1857 में क्या हुआ 1857 के स्वतंत्रता संग्राम पर चर्चा करें - 1857 mein kya hua 1857 ke svatantrata sangraam par charcha karen

  • आर वी स्मिथ
  • वरिष्ठ स्तंभकार, बीबीसी हिंदी डॉट कॉम के लिए

10 मई 2017

1857 में क्या हुआ 1857 के स्वतंत्रता संग्राम पर चर्चा करें - 1857 mein kya hua 1857 ke svatantrata sangraam par charcha karen

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1857 के विद्रोह की शुरुआत 10 मई के दिन ही हुई थी और ये देखना बेहद अचरज भरा है कि 160 साल बीत जाने के बाद भी ये भारत, पाकिस्तान और ब्रिटेन के लेखकों को प्रेरित करता है. यही वजह है कि इस गदर पर हिंदी, उर्दू और अंग्रेजी में ढेरों किताबें मौजूद हैं.

इतना लंबा अरसा बीत जाने के बाद भी इसके प्रति लोगों की दिलचस्पी कम नहीं हुई है. 'द टाइम्स', लंदन के नामी पत्रकार सर विलियम रसेल 1857 में भारत आए थे. वे क्रीमिया युद्ध को कवर करके यहां आए थे.

इस दौरान उन्होंने कई विचित्र रिपोर्ट लिखी थीं, जिसमें शाहजहांपुर में एक अंग्रेज भूत होने की रिपोर्ट शामिल थी. एक रिपोर्ट बिना सिर वाले घुड़सवार की थी, जो उनके मुताबिक उत्तर भारत के शहरों में हर रात देखा जाने लगा था. इसके अलावा वो जहां भी गए वहां हुई तोड़-फोड़ का ब्योरा भी उन्होंने लिखा.

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जेन रॉबिंसन की पुस्तक 'अल्बियन के एंजिल्स- भारतीय गदर की महिलाएं' भी एक दिलचस्प प्रकाशन है. इसके कुछ अंशों को रेखांकित किए जाने की ज़रूरत है.

जब दिल्ली पर सिपाहियों का कब्जा हो गया, तब कुछ विदेशी महिलाओं को भी मुश्किल हालात से गुजरना पड़ा था. इनमें एक हैरियट टाइटलर भी थीं, जो कैप्टन रॉबर्ट टाइटलर की पत्नी थीं.

रॉबर्ट 38वीं नेटिव इंफेंट्री में तैनात थे, जब अंग्रेजों ने दिल्ली को खाली किया तो उनकी पत्नी आठ महीने की गर्भवती थी. उन्हें दिल्ली के घने रिज इलाके में एक बैलगाड़ी में अपने बच्चे को जन्म दिया था.

"मेरी बेबी को पेचिश हो गया (हैरियट के अनुमान के मुताबिक) और लग नहीं रहा था कि वो एक सप्ताह से ज़्यादा जीवित रहेगा. वे एक फलालेन (एक तरह का कपड़ा) के छोटे से टुकड़े पर था, और कुछ नहीं था. लोरी की जगह चेतावनी की आवाज़ें, गोलियों की आवाज़ थीं."

"बेबी के जन्म के एक सप्ताह के बाद, मानसून या गर्मी की बारिश शुरू हो गई. तेज बारिश में फूस की छत टपकने लगी और कुछ ही देर में हम सब पानी में सराबोर हो गए. किस्मत की बात थी, कि हथियार रखने की एक जगह खाली हुई थी तो मेरे पति हमें वहां ले गए."

बाद में हेरियट बुज़ुर्गावस्था तक जीवित रहीं और 20वीं शताब्दी के पहले दशक में उनका निधन हुआ.

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मुसलमान बनना पड़ा

"एक दूसरी पीड़िता एमेलिया थीं, जिन्हें 27 जून को सतीचौड़ा घाट पर हुए नरसंहार के दौरान गंगा में फेंक दिया गया था. उन्हें मोहम्मद इस्माइल ख़ान नाम के एक घुड़सवार ने बचाया. वो उन्हें हाथ से पकड़ कर और घोड़े के बगल में बांध कर आगे बढ़ा." एमेलिया विद्रोह शुरू होने से कुछ ही दिन पहले दिल्ली से निकलीं थी और उनके कानपुर पहुंचते पहुंचते सैनिक विद्रोह शुरू हो गया.

"मुझे घाट से तीन मील दूर एक सूबेदार की झोपड़ी तक ले जाया गया. वहां मुझे उच्च जाति की महिलाओं के कपड़े पहनने को दिए गए. सूरज की रोशनी में मेरा चेहरा मुरझाने लगा था, ऐसे में बंदी बनाने वाले के लिए मुझे एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाना आसान हो गया था."

"एमेलिया एक बड़े से टेंट में कई दिन रहीं, फिर उन्हें सिपाही इलाहाबाद ले गए. वो वहां से दिल्ली निकलने वाले थे, लेकिन अंग्रेजों की चुनौती को देखते हुए उन्होंने फर्रुखाबाद का रास्ता चुन लिया और उन्हें कहा गया कि तुम्हें मार देंगे."

"एमेलिया के मुताबिक़ मौलवियों ने उन्हें धर्म बदलने की सलाह दी, उन्होंने कहा कि अगर तुम हमारा धर्म अपना लेती हो तो तुम्हारी रक्षा करेंगे. इसके बाद मुझे लखनऊ भेज दिया गया जहां मैं एक रंगरेज की झोपड़ी में दो महीने तक रही. बाद में मुझे बंदी बनाने वाले ने ब्रिटिश सैनिकों को मुझे सौंपकर जीवनदान दिया."

भयानक क़त्लेआम

2 जून, 1857 को जब सिपाही सीतापुर की ओर बढ़े तब मैडलिन जैकसन अपने भाई और दूसरे अंग्रेज परिवारों के साथ जंगल में छिपने चली गईं.

मैडलिन तो पांच महीने बाद जीवित बच गईं लेकिन उनके भाई की हत्या हो गई. मैडलिन उस वक्त के लखनऊ के एक्टिंग चीफ़ कमिश्नर की भतीजी थीं.

ब्रिटिश सैनिकों ने बाद में बर्बरता से इसका बदला लिया.

रिचर्ड बार्टर याद करते हैं, "ये भयानक था, हमारे घुड़सवार सैनिकों और तोपों ने दुश्मन को कुचल कर रख दिया. उनके शव गल गए थे और बदूब काफ़ी भयानक थी."

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जहाँ विद्रोही सैनिकों के बर्बर बर्ताव की ख़ासी चर्चा हुई, वहीं विद्रोह को दबाने के लिए अंग्रेजों ने भी काफ़ी जुल्म किए.

हज़ारों लोगों की हत्या हुई, सैकड़ों महिलाएं मारी गईं. इनमें बहादुर शाह के हरम की महिलाएं शामिल हैं. बच्चों को भी नहीं छोड़ा गया.

ये कत्लेआम 'अल्बियन के एंजिल्स' में जितना बताया गया है, उससे कई गुना ज़्यादा है. चाहे वो भारतीय रहे हों या फिर अंग्रेज, जिन्हें ये सब झेलना पड़ा उनके लिए ये दुर्भाग्यपूर्ण ही था.

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  • आर वी स्मिथ
  • वरिष्ठ इतिहासकार, बीबीसी हिंदी के लिए

11 मई 2018

1857 में क्या हुआ 1857 के स्वतंत्रता संग्राम पर चर्चा करें - 1857 mein kya hua 1857 ke svatantrata sangraam par charcha karen

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आज़ादी की पहली लड़ाई यानी साल 1857 का विद्रोह भारतीय इतिहास के लिए कई मायनों में महत्वपूर्ण है. इस संघर्ष के साथ ही भारत में मध्यकालीन दौर का अंत और नए युग की शुरुआत हुई, जिसे आधुनिक काल कहा गया.

इस संघर्ष के दौरान एक और ऐसी चीज थी जिस पर गौर करना ज़रूरी है वो था ब्रितानी और भारतीय प्रतिद्वंदियों के बीच फ़ैला अंधविश्वास.

लाला हनवंत सहाय के दादा ने चांदनी चौक में सुना था कि जब लाल क़िले की प्राचीर के ठीक ऊपर नया चांद (पखवाड़े का पहला चांद) पहुंच जाएगा तो लाल क़िले का आंगन फ़िरंगियों के खून से सराबोर हो जाएगा, लेकिन अगर वो खून बहता हुआ यमुना नदी में पहुंच गया और उसने यमुना को अपवित्र कर दिया तो अंग्रेज एक बार फिर वो सब जीत जाएंगे जो कुछ उन्होंने गवांया होगा.

साल 1912 में हुए हार्डिंग बम कांड की साजिश रचने के लिए हनवंत सहाय को भी गिरफ्तार किया गया था, हालांकि उस समय तक उनके दादा की मौत हो चुकी थी.

फ़ैज़ाबाद के मौलवी, अहमदुल्लाह शाह ने नए चांद से जुड़ी ये भविष्यवाणी की थी. हांलाकि उन्होंने ये बात दिल्ली की बजाय मेरठ के मुख्य बाज़ार में कही थी. वहां की दीवारों पर लाल रंग से लिखा हुआ था 'सब लाल होगा.'

सर चार्ल्स नेपियर का कथन कि, ''अगर वे गवर्नर जनरल बनते हैं तो ईसाई धर्म को राज्य धर्म बना देंगे क्योंकि भारत अब इंग्लैंड के आधीन हो गया है'' का विरोध करते हुए मौलवी अहमदुल्लाह ने हिंदुओं और मुसलमानों से अपील की थी कि वो मिलकर अपने पूर्वजों के भरोसे और विश्वास को बचाएं.

मेरठ के सदर बाज़ार में मौलवी की इन बातों का वहां मौजूद सिपाहियों पर गहरा असर देखने को मिला था. 'मारो फ़िरंगियों को' की पुकार लगाते सभी सिपाही छावनी परिसर की तरफ प्रवेश कर गए और अंग्रेजों के बंगलों में जा घुसे.

40 साल के कर्नल जॉन फिनिस ने जब इन सिपाहियों को रोकने की कोशिश की तो उनके सिर पर गोली मार दी गई, रविवार और सोमवार को कई लोगों की जान गई, मरने वालों में जॉन पहले थे. बाद में सिपाही दिल्ली के लिए रवाना हो गए.

शिव का संदेश, फ़कीर का कलमा

दिल्ली की तरफ जाते इन सिपाहियों को आसमान में उड़ता हुआ नीलकंठ पक्षी दिखा. सिपाहियों में शामिल हिंदुओं ने कहा कि 'देखो हमारे भगवान शिव हमें रास्ता दिखा रहे हैं.'

कुछ ही देर बाद एक सफ़ेद दाढ़ी वाले फ़कीर दिखे, जो कलमा पढ़ रहे थे. मुसलमान सिपाहियों ने इसे अपने लिए शुभ संकेत माना. हालांकि एक कोबरा सांप ने इस फ़कीर को कलमा पढ़ने के दौरान काफी परेशान किया. वो अपना फ़न फैलाए फ़कीर के पास ही मौजूद रहा और फ़कीर को डर लगता रहा कि कहीं सांप उन्हें काट ना ले.

जब पठान सिपाहियों ने उस सांप को मारने के लिए पत्थर उठाए तो वहां मौजूद ब्राह्मण और राजपूत सिपाहियों ने उन्हें ऐसा करने से मना कर दिया क्योंकि उनका कहना था कि ये नाग भगवान शिव का प्रतीक है जो उन्हें दुआएं देने आया है.

उस सांप के डर से फ़कीर अपने चिमटे के साथ उठ गए, इसे देख सांप भी झाड़ियों में चला गया.

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बहादुर शाह का सपना

उस दौरान की एक और कहानी काफ़ी प्रचलित है. ये कहानी बहादुर शाह ज़फ़र से जुड़ी है. बहादुर शाह ज़फ़र विद्रोही सिपाहियों का नेतृत्व करने के लिए पूरी तरह तैयार नहीं थे, लेकिन कहा जाता है कि एक सपने ने उनके विचार को बदल दिया.

बहादुर शाह ज़फ़र के निजी सचिव जीवन लाल के मुताबिक बादशाह को एक रात सपने में अपने दादा शाह आलम दिखाई दिए, उन्होंने बादशाह से कहा कि वक्त आ गया है कि 100 साल पहले हुई प्लासी की लड़ाई का बदला लिया जाए. इसके बाद बहादुर शाह ज़फ़र विद्रोही सिपाहियों का नेतृत्व करने के लिए तैयार हो गए.

हालांकि उस समय बहादुर शाह की उम्र 82 वर्ष थी और वे लगातार होने वाली खांसी की वजह से बहुत कम सो पाते थे.

बाद में उनकी रानी ज़ीनत महल ने उन्हें स्वतंत्रता सेनानियों का साथ देने के लिए मनाया था.

लोगों का इस तरह का भरोसा था कि लाल क़िले के ऊपर एक प्रेत छाया को मंडराते देखा गया, फरवरी 1707 में औरंगज़ेब की मृत्यु से पहले भी ऐसी छवि दिखी थी.

कश्मीरी गेट के पास एक बिना सिर वाले योद्धा को घोड़े पर दौड़ते हुए देखा गया था. उसे दुंड कहा गया जिसके महज़ कंधे और गर्दन ही थे. इसी दुंड को बाद में बरेली, आगरा, लखनऊ, जयपुर और फ़ैज़ाबाद में भी देखा गया था. जहां-जहां भी उसे देखा गया वहां रक्तपात हुआ.

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दिल्ली के मुग़ल बादशाह बहादुर शाह ज़फ़र के आत्मसमर्पण की तस्वीर. उन्हें दिल्ली से बर्मा ले जाया गया था

अंग्रेज़ सिपाहियों को भी दिखे बुरे सपने

सिर्फ़ भारतीय सिपाही ही नहीं बल्कि अंग्रेज़ सिपाहियों ने भी रिज़ के पास कुछ अज़ीब दृश्य देखने की बात कही. एक अंग्रेज सिपाही ने शहर में राजाओं की लंबी कतार देखी जो कुछ दूरी पर जाकर गायब हो रही थी, इसे मुगल साम्राज्य के अंत के तौर पर माना गया.

एक अन्य अंग्रेज सिपाही ने अपने पिता को देखा कि वे उन्हें उंगली दिखाते हुए आने वाले ख़तरे के प्रति चेतावनी दे रहे हैं.

एक ब्रिटिश महिला हैरिएट टाइटलर जो कि कैप्टन रोबर्ट टाइटलर की पत्नी थी, उन्होंने देखा कि उनके पेट में पल रहा बच्चा बहुत ही मुश्किल दौर में हैं लेकिन बाद में उन्हें कुछ पंजाबी या पठानी सिपाही बचा लेते हैं.

बाद में हैरिएट ने दिल्ली के रिज इलाके में एक बच्चे को जन्म दिया, उस समय वहां बहुत बारिश हो रही थी और बच्चे को दस्त की शिकायत हो गई जिससे वो लगभग मरने जैसी हालत में पहुंच गया. तब हैरिएट अपने बच्चे को किसी तरह बचाते हुए करनाल तक ले गईं.

शाहजहांपुर में एक ईसाई पादरी की बेटी ने सपना देखा कि बहुत से लोगों को मार दिया गया है जिनमें उनके पिता भी शामिल हैं. उन्होंने देखा कि काले कपड़े ओढ़े एक आदमी आधी रात को उनके घर की तरफ आ रहा है और सीढ़ियों तक आने के बाद गायब हो जाता है.

उनका यह सपना 1857 में मई की एक सुबह सच साबित हुआ जब विद्रोही सिपाहियों ने बहुत से फ़िरंगियों को मार डाला, इनमें उस लड़की के पिता भी शामिल थे, हालांकि उनकी मां इस हमले से बच निकलने में कामयाब रहीं.

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बुरे सपने और उनका सच होना

चांदनी चौक में एक सिख सेवादार ने सपना देखा कि लाल मंदिर से लेकर फ़तेहपुरी मस्जिद तक कई लोगों को फांसी पर लटकाया गया है. बाद में यह बात भी सच होती दिखी जब अंग्रेजों ने विद्रोह में शामिल बहुत से सिपाहियों को फांसी पर लटकाया.

मुगल परिवार से जुड़ी एक बुजुर्ग महिला भी अपने बुरे सपनों से परेशान थीं. उन्होंने देखा कि गुरुद्वारा शीशगंज के सामने बहुत से शव बुरी हालत में सड़ रहे हैं, और उनकी गंध उन्हें जागने के बाद भी महसूस हो रही थी.

बाद में यह सपना भी कुछ हद तक सच साबित होता दिखा जब बहादुर शाह ज़फ़र के दो बेटों और एक पोते को लेफ्टिनेंट हडसन ने खूनी दरवाज़े पास मार डाला और उनके शव को गुरुद्वारे के पास सड़ने के लिए फेंक दिया.

सर सैयद अहमद खान के एक रिश्तेदार ने सपने में देखा कि दरियागंज के पास जो नहर बहती है वह पूरी तरह खून से भरी हुई है.

जब संघर्ष थोड़ा खत्म होने लगा तब सर सैयद अपने घर पहुंचे और उन्होंने देखा कि उनका घर पूरी तरह अस्त-व्यस्त हो चुका है. उनका वह रिश्तेदार कहां गया उन्हें भी पता नहीं चला.

खूनी दरवाज़ा या अलाउद्दीन का लाल दरवाज़ा के पास शाम के वक्त दिल्ली गेट की तरफ चलते हुए एक आदमी ने खून बहते हुए देखा क्योंकि वहां किसी की हत्या हो गई थी.

वहीं मई 1857 की शुरुआत में यमुना के पास एक मस्जिद में एक नंगे फ़कीर को 'मर-मर' रटते हुए सुना गया. इसी तरह शाहजहांपुर में एक फ़कीर और जयपुर के एक साधु को भी इसी तरह 'मर-मर' रटते हुए सुना गया था.

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1857 के विद्रोह में शामिल होने वाले भारतीय विद्रोहियों को अंग्रेज़ों ने फ़ांसी पर लटका दिया था

आखिर इन तमाम घटनाओं और सपनों का क्या मतलब था? क्या ये किसी आने वाली घटना की परिचायक थीं?

इस बारे में सबकुछ सच-सच तो नहीं कहा जा सकता और ना ही सभी को झूठा बताया जा सकता है.

बाद में कई रिसर्च से यह बात साबित हुई कि इंसानी दिमाग में आने वाले वक्त को देखने की क्षमता होती है. शायद यही वजह है कि इन तमाम सपनों को महज़ बकवास बताकर ख़ारिज नहीं किया जा सकता.

बल्लीमारान में हाकिम अहसनुल्लाह खान की हवेली में उसके पुराने माहौल को आज भी महसूस किया जा सकता है. हाकिम खान, बहादुर शाह ज़फ़र के ना सिर्फ़ निजी डॉक्टर थे बल्कि उनके सबसे करीबी सलाहकार भी थे.

थोड़ी ही दूरी पर लाल कुआं में राजा की सबसे युवा रानी ज़ीनत महल का पुश्तैनी घर है जिसे अब स्कूल में तब्दील कर दिया गया है.

वहीं करोल बाग में राव तुला राम स्कूल रेवाड़ी के बहादुर शासक की याद दिलाता है जिनके पूर्वज राव तेज सिंह ने साल 1803 में पटपड़गंज के युद्ध में सिंधिया का साथ दिया था. नवंबर 1857 में नारनौल के युद्ध में जब राव तुला राम हार गए तो वे तांत्या टोपे के साथ शामिल हो गए और 1862 में वे रूस चले गए.

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1857 में क्या हुआ था?

Indian Rebellion of 1857: 10 मई देश के लिए एक ऐतिहासिक दिन है. आज के दिन साल 1857 में उत्तर प्रदेश के मेरठ से आजादी की पहली लड़ाई की शुरुआत हुई थी. इस दिन कुछ भारतीय सैनिकों ने ब्रिटिश राज के खिलाफ विद्रोह का बिगुल फूंका था. अंग्रेजों पर हमला कर इस दिन भारतीय सैनिकों ने मेरठ पर कब्जा किया था.

1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में क्या हुआ था?

इस विद्रोह का आरंभ छावनी क्षेत्रों में छोटी झड़पों तथा आगजनी से हुआ था परन्तु जनवरी मास तक इसने एक बड़ा रूप ले लिया। विद्रोह का अन्त भारत में ईस्ट इंडिया कम्पनी के शासन की समाप्ति के साथ हुआ और पूरे भारत पर ब्रिटिश ताज का प्रत्यक्ष शासन आरंभ हो गया जो अगले ९० वर्षों तक चला।

1857 का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का तात्कालिक कारण क्या था?

उत्तर- बैरकपुर छावनी में 29 मार्च, 1857 को मंगल पाण्डे नामक सैनिक ने चर्बी वाले कारतूस को भरने से इंकार कर दिया और उत्तेजित होकर अंग्रेज अधिकारियों की हत्या कर दी। फलस्वरूप उसे बन्दी बनाकर 8 अप्रैल 1857 को फाँसी दे दी गयी। इस प्रकार चर्बी लगे कारतूस 1857 की क्रान्ति का तात्कालिक कारण बना।

1857 की क्रांति के बारे में आप क्या जानते हैं लिखो?

भारत का पहला स्वतन्त्रता संग्राम ब्रिटिशों के विरुद्ध अनेक राजनितिक, सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक और सैनिकों के रोष के होने से हुआ। पहाड़ी राज्यों के लोग भारत के अन्य भागों के लोगों की तरह सक्रिय नहीं थे। बुशहर के आलावा लगभग सभी लोग और उनके शासक क्रांति के समय निष्क्रिय रहे।