असहयोग आंदोलन का प्रमुख कारण क्या है? - asahayog aandolan ka pramukh kaaran kya hai?

असहयोग आंदोलन क्या हैं (asahyog andolan kya hai) –

असहयोग आंदोलन (नॉन कोऑपरेशन मूवमेंट) जनवरी 1921 में प्रारंभ हुआ! इस आंदोलन में विभिन्न सामाजिक समूह ने हिस्सा लिया लेकिन हरेक की अपनी अपनी आकांक्षा थी! सभी ने स्वराज्य की आहवान को स्वीकार तो किया लेकिन उनके लिए स्वराज्य का अर्थ अलग-अलग था! 

महात्मा गांधी ने कहा था कि भारत में ब्रिटिश शासन भारतीयों के सहयोग से स्थापित हुआ था और यह शासन इसी का सहयोग के कारण चल पा रहा है अगर भारत के लोग अपना सहयोग वापस ले लेंगे तो साल भर के भीतर ही ब्रिटिश शासन रह जाएगा और थोड़ा जी की स्थापना हो जाएगी

असहयोग आंदोलन के कारण (Ashyog aandolan ke karan) – 

(1) रौलेट एक्ट 1919 के अनुसार मजिस्ट्रेट किसी भी संदेहास्पद व्यक्ति को गिरफ्तार कर उसे अनिश्चितकाल के लिए जेल में रख सकता था! इस एक्ट के विरोध में कांग्रेसी नेताओं में आक्रोश था! 

(2) जलियांवाला बाग हत्याकांड की जांच के लिए गठित हंटर कमेटी (1919 ई.) की रिपोर्ट में संपूर्ण प्रकरण लीपापोती करने का प्रयास किया गया तथा जनरल ओ डायर को निर्दोष घोषित किया गया! इस रिपोर्ट के विरोध में कांग्रेस के नेताओं में आक्रोश था! 

(3) मांटेग्यू चेम्सफोर्ड अधिनियम (1919) में प्रांतों में द्वैध शासन प्रणाली को लागू किया जाना था! इस अधिनियम के विरोध में भी कांग्रेस के नेताओं में आक्रोश था! 

(4) खिलाफत के मुद्दे पर भी कांग्रेस के मुस्लिम नेताओं में आक्रोश था

(5) प्रथम विश्वयुद्धजनित आर्थिक कठिनाइयों से कृषकों, मजदूरों, दस्तकारों, मध्यम वर्गों सभी में आक्रोश था! 

असहयोग आंदोलन के कार्यक्रम (asahyog andolan ke karyakram) –  

(1) स्वदेशी उद्योगों, शिक्षा संस्थानों, अदालतों की स्थापना करना! 

(2) ब्रिटिश उपाधियों, वस्तुओं, स्कूलों, अदालतों, काउंसिल आदि का बहिष्कार करना! 

(3) हिंदू मुस्लिम एकता को बढ़ावा देना! 

(4) चरखा एवं कताई-बुनाई का प्रचार करना! 

(5) कांग्रेस का जनाधार बढ़ाकर एक करोड़ तक करना! 

असहयोग आंदोलन का प्रारंभ एवं प्रसार (asahyog andolan ka prarambh avn prasar) – 

1920 ई. के नागपुर अधिवेशन में कांग्रेस ने असहयोग आंदोलन का प्रस्ताव पारित किया! 1 अगस्त 1920 ई. को असहयोग आंदोलन प्रारंभ हो गया! गांधी जी ने “केसर ए हिंद” तथा ‘जमुनालाल बजाज’ ने रायबहादुर की उपाधि त्याग दी! साथ ही अनेक वकीलों, जैसे – सी. आर. दास, मोतीलाल नेहरू, जवाहरलाल नेहरू, विट्ठल भाई पटेल, वल्लभभाई पटेल, अरूणा आसफ अली, राजगोपालाचारी, राजेंद्र प्रसाद आदि ने वकालत छोड़ दी!

इसी आंदोलन के मध्य मांटेग्यू चेम्सफोर्ड अधिनियम 1919 के उद्घाटन हेतु भारत आए ‘ड्यूक ऑफ़ कॉमन्स’ का बहिष्कार किया गया! नवंबर 1921 ई. में भारत आए ‘प्रिंस ऑफ वेल्स’ को काले झंडे दिखाए गए! उसी प्रकार पंजाब में सिखों ने अकाली आंदोलन शुरू किया! असम में चाय बागानों के मजदूर ने हड़ताल की, मिदनापुर के किसानों ने यूनियन बोर्ड को कर देने से इनकार कर दिया, मालाबार में जमींदारों के विरोध में मुस्लिम कृषकों ने आंदोलन शुरू कर दिया!  

इस प्रकार का सहयोग आंदोलन का प्रसार संपूर्ण भारत में हुआ! किंतु 1921 ई. में नियुक्त वायसराय लॉर्ड रीडिंग ने कठोर दमनचक्र चलाते हुए कांग्रेस के महत्वपूर्ण नेताओं को गिरफ्तार कर लिया! इसके विरोध में गांधीजी ने 1 फरवरी 1922 ई. को कहा कि अगर 7 दिनों के अंदर राजनीतिक बंदियों को रिहा नहीं किया गया, तो कर कर न अदायगी हेतू सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारंभ किया जाएगा!

किंतु इसी बीच में 5 फरवरी, 1922 ई. को उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में चौरा-चोरी कांड के पश्चात गांधी जी ने 12 फरवरी 1922 ई. को बारदोली में कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में नॉन कोऑपरेशन मूवमेंट को स्थगित कर दिया!

असहयोग आंदोलन का मूल्यांकन (asahyog andolan ka mulyankan) –

असहयोग आंदोलन का प्रमुख उद्देश्य स्वराज की प्राप्ति करना था! गांधीजी ने भी आंदोलन के प्रारंभ में एक वर्ष के अंदर स्वराज्य प्राप्त होने की बात कही थी! किंतु स्वराज्य तो दूर अंग्रेजों ने छोटे-मोटे रियासतें भी नहीं दी! इस आधार पर असहयोग आंदोलन को असफल कहा जा सकता है! किंतु असहयोग आंदोलन की अनेक उपलब्धियां थी! 

इसने एक बहुत बड़े जनमानस को राष्ट्रीय आंदोलन से जोड़ा! नॉन कोऑपरेशन मूवमेंट का प्रसार लगभग संपूर्ण भारत में हुआ! इस आंदोलन में कृषकों, मजदूरों, दस्तकारों, व्यापारियों, विद्यार्थियों, महिलाओं, मुस्लिमों आदि ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई! इस प्रकार असहयोग आंदोलन ने कांग्रेस, जो अभी तक बुद्धिजीवियों की संस्था मानी जाती थी, को जनकांग्रेस में तब्दील कर दिया! 

वस्तुतः नॉन कोऑपरेशन मूवमेंट समाप्त नहीं हुआ था, बल्कि इसे स्थगित किया गया था! हम जानते हैं कि गांधीजी संघर्ष-विराम-संघर्ष की राजनीति में विश्वास करते थे, जिसके अनुसार राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन में अनेक चरण होंगे तथा एक चरण में हुए संघर्ष की समाप्ति के पश्चात विराम की आवश्यकता होगी, 

ताकि अगले चरण के लिए ऊर्जा प्राप्त की जा सके! इस रूप में असहयोग आंदोलन राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन एक प्रमुख चरण था तथा इसने व्यापक जनसमर्थन को प्राप्त कर अगले चरण हेतु मजबूत पृष्ठभूमि निर्मित की! अत: असहयोग आंदोलन को सफल नहीं कहा जा सकता है

गांधीजी ने असहयोग आंदोलन वापस क्यों लिया (gandhi ji ne asahayog andolan wapas kyon liya) –

गांधी जी द्वारा चौरा-चोरी जैसी छोटी-सी घटना पर असहयोग आंदोलन को स्थगित किए जाने पर उनकी आलोचना की जाती है! रजनीपाम के अनुसार गांधीजी ने यह आंदोलन पूंजीपति वर्ग की सुरक्षा को ध्यान रखते हुए स्थगित किया था! वहीं कुछ अन्य विद्वानों का यह मानना है कि गांधीजी ने लड़ाकू ताकतों के बढ़ते प्रभाव से डरकर आंदोलन को स्थगित किया था, क्योंकि चौरा-चोरी कांड के पश्चात आंदोलन की बागडोर लडाकू ताकतों के हाथ में जाने लगी थी!

इसके अतिरिक्त कुछ अन्य विद्वान गांधीजी द्वारा नॉन कोऑपरेशन मूवमेंट को वापस लिए जाने के पीछे प्रमुख कारण जमीदारों के हितों की रक्षा को मानते हैं! इन विद्वानों का मत है कि गांधीजी जमीदारों के समर्थक थे! यही कारण था कि गांधीजी ने बारदोली प्रस्ताव में किसानों से लगान अदायगी करने को कहा था! 

किंतु ये समस्त आलोचनाएं निरर्थक हैं! वस्तुतः गांधीजी ने पूंजीपति एवं मजदूरों के मध्य संघर्ष में सदैव मजदूरों का ही साथ दिया था! अहमदाबाद आंदोलन को इस संदर्भ में देखा जा सकता है! वहीं चौरा-चोरी कांड में शामिल लड़ाकू भीड़ का प्रभाव इतना व्यापक नहीं था कि गांधीजी इस क्षेत्रीय भीड़ के हाथों में नेतृत्व जाने से डर जाते!

उसी प्रकार यद्यपि यह सही है कि गांधीजी ने बारदोली प्रस्ताव में कृषकों को लगान अदायगी हेतु कहा था! इसका कारण यह था कि कि इस आंदोलन के कार्यक्रम में लगान न अदायगी का मुद्दा शामिल नहीं था! वस्तुतः गांधी जी इस आंदोलन में जमीदारों एवं कृषक को दोनों का सहयोग प्राप्त करना चाहते थे! अत: उन्होंने कृषकों को उनकी सामर्थ्य के अनुसार लगाना अदायगी हेतु कहा था! 

वस्तुतः गांधीजी द्वारा असहयोग आंदोलन को स्थगित किए जाने हेतु कुछ अन्य कारण उत्तरदाई थे! गांधीजी ने बार-बार कहा था कि बारदोली से प्रारंभ होने वाला सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान देश के अन्य हिस्सों में किसी भी तरह का आंदोलन नहीं होना चाहिए, अहिंसक आंदोलन भी नहीं! 

इसके पीछे गांधीजी का मंतव्य यह था कि कर न अदायगी हेतु सविनय अवज्ञा आंदोलन को संपूर्ण देश में प्रारंभ किए जाने पर हिंसात्मक गतिविधियों में वृद्धि हो सकती थी, जिससे ब्रिटिश सरकार को आंदोलन के खिलाफ दमनात्मक कदम उठाने का नैतिक आधार मिल जाता! चौरा-चोरी कांड ने अंग्रेजों को दमनात्मक कार्रवाई करने हेतु नैतिक आधार प्रदान कर दिया था! अतः गांधीजी ने आंदोलन को स्थगित कर जनता को ब्रिटिश दमन से बचाए रखा!   

असहयोग आंदोलन का महत्व (Asahyog andolan ka mahatva) –

भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के इतिहास में पहली बार भारतीय समाज के विभिन्न वर्गों जैसेकि – किसानों, मजदूरों, छात्रों तथा शिक्षकों, महिलाओं तथा व्यापारियों इत्यादि के इस आंदोलन में भाग लेने से इसको एक विशाल वास्तविक जनसमर्थन मिला था, यद्यपि बड़े उद्योगपति, पूंजीपति तथा जमीदार अभी भी बाहर बने रहे! 

यह आंदोलन हिंदू-मुस्लिम एकता की चरम सीमा को प्रदर्शित करता है जो खिलाफत आंदोलन के मिलने से स्पष्ट हो जाता है! अंततः यह आंदोलन राष्ट्रीय स्वतंत्रता के लिए जनता की कठिनाई तथा त्याग करने की इच्छा एवं योग्यता को दर्शाता है! 

प्रश्न :- असहयोग आंदोलन कब प्रारंभ हुआ

उत्तर :- असहयोग आंदोलन 1 अगस्त 1920 को प्रारंभ हुआ

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असहयोग आंदोलन के मुख्य कारण क्या है?

अंग्रेज हुक्मरानों की बढ़ती ज्यादतियों का विरोध करने के लिए महात्मा गांधी ने एक अगस्त 1920 को असहयोग आंदोलन की शुरूआत की. आंदोलन के दौरान विद्यार्थियों ने सरकारी स्कूलों और कॉलेजों में जाना छोड़ दिया, वकीलों ने अदालत में जाने से मना कर दिया और कई कस्बों और नगरों में श्रमिक हड़ताल पर चले गए।

असहयोग आंदोलन का कारण और परिणाम क्या है?

असहयोग आंदोलन का प्रमुख उद्देश्य स्वराज की प्राप्ति करना था! गांधीजी ने भी आंदोलन के प्रारंभ में एक वर्ष के अंदर स्वराज्य प्राप्त होने की बात कही थी! किंतु स्वराज्य तो दूर अंग्रेजों ने छोटे-मोटे रियासतें भी नहीं दी! इस आधार पर असहयोग आंदोलन को असफल कहा जा सकता है!

असहयोग आंदोलन की प्रमुख विशेषताएं क्या थी?

असहयोग आंदोलन की अनिवार्य विशेषता यह थी कि अंग्रेजों की क्रूरताओं के खिलाफ लड़ने के लिए शुरू में केवल अहिंसक साधनों को अपनाया गया था। इस आंदोलन ने अपनी रफ़्तार सरकार द्वारा प्रदान की गई उपाधियों को लौटाकर, और सिविल सेवाओं, सेना, पुलिस, अदालतों और विधान परिषदों, स्कूलों, और विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करके किया गया।.

असहयोग आंदोलन का परिणाम क्या था?

इस आन्दोलन ने ब्रिटिश शासन-व्यवस्था के ढाँचे को झकझोर दिया। अंग्रेजों को लगने लगा कि बिना उदारवादियों के सहयोग के वे आगे नहीं बढ़ पायेंगे। लोगों में विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार तथा स्वदेशी वस्तुओं के प्रति लगाव की प्रवृत्ति जाग्रत हुई। परिणामस्वरूप कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहन मिला।