{{अविश्वसनीय स्रोत|date=अप्रैल 2019} Show अक्का महादेवी (ಅಕ್ಕ ಮಹಾದೇವಿ) वीरशैव पंथ संबंधी कन्नड़ कविता में प्रसिद्ध हस्ती थीं।अक्का महादेवी का जन्म 12वीं शताब्दी में दक्षिण भारत के कर्णाटक राज्य में 'उदुतदी' नामक स्थान पर हुआ। ।[1] इनके वचन कन्नड़ गद्य में भक्ति कविता में ऊंचा योगदान माने जाते हैं।[2] इन्होंने कुल मिलाकर लगभग ४३० वचन कहे थे, जो अन्य समकालीन संतों के वचनों की अपेक्षा कम हैं। फिर भी इन्हें वीरशैव पंथ के अन्य संतों जैसे बसव, चेन्न बसव, किन्नरी बोम्मैया, सिद्धर्मा, अलामप्रभु एवं दास्सिमैय्या द्वारा ऊंचा दर्जा दिया गया है। बारहवीं शताब्दी की प्रख्यात कन्नड़ कवियत्री- अक्का महादेवी एक परम शिव भक्त थीं। पिता निर्मल शेट्टी और माता सुमति की सुपुत्री महादेवी जी का जन्म शिवमोग्गा जिले के शिकारिपुर तालुक के गाँव में लगभग सन ११३० ई. में हुआ। इनके माता- पिता शिव भक्त थे। १० वर्ष की आयु में महादेवी ने शिवमंत्र की दीक्षा प्राप्त की। इन्होंने अपने द्वारा रचित अनेक कविताओं में भगवान शिव का सजीव चित्रण किया है। यह प्रभु की सगुण भक्ति करती। भक्ति भाव के चार प्रकार (दास्य, सखा, वात्सल्य, और माधुर्य भाव ) में, महादेवी जी की अपने इष्ट के प्रति माधुर्य भक्ति थी। यह भगवान शिव को “चेन्नमल्लिकार्जुन” अर्थात “सुन्दर चमेली के फूल के समान श्वेत, सुन्दर प्रभु !” कहकर संबोधित करतीं। इन्होंने भगवान शिव को ही अपना पति माना। उत्तर भारत की भक्तिमति मीराबाई (Meerabai) के कृष्ण-प्रेम के समान ही महादेवी जी की भगवान शिव में प्रीति थी। इनका वैवाहिक जीवन भी कुछ-कुछ मीराबाई के जीवन के समान ही था। An idol of Akkamahadevi installed in a temple at her birth-place, Udathadi A statue of Akkamahadevi installed at her birth-place, Udathadi बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]
सन्दर्भ[संपादित करें]
अक्का महादेवी वीरशैव धर्म से सम्बंधित एक प्रसिद्ध महिला संत थीं। ये बारहवीं शताब्दी में हुई थीं। इनके वचन कन्नड़ गद्य में भक्ति कविता में ऊंचा योगदान माने जाते हैं। अक्का महादेवी ने कुल मिलाकर लगभग 430 वचन कहे थे, जो अन्य समकालीन संतों के वचनों की अपेक्षा कम हैं। इन्हें वीरशैव धर्म के अन्य संतों, जैसे- बसव, चेन्न बसव, किन्नरी बोम्मैया, सिद्धर्मा, अलामप्रभु एवं दास्सिमैय्या द्वारा उच्च स्थान दिया गया था। जन्मअक्का महादेवी का जन्म 12वीं शताब्दी में दक्षिण भारत के कर्णाटक राज्य में 'उदुतदी' नामक स्थान पर हुआ। वे एक महान् शिव भक्त थीं। 10 वर्ष की आयु में ही उन्हें शिवमंत्र में दीक्षा प्राप्त हुई थी। अक्का महादेवी ने अपने सलोने प्रभु का सजीव चित्रण अनेकों कविताओं में किया है। उनका कहना था कि वे केवल नाम मात्र को एक स्त्री हैं, किन्तु उनका देह, मन, आत्मा सब शिव का है। विवाहअक्का महादेवी शिव की भक्त थीं। शिव को वह अपने पति के रूप में देखती थीं। बचपन से ही उन्होंने अपने आप को पूरी तरह से शिव के प्रति समर्पित कर दिया था। जब वह युवा हुईं तो स्थानीय जैन राजा कौशिक, अक्का महादेवी के अप्रतिम सौन्दर्य पर मुग्ध हो गया। परिवार के लोग विवाह के लिए सहमत हो गए, क्योंकि राजा के कोप का भाजन परिवार वाले नहीं बनना चाहते थे।[1] महल से निष्कासितअक्का महादेवी ने राजा से विवाह तो कर लिया, किंतु उसे शारीरिक रूप से दूर ही रखा। उनका कहना था कि उनका विवाह पहले ही शिव से हो चुका है। राजा उनसे कई तरीकों से प्रेम निवेदन करता रहा, लेकिन हर बार वह शिव से विवाह की बात को दोहरातीं। एक दिन राजा ने सोचा कि ऐसी पत्नी को रखने का कोई मतलब नहीं है। ऐसी पत्नी के साथ भला कोई कैसे रह सकता है, जिसने किसी अदृश्य व अनजाने व्यक्ति से विवाह किया हुआ है। उन दिनों औपचारिक रूप से तलाक नहीं होते थे। किंतु राजा परेशान रहने लगा। उसे समझ नही आ रहा था कि वह क्या करे। उसने अक्का को अपनी राजसभा में बुलाया और राजसभा से फैसला करने को कहा। जब सभा में अक्का महादेवी से पूछा गया तो वह यही कहती रहीं कि उनके पति कहीं और हैं।[2] राजा और भी क्रोध में आ गया, क्योंकि इतने सारे लोगों के सामने उसकी पत्नी कह रही थी कि उसका पति कहीं और है। आठ सौ साल पहले किसी राजा के लिए यह सहन करना कोई आसान बात नहीं थी। समाज में ऐसी बातों का सामना करना आसान नहीं था। राजा ने कहा, "अगर तुम्हारा विवाह किसी और के साथ हो चुका है तो तुम मेरे साथ क्या कर रही हो? चली जाओ।" राजा के ऐसे आदेश से अक्का महादेवी वहाँ से चल पड़ीं। जब राजा ने देखा कि अक्का बिना किसी परेशानी के उसे छोड़कर जा रही है, तो क्रोध के कारण उसके मन में नीचता आ गई। उसने कहा, "तुमने जो कुछ भी पहना हुआ है, आभूषण, कपड़े, सब कुछ मेरा है। यह सब यहीं छोड़ दो और तब जाओ।" लोगों से भरी राजसभा में सत्रह-अठ्ठारह साल की युवती अक्का महादेवी ने अपने सभी वस्त्र उतार दिए और वहां से निर्वस्त्र ही चल पड़ीं। उस दिन के बाद से अक्का महादेवी ने वस्त्र पहनने से इनकार कर दिया। बहुत-से लोगों ने उन्हें समझाने की कोशिश की कि उन्हें वस्त्र पहनने चाहिए, क्योंकि इससे उन्हें ही परेशानी हो सकती है, लेकिन उन्होंने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया।[2] निधनअक्का महादेवी पूरे जीवन निर्वस्त्र ही रहीं और एक महान् संत के रूप में जानी गईं। उनका निधन कम उम्र में ही हो गया था, लेकिन इतने कम समय में ही उन्होंने शिव और उनके प्रति अपनी भक्ति के बारे में सैकड़ों खूबसूरत कविताएं लिखीं। पन्ने की प्रगति अवस्था
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
अक्का महादेवी का जन्म कब हुआ?बारहवीं शताब्दी की प्रख्यात कन्नड़ कवियत्री- अक्का महादेवी एक परम शिव भक्त थीं। पिता निर्मल शेट्टी और माता सुमति की सुपुत्री महादेवी जी का जन्म शिवमोग्गा जिले के शिकारिपुर तालुक के गाँव में लगभग सन ११३० ई. में हुआ। इनके माता- पिता शिव भक्त थे।
अक्का महादेवी का जन्म कहाँ हुआ?उदुगनी, भारतअक्का महादेवी / जन्म की जगहnull
अक्क महादेवी के आराध्य कौन थे?अक्कमहादेवी इस आंदोलन से जुड़ी एक महत्वपूर्ण कवयित्री थीं। चन्नमल्लिकार्जुन देव (शिव) इनके आराध्य थे | बसवन्ना और अल्लामा प्रभु इनके समकालीन कन्नड़ संत कवि थे | कन्नड़ भाषा में अक्क शब्द का अर्थ बहिन होता है।
अक्का महादेवी ने कुल कितने वचन कहे थे?अक्का महादेवी ने कुल मिलाकर लगभग 430 वचन कहे थे, जो अन्य समकालीन संतों के वचनों की अपेक्षा कम हैं। इन्हें वीरशैव धर्म के अन्य संतों, जैसे- बसव, चेन्न बसव, किन्नरी बोम्मैया, सिद्धर्मा, अलामप्रभु एवं दास्सिमैय्या द्वारा उच्च स्थान दिया गया था।
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