दुष्यंत कुमार के जीवन का परिचय देते हुए उनकी साहित्यिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। Show
जीवन-परिचय-दुष्यंत कुमार नई कविता के सशक्त हस्ताक्षर हैं। इनका जन्म। सितम्बर, सन् 1933 को राजापुर-नवादा, जिला बिजनौर में हुआ था। उनके बचपन का नाम दुष्यंत नारायण था। इन्होंने प्रयाग विश्वविद्यालय से एमए की उपाधि प्राप्त की। उनके साहित्यिक जीवन का प्रारंभ भी प्रयाग से ही हुआ। उनके घनिष्ठ मित्रों में कमलेश्वर, माकण्डेय आदि थे। वे ‘परिमल’ की गोष्ठियों में भाग लेते रहे। ‘नये पत्ते’ जैसी महत्वपूर्ण पत्रिका के साथ वे जुड़े रहे। उन्होंने कुछ समय तक आकाशवाणी में भी नौकरी की। बाद में सहायक निदेशक के रूप में मध्य प्रदेश के भाषा विभाग में कार्य किया। वे अधिक दिन तक जीवित न रह सकें। तैंतालीस वर्ष की अल्पायु में ही 30 दिसम्बर, 1975 को भोपाल में उनकी मृत्यु हो गई। साहित्यिक विशेषताएं: दुष्यंत कुमार ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिन्दी में एम. ए. किया। उनके साहित्यिक जीवन का आरंभ इलाहाबाद से ही हुआ। उन्होंने ‘परिमल’ की गोष्ठियों में सक्रिय रूप से भाग लिया और ‘नए पत्ते’ जैसे महत्त्वपूर्ण पत्र से जुड़े रहे। दुष्यंत कुमार ने अपनी आजीविका के लिए आकाशवाणी में नौकरी की और देश के अनेक आकाशवाणी केंद्रों पर हिन्दी कार्यक्रमों को सँभालने का महत्वपूर्ण कार्य किया। बाद में सहायक निदेशक के रूप में मध्य प्रदेश के भाषा विभाग से जुड़ गए। दुष्यंत कुमार का लेखन सहज और स्वाभाविक था, जिससे उन्हें लोकप्रियता प्राप्त हुई। हिन्दी कविता में गीत और गजल लिखने में दुष्यंत कुमार का कोई सानी नहीं था। उन्होंने कविता, के क्षेत्र में कई नए प्रयोग किए, किन्तु उनकी विशिष्ट देन है हिन्दी गजल। अपनी गजलों के बारे में उन्होंने लिखा है-’ मैं स्वीकार करता हूँ कि गजल को किसी भूमिका की जरूरत नहीं होती...मैं प्रतिबद्ध कवि हूँ..यह प्रतिबद्धता किसी पार्टी से नहीं, आज के मनुष्य से है और मैं जिस आदमी के लिए लिखता हूँ, यह भी चाहता हूँ कि वह आदमी उसे पड़े और समझे।’ श्री दुष्यंत कुमार नई कविता के एक प्रतिभाशाली कवि थे। उन्होंने कविता के क्षेत्र में अनेक सफल प्रयोग किए, किन्तु उनकी ख्याति का आधार रहे हैं-गीत और गजल। अन्य विधाओं के समान गजल भी हिन्दी के लिए नई रही है। गजल लिखने में जो सलीका और अंदाज होना चाहिए, वह दुष्यंत कुमार में हमें देखने को मिलता है। दुष्यंत कुमार का लेखन सहज एवं स्वाभाविक था। उन्होंने कविता के क्षेत्र में कई नए प्रयोग किए। वे मूलत: कवि थे, किन्तु उन्होंने उपन्यास और नाटक-विद्या में भी अपनी प्रतिभा का परिचय दिया। ‘एक कंठ विषपायी’ दुष्यंत कुमार का एक महत्वपूर्ण गीति नाट्य है। मुख्य काव्य रचनाएँ: सूर्य का स्वागत, आवाजों के घेरे, साये में धूप, जलते हुए वन का वसंत आदि। उपन्यास-छोटे-छोटे सवाल, गिन में एक वृक्ष, दोहरी जिंदगी। 3750 Views हमको मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिन’ दिल के खुश रखने को गालिब ये ख्याल अच्छा है। दुष्यंत की गज़ल का चौथा शेर पढ़ें और बताएँ कि गालिब के उपर्युक्त शेर से वह किस तरह जुड़ता है? दुष्यंत की गजल का चौथा शेर है: खुदा नहीं, न सही, आदमी का ख्वाब सही, इस शेर और गालिब के शेर मे काफी समानता दिखाई देती है। ■ गालिब स्वर्ग की वास्तविकता से परिचित है, पर दिल को खुश करने के लिए उसकी मनोहर कल्पना करना बुरा नहीं है। ■ दुष्यंत का शेर भी आदमी’ के ख्वाब की असलियत जानता है, पर दिल को खुश करने के लिए हसीन नजारे की झलक भी काफी होती है। दोनों शेरों में शायर काल्पनिक दुनिया में विचरण करता है और मन को बहलाने या भ्रम में रखने का प्रयास करता है। 1578 Views कहाँ तो तय था चिरागाँ हरेक घर के लिए, प्रसंग: प्रस्तुत पक्तियां दुष्यंत कुमार की गजल ‘साये में धूप’ से अवतरित हैं। राजनीति और समाज में जो कुछ चल रहा है उसे खारिज करने और विकल्प की तलाश इस गजल का केन्द्रीय भाव है। व्याख्या-कवि राजनीतिज्ञों पर व्यंग्य करते हुए कहता है कि राजनीतिज्ञ लोगों को बड़े-बड़े लुभावने सपने दिखाते हैं। उन्होंने यह तय किया था कि प्रत्येक घर के लिए एक चिराग होगा अर्थात् हर घर को रोशनी प्रदान की जाएगी। इन घरों में रहने वालों के जीवन में खुशहाली आएगी। पर उनका आश्वासन थोथा होकर रह गया। यथार्थ स्थिति यह है कि पूरे शहर के लिए भी एक चिराग नहीं है। यह है कथनी और करनी का अंतर। पूरा शहर अंधकार में डूबा है अर्थात् अभावों में रह रहा है। इस बनावटी समाज की दुनिया बड़ी विचित्र है। यहाँ तो पेड़ों की छाया में भी धूप लगती है अर्थात् यहाँ लोगों को शांति नहीं मिल पाती। यहाँ से कहीं दूर चल देना चाहिए। यह जाना कुछ देर के लिए न होकर पूरी उम्र भर के लिए होना चाहिए। इस समाज में रहना ठीक नहीं है। विशेष- 1. राजनीतिज्ञों की कथनी-करनी का अंतर दर्शाया गया है। 2. दरख्तों के साये में धूप लगना ‘विरोधाभासी स्थिति है, अत: विरोधाभास अलंकार का प्रयोग है। 3. उर्दू-शब्दों का भरपूर प्रयोग किया गया है, जो गजल विधा के लिए उपयुक्त भी है। 9727 Views न हो कमीज तो पाँवों से पेट ढँक लेंगे, प्रसंग- प्रस्तुत पंक्तियाँ दुष्यंतकुमारी गजल ‘साये में धूप’ से अवतरित हैं। व्याख्या-कवि अभावों के मध्य जी लेने की बात कहता है। यदि हमारे पास पहनने के लिए कमीज नहीं होगी तो हम पाँवों को मोड़कर अपने पेट को ढक लेंगे। ऐसे लोग जीवन के सफर के लिए बहुत सही होते हैं। हमें बेशक ईश्वर न मिल पाए तो न मिले। आदमी को उसका सपना ही काफी है। उसे सपने में कोई खूबसूरत दृश्य तो दिखाई देगा। यही उसके लिए काफी है। विशेष- 1. कवि हसीन ख्वाब देखने का पक्षपाती है। 2. ‘पाँवों से पेट ढक लेना’ विशिष्ट प्रयोग है। 3. उर्दू शब्दों की भरभार है। 4187 Views ‘यहाँ दरख्तों के साये में धूप लगती है’, यह वाक्य मुहावरे की तरह अलग-अलग परिस्थितियों में अर्थ दे सकता है मसलन, यह ऐसी अदालतों पर लागू होता है, जहाँ इंसाफ नहीं मिल पाता। कुछ ऐसी परिस्थितियों की कल्पना करते हुए निम्नांकित अधूरे वाक्यों को पूरा करें:(क) यह ऐसे नाते-रिश्तों पर लागू होता है, जहाँ प्यार नहीं मिलता। (ख) यह ऐसे विद्यालयों पर लागू होता है, जहाँ अच्छी तालीम नहीं मिलती। (ग) यह ऐसे अस्पतालों पर लागू होता है, जहां ठीक इलाज नहीं होता। (घ) यह ऐसी पुलिस व्यवस्था पर लागू होता है, जहाँ लोगों को सुरक्षा नहीं मिलती। 437 Views यहाँ दरख्तों के साये में धूप लगती है में कौनसा अलंकार है?दरख्तों के साये में धूप लगना 'विरोधाभासी स्थिति है, अत: विरोधाभास अलंकार का प्रयोग है।
दरख्तों के साये में धूप कैसे लग सकती है?दरख्तों के साये में धूप कैसे लग सकती है? उत्तर: जब रक्षक ही भक्षक बन जाते हैं, शासक शोषक का रूप धारण कर लेते हैं, रिश्तेदार और मित्र जड़े खोदने लग जाते हैं। तो पेड़ों के साये में भी शीतलता नहीं मिलती बल्कि धूप की तपिश का अहसास होता है।
साये में धुप लगती है में कौन सा अलंकार है अन्योक्ति मानवीकरण विरोधाभास?अतः यहाँ विरोधाभास अलंकार है।
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