलवे में डॉक्टर थे और ढाका आने से पहले हम लालमुनि हाट में रहते थे जो बड़ा रेलवे जंक्शन था और जिसे गेटवे ऑफ़ असम कहा जाता था. वहां हमने बड़ी संख्या में शरणार्थियों को देखा. सैकड़ों-हज़ारों शरणार्थी उस रास्ते बर्मा से भारत आ रहे थे. मैंने उस दौरान एंबुलेंस, ट्रेन, सैन्य अस्पतालों में युद्ध के नुक़सान को भी देखा."

बंगाल तब खाद्य पदार्थ आयात किया करता था जिसमें बर्मा के चावल शामिल थे लेकिन जापान के कब्ज़ा करने के बाद वह रुक गया.

उसी समय ब्रितानी शासकों ने भी बंगाल के तट को अलग-थलग करने की नीति पर अमल शुरू कर दिया ताकि जापान की बढ़त को रोका जा सके.

इसी समय, 1943 के पूरे साल भारत से ब्रिटेन और ब्रितानी फौजों को खाद्य सामग्री भेजा जाना जारी रहा. आमतौर पर इस बात पर सहमति है कि 1943 का बंगाल अकाल गलत नीतियों और लापरवाही का नतीजा था.

ब्रितानी इतिहासकारों के अनुमानों के अनुसार इसमें 15 लाख लोग मारे गए थे जबकि भारतीय इतिहासकार यह संख्या 60 लाख तक बताते हैं.

प्रोफ़ेसर इस्लाम कहते हैं कि जो बच गए उनका हिसाब रखा जाना भी ज़रूरी है. वो कहते हैं, "एक किस्सा मुझे अब भी याद है जब हमने एक परिवार की मदद करने की कोशिश की थी. पति-पत्नी और दो बच्चे रोज़ शाम हमारे दरवाज़े पर आ जाया करते और मेरी मां थोड़ा भात और दाल उनके लिए बचा लिया करती. हमने उस परिवार को ज़िंदा रखा."

वो बताते हैं, "फिर एक दिन वह हमसे विदा लेने आए. वह गांव वापस लौट रहे थे. उस दिन मेरी मां दुनिया की सबसे ख़ुश महिला थी क्योंकि वह कम से कम एक परिवार को ज़िंदा रखने में कामयाब रही थी."

'लिखूं कैसे?'

यह एक ऐसी भयावह मानवीय त्रासदी है जिससे कम ही याद किया जाता है. द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान बंगाल के अकाल में ब्रितानी राज में सबसे ज़्यादा लोग मारे गए थे.

प्रोफ़ेसर इस्लाम कहते हैं, "साल 1943 के अकाल के दौरान मैंने जो कुछ देखा वह मेरी यादों में इतना साफ़-साफ़ दर्ज है कि मैं उसे कभी भूल ही नहीं सकता."

वो कहते हैं, "कई बार लोग मुझसे पूछते हैं कि आप अपनी आत्मकथा क्यों नहीं लिखते. सच कहूं तो मैं कैसे उस तकलीफ़, मानवीय त्रासदी को बयां कर पाऊंगा जो मैंने उस कमउम्र में देखी थी? मैं उसे लिख कैसे पाऊंगा?"

बंगाल के अकाल के दौरान हुए अनुभवों का प्रोफ़ेसर इस्लाम पर क्या असर पड़ा?

वो कहते हैं, "इंसान को बगैर किसी वजह या अपराध के इस तकलीफ़ का सामना क्यों करना पड़ा? और इंसान इतना क्रूर कैसे हो गया कि उनकी मदद नहीं की. इंसान को भगवान की सबसे शानदार रचना कहा जाता है लेकिन मेरे हिसाब से अकाल या युद्ध के दौरान यह भगवान की सबसे बुरी रचना बन गया था."

प्रोफ़ेसर इस्लाम कहते हैं, "उस दौरान हम जानवर बन गए थे."

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भारत में सबसे भयानक अकाल बंगाल का अकाल कब पड़ा था?

1943-44 में बंगाल (वर्तमान बांग्लादेश, भारत का पश्चिम बंगाल, बिहार और उड़ीसा) एक भयानक अकाल पड़ा था जिसमें लगभग 30 लाख लोगों ने भूख से तड़पकर अपनी जान जान गंवाई थी। ये द्वितीय विश्वयुद्ध का समय था। माना जाता है कि अकाल का कारण अनाज के उत्पादन का घटना था, जबकि बंगाल से लगातार अनाज का निर्यात हो रहा था

बंगाल में अकाल से सबसे अधिक प्रभावित कौन हुए?

ये आपदा इतनी भयंकर थी कि 30 से 40 लाख लोग भूखे मर गए थे. ये अकाल प्रकृति जनित न होकर प्रशासन जनित था. बंगाल के लगभग तमाम जिले अकाल की चपेट में आये. अकाल का सबसे अधिक प्रभाव ग़रीब जनता और विशेषत: किसानों पर पड़ा था.

बंगाल में भयंकर अकाल कब पड़ा * 1 Point 1768 1770 1775?

१७७० का बांगाल का भीषण अकाल (बांग्ला : ৭৬-এর মন্বন্তর, छिअत्तरेर मन्वन्तर = छिहत्तर का अकाल) एक भीषण अकाल था जिससे गंगा के मैदान का निचला भाग (वर्तमान समय का बिहार और बंगाल) बुरी तरह प्रभावित हुआ था। यह अकाल १७६९ से १७७३ (बांग्ला पंचांग के अनुसार ११७८ से ११८०) तक रहा। ऐसा अनुमान है कि इस अकाल में १ करोड़ लोग मारे गये।

वह कौन सा स्थान है जहां 12 वर्ष तक अकाल पड़ा था?

मगध में 12 वर्षों का भीषण अकाल कब पड़ा? - Quora. मगध में 12 वर्षों का भीषण अकाल कब पड़ा?