1. मेरी दृष्टि इस जूते पर अटक गई है। सोचता हूँ-फोटो खिंचाने की Show (क) पोशाकों के बारे में लेखक की क्या सोच थी? उत्तर― पोशाकों के बारे में लेखक का सोचना था कि स्थान, कर्म विशेष के आधार पर पोशाकें बदल जाती हैं। (ख) 'साहित्यिक पुरखे' लेखक ने किसे और क्यों कहा? उत्तर― 'साहित्यिक पुरखे' शब्द लेखक ने प्रेमचंद के लिए कहा, क्योंकि हिंदी-साहित्य के क्षेत्र में प्रेमचंद का नाम बड़े सम्मान से लिया जाता है। (ग) फटे जूते देखकर लेखक किस सोच में पड़ गया? उत्तर― फटे जूते देखकर लेखक सोचने लगा कि अगर फोटो खिंचाते समय प्रेमचंद की यह दुर्दशा है तो वास्तविक जीवन में उनका क्या हाल होगा। फिर मन में यह विचार भी आया कि प्रेमचंद का जीवन दोगला नहीं है। अत: उनकी वास्तविकता और दिखावट में कोई अंतर नहीं होगा। 2. तुम फोटो का महत्व नहीं समझते। समझते होते, तो किसी से फाटो खिंचाने के लिए जूते माँग लेतें लोग तो माँगे के कोट से वर-दिखाई करते हैं। और माँगे की मोटर से बारात निकालते हैं। फोटो खिंचाने के लिए तो बीबी तक माँग ली जाती है, तुमसे जूते ही माँगते नहीं बने! तुम फोटो का महत्व नहीं जानते। लोग तो इत्र चुपड़कर फोटो खिंचाते हैं जिससे फाटो में खुशबू आ जाए। गंदे-से-गंदे आदमी की फोटो भी खुशबू देती है। (क) फोटो खिंचवाने के लिए लोग क्या-क्या कहते हैं? उत्तर― फोटो खिंचवाने के लिए लोग उधार का सामान, वस्त्रादि माँग लेते हैं। (ख) प्रेमचंद फोटो खिंचवाने के लिए कुछ माँग कर क्यों नहीं लाए ? उत्तर―प्रेमचंद सादी और सहज प्रवृत्ति के थे उन्हें कृत्रिमता और दिखावा पसंद न था। अतः फाटो खिंचवाने के लिए उधार के वस्त्र, जूते आदि की नहीं सोची। (ग) इन चुपड़कर फोटो खिंचवाने वाले लोगों पर क्या व्यंग्य किया गया है? उत्तर― दिखावे की प्रवृत्ति तथा कृत्रिम व्यक्तित्व वाले अपनी असलियत को छुपाते हैं। जो लोग इत्र चुपड़कर फोटो खिंचवाते हैं। उनके व्यक्तित्व से स्पष्ट है कि वे मूर्ख हैं, दिखावाकर रहे हैं क्योंकि फोटो में कौन-सी खूशबू आनी है। 3. टोपी आठ आने में मिल जाती है और जूते उस जमाने में भी पाँच रुपये से कम में क्या मिलते होंगे। जूता हमेशा टोपी से कीमती रहा हैं अब तो जूते की कीमत और बढ़ गई है और एक जूते पर पचीसों टोपियाँ न्यौछावर होती हैं। तुम भी जूते और टोपी के आनुपातिक मूल्य के मारे हुए थे। यह विडंबना मुझे इतनी तीव्रता से पहले कभी नहीं चुभी, जितनी आज चुभ रही है, जब मैं तुम्हारा फटा जूता देख रहा हूँ। तुम महान कथाकार, उपन्यास-सम्राट, युग-प्रवर्तक, जाने क्या-क्या कहलाते थे, मगर फोटो में भी तुम्हारा जूता फटा हुआ है। (क) एक जूते पर पचीसों टोपियाँ कैसे न्यौछावर होती हैं? उत्तर― जूता प्रतीक है ताकत का और टोपी प्रतीक है इज्जत का। एक ताकतवर इंसान के आगे साधरण लोग सिर झुकाते ही हैं। इस प्रकार एक जूते पर पचीसों टोपियाँ न्यौछावर होती हैं। (ख) लेखक को कौन-सी विडम्बना चुभ रही है? उत्तर― लेखक को यह विडंबना चुभ रही है कि वह इतने महान साहित्यकार की इतनी विपन्न अवस्था देख रहा है कि उनके पास पहनने के लिए ठीक से जूता तक नहीं है। यह एक विडंबनापूर्ण स्थिति है। (ग) किसकी कीमत हमेशा ज्यादा रही है और क्यों? उत्तर― जूते की कीमत हमेशा ज्यादा रही है क्योंकि एक जूते पर पचीसो टोपियाँ न्यौछावर होती है। 4. मेरा जूता भी कोई अच्छा नहीं है। यों ऊपर से अच्छा दिखता है। अँगुली बाहर नहीं निकलती, पर अँगूठा के नीचे तला फट गया है। अँगूठा जमीन से घिसता है और पैनी मिट्टी पर कभी रगड़ लहूलुहान भी होजाता है। पूरा तला गिर जाएगा, पूरा पंजा छिल जाएगा, मगर अँगुली बाहर नहीं दिखेगी। तुम्हारी अँगुली दिखती है, पर पाँव सुरक्षित हैं मेरी अँगुली ढकी है, पर पंजा नीचे घिस रहा है। तुम पर्व का महत्व ही नहीं जानते, हम पर्दे पर कुर्बान हो रहे हैं। (क) लेखक और प्रेमचंद के जूते में क्या अंतर है? उत्तर― लेखक का जूता ऊपर से सही है लेकिन तले से फट गया है, जबकि प्रेमचंद का जूता तले से ठीक है लेकिन ऊपर से फटा हुआ है, जिससे अँगुली झाँक रही है। (ख) लेखक अपने और प्रेमचंद के जूते की तुलना से क्या समझाना चाहता उत्तर― लेखक अपने और प्रेमचंद के जूते की तुलना से यह समझाना चाहता है कि आज व्यक्ति दिखावे की प्रवृत्ति में ऐसा फंसा हुआ है कि उसके लिए चाहे उसे स्वयं कितना ही नुकसान उठाना पड़े लेकिन वह अपना दिखावा नहीं छोड़ना चाहता है। (ग) 'तुम पर्दे का महत्त्व नहीं जानते'-कथन से लेखक का क्या अभिप्राय है? उत्तर― इस कथन के माध्यम से लेखक यह बताना चाहता है कि पर्दा जो कि झूठी महानता, दिखावे का प्रतीक है, उसके महत्व के बारे में प्रेमचंद कुछ नहीं जानते हैं। अर्थात् वे दिखावे की प्रवृत्ति से परे हैं। 5. मुझे लगता है, तुम किसी सख्त चीज को ठोकर मारते रहे हो। कोई चीज जो परत-पर-परत सदियों से जम गई है, उसे शायद तुमने ठोकर मार-मारकर अपना जूता फाड़ लिया। कोई ? टीला जो रास्ते पर खड़ा हो गया था, उस पर तुमने अपना जूता आजमाया। तुम उसे बचाकर, उसके बगल से भी तो निकल सकते थे। टीलों से समझौता भी तो हो जाता है। सभी नदियाँ पहाड़ थोड़े ही फोड़ती हैं, कोई रास्ता बदलकर, घूमकर ळी तो चली जाती है। तुम समझौता कर नहीं सके। क्या तुम्हारी भी वही कमजोरी थी, जो होरी को ले डूबी, वही 'नेम-धरम' वाली कमजोरी? 'नेम-धरम' उसकी भी जंजीर थी। मगर तुम जिस तरह मुस्कुरार रहे हो, उससे लगता है कि शायद 'नेम-धरम' तुम्हारा बँधन नहीं था, तुम्हारी मुक्ति थी! (क) लेखक को जूता फटने का क्या कारण प्रतीत होता है? उत्तर― लेखक को प्रेमचंद का जूता फटने का यह कारण प्रतीत होता है कि उन्होंने किसी सख्त चीज से ठोकर माकर अपना जूता फाड़ लिया है। यह सख्त चीज वर्षों के जमाव का कारण होगी। (ख) 'टीला' क्या हो सकता है? उत्तर― 'टीला' उन सामाजिक कुरीतियों का प्रतीक है जो प्रेमचंद के मार्ग में बाधक बनकर खड़ी हो गई थी। प्रेमचंद ने उनसे टक्कर ली। (ग) प्रेमचंद चाहते तो क्या कर सकते थे? लेखक क्या उदाहरण देकर अपनी बात समझाता है? उत्तर― प्रेमचंद चाहते तो विरोधों से बचकर निकल सकते थे। उस समय के टीलों, तथाकथित समाज के ठेकेदारों से समझौता कर सकते थे, पर उन्होंने ऐसा नहीं किया, सभी नदियाँ पहाड़ों से नहीं टकराती, कोई रास्ता बदलकर भी निकल जाती है। तुम भी ऐसा कर सकते थे। 6. मैं समझता हूँ। तुम्हारी अंगुली का इशारा भी समझता हूँ और यह व्यंग्य-मुस्कान भी समझता हूँ। तुम मुझ पर या हम सभी पर हँस रहे हो, उन पर जो अँगुली छिपाए और तलुआ घिसाए चल रहे हैं, उन पर जो टीले को बरकारार बाजू से निकल रहे हैं। तुम कह रहे हो-मैने तो ठोकर मार-मारकर जूता फाड़ लिया, अँगुली बाहर निकल आई, पर पाँव बचा रहा और मैं चलता रहा, मगर तुम अंगुली को दौंकने की चिंता में तलुवे का नाश कर रहे हो। तुम चलोगे कैसे? मैं समझता हूँ। मैं तुम्हारे फटे जूते की बात समझता हूँ, अँगुली का इशारा समझता हूँ, तुम्हारी व्यंग्य-मुस्कान समझता हूँ। (क) प्रेमचंद को किनके चलने की चिंता है? उत्तर― प्रेमचंद को अपने युग के उन लेखकों के चलने की चिंता है जो दिखावटी जीवन जीने के कारण अंदर-ही-अंदर सिमटते जा रहे हैं। वे संकटों को स्वीकार करने का आत्मबल खोते जा रहे हैं। प्रेमचंद को लगता है कि संकटों का खुलकर आमना-सामना किए बिना लेखन या अन्य श्रेष्ठ कर्म नहीं किया जा सकता। (ख) प्रेमचंद मुस्कराकर क्या व्यंग्य कर रहे हैं? उत्तर― प्रेमचंद मुस्कराकर कह रहे हैं कि मैंने तो मुसीबतों को ठोकरे मार-मारकर अपना जूता फाड़ लिया। मेरी अँगुली जूता फाड़कर बाहर निकल आई, परंतु पाँव बचा रहा। इसलिए मैं आगे चलता रहा। आशय यह है कि मैं कुरीतियों से जूझा। मैंने संकट सहे। गरीबी झेली। किंतु अपने आत्मबल को बचाए रखा। इसी के बल पर मैं आगे साहित्य-लेखन कर रहा हूँ। परंतु जो लोग दिखावटी जीवन जीने में अपने आत्मबल को खो रहे हैं, उनका क्या होगा? वे आगे और साहित्य-लेखन कैसे करेंगे? (ग) 'अँगुली छिपाने' और 'तलुआ घिसाने' का क्या गूढ आशय है? उत्तर― 'अँगुली छिपाने' का आशय है- अपनी दुर्दशा को ढाँपना। 'तलुआ घिसाने' का आशय है-अंदर-ही-अंदर क्षीण होना। अपनी शक्तियों को नष्ट करना। लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर 1. हरिशंकर परसाई ने प्रेमचंद का जो शब्दचित्र हमारे सामने प्रस्तुत किया है उससे प्रेमचंद के व्यक्तित्व की कौन-कौन सी विशेषताएँ उभरकर आती हैं? उत्तर― हरिशंकर परसाई ने प्रेमचंद का जो शब्द-चित्र पाठकों के समक्ष प्रस्तुत किया है-उससे ज्ञात होता है कि प्रेमचंद सरल, सहज, सादे व्यक्तित्व वाले हैं। वे दिखावे की प्रवृत्ति से परे यथार्थ के पक्षधर दिखाई देते हैं। 2. "प्रेमचंद के फटे जूते" नामक व्यंग्य पाठ में आपको लेखक की कौन-सी बातें आकर्षित करती हैं? उत्तर― प्रस्तुत व्यंग्य को पढ़ने के बाद लेखक की कई बातें अपनी ओर आकर्षित करती हैं। लेखक पारखी नजर रखता है। वह प्रेमचंद की फोटो देखकर यह अनुमान लगा लेता है कि ऐसा व्यक्तित्व दिखावे से कोसों दूर है। उसे प्रेमचंद के चेहरे पर लज्जा, संकोच की जगह बेवपरवाही और विश्वास दिखाई देता है। वह प्रेमचंद की अधूरी मुस्कान को व्यंग्य कहता है। उनके द्वार फोटो का महत्त्व समझाने की बात भी आकर्षित करती है। आज लोग उधार माँगकर अपने जीवन के अहम् कार्यों को करते हैं। लोग इत्र लगाकर खुशबूदार फोटो खिंचवाना चाहते हैं। लेखक द्वारा दिखावे में विश्वास रखने की बात भी आकर्षित करती है। वे स्वयं दुख उठाते हुए भी दूसरों को उसका आभास भी नहीं होने देना चाहते हैं। 3. पाठ में 'टीले' शब्द का प्रयोग किन संदर्भो को इंगित करने के लिए किया गया होगा? उत्तर― "टीला' रास्ते की रुकावट का प्रतीक है। जैसे बहती नदी में खड़ा कोई टीला सारे बहाव को रोक देता है, उसी भाँति अनेक बुराइयाँ, कुरीतियाँ और भ्रष्ट-आचरण जीवन की सहज गति को बाधित कर देते हैं। इस पाठ में 'टीला' शब्द का प्रयोग शोषण, अन्याय छुआछूत, जाति-पाँति, महाजनी सभ्यता आदि बुराइयों के लिए हुआ है। 4. लोग फोटो को अधिक सुंदर क्यों बनाना चाहते हैं? उत्तर― लोग दुनिया के सामने अपने-आपको अति सुंदर और भला दिखाना चाहते हैं। इसलिए जब वे अपना फोटो खिंचवाते हैं तो पूरी तरह जंचकर आते हैं। फोटो के लिए कपड़े, जूते उधार मांगने पड़े तो उधार ले आते हैं. अर्थात् लोग स्वयं को जैसे हैं, वैसे स्वीकार न करके, उससे सुंदर दीखना चाहते हैं। 5. लेखक ने प्रेमचंद के जूते फटने का कौन-सा सांकेतिक कारण बताया है? उत्तर― लेखक के अनुसार, प्रेमचंद ने समाज की कुरीतियों पर जोर-जोर से ठाकरें मारी। उन्होंने कुरीतियों से बचने की कोशिश नहीं की। इस कारण उनके जूते फट गए। आशय यह है कि सामाज की बुराइयों से संघर्ष के कारण उन्हें समाज से धन-वैभव नहीं मिल पाया। श्रीमानों ने उनका समर्थन नहीं किया। यदि वे धनी लोगों को प्रसन्न करने के लिए लिखते तो उन्हें धन-वैभव अवश्य मिलता। 6. प्रेमचंद और होरी की किस कमजोरी को रेखांकित किया गया है? उत्तर― इस पाठ में प्रेमचंद और होरी की एक ही कमजोरी बताई गई है। वे दोनों अपने नेम-धरम के पक्के थे। उन्होंने कभी अपनी नैतिकता और मर्यादा नहीं छोड़ी। समाज ने उन पर कितने अत्याचार किए, उनकी उपेक्षा की, फिर भी वे अपने पथ पर अडिग रहें। उन्होंने अपनी सादगी, भलाई और सज्जनता नहीं त्यागी। इस कारण वे जीवन-भर अभवग्रस्त रहे। 7. "जूता हमेशा टोपी से कीमती रहा है। अब तो जूते की कीमत और बढ़ गई है और एक जूते पर पचीसों टोपियाँ न्योछावर होती हैं।" इन पंक्तियों में निहित व्यंग्य को स्पष्ट करें। उत्तर― टोपी सिर पर अर्थात् इज्जत के स्थान पर पहनी जाती है। वह मान-सम्मान का प्रतीक है, जबकि जूता पैरों में पहना जाता है। वह दिखावे का प्रतीक है। दिखावा सदैव इज्जत, मान-सम्मान से ज्यादा हावी रहा है। इसलिए लेखक ने कहा कि जूता हमेशा टोपी से कीमती रहा है। आज जूते की कीमत और बढ़ गई है अर्थात् दिखावे, प्रदर्शन की भावना और ज्यादा बढ़ गई है। आज इज्जत की कोई महत्ता नहीं रही है। अतः यहाँ दिखावे की प्रवृत्ति पर व्यंग्य किया गया है। 8. "तुम पर्वे का महत्व ही नहीं जानते, हम पर्दे पर कुर्बान हो रहे हैं।" इन पंक्तियों में निहत व्यंग्य को स्पष्ट करें। उत्तर― पर्दा दिखावे का प्रतीक है, झूठी शान का प्रतीक है। अत: लेखक ने कहा है कि तुम पर्दे का महत्व ही नहीं जानते अर्थात् व्यवहारिकता नहीं जानते। हम पर्दे पर कुर्बान हो रहे हैं अर्थात् हमें दिखावे और व्यवहार की ही भाषा आती है। 9. "जिसे तुम घृणित समझते हो, उसकी तरफ हाथ की नहीं, पाँव की अँगुली से इशारा करते हो?" इन पंक्तियों में निहित व्यंग्य को स्पष्ट करें। उत्तर― इन पंक्तियों में लेखक प्रेमचंद के व्यक्तित्व के अनुरूप बताता है है कि प्रेमचंद को जिन दिखावे वाले, झूठी शान वाले, कृत्रिम व्यक्तित्व से खार खाते हैं, चिढ़ते हैं, उन्हें डाँटने, प्रताड़ित करने के लिए मानो अपने फटे-जूते से अंगुली दिखाकर, उन्हें चिढ़ा रहे हैं, उन पर व्यंग्य कस रहे हैं। 10. आपकी दृष्टि में वेशभूषा के प्रति लोगों की सोच में आज क्या परिवर्तन आया है? उत्तर― आज लोग वेशभूषा पर सर्वाधिक ध्यान देने लगे हैं। उनके अनुसार व्यक्ति की पहचान वेशभूषा से ही होती है। अब गुणों की कद्र न होकर, वेशभूषा की कद्र होती है। लोग अच्छी वेशभूषा पर अपनी हैसियत से बढ़कर खर्च करते हैं और झूठी शान दिखाते हैं। 11. प्रेमचंद सहज जीवन में विश्वास रखते थे। सिद्ध करें। उत्तर― प्रेमचंद सहज जीवन जीने में विश्वास रखते थे। वे अंदर और बाहर की वेशभूषा में भी अंतर नहीं करते थे। वे अपनी गरीबी, फटेहाली और दुर्दशा को स्वीकार कर चुके थे। उसे छिपाना या उससे दूर हटना उनको स्वभाव में नहीं था। इसलिए उन्होंने फोटो खिंचवाते समय भी बनावटी वेशभूषा धारण करने का प्रयत्न नहीं किया। 12. प्रेमचंद की व्यंग्य-मुस्कान लेखक को क्यों कचोटती है? उत्तर― प्रेमचंद के चेहरे की व्यंग्य-भरी-मुस्कान लेखक को इसलिए कचोटती है क्योंकि लेखक ने भी अपनी फटेहाली को ढंकने की कोशिश की। इस कारण उसके जूते के तलवे घिसते रहे और पाँव चलने योग्य न रहे। आशय यह है कि लेखक ने समाज द्वारा मिले दुख-दर्द को खुलकर प्रकट करने के बजाय उसे छिपाने की कोशिश की। इस कारण उसका आत्मबल क्षीण हो गया। प्रेमचंद ने मानो इस आत्मबल की कमी को पहचान लिया। इस कारण प्रेमचंद की व्यंग्य-मुस्कान उसे और अधिक कचोटती है। ◆◆ जूता हमेशा टोपी से कीमती रहा है कथन से लेखक का क्या आशय है?जूता हमेशा टोपी से कीमती रहा है। अब तो जूते की कीमत और बढ़ गई है और एक जूते पर पचीसों टोपियाँ न्योछावर होती हैं। उत्तर:- व्यंग्य-यहाँ पर जूते का आशय समृद्धि से है तथा टोपी मान, मर्यादा तथा इज्जत का प्रतीक है। वैसे तो इज्जत का महत्त्व सम्पत्ति से अधिक हैं।
प्रेमचंद के फटे जूते में टोपी का क्या आशय है?प्रेमचंद के फटे जूते पाठ का सारांश परसाई जी के सामने प्रेमचंद तथा उनकी पत्नी का एक चित्र है। इसमें प्रेमचंद धोती-कुर्ता पहने हैं तथा उनके सिर पर टोपी है। वे बहुत दुबले हैं, चेहरा बैठा हुआ तथा हड्डियाँ उभरी हुई हैं।
लेखक को टोपी से जूता महंगा क्यों लगता है?Answer: प्रेमचंद के फटे जूते' लेखक हरिशंकर परसाई द्वारा रचित एक व्यंग रचना है। ... क) लेखक यह कहना चाहता है कि जूता टोपी से महंगा होता है इसलिए एक सामान्य व्यक्ति के लिए जूता खरीदना आसान नहीं होता। एक जूते की कीमत में अनेक टोपियां खरीदी जा सकती है।
जूता हमेशा टोपी से कीमती रहा है प्रस्तुत पंक्तियों में लेखक का कौन सा भाव व्यक्त हुआ है?इस बात में यह व्यंग निहित है कि यहाँ पर जूते का आशय संपत्ति से है, तथा टोपी का आशय मान-मर्यादा-प्रतिष्ठा से है। मान-मर्यादा, प्रतिष्ठा का महत्व हमेशा संपत्ति से अधिक होता है, जिन लोगों में स्वाभिमान होता है जो अपनी मान मर्यादा को महत्व देते हैं, अर्थात जो टोपी वाले होते हैं, उनके आगे जूते का कोई महत्व नही।
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