वर्ण व्यवस्था की उत्पत्ति के सिद्धान्त Show
वर्ण व्यवस्था की उत्पत्ति के संबंध में अनेक तर्क दिये गये हैं जो निम्न लिखित है: वर्ण व्यवस्था की उत्पत्ति का दैवी उत्पत्ति सिद्धान्त
ऋग्वेद के पुरूष सूक्त (10.90.12) में सर्वप्रथम वर्ण व्यवस्था को देवकृत बताया गया है जहां उल्लेखित है-
वर्ण व्यवस्था की उत्पत्ति का गुण सिद्धान्त
वर्ण व्यवस्था की उत्पत्ति का रंग से उत्पत्ति सिद्धान्त
वर्ण व्यवस्था की उत्पत्ति का कर्म सिद्धान्त
वर्ण व्यवस्था की उत्पत्ति का जन्म का सिद्धान्त
Also Read .... वर्ण व्यवस्था की उत्पत्ति के संबंध में सबसे प्राचीन सिद्धांत का नाम क्या है?प्राचीन धर्मशास्त्रों में वर्णों की उत्पत्ति ईश्वरकृत एवं दैवी मानी गई। इसे परम्परागत सिद्धान्त भी कहा गया। इस सिद्धान्त के अनुसार वर्णों की उत्पत्ति ईश्वरकृत है।। ऋग्वेद के दशम् मण्डल के पुरुषसूक्त में वर्ण सम्बन्धी वर्णों की उत्पत्ति विराट पुरुष से हुई।
वर्ण व्यवस्था उत्पत्ति का मुख्य सिद्धांत क्या है?वर्ण व्यवस्था की उत्पत्ति का कर्म सिद्धान्त
कर्म के सिद्धान्त से वर्ण की उत्पत्ति से तात्पर्य यह है कि व्यक्ति जैसा कर्म करेगा उसे वैसा ही फल अर्थात वर्ण मिलेगा। कहने का तात्पर्य यह है कि जो व्यक्ति जितना अधिक सद्कर्म करेगा, उसे उतना ही अच्छा वर्ण अगले जन्म में मिलेगा।
वर्ण व्यवस्था का सर्वप्रथम उल्लेख कहाँ मिलता है?सर्वप्रथम सिन्धु घाटी सभ्यता में समाज व्यवसाय के आधार पर विभिन्न वर्गों में बांटा गया था जैसे पुरोहित, व्यापारी, अधिकारी, शिल्पकार, जुलाहा और श्रमिक। वर्ण व्यवस्था का प्रारम्भिक रूप ऋग्वेद के पुरुषसूक्त में मिलता है। इसमें 4 वर्ण ब्राह्मण, राजन्य या क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र का उल्लेख किया गया है।
कौन सी धार्मिक पुस्तक वर्ण व्यवस्था की उत्पत्ति का प्रथम संकेत है?आमतौर पर इस अवधारणा का पता ऋग्वेद के पुरुष सूक्त पद्य से लगाया जाता है। मनुस्मृति में वर्ण व्यवस्था पर टिप्पणी अक्सर उद्धृत की जाती है. वर्ण-व्यवस्था की चर्चा धर्मशास्त्रों में व्यापक रूप से की जाती है।
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