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धारिता के बारे में हम पढ़ चुके हैं। अब संधारित्र की धारिता की परिभाषा, किसे कहते हैं और प्रभावित करने वाले कारक के बारे में अध्ययन करेंगे। संधारित्र की धारिता किसे कहते हैं :-जब किसी एक चालक के पास कोई दूसरा चालक लाकर पहले चालक
की धारिता बनाई जाती है तो चालकों के इस संयोजन को संधारित्र के आते हैं। संधारित्र की धारिता को परिभाषित करें :-किसी ऐसे दो चालकों का युग्म है। जिस पर बराबर तथा विपरीत आवेश होता है संधारित्र की धारिता कहलाती है। संधारित्र की धारिता को प्रभावित करने वाले कारक :-किसी संधारित की धारिता निम्न कारकों पर निर्भर करती है –
पढ़ें… 12वीं भौतिकी नोट्स | class 12 physics notes in hindi pdf संधारित्र की स्थितिज ऊर्जा ( संधारित्र में संचित ऊर्जा ) :-जब किसी संधारित्र को आवेशित किया जाता है। तो कुछ कार्य करना पड़ता है। जो संधारित्र में स्थितिज ऊर्जा के रूप में संचित हो जाता है जब संधारित्र को किसी प्रतिरोध तार द्वारा जोड़ दिया जाता है। तो यह ऊर्जा उष्मा के रूप में प्रकट हो जाती है। अब संधारित्र को ओर आगे अनंत सूक्ष्म आवेश dq
देने में किया गया कार्य अतः संधारित्र को शून्य से q आवेश देने में किया गया कुल कार्य किसी चालक की वैद्युत धारिता (कैपेसिटी या कैपेसिटेंस), उस चालक की वैद्युत आवेश का संग्रहण करने की क्को आवेश दिया जाता है तो उसका वैद्के्े विभव में V वृद्धि हो, तो जहाँ C एक नियतांक है जिसका मान चालक के आकार, समीपवर्ती माध्यम तथा पास में अन्य चालकोँ की उपस्थिति पर निर्भर करता है। इस नियतांक को 'वैद्युत धारिता' कहते हैँ। ऊपर के समीकरण q = CV से C = q /fइस प्रकार, किसी चालक की वैद्युत धारिता चालक को दिये गये आवेश तथा चालक के विभव में होने वाली व्रिद्धि के अनुपात को कहते हैँ। धारिता का SI मात्रक कूलाम/वोल्ट है। इसे 'फैरड' कहते है तथा इसे F से निरुपित करते हैं। इस प्रकार, 1 फैरड =1 कूलाम/वोल्टधारिता का emu में मात्रक ‛स्टेट फैरड’ होता है। 1 फैरड =9×1011 स्टेट फैरड1 माइक्रोफैरड = 10-6 फैरड1 नैनोफैरड=10-9 फैरड1 पीकोफैरड=10-12 फैरडइसी प्रकार C=q/v से- यदि v=1वोल्ट, C=q तो किसी चालक की वैद्युत धारिता चालक को दी गयी आवेश की वह मात्रा है जो चालक के विभव में एक वोल्ट का परिवर्तन कर दे। वैधुत धारिता एक अदिश राशि है। वैधुत धारिता का मान सदैव धनात्मक होता है। क्योकि चालक पर आवेश तथा इसके कारण विभव में परिवर्तन के चिन्ह सामान होते हैं। धारिता का विमीय सूत्र - [T×T×T×T×A×A/M×L×L] है। चालक के माध्यम का परावैद्युतांक बढ़ने से धारिता भी बढती है। किसी चालक की धारिता निम्न तथ्यों पर निर्भर नहीं करती है-
नोट - यदि सूत्र c=q/v से v=0 तो c=∞ अतः धारिता अनन्त होगी। चूँकि पृथ्वी का विभव 0 होता है। तो पृथ्वी की धारिता अनन्त होगी। अतः प्रथ्वी अनन्त आवेश संगृहीत कर सकती है। इसी प्रकार जब हम किसी चालक को आवेश देते है तो चालक के विभव का आंकिक मान बढ़ता है। यदि चालक को आवेश लगातार देते जाये तो चालक स्थतिज ऊर्जा का संचय नहीं कर पता अर्थात वैधुत रोधन क्षमता समाप्त हो जाती है। तथा आवेश लीक होने लगता है। इस स्थिति में विभव का मान अधिकतम होता है। ओर इस प्रकार चालक द्वारा आवेश की एक निश्चित मात्रा का संग्रह ही संभव है। इसी का परोक्ष उदाहरण यह है की जब हम खाली बर्तन को जल में डालते है तो बर्तन में पानी निश्चित मात्रा तक ही बढ़ पता है और पानी तदुपरान्त बर्तन से बाहर आने लगता है। इसे बर्तन की धारिता कहते है।इसे मिलीलीटर, लीटर आदि से व्यक्त करते है। आवेशित चालक की वैद्युत स्थितिज ऊर्जा[संपादित करें]जब किसी चालक को आवेश दिया जाता है तो वह विभाजित रूप में दिया जाता है। अतः चालक पर पूर्व संचित आवेश के कारण बाह्य आवेश देने पर वैधुत प्रतिकर्षण बल के विरुद्ध कार्य किया जाता है। यही कार्य चालक में वैधुत स्थतिज ऊर्जा के रूप में संचित हो जाता है। जो चालक की स्थतिज ऊर्जा कहलाती है। माना चालक की धारिता C है प्रारम्भ में चालक पर आवेशq तथा विभवV शून्य है। माना चालक को आवेश विभाजित रूप में दिया जाता है जिससे विभव का मान भी बढ़ता है(qअनुक्रमानुपातीV)। आवेश q देने के साथ व V का मान भी बढ़ता है अतः औसत विभव- V'=प्रारंभिक विभव + अंतिम विभव/2 V'=0+V/2=V/2 वैधुत विभव की परिभाषा से,आवेशq देने पर विभव परिवर्तन होने के साथ किया गया कार्य(v=w/q) से- v=w/q , w=v×q=v×q/2 W=V×q/2 चूँकि कार्य ही चालक में स्थतिज ऊर्जा के रूप में संचित है तो- [U=W=q×v/2].....(1) c=q/v से समीकरण में q तथा v के मान रखने पर- सूत्र-[U=q×v/2=c×v×v/2=q×q/2c] नोट- प्रश्न-किया गया कार्य स्थतिज ऊर्जा के रूप में क्यों संचित होता है। कार्य का ऊर्जा से क्या सम्बन्ध है। उत्तर-कार्य करने की क्षमता को ऊर्जा कहते है। तथा कार्य व ऊर्जा का मात्रक भी ‛जूल’ सामान है। यह तत्व गणित द्वारा प्रमाणित किया जा सकता है कि किसी यंत्र में जितनी ऊर्जा डाली जाये उतने ही परिमाण में हमें कार्य प्राप्त होता है उससे अधिक नहीं। यही शक्तिसातत्य का नियम है। अतः अब यह भी कहा जा सकता है कि किसी भी किये कार्य द्वारा हम किसी यन्त्र में ऊर्जा उतने ही परिमाण में संचित कर सकते है। यही आधुनिक रूप में कार्य-ऊर्जा प्रमेय द्वारा सिद्ध किया जा सकता है। किसी स्प्रिंग को संपीडित करते समय जो कार्य करना पढता है वही कार्य उस स्प्रिंग में संचित ऊर्जा है। जिसे स्थितिज ऊर्जा कहते है। अतः ऊर्जा किसी कार्य द्वारा ही जन्म लेती है। तथा कोई भी कार्य किसी ऊर्जा द्वारा ही संभव है। विशेष-1 चालक को धनावेश दिया जाये या ऋणावेश, वैधुत स्थतिज ऊर्जा सदैव धनात्मक होती है। 2 यदि C व C' धारित वाले दो चालको के लिये- १-यदि उन्हें समान विभव तक आवेशित किया जाये तो U=C×V×V/2 से- U/U'=C/C' अतः अधिक धारिता के चालक की वैधुत स्थतिज ऊर्जा अधिक होगी। २-यदि चालकों को सामान आवेशित किया जाये तो U/U'=C/C' अतः कम धारिता के चालक की वैधुत स्थतिज ऊर्जा अधिक होगी। इन्हें भी देखें[संपादित करें]
4 किसी चालक की धारिता को कौन कौन से कारक प्रभावित करते है?<br> धारिता को प्रभावित करने वाले कारक एवं उनका वर्णन - किसी चालक की धारिता पर निम्नलिखित कारकों का प्रभाव पडता है। - <br> (i) चालक का आकार - किसी चालक का आकार बढाने पर उसका विभव घटता है फलत धारिता बढती है। <br> (ii) किसी के पास अन्य चालको की उपस्थिति – आवेशित चालक के पास अन्य चालकों की उपस्थिति से उसका विभव घटता है।
किसी चालक की धारिता से क्या तात्पर्य है धारिता की विमीय समीकरण की स्थापना कीजिए?<br> यदि V = 1 हो, तो C = Q होगा, अर्थात किसी चालक की विद्युत धारिता उस आवेश के आंकिक मान के तुल्य होती है, जो उसके विभव में एकांक वृद्धि कर दे। धारिता का मात्रक कॉलम/वोल्ट या फैरड होता है। इसका विमीय सूत्र `[M^(-1) L^(-2)T^(4)A^(2)]` होता है।
किसी चालक की धारिता क्या है?इस प्रकार, किसी चालक की वैद्युत धारिता चालक को दिये गये आवेश तथा चालक के विभव में होने वाली व्रिद्धि के अनुपात को कहते हैँ। धारिता का SI मात्रक कूलाम/वोल्ट है। इसे 'फैरड' कहते है तथा इसे F से निरुपित करते हैं।
धारिता कारक क्या है?संधारित्र की धारिता को परिभाषित करें :-
किसी ऐसे दो चालकों का युग्म है। जिस पर बराबर तथा विपरीत आवेश होता है संधारित्र की धारिता कहलाती है। संधारित्र की एक प्लेट को दिए गए q आवेश तथा संधारित्र की दोनों प्लेटों के बीच उत्पन्न विभवांतर के अनुपात को उस चालक पर संधारित्र की धारिता कहते हैं।
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